Thursday, December 25, 2008

वैज्ञानिक दंपती ने प्लास्टिक से बनाया पेट्रॉल

प्रस्तुति - नवभारत टाइम्स

कचरे में फेंकी गई प्लास्टिक की थैलियों को वैज्ञानिक प्रक्रिया से गलाकर
पेट्रॉल में परिवर्तित किया जा सकता है। जानी-मानी वैज्ञानिक जोड़ी महेश्वर शरण और उनकी पत्नी माधुरी ने ऐसी टेक्नॉलजी तैयार की है कि जिससे 25 किलो प्लास्टिक की थैलियों से लगभग 25 लीटर पेट्रॉल बनाया जा सकता है। पति महेश्वर आईआईटी-मुम्बई के केमिकल टेक्नॉलजी डिपार्टमंट से रिटायर हुए हैं और पत्नी माधुरी ने पति के हार्ट अटैक आने के बाद 'रिलायंस लाइफसाइंसेस' के डाइरेक्टर का पद त्याग चुकी हैं।

दोनों बेटियों के अमेरिका में बस जाने के बाद आजकल शरण दंपती भारत को 'कटिंग एज टेक्नॉलजी' में बढ़त दिलाने में दिनरात जुटे हुए हैं। पति-पत्नी के निर्देशन में 22 वैज्ञानिक नैनो-टेक्नॉलजी के विभिन्न क्षेत्रों में रिसर्च कर रहे हैं। महेश्वर भारत में कार्बन नैनो-टेक्नॉलजी के जनक माने जाते हैं। माधुरी जी बताती हैं कि 26 जुलाई 2005 को मुम्बई को डुबोने वाली भीषण बाढ़ ने मुम्बई के सुदूर उपनगर डोंबिवली के 'लोढा हैवन' की हरियाली में बना 'शरण बंगला' भी डुबो दिया।

इसी तबाही से हुई थी चमत्कारिक परिणाम देने वाले एक्सपेरिमेंट्स की शुरूआत। तब प्रशासन और सरकार ने प्लास्टिक की थैलियों को बाढ़ के लिए जिम्मेदार ठहराया था, जिसकी वजह से नालियां बंद हो जाती हैं। ये भय भी व्यक्त किया गया कि प्लास्टिक की झिल्लियां कई पीढ़ियों के लिए सिरदर्द बनेंगी क्योंकि ये हजारों साल तक नष्ट नहीं होंगी।

भारत के अलावा अमेरिका, इंग्लैंड, जापान, इटली में अपना लोहा मनवा चुके मस्तिष्कों की इस बेजोड़ युति ने हल निकाल ही लिया। हल भी ऐसा कि विश्व भर के पर्यावरण के सामने मुंह बाए खड़ा प्लास्टिक का संकट तो हल हुआ ही दिनों-दिन कम हो रहे ऊर्जा भंडार को भी एक नया स्त्रोत भी दिखाई देने लगा। कल्याण से बिरला कॉलिज में सीएसआईआर की सहायता से बने भारत के एकमात्र 'नैनो बॉयो-टेक्नॉलजी सेन्टर' में युद्धस्तर पर काम शुरू हुआ। महीने भर में प्लास्टिक को पिघलाकर मोम (वैक्स) बनाने की टेक्नॉलजी ने आकार लिया।

वैज्ञानिक युगल ने सितंबर 2005 को महाराष्ट्र सरकार को पत्र लिखकर बताया कि प्लास्टिक के संकट पर हल निकाल लिया गया है। नौकरशाही के मकड़जाल के बीच से आजतक कोई खबर नहीं जवाबी प्रतिक्रिया नहीं आई है। मगर वैज्ञानिक जगत की हलचल केन्द्रीय पर्यावरण विभाग तक पहुंची और दिल्ली में प्लास्टिक से 'वैक्स' बनाने का संयंत्र कागजों पर दौड़ लगा रहा है।

यह 'क्रांतिकारी' संयंत्र वास्तव में आकार ले पाता, इससे पहले शरण दंपती की लैबोरेटरी में प्लास्टिक से पट्रोलियम बनाए जाने की नई खबर ने हलचल मचा दी है। ' नवभारत टाइम्स' के लिए विशेष तौर पर किए परीक्षण में दोनों ने उच्च दर्जे का पेट्रॉल बनाने का प्रदर्शन किया। एक छोटे से 'फर्नेस' में प्लास्टिक के कचरे से बने दाने डाले गए। कंटेनर में ज्यादा प्लास्टिक भरा जा सके, इसके लिए प्लास्टिक की थैलियों को गलाकर उनके दाने बना लिए जाते हैं। परीक्षण में एक 'कैटेलिस्ट' की कुछ बूंदें डाली जाती हैं और कुछ घंटे तक करीब 400 डिग्री तक तपाने के बाद दूसरे सिरे पर लगे पाइप में पेट्रॉल जमा होने लगता है। कैटलिस्ट, तापमान और प्लास्टिक की क्वॉलिटी और इस मिश्रण की मात्रा बदलकर वैक्स, फरनैस आयल या पेट्रॉल, विभिन्न तरह के पेट्रो-केमिकल पाए जा सकते हैं। धीर-गंभीर महेश्वर शरण अपने कम शब्दों के बोलचाल में स्पष्ट करते हैं।

कभी धीरूभाई अंबानी से 65 लाख की तन्ख्वाह के अलावा रोजाना जामनगर से मुम्बई लौटने के लिए प्राइवेट प्लेन की मांग रखकर उसे मनवाने वाली माधुरी इस वैज्ञानिक चमत्कार के बाद अपना उत्साह थाम नहीं पा रहीं। 'इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह ''क्लीन फ्यूल'' है। न तो परीक्षण में किसी तरह की जहरीली गैस निकलती है, न ही कोई केमिकल कचरा बचता है। सभी कुछ या तो वैक्स या पेट्रॉल में बदल जाता है या फिर मीथेन गैस में, जिसका उपयोग फिर ऊर्जा के तौर पर किया जा सकता है।

एक और बात यह भी कि इस पेट्रोल में खतरनाक 'लेड' बिलकुल नदारद है।' आज पेट्रॉल और वैक्स बनाने के लिए जिस मशीनरी का उपयोग किया जा रहा है, वह घर में भी लगाई जा सकती है। महाराष्ट्र में जहां यह काम हो रहा वहां प्लास्टिक की पतली झिल्लियों पर प्रतिबंध लगाया चुका है, शरण दंपती के एक्सपेरिमंट में यह बात सामने आई है कि इसी से कॉस्मेटिक उपयोग में लाया जानेवाला 'सॉफ्ट वैक्स' और बेहतर पेट्रॉल बनता है।

वैक्स भी भारत में नहीं बनता और इसको फिलहाल ईरान और चीन से इम्पोर्ट किया जा रहा है। फिलहाल इसके कमर्शल प्रॉडक्शन की कॉस्टिंग उनके कुछ मित्र कर रहे हैं। जाहिर है, कैटलिस्ट के केमिकल काम्पोजीशिन की तरह फिलहाल इस बारे में वे गोपनीयता बरत रहे हैं।

Wednesday, December 24, 2008

मैडॉफ - एक जालसाज


अमेरिका के शेयर बाज़ारों में सबसे प्रतिष्ठित नैस्डैक के पूर्व चेयरमैन बर्नार्ड मैडॉफ अपनी छोटी सी जेल यात्रा के बाद एक करोड़ डॉलर के मुचलके पर रिहा हो चुके हैं। पश्चिमी दुनिया के लिए मंदी तबाही का सबब बनी हुई है, लेकिन अब इसमें एक नया आयाम मैडॉफ का भी जुड़ गया है। पहली नजर में मैडॉफ का घोटाला 50 अरब डॉलर (करीब ढाई लाख करोड़ रुपये) का है, लेकिन यह इससे ज्यादा का भी हो सकता है। असली चिंता यह है कि अमेरिका और यूरोप में कहीं सतह के नीचे और भी बहुत सारे मैडॉफ अपना धंधा न चला रहे हों। जिस तरीके से मैडॉफ ने अपना साम्राज्य खड़ा किया, उसकी झलक भारत समेत कई अन्य पूर्वी समाजों में भी दिखाई देती रही है। मंदी ने उन सब की असलियत सामने ला दी तो आम आदमी को महंगाई और बेरोजगारी के साथ अब इस घपलेबाजी की एक नई विपत्ति का भी सामना करना पड़ेगा।

पुलिस के सामने अपने इकबालिया बयान में बर्नार्ड मैडॉफ ने बताया है कि शेयरों की खरीद-फरोख्त का उसका धंधा एक अर्से पहले डूब चुका है। तभी से अपने पुराने ग्राहकों के निवेश पर रिटर्न्स की अदायगी वह नए ग्राहकों के निवेश किए पैसों से करता आ रहा है। अभी की मंदी में जब नए ग्राहक आने बंद हो गए और पुराने ग्राहकों ने रिटर्न्स से संतुष्ट रहने के बजाय अपना मूलधन निकालने की कोशिश शुरू की तो मैडॉफ के सामने हाथ खड़े कर देने के अलावा कोई चारा नहीं बचा।

अर्थशास्त्र में ऐसे धंधे को पोंजी स्कीम के नाम से जाना जाता है। 1929 से शुरू हुई महामंदी के ठीक पहले अमेरिका में चार्ल्स पोंजी नाम का एक इतालवी जालसाज पकड़ा गया था, जो लोगों से साल भर में उनकी रकम 20 से 30 प्रतिशत बढ़ा देने के नाम पर वसूली करता था। उसका धंधा कई साल आराम से चलता रहा। लोग अपने पैसों पर बैंकों से चार या पांच गुना ब्याज पाकर खुश थे। इतने अच्छे ब्याज के बाद मूलधन वापसी की बात भला कौन सोचता। लेकिन इस भव्य इमारत की बुनियाद नए ग्राहकों की लगातार आवक पर टिकी हुई थी। पोंजी का कौशल अमेरिका में मौजूद अपने इतालवी संपर्क का अधिकतम लाभ उठाने में निहित था। नए ग्राहकों की उसके यहां लाइन लगी रहती थी, जिनकी जमा राशि से वह पुराने ग्राहकों को ब्याज की अदायगी कर दिया करता था। मंदी के माहौल में जब नए ग्राहक आने बंद हो गए और पुराने ग्राहकों ने मूलधन मांगना शुरू किया तो पोंजी का पिरामिड ढह गया।

बर्नार्ड मैडॉफ के साथ चार्ल्स पोंजी की तुलना धंधे की एकरूपता के अलावा किसी और संदर्भ में नहीं की जा सकती। पोंजी खुद एक गैरकानूनी प्रवासी था। अमेरिका में रहने का वीजा तक उसके पास नहीं था। उसके शुरूआती ग्राहकों में भी ज्यादातर इतालवी प्रवासी ही थे, जिनका खुद का गुजारा मेहनत-मजदूरी या छोटी-मोटी दुकानें चला कर होता था। इसके बरक्स मैडॉफ की गिनती न्यूयॉर्क के सबसे इज्जतदार व्यापारियों में होती थी। इस बात की तस्दीक कई साल तक उसके नैस्डैक का चेयरमैन बने रहने से की जा सकती है। और तो और, मैडॉफ ने कुछ समय तक भ्रष्ट गतिविधियों की जांच और रोकथाम के सरकारी विभाग में एक मानद पद भी संभाला था।

1960 के दशक में बर्नार्ड मैडॉफ का कारोबार पार्क में फव्वारे लगाने का था। इससे जुटाए गए 5000 डॉलरों के बल पर उसने शेयर ब्रोकरेज का अपना काम शुरू किया था। 1990 में पहली बार उसने साइड बिज़नस के रूप में लोगों के पैसे निवेश करने का काम शुरू किया और 2005 में पक्के रिटर्न के दावे के साथ मैनहटन में मौजूद एक भव्य दफ्तर से अपने हेज फंड की शुरुआत की। यहां हाशिये पर इस बात का उल्लेख किया जा सकता है कि जिस तरह चार्ल्स पोंजी ने अपने इतालवी होने का फायदा उठाया था, उसी तरह मैडॉफ ने अपने यहूदी होने का लाभ अमेरिकी फाइनैंशल पावर की रीढ़ समझे जाने वाले यहूदियों का भरोसा जीत कर उठाया। इसके बाद जो हुआ वह खुद में किसी मिथक की रचना जैसा है।

हालत यह थी कि मैडॉफ के यहां अपना पैसा जमा करने के लिए बड़े-बड़े लोग भिखारियों की तरह गिड़गिड़ाते थे, लेकिन दस लाख डॉलर से कम रकम उसके यहां स्वीकार ही नहीं की जाती थी। मिलियन डॉलर या इससे ज्यादा लगाना हो तभी आएं प्लीज। और सिर्फ तभी, जब मैडॉफ ऐंड कंपनी की ओर से आपको इसके लिए ऑफिशियल इन्वीटेशन भेजा जाए! बहुचर्चित हेज फंड बर्नार्ड एल। मैडॉफ एलएलसी का ब्रोशर बताता है कि मंदी हो या तेजी, 1990 के बाद से मैडॉफ की कंपनी ने लोगों के निवेश पर हर साल 11 प्रतिशत का रिटर्न दिया था। मैडॉफ के ग्राहकों की तुलना अस्सी साल पहले बने पोंजी के गरीब-अधपढ़ ग्राहकों से करने का सवाल ही पैदा नहीं होता। दुनिया के कुछ सबसे समझदार बैंकर, म्यूचुअल फंड और पेंशन फंड मैनिजर, वेलफेयर ट्रस्ट और न्यूनतम जोखिम पर पैसा लगाने वाले सबसे कंजर्वेटिव निवेशक भी उसके यहां अपना पैसा रखने के बाद चैन की सांस लेते थे।

एक आम भारतीय के लिए अहम सवाल यह है कि क्या बर्नार्ड मैडॉफ के कुछ छोटे-बड़े संस्करण भारत में भी सक्रिय हैं? इस मामले में अमेरिकी निवेशाचार्य (इनवेस्टमंट गुरु) वारेन बफेट की एक उक्ति गौर करने लायक है- ज्वार का पानी उतरने के बाद ही पता चलता है कि समुद्र में कौन नंगा तैर रहा था। यानी जितनी ज्यादा तेजी उतना ही फाइनैंशल घपलों का खतरा। चिट फंड और रीयल एस्टेट कंपनियों की बात ही छोड़ें, एक पुराना म्युचुअल फंड यूएस-64 का इस्तेमाल भी इसके अफसर पोंजी स्कीम की तरह ही कर रहे थे। फिक्स्ड मचुअरिटी स्कीम के नाम पर देश में जितनी भी योजनाएं चल रही हैं, सरकार को उन सभी के प्रबंधन को एक बार ठोंक-बजा कर देख लेना चाहिए। यही प्रक्रिया पीएफ और पेंशन के प्रबंधन पर भी आजमाई जानी चाहिए क्योंकि लंबी मंदी के माहौल में फिक्स्ड रिटर्न की बात कहना बड़े खतरों को न्योता देने जैसा ही है।

Sunday, December 21, 2008

स्वामी विवेकानंद की सूक्तियां (२)

४। संकल्प स्वतंत्र नहीं होता, वह भी कार्य कारण से बंधा एक तत्व है, लेकिन संकल्प के पीछे कुछ है, जो स्व - तन्त्र है ।

५। यदि आत्मा के जीवन में मुझे आनन्द नहीं मिलता, तो क्या मैं इन्द्रियों के जीवन में आनन्द पाउँगा? यदि मुझे अमृत नहीं मिलता, तो क्या मैं गड्ढे के पानी से प्यास बुझाऊं ? चातक सिर्फ बादलों से ही पानी पीता है और उंचा उड़ता हुआ चिल्लाता है , 'शुद्ध पानी। शुद्ध पानी ।' और कोई आंधी तूफान उसके पंखों को डिगा नहीं पाते और न ही उसे धरती का पानी पीने के लिए बाध्य कर पातें हैं ।

६। जिस प्रकार हाथी के दांत बाहर निकलते हैं, परन्तु अन्दर नहीं जाते, उसी प्रकार मनुष्य ने जो वचन एक बार मुख से निकल दिए, वे वचन पुनः वापिस नहीं जा सकते ।

Saturday, December 20, 2008

स्वामी विवेकानंद की सूक्तियां

आजकल स्वामी विवेकानंद जी को पड़ रहा हूँ । आप सभी भी उनकी कही कुछ सूक्तियों का आनन्द लीजिये ।

१। जिस बात की दुनिया को आज आवश्यकता है, वह है बीस ऐसे स्त्री पुरूष जो सड़क पर खड़े होकर सबके सामने यह कहने का साहस कर सके कि हमारे पास ईश्वर को छोड़कर और कुछ नहीं है । कौन निकलेगा ? डर की क्या बात है ? यदि यह सत्य है , तो और किसी बात की क्या परवाह ? यदि यह सत्य नहीं है, तो हमारे जीवन का ही क्या मूल्य है ?

२। कोई भी पति पत्नी को केवल पत्नी होने के नाते प्रेम नहीं करता, न कोई भी पत्नी पति को केवल पति होने के नाते प्रेम करती है । पत्नी में जो परमात्म - तत्व है, उसी से पति प्रेम करता है; पति में जो परमेश्वर है, उसी से पत्नी प्रेम करती है । प्रत्येक में जो ईश्वर तत्व है, वही हमें अपने प्रिय के निकट लाता हैप्रत्येक वस्तु में और प्रत्येक व्यक्ति में जो ईश्वर है, वही हमसे प्रेम कराता है । परमेश्वर ही सच्चा प्रेम है ।

३। प्रत्येक कर्मफल भले और बुरे का मिश्रण है । ऐसा कोई भी शुभ कार्य नहीं है, जिसमें अशुभ का संस्पर्श नहीं है । आग के चारों ओर व्याप्त धुए के समान कर्म में सदैव कुछ न कुछ अशुभ लगा रहता है । हमें ऐसे कार्यों में रत होना चाहिए, जिनमें भलाई अधिक से अधिक मात्रा में हो और बुराई कम से कम ।

Friday, December 19, 2008

अंतुले उवाच

अब माननीय अंतुले जी करकरे साहेब के बारे में कुछ बोले । कुछ समय पहिले अचुत जी भी कुछ बोले थे । और कुछ समय पहिले माननीय अमर जी भी शर्मा साहेब के बारे में कुछ बोले थे। माननीय नेताओं को कुछ भी बोलने की लत सी पड़ती जा रही है ।

Sunday, December 14, 2008

चुकंदर

सर्दियों में ताजे और लाल चुकंदर देखकर मन ललचा ही जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह सिर्फ सब्जी ही नहीं बल्कि कई बीमारियों की दवा भी है।
* रोजाना चुकंदर खाने या उसका रस पीने से खून की कमी दूर होती है।
* यह मस्तिष्क को स्वस्थ बनाए रखता है और शक्ति देता है।
* जोड़ो के दर्द में इसका रस फायदेमंद होता है।
* चुकंदर खाने से सर्दी-खांसी व फेंफड़ों की बीमारी नहीं होती।
* पाइल्स जैसी लाइलाज बीमारी को भी इससे काफी हद तक ठीक किया जा सकता था।
* इसके पत्ते मेंहदी के साथ पीसकर सिर में लगाने से बालों का झड़ना कम किया जा सकता है।

Thursday, December 11, 2008

१०% प्रतिशत

आप सोच रहे होगें कि ये १०% क्या है ? नया साल फिर हमारा स्वागत करने के लिए आ रहा है और कई लोग नए साल में कुछ पुरानी आदतों को छोड़ने की कसम खाने को तैयार बैठे हैं । ये पोस्ट उन सभी भाई बहिनों के लिए है । मेरा मानना है कि कोई भी आदत आप एक झटके में समाप्त नहीं कर सकतें हैं । इसलिए मैं सोचता हूँ कि १०% फार्मूला ज्यादा काम देगा । लेकिन लोग अपनी सामर्थ्य के हिसाब से इस प्रतिशत को कम ज्यादा कर सकतें हैं । आइये जाने कि ये १०% फार्मूला कैसे काम करेगा ।
मानिये आप हरियाली ज़्यादा चाहिते हैं तो आप अगिले साल में १०% पेड़ पौधे ज़्यादा लगायें । आप सिगरेट पीते हैं और छोड़ना चाहिते हैं तो आप अगिले साल में १०% कम पिए । आप नकारात्मक सोचतें हैं और आप सकारात्मकता की ओर बड़ना चाहिते हैं तो आप अगिले साल में १०% अधिक सकारात्मक सोचिये और करिए । आप हिन्दी को बढावा देना चाहिते हैं तो आप अगिले साल में १०% अधिक हिन्दी को बढावा देने वाला काम कीजिये ।
वैसे तो १०% काफी कम है लेकिन अगर १०% फार्मूला कई लोग आजमायें तो यह काफी क्रांति ला सकता है । लोग समय - समय इस फार्मूले के प्रतिशत कम ज्यादा कर सकतें हैं ।

Wednesday, December 10, 2008

शौक पपीता लगाने और मुफ्त खिलाने का



परोपकार के महत्व पर संस्कृत के एक श्लोक का हिंदी भावार्थ कुछ यूं है कि नदी अपना पानी नहीं पीती और पेड़ अपना फल नहीं खाते। इस श्लोक को सुना और पढ़ा तो बहुत लोगों ने होगा, लेकिन इसे जिस तरह जीवन में उतारा जम्मू के अशोक टाडिया ने, वैसा विरले ही कर पाते हैं।
शौकिया और व्यापार के लिए बागवानी करने वाले तो बहुत हैं, लेकिन ऐसे कितने लोग होंगे, जो बड़े पैमाने पर कोई फल उगाएं, लेकिन उसे बेचने की जगह लोगों को खिला दें, बिल्कुल मुफ्त। आप चकित तो होंगे, लेकिन कठुआ की हीरानगर तहसील के अशोक टाडिया को पपीते के पौधे लगाकर उसके फल लोगों को मुफ्त खिलाने का जुनून है। वह बस इतना चाहते हैं कि पपीते की खेती को बढ़ावा मिले, क्योंकि यह जम्मू के निर्धन किसानों के मुफीद है। दो पौधों से शुरुआत करने वाले अशोक की गृह वाटिका में आज सैकड़ों पौधे हैं।
पपीता बेचने से उन्हें काफी आमदनी हो सकती है, लेकिन अशोक फल बेचने के लिए तैयार नहीं। वह कहते हैं कि लोगों को खिलाकर जो आनंद मिलता है, वह चंद पैसे कमाकर नहीं मिल सकता। उनका कहना है कि जम्मू की जलवायु पपीते की खेती के अनुकूल है, लेकिन जागरूकता न होने के कारण लोग इसकी खेती से कतराते हैं। पपीते की खेती की शुरुआत उन्होंने मात्र दो पौधों से की, लेकिन बीज अच्छी क्वालिटी का न होने के कारण पेड़ों में फल काफी कम लगे। फिर उन्होंने उत्तरांचल से 25 ग्राम बीज मंगवाकर नर्सरी डाली, जिससे 350 पौधे तैयार हुए पपीते की खेती को बढ़ावा देने के लिए इसी नर्सरी से वह सैकड़ों पौधे मुफ्त बांट चुके हैं।
अशोक की देखादेखी और लोग भी पपीते की खेती में उतरे। अशोक का कहना है कि पपीता उगाने में काफी कम खर्च आता है तथा एक पौधे से एक वर्ष में 50-60 किलो फल मिलता है। कम लागत के कारण ही वह पपीते को जम्मू खासकर असिंचित क्षेत्र के किसानों के लिए वरदान मानते हैं। उधर बागवानी विभाग ने भी अब टाडिया से सीख लेते हुए किसानों को बीज उपलब्ध कराने की पहल की है। बागवानी अधिकारी अश्विनी शर्मा अशोक टाडिया की पहल के लिए तारीफ करते हैं। उनका कहना है कि विभाग पपीते का बीज बाहर से मंगवा कर लोगों को मुफ्त देने को तैयार है।

झाँसी प्रवास


प्रिय मित्रो,

आज मेरा झाँसी प्रवास समाप्त हुआ । मैं नवम्बर १२ से दिसम्बर ९ तक झाँसी में था । वहां पर मेरी इंटरनेट एक्टिविटी लिमिटेड थी । झाँसी में रहने में काफी अच्छा लगा । प्रतिदिन कुछ नया करने और देखने को मिला । कल मैं झाँसी के कुछ चित्र भेजूंगा ।