Saturday, March 21, 2009

लोगों के जज्बे ने हरे नर्मदा के कष्ट


इंदौर. जीवनदायिनी नर्मदा के डेढ़ किलोमीटर लंबे किनारे की दुर्दशा से द्रवित हुए सात लोगों ने हालात पर आंसू बहाने के बजाय उसे सबसे साफ-सुथरा करने का जो संकल्प लिया था उसे आखिरकार सवा साल में मूर्त रूप मिल ही गया।

अब कारवां बन चुका उनका यह मिशन गंगा, शिप्रा व खान शुद्धिकरण जैसे करोड़ों रु. की लागत वाले प्रोजेक्ट्स के कर्ताधर्ताओं के लिए एक मिसाल है और नर्मदा समग्र जैसे महाअभियान की प्रेरणा भी।

इस प्रयास की सफलता का आकलन इससे होता है कि बड़वाह के नजदीक नावघाटखेड़ी में नर्मदा के जिस तट पर जलदाग की गई लाशें अकसर तैरती दिख जाती थीं, जहां रोज 100-200 गाड़ियां धुलती थीं, जहां लोग अपने परिजनों की अस्थियां घाट पर ही पानी में प्रवाहित कर देते थे, जहां रंगपंचमी से गणगौर के बीच 25-30 गांवों के लोग अपने गोदड़े (रजाई, गद्दे व कंबल) धोने आते थे और जहां अनंत चतुर्दशी और नवरात्रि के बाद हजारों मूर्तियां पानी में प्रवाहित की जाती थी और जहां लोग किनारे पर बैठ शराबखोरी करते थे उस किनारे पर अब आपको कहीं भी अस्थि, मुंडन के बाल, फूलमाला, अस्थतेल का खाली पाउच, उपयोग किए गए साबुन का रेपर या अगरबत्ती का खाली पैकेट भी नजर नहीं आएगा।

इनके प्रयास कितने गंभीर हैं इसका अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब आप नर्मदा स्नान के लिए नावघाटखेड़ी पहुंचे तो साबुन, अगरबत्ती या तेल का पाउच आपके हाथ मे थमाने से पहले ही छोटी सी दुकान चलाने वाली सेवनबाई आपसे कहे कि साहब खाली पाउच या साबुन का कागज डिब्बे में ही डालना तो चौंकिए मत।

यहीं पर स्नानार्थियों से पूजा-अर्चना करवाने वाले गिरजाशंकर अत्रे और जयप्रकाश जोशी की पहली समझाइश भी कुछ ऐसी ही होती है। सुंदरदास बाबा के आश्रम से मौनी बाबा के आश्रम तक फैले इस नर्मदा के किनारे पर इन्होंने अपनी जेब का पैसा लगाकर चार वर्दीधारी चरणसिंह बाथम, जगन्नाथ, गोरेलाल तथा कालूराम तैनात करवाये जिनका एकमात्र काम ही यहां से वहां तक का क्षेत्र साफ रखवाना है।

ऐसे हुई शुरुआत
जनवरी 2008 में शुरू हुए इस सफर के पहले ही दिन के सहभागी सुधीर सेंगर भास्कर से कहते हैं मुझ सहित अकेले बड़वाह में 200 से ज्यादा लोग ऐसे हैं जो 12 महीने नर्मदा में ही स्नान करते हैं। हम लोगों में से रोज एक-दो लोग घाट का कुछ हिस्सा साफ कर लेते थे। जनवरी 2008 की शुरुआत में जब एक दिन हम स्नान के लिए पहुंचे और पानी में उतरे ही थे कि पूरी तरह सड़ चुकी एक लाश मेरे पांव से टकराई।

एक दिन हमारे साथी राजेंद्र राठौर ने देखा कि घाट पर खड़ा होकर एक व्यक्ति बोराभर अस्थि व भस्मी पानी में डाल रहा था। पर्व त्योहार, अमावस्या व पूर्णिमा पर स्नान के लिए जो लोग आते थे वे अपने कपड़े, बची हुई पूजन सामग्री तथा फूलमालाएं वहीं डाल जाते थे और इससे भारी गंदगी फैलती थी। किनारे की इसी दुर्दशा ने हमें व्यथित कर दिया और हमने तय किया कि हम हर हालत में इसमें सुधार लाकर रहेंगे। फिर हमने जोगेंद्र यादव, देवेश ठाकुर, बाबूभाई मंगले, प्रकाश अंबिया, मनोज गुप्ता तथा कुछ और लोगों ने साथ मिलकर इसे अंजाम देने का फैसला किया।

सबसे पहले बाबूभाई को राजी किया
जलदाग से हर महीने 4 हजार रु. कमाने वाले नावघाटखेड़ी के ही बाबूभाई नंगले पहले ही इस दौर में महाभियान में सहभागी बने। उन्होंने संकल्प लिया कि वे अब से ही किसी लाश को नर्मदा में प्रवाहित नहीं करेंगे। नावघाटखेड़ी पंचायत के ही पंच श्री ठाकुर के मुताबिक अब जो शव यहां लाया जाता है उसे हम लोग अपने खर्च पर दफनाते हैं या फिर अंतिम संस्कार करवाते हैं। इसके लिए नियमित स्नान करने वाले सभी लोगों के मासिक अंशदान से एक फंड बनाया गया है।

टीआई ने ट्रेंट खुदवा दी
रोज धुलाई के लिए आने वाली 100-200 गाड़ियों को किनारे तक पहुंचने से रोकने में एक पुलिस अफसर अखिलेश द्विवेदी इस टीम के मददगार बने। उन्होंने एक खुदाई मशीन लगवाकर किनारे से 150 मीटर दूर करीब एक किलोमीटर लंबी ट्रेंच ही खुदवा दी। जिससे गाड़ियां किनारे तक पहुंचना ही बंद हो गई।

मूर्ति वालों से झगड़ना भी पड़ा
अनंतचतुर्दशी व नवरात्रि के बाद इंदौर सहित आसपास के कई शहरों से मूर्ति विसर्जन के लिए पहुंचने वाले लोगों से श्री सेंगर व साथियों की भिडं़त भी हुई। इनका कहना है नर्मदा की पवित्रता हमसे ज्यादा इंदौर के लिए जरूरी है इसलिए हमने उन्हें यहां मूर्ति विसर्जन के लिए इंकार किया। कुछ लोगों ने हमारी बात मानी पर कुछ तो झगड़ने ही लगे लेकिन सफलता हमें ही मिली। इस बार हमने किनारे से 300 मीटर दूर एक बड़ा गड्ढा किया,मोटर से पानी खींचकर उसे भरा और उसमें मूर्ति विसर्जन करवाया।

सप्ताह में एक दिन एक घंटा
बड़वाह के लोगों ने इस अभियान में जनभागीदारी की एक अनूठी मिसाल पेश की है। सामाजिक संगठनों के साथ ही नेता, पत्रकार, अफसर, वकील सब इसमें मददगार बने। अब हर रविवार सुबह एक बड़ा समूह नर्मदा किनारे पहुंचता है और एक घंटा पूरे इलाके की साफ-सफाई करता है।

Sunday, March 15, 2009

तुम चलो

बिहार और ‘सुपर 30′


बिहार के प्रसिद्ध कोचिग संस्थान ‘सुपर 30′ की सफलता की कहानी पर बना वृत्तचित्र इस सप्ताहांत डिस्कवरी चैनल पर प्रसारित किया जाएगा। इसमें दिखाया जाएगा कि किस तरह ‘सुपर 30′ की बदौलत निचले और गरीब तबके के छात्रों के भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) में चयन के सपने साकार हो रहे हैं।
‘सुपर 30′ के संचालक आनंद कुमार ने कहा, “डिस्कवरी चैनल रविवार दोपहर और 21 व 29 मार्च को सुपर 30 की सफलता की कहानी प्रसारित करेगा।”
‘सुपर 30′ आईआईटी में दाखिला चाहने वाले 30 गरीब और कमजोर तबके के छात्रों को निशुल्क कोचिंग, भोजन और रहने की सुविधा मुहैया करवाता है। पिछले साल ‘सुपर 30′ के सभी 30 छात्रों ने आईआईटी की कड़ी प्रवेश परीक्षा पास की थी।
कुमार ने कहा, “यह पहला मौका था जब ‘सुपर 30′ ने 100 फीसदी कामयाबी हासिल की। ‘सुपर 30′ की सफलता कड़ी मेहनत और छात्रों को उचित निर्देशन देने का नतीजा है।”
एक घंटे के इस वृत्तचित्र का निर्माण वेरोनिका हॉल और निर्देशन क्रिस्टोफर मिशेल ने की है। इसमे सात साल पहले गणितज्ञ आनंद कुमार द्वारा स्थापित इस कोचिंक संस्थान के सभी पहलुओं को शामिल किया गया है।
करीब एक साल की शूटिंग के बाद तैयार इस वृत्तचित्र में निम्न वर्ग के छात्रों में पैदा होते आत्मविश्वास को दिखाया गया है।
डिस्कवरी चैनल के राजीव बख्शी ने कहा, “यह सफलता की कहानी है जिसे बारे में बहुत लोग जानना और देखना चाहेंगे। यही कारण है कि डिस्कवरी ने आनंद की सफलता पर एक घंटे का वृत्तचित्र प्रसारित करने का फैसला किया।”

Saturday, March 14, 2009

हक के लिए जाग रहे लोग

प्रस्तुति - भास्कर

छत्तीसगढ़ के जिला व राज्य उपभोक्ता फोरम में दर्ज सैकड़ों आवेदन व उनके निराकरण के आंकड़ों को देखने के बाद यही महसूस होता है। लोग अपने अधिकारों को लेकर सजग हो रहे हैं। दुकानदार के किसी भी तरह का छल बर्दाश्त करने के बजाय वे उसे सीधे फोरम में चुनौती देना ज्यादा पसंद कर रहे हैं। 15 मार्च को राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस पर सिटी भास्कर की खास रिपोर्ट।
अधिकारों का हनन बर्दाश्त नहीं

गुडियारी की प्रीति शुक्ला ने अपने हक के लिए रेलवे विभाग को भी झंकझोर दिया। 13 सितंबर 2006 को काम के सिलसिले में प्रीति रायपुर से पूना के लिए आजाद हिंद एक्सप्रेस से कोच नंबर एस-3 में सफर कर रही थीं। नागपुर में उनका सूटकेस ट्रेन से चोरी हो गया। उन्होंने रेलवे स्टेशन पर अनाधिकृत व्यक्तियों को आरक्षित कोच में प्रवेश रोकने में ढिलाई का आरोप लगाते हुए रेलवे प्रशासन के खिलाफ जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम में अपील दायर की। जिला उपभोक्ता फोरम ने इसे रेलवे की लापरवाही बताते हुए क्षतिपूर्ति के तौर पर प्रीति को 7 हजार रुपए, मानसिक प्रताड़ना के लिए 2 हजार और 2 हजार केस खर्च के तथा सभी राशि पर 12 प्रतिशत ब्याज समेत क्षतिपूर्ति देने का आदेश दिया।
जिला उपभोक्ता फोरम के फैसले को चुनौती देते हुए रेलवे प्रशासन ने राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण आयोग में यह तर्क देते हुए फैसला रद्द करने की अपील की कि रेलवे स्टेशन पर यात्रियों की सुरक्षा का जिम्मा रेलवे का है न कि सामानों का। लेकिन राज्य आयोग ने भी इस मामले में रेलवे प्रशासन की लापरवाही पाई, जिससे प्रीति की जीत हुई। केस के दो साल बाद फिर आयोग का फैसला आया कि प्रीति को क्षतिपूर्ति दी जाए।
बीएसएनएल की खोली पोल

अमरदीप टाकीज रोड निवासी रमेश वल्र्यानी ने विभाग में घर के लैंडलाइन फोन खराब होने के बाद बंद होने की शिकायत की। शिकायत के दस दिन बाद भी फोन ठीक न होने पर उन्होंने बीएसएनएल कर्मचारियों के लापरवाही के कारण कारोबार प्रभावित होने व नुकसान होने की शिकायत 18-08-06 को जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम में दायर की। 13-08-07 को जिला फोरम ने रमेश के पक्ष को गलत ठहराते हुए फोन फाल्ट केवल एक दिन का बताया। इसके बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी और फैसले के खिलाफ राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण आयोग में अपील की। 11-02-09 को राज्य आयोग ने रमेश के पक्ष में निर्णय जारी करते हुए ढाई हजार रुपए क्षतिपूर्ति देने का आदेश जारी किया।
धोखाधड़ी को मुंहतोड़ जवाब

अमलीडीह निवासी एस. बालाकृष्णा राव ने संजीवनी हाउसिंग कंपनी लिमिटेड द्वारा अपना घर योजना के तहत एक घर खरीदने 40 हजार रुपए दिए, लेकिन न तो उन्हें घर मिला और न ही किसी प्रकार के दस्तावेज। मामला धोखाधड़ी का देखते हुए उन्होंने कंपनी के विरुद्ध जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम में 30-04-07 को मामला दायर किया।
मामले की सुनवाई करते हुए जिला फोरम ने 3 जुलाई 2008 को श्री राव के पक्ष में निर्णय देते हुए कंपनी से उनके 40 हजार रुपए वापस करने के आदेश जारी किए। उक्त कंपनी ने जिला फोरम के आदेश के विरुद्ध राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण आयोग में गुहार लगाई पर वहां भी आयोग ने 21 जनवरी 2009 को जिला न्यायालय के आदेश को स्थिर रखते हुए 40 हजार रुपए वापस करने तथा परिपक्व तारीख से अदायगी तारीख तक 9 प्रतिशत सालाना व्याज व 1500 रुपए दोनो न्यायालयों के खर्च को भी देने का आदेश जारी किया।
महंगा पड़ा देर से डिलीवरी करना

पंचशीलनगर निवासी नंदलाल वल्र्यानी ने 20 जुलाई 2006 को जीईरोड स्थित एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी से एक स्कूटर बुक की। उक्त कंपनी द्वारा 20 दिन के भीतर स्कूटर की डिलीवरी न करने से परेशान नंदलाल ने जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम में हर्जाने की अपील की। फोरम ने डिलीवरी में लापरवाही पाते हुए कंपनी को फटकार लगाते हुए 27 फरवरी 2008 को आदेश जारी करते हुए 1 हजार रुपए मानसिक प्रताड़ना की क्षतिपूर्ति व 500 रुपए केस खर्च दिए जाने का फैसला दिया।
एक रास्ता यह भी
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम और राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण आयोग में हार चुकी पार्टी धारा 21 ब के अंतर्गत राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण आयोग, नई दिल्ली, जनपद भवन, पुरानी इंडियन आयल भवन, पांचवी तल, नई दिल्ली 110001 में अपनी अपील दायर कर सकते हैं।

कैसे करें अपील
:पूरी शिकायत शपथ पत्र के साथ प्रस्तुत करें।

:संबंधित दस्तावेज साथ में संलग्न करें।

:20 लाख तक के लिए जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम में शिकायत दर्ज की जाती है।

:20 लाख से एक करोड़ तक के लिए राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण आयोग में और एक करोड़ से अधिक के मामलों को राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण आयोग, नई दिल्ली में शिकायत दर्ज करवाई जा सकती है।