Monday, May 30, 2011

‘फ्रेंड् टू स्पोर्ट’

पारुल अग्रवाल, बीबीसी संवाददाता, दिल्ली

मेरा नाम शरीफ़ है और मैं आंध्रप्रदेश का रहने वाला हूं. मैंने और मेरे कुछ साथियों ने मिलकर एक ऐसी बेवसाइट की शुरुआत की है जिससे जुड़कर हज़ारों लोगों कि जान बचाई जा सकती है.

2005 में कुछ वॉलिंटियर्स की मदद से बनी वेबसाइट ‘फ्रेंड् टू स्पोर्ट’ http://www.friendstosupport.org के ज़रिए भारत भर में लोग अपने इलाके में मौजूद ब्लड डोनर्स तक पहुंच सकते हैं.

इस बेवसाइट पर रक्तदान के इच्छुक लोगों के नाम, पते, उनका ब्लड ग्रुप सभी कुछ उपल्बध होता है. देशभर में हमारे कुछ वॉलिंटीयर्स भी हैं जो लोगों को संगठित करते हैं और ज़रूरत पड़ने पर अपने इलाके में खून उपलब्ध कराने की हर संभव कोशिश करते हैं.

यह सेवा पूरी तरह निशुल्क है और इस वेबसाइट पर कोई भी आ सकता है.

यानि कभी भी कहीं भी अगर किसी को खून की ज़रूरत पड़ जाए तो ये वेबसाइट लोगों की मदद करती है. कुछ साल पहले इस वेबसाइट से जुड़े रमेश उन 80,000 लोगों में शामिल हैं जो अब हमारी इस कोशिश का हिस्सा हैं.

रमेश बताते हैं, "1998 में मेरी एक रिश्तेदार को ल्यूकेमिया हो गया था. उन्हें हफ्ते में दो वार खून की ज़रूरत पढ़ती थी. उन दिनों मोबाइल फ़ोन नहीं थे और पेजर के सहारे हम लोगों को मैसेज भेजते थे. फिर रक्तदान करने को तैयार लोगों के फ़ोन आने का इंतज़ार करते. इसलिए मैं जानता हूं कि रक्तदान के इच्छुक लोगों की जानकारी और फोन नंबर कितनी ज़रूरी है."

सक्रिय डोनर

रमेश आज हमारे सक्रिय डोनर्स में से एक हैं, और अब तक 17 बार रक्तदान कर चुके हैं. कुछ है जो उन्हें बार-बार रक्तदान करने के लिए प्रेरित करता है.

वो कहते हैं, "मैंने पहली बार जिसे खून दिया वो एक 11 साल का लड़का था. जब मैं खून देने अस्पताल पहुंचा तो वो लोग मुझे भगवान की तरह पूजने लगे. फिर एक वह लड़की पूरी तरह स्वस्थ होकर हंसता खेलता मेरे पास आया. उसे देखकर मैं बहुत भावुक हो गया, और ठान लिया जब-जब संभव होगा मैं रक्तदान करूंगा."

इस वेबसाइट पर रक्तदान से जुड़ी सारी जानकारियां भी मौजूद हैं. बंगलौर सेहमारे एक वॉलिंटीयर रोहित बताते हैं, " हमारी कोशिश है कि वेबसाइट के ज़रिए लोगों को रक्तदान के बारे में सही जानकारी मिले और उनकी भ्रांतियां टूटें. हम लोगों को बताते हैं कि रख्तदान करना कितना सुरक्षित है, कैन लोग रख्त कर सकते हैं और एक व्यक्ति से लिया गया खून किस तरह तीन लोगों के भी काम आ सकता है."

बेस्ट बेकरी धमाका

मदद का ये जज्बा बड़ी संख्या में लोगों की जान बचा सकता है. महाराष्ट्र से हमारे एक वॉलिंटियर धीरज बताते हैं, "पुणे में बेस्ट बेकरी में हुए धमाके दौरान कई लोग घायल हुए थे. उस समय ब्लड बैंकों में खून की कमी हो गई थी. हमारे पास 80,000 से ज़्यादा डोनर्स की जानकारियां मौजूद हैं और बड़ी संख्या में घायलों के परिजनों ने हमसे संपर्क करने की कोशिश की. हमने बड़ी संख्या में रक्तदान भी किया था."

लोगों तक अपनी बात पहुंचाने और उन्हें जागरुक करने के लिए हम हम तरह-तरह के आयोजन भी करते हैं, ताकि ज़्यादा से ज़्यादा लोग इस बारे में जाने और उनकी मदद हो सके.

आप सभी से मेरा बस यही कहना है कि हमारी वेबसाइट ‘फ्रेंड्स टू सपोर्ट डॉट ओआरजी’ से जुड़ें और इस नेक काम में शामिल हों. याद रखें मुश्किल के समय में कोई हो न हो ‘फ्रेंड्स टू सपोर्ट’ हमेशा आपके साथ है

Thursday, May 26, 2011

गुदड़ी के लाल

स्रोत : जागरण

- मैट्रिक परीक्षा के टॉपर के गांव में जश्न का माहौल
- मां है चिंतित, गरीबी में आगे कैसे होगी पढ़ाई

मुजफ्फरपुर, एनएच -77 से सटे मीनापुर की पूर्वी सीमा पर स्थित मुकसुदपुर गांव में गुरुवार का दिन उल्लास भरा था। हो भी क्यों नहीं, वहां के गुदड़ी के लाल विशाल ने मैट्रिक परीक्षा में जिले में अव्वल आकर गांव का नाम जो रौशन किया है। सुबह से ही गांव के लोगों की जुबान पर बस विशाल का नाम था। हर किसी को उसकी काबिलियत पर गर्व हो रहा था। शाम होते-होते गांव में जश्न का माहौल शुरू हो गया। इस क्रम में एक समारोह का आयोजन कर विशाल को फूल-मालाओं से लाद दिया गया। इस दौरान उसे मिठाइयां खिलाने की होड़ मच गई।

विशाल की सफलता ने पंचायत चुनाव के परिणाम की चर्चाओं पर भी विराम लगा दिया। गांव में उपेक्षित सा रहने वाला विशाल का परिवार आज सबकी नजरों में था। आस-पास के गांवों के लोग भी उसके घर पहुंच कर शुभकामना दे रहे थे। विशाल की मां रीना देवी के लिए यह नया अनुभव था। वह कहती हैं कि विशाल ने सभी का सम्मान बढ़ाया है। अब उसके आगे की पढ़ाई की चिंता हो रही है। वह निजी बीमा कंपनी के एजेंट के रूप में प्रतिमाह एक से डेढ़ हजार रुपये कमाती है। इससे परिवार चलाना मुश्किल है। ऐसे में विशाल ट्यूशन पढ़ाकर अपनी पढ़ाई करता रहा। विशाल अब विज्ञान विषय से आगे की पढ़ाई करना चाहता है। शारीरिक रूप से विकलांग व मजदूरी करने वाले चाचा लखीन्द्र भगत की तो खुशियों का ठिकाना ही नहीं था। कभी वह विशाल को मिठाई खिलाते तो कभी उसे चूमते। विशाल के पिता बिकाऊ प्रसाद की मौत के बाद लखीन्द्र ने ही परिवार को संभालने का दायित्व निभाया था। विशाल की सफलता ने गांव में उनकी पहचान ही बदल दी है। निवर्तमान उप मुखिया शारदानंद झा कहते हैं कि विशाल की सफलता से गांव गौरवान्वित हुआ है। उसकी मेहनत से गांव को एक नई पहचान मिली है। अन्य छात्रों के लिए यह प्रेरणा का काम करेगा। उनका कहना था कि गरीबी की मार झेल रहे प्रतिभावान विशाल की पढ़ाई के लिए प्रशासन व सरकार को भी आगे आना होगा।

Saturday, May 7, 2011

टिकेश्वरी

Source: दैनिक भास्कर , रीना पाल


रायपुर.परिवार के साथ आधे पेट भोजन करके सीजी बोर्ड की बारहवीं परीक्षा की मेरिट लिस्ट में पांचवें नंबर पर आने वाली टिकेश्वरी साहू की मदद करने दर्जनों हाथ आगे बढ़े हैं। इसमें से कई लोग ऐसे हैं, जो नाम तक गुप्त रखना चाहते हैं।

सबकी इच्छा यही है कि फैक्ट्री मजदूर की बेटी टिकेश्वरी खूब मन लगाकर बढ़े और सीए बनने के अपने सपने को पूरा करे। भास्कर में छपा अपना फोटो, हर तरफ से मिल रही तारीफ और सुबह से शाम तक घर पर मिलने आने वाले लोगों का सिलसिला।

भीड़ इतनी थी कि मां-पिताजी शनिवार को काम पर ही नहीं जा सके। घर में खाना तो बना, लेकिन खाने की भी फुरसत किसी को नहीं मिली। सारा कुछ उसे किसी परीकथा की तरह लग रहा है। ऐसा कुछ तो उसने सपने में भी नहीं सोचा था।

शनिवार को दिनभर टिकेश्वरी साहू को शनिवार को भी बधाई देने वालों का तांता लगा रहा। साथ ही उसकी आगे की पढ़ाई जारी रखने के लिए कई शैक्षणिक संस्थानों के अलावा अन्य लोगों ने भी व्यक्तिगत तौर पर उसकी मदद के लिए हाथ आगे बढ़ाया है।

मदद करने वाले हर तरह के लोग हैं। उरला के एक उद्योगपति ने उसके शिक्षक को फोन करके सीए बनने तक की पूरी पढ़ाई का खर्च उठाने का भरोसा दिलाया है। आग्रह केवल इतना कि उद्योगपति का नाम कहीं नहीं आना चाहिए।

उद्योगपति ने भास्कर से इतना ही कहा कि वह चाहते हैं कि यह मेधावी छात्रा खूब पढ़े। पैसा उसके लिए समस्या नहीं होगा। तिल्दा में रहने वाले एक व्यक्ति ने भी टिकेश्वरी साहू के परिवार को पूरी मदद देने का प्रस्ताव दिया है।

शाम को बीरगांव के नगरपालिका अध्यक्ष ओमप्रकाश देवांगन और पूर्व शिक्षा मंत्री सत्यनारायण शर्मा के पुत्र पंकज भी छात्रा से मिलने घर पहुंच गए। हर तरह से आ रहे मदद के प्रस्तावों से छात्रा के अलावा उसके माता-पिता भी दुविधा में हैं। किसकी मदद लें, किसे विनम्रता से मना करें।

टिकेश्वरी ने बताया- शुक्रवार को रिजल्ट के बाद दिनभर गुरुजी के साथ मीडियाकर्मियों से बात कर-करके मेरी हालत खराब थी। घर आकर सोई तो सीधे सुबह 7 बजे नींद खुली। बहुत दिन बाद शुक्रवार की रात चैन से सोई। सुबह अपने टीचर के फोन से नींद खुली।

वे मुझे बता रहे थे कि तुम्हारा फोटो सारे पेपर में छपा है। घर में तो सारे अखबार आते नहीं, इसलिए छोटे भाई ने साइकिल उठाई और स्कूल गया। वहां से सारे पेपर लेकर आया। घर के सारे लोग अखबार ठीक से देख भी नहीं पाए थे कि लोगों के घर पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया।

टिकेश्वरी पढ़ो, खूब पढ़ो

कोई अपने संस्थान में मुझे निशुल्क पढ़ाई के लिए बुला रहा है तो कोई भाई-बहन को पुरस्कार राशि देने की बात कर रहा है। रिजल्ट के दूसरे दिन करीब दर्जन भर लोगों ने मुझसे और मेरे मां-पिताजी से संपर्क कर कुछ ऐसी ही बातें कहीं। जब इतने लोग आगे आ रहे हैं तो जिस स्कूल में मैं पढ़ी वह कैसे पीछे रह जाता।

गुरुकुल स्कूल से मुझे 21 हजार रुपए पुरस्कार के रूप में दिए जाने की भी सूचना दी गई। कर्मचारी राज्य बीमा निगम श्रम एवं रोजगार मंत्रालय के क्षेत्रीय निदेशक जीके डागर ने भी मेरी मदद के लिए हाथ आगे बढ़ाया है।

श्री डागर ने कहा, मेरा बेटा सीए है और मैं बखूबी यह जानता हूं कि इस पढ़ाई में कितना खर्चा आएगा। मैं टिकेश्वरी के परिवार वालों से मिलूंगा, वह जैसी मदद चाहेंगे, मैं उस स्तर पर जाकर मदद करने के लिए तैयार हूं।

अभी भी लग रहा है सपना, आगे पढ़ाई की उम्मीद जागी

मीडिया वालों ने शनिवार को भी ढेरों सारे सवाल किए। यकीन नहीं हो रहा कि यह सच है या सपना, रिजल्ट आने के बाद से यह लाइन कितनी बार बोल चुकी हूं यह मुझे खुद को याद नहीं। लोग मुझे और मेरे परिवार को आर्थिक मदद देने की बात कर रहे हैं।

ऐसा हुआ तो मैं आगे की पढ़ाई तो कर ही सकूंगी, साथ ही मेरे घर की हालत भी सुधर जाएगी। मां-पिताजी पहले समझ नहीं पा रहे थे कि हो क्या रहा है। मैंने बताया कि वह लोग पैसे देने की बात कर रहे हैं, ताकि मैं आगे पढ़ सकूं। इस पर उनके चेहरे पर हल्की मुस्कान तो आई, लेकिन इस बार भी वह ज्यादा कुछ नहीं कह सके।.