Saturday, December 28, 2013

शालिनी का सफर

प्रस्तुति - दैनिक भास्कर

#Business
#need
#innovation
#motivation

भारत में ज्यादातर महिलाओं की जिंदगी घर और बच्चों को संभालने में निकल जाती है। उन्हें कुछ अलग करने के बारे में सोचने का वक्त ही नहीं मिलता है। लेकिन, अगर आंखों में ख्वाब और उसे हकीकत में बदलने का जज्बा हो तो कामयाबी का रास्ता निकल ही जाता है। फरीदाबाद की शालिनी भाटिया इसकी मिसाल हैं।

उधार के 10,000 रुपये से बिजनेस शुरू करने वाली शालिनी का कारोबार आज बुलंदी पर है। उनकी कंपनी न्यू टेक ईको क्लीन का कारोबार 2 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। वह कंपनी की सीईओ हैं। यह मैकेनाइज्ड क्लीनिंग और हाउस कीपिंग सेवाएं देती है। इस कंपनी में 800 लोग काम करते हैं। राजीव कुमार ने शालिनी के कामयाबी के सफर और भविष्य की योजनाओं को जानने के लिए उनसे बातचीत की।
बिजनेस शुरू करने का ख्याल कैसे आया?
मैंने कभी इसके बारे में सोचा नहीं था। दिल्ली यूनिवर्सिटी से बीएससी करने के बाद शादी हो गई। मेरे लिए शादी का मतलब घर संभालाना और बच्चों की देखभाल करना था। मेरे पिताजी डॉक्टर थे और दोनों भाई भी डॉक्टर हैं। शुरू में बच्चों की देखभाल में उलझी रही। बच्चे बड़े होने पर लगा कि मुझे भी कुछ करना चाहिए।
पति काफी व्यस्त रहते थे। वह पावर प्लांट और दूसरी बड़ी इंडस्ट्री के प्लांट के लिए क्लीनिकल सर्विसेज देते थे। यह 1996 की बात है। उन्होंने मुझे शिमला के एक प्रोजेक्ट के बारे में बताया। वहां एक होटल में कार्पेट की सफाई करनी थी। मैंने इस काम को करने के लिए हामी भर दी। यहीं से मेरे कारोबारी सफर की शुरुआत हुई।
सिर्फ झाड़ू के दम पर ये महिला बन गई करोड़पति, मुशर्रफ को कहती है THANX
महिला होने के नाते कभी कोई दिक्कत आई?
मुझे कभी नहीं लगा कि मैं पुरुष से किसी भी मामले में कमजोर हूं। मेरे परिवार के लोग मुझसे कहते थे कि आम्र्स का लाइसेंस ले लो क्योंकि तुम्हें अकेले साइट्स पर जाना पड़ता है। लेकिन मेरे मन में कभी असुरक्षा की भावना नहीं आई। अपने अनुभव से सीखती गई। कड़ी मेहनत का अच्छा फल मिला।

अपने पहले कारोबारी अनुभव के बारे में बताइएं।
अपने ससुर से 10,000 रुपये उधार लिए। काम में मदद के लिए दो लड़कों को लिया और शिमला पहुंच गई। कार्पेट की सफाई के लिए मशीन मैंने हिन्दुस्तान लीवर से किस्त पर ली। मेरा काम क्लाइंट को पसंद आया। उसके बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
बिजनेस में टर्निंग प्वाइंट कब आया?
साल 2000 तक दिल्ली में लोग मेरे बिजनेस के बारे में जानने लगे थे। दिल्ली के कई होटलों की सफाई का काम मेरी कंपनी के पास था। 2001 में पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति मुशर्रफ का आगरा समिट मेरे बिजनेस के लिए टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ। तब तक मेरी कंपनी से 80-90 कर्मचारी जुड़ चुके थे। आगरा में होटल जेपी पैलेस के अफसरों ने मुझसे मुलाकात की और कहा कि अगर आप होटल चमका दें तो समिट आयोजित करने का मौका मिल सकता है।
कई होटल इस दौड़ में थे। इस काम के लिए मुझे 15 दिनों का समय दिया गया। मैं इस चैलेंज को स्वीकार करते हुए 60 लड़कों की टीम लेकर आगरा पहुंच गई। हमने 15 दिन की जगह 8 दिन में ही काम खत्म कर लिया। इससे मेरी काफी अच्छी ब्रांडिंग हो गई। दिल्ली के कई बड़े होटल, मॉल, फार्म हाउस मेरे क्लाइंट्स हैं।
सिर्फ झाड़ू के दम पर ये महिला बन गई करोड़पति, मुशर्रफ को कहती है THANX
एक सफल महिला कारोबारी होने के नाते क्या आप महिलाओं की मदद के लिए कुछ कर रही हैं ?
हां, मैंने डस्ट-बस्टर नाम से फ्रेंचाइजी देना शुरू किया है। महिलाओं को फ्रेंचाइजी देने के साथ उन्हें वित्तीय सहायता भी दी जाती है। हम काम दिलाने में भी उनकी मदद करते हैं। यह ऐसा बिजनेस मॉडल है, जिससे हमारी कंपनी के साथ फ्रेंचाइजी लेने वालों को भी फायदा होता है। 5 लाख से यह काम शुरू किया जा सकता है। अधिकतम तीन महीने में ब्रेक ईवन हो जाता है। अब तक 26 फ्रेंचाइजी दे चुकी हूं।
परिवार और बच्चों को संभालते हुए यह कैसे कर पाईं ?
शुरू में काम को लेकर जबर्दस्त जज्बा था। मैं बच्चों और बिजनेस दोनों को संभालती थी। ड्राइवर का खर्चा बचाने के लिए खुद गाड़ी ड्राइव करती थी। देर रात तक साइट्स पर रहना पड़ता था। इसके बावजूद सुबह वक्त पर बच्चों को स्कूल भेजती थी। कारोबार बढऩे पर दिक्कत होने लगी। तीन साल के लिए मैंने दोनों बच्चों को बोर्डिंग में डाल दिया। हालांकि, मैंने उनकी पढ़ाई-लिखाई से कभी समझौता नहीं किया।
शालिनी का सफर
एक समय सिर्फ घर संभालने वाली शालिनी भाटिया का बिजनेस ऊंचाइयों को छू रहा  है और उनकी मेहनत रंग ला रही है...

क्लीनिंग का कमाल
1996 में हुई थी न्यू टेक ईको क्लीन की स्थापना
10000 रुपये के उधार के पैसे से शुरू किया कारोबार
800 लोग करते हैं इस समय कंपनी में काम
सिर्फ झाड़ू के दम पर ये महिला बन गई करोड़पति, मुशर्रफ को कहती है THANX  
: टर्निंग प्वाइंट
साल 2001 में पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति मुशर्रफ का आगरा समिट मेरे बिजनेस के लिए टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ।
औरों की मदद
मैंने डस्ट-बस्टर नाम से फ्रेंचाइजी देना शुरू किया है। महिलाओं को फ्रेंचाइजी देने के साथ वित्तीय सहायता दी जाती है। हम काम दिलाने में भी उनकी मदद करते हैं।

मुझमें है दम
कभी नहीं लगा कि मैं पुरुष से किसी मामले में कमजोर हूं। घरवाले कहते थे कि आम्र्स का लाइसेंस ले लो, तुम्हें अकेले साइट्स पर जाना पड़ता है। लेकिन मेरे मन में कभी असुरक्षा की भावना नहीं आई।

यूं हुई शुरुआत
मेरे पति पावर प्लांट के लिए क्लीनिकल सर्विसेज देते थे। उन्होंने मुझे शिमला के एक प्रोजेक्ट के बारे में बताया। वहां एक होटल में कार्पेट की सफाई करनी थी। यहीं से मेरे कारोबारी सफर की शुरुआत हुई।

Wednesday, December 25, 2013

गेहूं के जवारे : पृथ्वी की संजीवनी बूटी

सौजन्य से : www.facebook.com (https://www.facebook.com/AcharyaBalkrishanJi)

#aayurveda

#wheat
#health
#body
#nature

प्रकृति ने हमें अनेक अनमोल नियामतें दी हैं। गेहूं के जवारे उनमें से ही प्रकृति की एक अनमोल देन है। अनेक आहार शास्त्रियों ने इसे संजीवनी बूटी भी कहा है, क्योंकि ऐसा कोई रोग नहीं, जिसमें इसका सेवन लाभ नहीं देता हो। यदि किसी रोग से रोगी निराश है तो वह इसका सेवन कर श्रेष्ठ स्वास्थ्य पा सकता है। 

गेहूं के जवारों में अनेक अनमोल पोषक तत्व व रोग निवारक गुण पाए जाते हैं, जिससे इसे आहार नहीं वरन् अमृत का दर्जा भी दिया जा सकता है। जवारों में सबसे प्रमुख तत्व क्लोरोफिल पाया जाता है। 
गेहूं के जवारे रक्त व रक्त संचार संबंधी रोगों, रक्त की कमी, उच्च रक्तचाप, सर्दी, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, स्थायी सर्दी, साइनस, पाचन संबंधी रोग, पेट में छाले, कैंसर, आंतों की सूजन, दांत संबंधी समस्याओं, दांत का हिलना, मसूड़ों से खून आना, चर्म रोग, एक्जिमा, किडनी संबंधी रोग, सेक्स संबंधी रोग, शीघ्रपतन, कान के रोग, थायराइड ग्रंथि के रोग व अनेक ऐसे रोग जिनसे रोगी निराश हो गया, उनके लिए गेहूं के जवारे अनमोल औषधि हैं। इसलिए कोई भी रोग हो तो वर्तमान में चल रही चिकित्सा पद्धति के साथ-साथ इसका प्रयोग कर आशातीत लाभ प्राप्त किया जा सकता है। 

हिमोग्लोबिन रक्त में पाया जाने वाला एक प्रमुख घटक है। हिमोग्लोबिन में हेमिन नामक तत्व पाया जाता है। रासायनिक रूप से हिमोग्लोबिन व हेमिन में काफी समानता है। हिमोग्लोबिन व हेमिन में कार्बन, ऑक्सीजन, हाइड्रोजन व नाइट्रोजन के अणुओं की संख्या व उनकी आपस में संरचना भी करीब-करीब एक जैसी होती है। हिमोग्लोबिन व हेमिन की संरचना में केवल एक ही अंतर होता है कि क्लोरोफिल के परमाणु केंद्र में मैग्नेशियम, जबकि हेमिन के परमाणु केंद्र में लोहा स्थित होता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि हिमोग्लोबिन व क्लोरोफिल में काफी समानता है और इसीलिए गेहूं के जवारों को हरा रक्त कहना भी कोई अतिशयोक्ति नहीं है। 

गेहूं के जवारों में रोग निरोधक व रोग निवारक शक्ति पाई जाती है। कई आहार शास्त्री इसे रक्त बनाने वाला प्राकृतिक परमाणु कहते हैं। गेहूं के जवारों की प्रकृति क्षारीय होती है, इसीलिए ये पाचन संस्थान व रक्त द्वारा आसानी से अधिशोषित हो जाते हैं। यदि कोई रोगी व्यक्ति वर्तमान में चल रही चिकित्सा के साथ-साथ गेहूं के जवारों का प्रयोग करता है तो उसे रोग से मुक्ति में मदद मिलती है और वह बरसों पुराने रोग से मुक्ति पा जाता है। 

यहां एक रोग से ही मुक्ति नहीं मिलती है वरन अनेक रोगों से भी मुक्ति मिलती है, साथ ही यदि कोई स्वस्थ व्यक्ति इसका सेवन करता है तो उसकी जीवनशक्ति में अपार वृद्धि होती है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि गेहूं के जवारे से रोगी तो स्वस्थ होता ही है किंतु सामान्य स्वास्थ्य वाला व्यक्ति भी अपार शक्ति पाता है। इसका नियमित सेवन करने से शरीर में थकान तो आती ही नहीं है। 

यदि किसी असाध्य रोग से पीड़ित व्यक्ति को गेहूं के जवारों का प्रयोग कराना है तो उसकी वर्तमान में चल रही चिकित्सा को बिना बंद किए भी गेहूं के जवारों का सेवन कराया जा सकता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि कोई चिकित्सा पद्धति गेहूं के जवारों के प्रयोग में आड़े नहीं आती है, क्योंकि गेहूं के जवारे औषधि ही नहीं वरन श्रेष्ठ आहार भी है। 

गेहूँ के ज्वारे उगाने की विधि::

मिट्टी के नये खप्पर, कुंडे या सकोरे लें। उनमें खाद मिली मिट्टी लें। रासायनिक खाद का उपयोग बिलकुल न करें। पहले दिन कुंडे की सारी मिट्टी ढँक जाये इतने गेहूँ बोयें। पानी डालकर कुंडों को छाया में रखें। सूर्य की धूप कुंडों को अधिक या सीधी न लग पाये इसका ध्यान रखें।

इसी प्रकार दूसरे दिन दूसरा कुंडा या मिट्टी का खप्पर बोयें और प्रतिदिन एक बढ़ाते हुए नौवें दिन नौवां कुंडा बोयें। सभी कुंडों को प्रतिदिन पानी दें। नौवें दिन पहले कुंडे में उगे गेहूँ काटकर उपयोग में लें। खाली हो चुके कुंडे में फिर से गेहूँ उगा दें। इसी प्रकार दूसरे दिन दूसरा, तीसरे दिन तीसरा करते चक्र चलाते जायें। इस प्रक्रिया में भूलकर भी प्लास्टिक के बर्तनों का उपयोग कदापि न करें।

प्रत्येक कुटुम्ब अपने लिए सदैव के उपयोगार्थ 10, 20, 30 अथवा इससे भी अधिक कुंडे रख सकता है। प्रतिदिन व्यक्ति के उपयोग अनुसार एक, दो या अधिक कुंडे में गेहूँ बोते रहें। मध्याह्न के सूर्य की सख्त धूप न लगे परन्तु प्रातः अथवा सायंकाल का मंद ताप लगे ऐसे स्थान में कुंडों को रखें।

सामान्यतया आठ-दस दिन नें गेहूँ के ज्वारे पाँच से सात इंच तक ऊँचे हो जायेंगे। ऐसे ज्वारों में अधिक से अधिक गुण होते हैं। ज्यो-ज्यों ज्वारे सात इंच से अधिक बड़े होते जायेंगे त्यों-त्यों उनके गुण कम होते जायेंगे। अतः उनका पूरा-पूरा लाभ लेने के लिए सात इंच तक बड़े होते ही उनका उपयोग कर लेना चाहिए।

ज्वारों की मिट्टी के धरातल से कैंची द्वारा काट लें अथवा उन्हें समूल खींचकर उपयोग में ले सकते हैं। खाली हो चुके कुंडे में फिर से गेहूँ बो दीजिये। इस प्रकार प्रत्येक दिन गेहूँ बोना चालू रखें।

बनाने की विधि::
जब समय अनुकूल हो तभी ज्वारे काटें। काटते ही तुरन्त धो डालें। धोते ही उन्हें कूटें। कूटते ही उन्हें कपड़े से छान लें।

इसी प्रकार उसी ज्वारे को तीन बार कूट-कूट कर रस निकालने से अधिकाधिक रस प्राप्त होगा। चटनी बनाने अथवा रस निकालने की मशीनों आदि से भी रस निकाला जा सकता है। रस को निकालने के बाद विलम्ब किये बिना तुरन्त ही उसे धीरे-धीरें पियें। किसी सशक्त अनिवार्य कारण के अतिररिक्त एक क्षण भी उसको पड़ा न रहने दें, कारण कि उसका गुण प्रतिक्षण घटने लगता है और तीन घंटे में तो उसमें से पोषक तत्व ही नष्ट हो जाता है। प्रातःकाल खाली पेट यह रस पीने से अधिक लाभ होता है।

दिन में किसी भी समय ज्वारों का रस पिया जा सकता है। परन्तु रस लेने के आधा घंटा पहले और लेने के आधे घंटे बाद तक कुछ भी खाना-पीना न चाहिए। आरंभ में कइयों को यह रस पीने के बाद उबकाई आती है, उलटी हो जाती है अथवा सर्दी हो जाती है। परंतु इससे घबराना न चाहिए। शरीर में कितने ही विष एकत्रित हो चुके हैं यह प्रतिक्रिया इसकी निशानी है। सर्दी, दस्त अथवा उलटी होने से शरीर में एकत्रित हुए वे विष निकल जायेंगे।

ज्वारों का रस निकालते समय मधु, अदरक, नागरबेल के पान (खाने के पान) भी डाले जा सकते हैं। इससे स्वाद और गुण का वर्धन होगा और उबकाई नहीं आयेगी। विशेषतया यह बात ध्यान में रख लें कि ज्वारों के रस में नमक अथवा नींबू का रस तो कदापि न डालें।

रस निकालने की सुविधा न हो तो ज्वारे चबाकर भी खाये जा सकते हैं। इससे दाँत मसूढ़े मजबूत होंगे। मुख से यदि दुर्गन्ध आती हो तो दिन में तीन बार थोड़े-थोड़े ज्वारे चबाने से दूर हो जाती है। दिन में दो या तीन बार ज्वारों का रस लीजिये।
रामबाण इलाज

अमेरिका में जीवन और मरण के बीच जूझते रोगियों को प्रतिदिन चार बड़े गिलास भरकर ज्वारों का रस दिया जाता है। जीवन की आशा ही जिन रोगियों ने छोड़ दी उन रोगियों को भी तीन दिन या उससे भी कम समय में चमत्कारिक लाभ होता देखा गया है। ज्वारे के रस से रोगी को जब इतना लाभ होता है, तब नीरोग व्यक्ति ले तो कितना अधिक लाभ होगा?



सस्ता और सर्वोत्तमः
ज्वारों का रस दूध, दही और मांस से अनेक गुना अधिक गुणकारी है। दूध और मांस में भी जो नहीं है उससे अधिक इस ज्वारे के रस में है। इसके बावजूद दूध, दही और मांस से बहुत सस्ता है। घर में उगाने पर सदैव सुलभ है। गरीब से गरीब व्यक्ति भी इस रस का उपयोग करके अपना खोया स्वास्थ्य फिर से प्राप्त कर सकता है। गरीबों के लिए यह ईश्वरीय आशीर्वाद है। नवजात शिशु से लेकर घर के छोटे-बड़े, अबालवृद्ध सभी ज्वारे के रस का सेवन कर सकते हैं। नवजात शिशु को प्रतिदिन पाँच बूँद दी जा सकती है।

ज्वारे के रस में लगभग समस्त क्षार और विटामिन उपलब्ध हैं। इसी कारण से शरीर मे जो कुछ भी अभाव हो उसकी पूर्ति ज्वारे के रस द्वारा आश्चर्यजनक रूप से हो जाती है। इसके द्वारा प्रत्येक ऋतु में नियमित रूप से प्राणवायु, खनिज, विटामिन, क्षार और शरीरविज्ञान में बताये गये कोषों को जीवित रखने से लिए आवश्यक सभी तत्त्व प्राप्त किये जा सकते हैं।

डॉक्टर की सहायता के बिना गेहूँ के ज्वारों का प्रयोग आरंभ करो और खोखले हो चुके शरीर को मात्र तीन सप्ताह में ही ताजा, स्फूर्तिशील एवं तरावटदार बना दो।

आश्रम में ज्वारों के रस के सेवन के प्रयोग किये गये हैं। कैंसर जैसे असाध्य रोग मिटे हैं। शरीर ताम्रवर्णी और पुष्ट होते पाये गये हैं।

आरोग्यता के लिए भाँति-भाँति की दवाइयों में पानी की तरह पैसे बहाना करें। इस सस्ते, सुलभ तथापि अति मूल्यवान प्राकृतिक अमृत का सेवन करें और अपने तथा कुटुंब के स्वास्थ्य को बनाये रखकर सुखी रहें। 

सावधानी ::
गेहूँ के जवारों का रस निकालने के पश्चात अधिक समय तक नहीं रखना चाहिए अन्यथा उसके पोषक तत्व समय बीतने के साथ-साथ नष्ट हो जाते हैं, क्योंकि गेहूँ के जवारों में पोषक तत्व सुरक्षित रहने का समय मात्र ३ घंटे है। गेहूँ के जवारों को जितना ताजा प्रयोग किया जाता है , उतना ही अधिक उसका स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है। इसका सेवन प्रारंभ करते समय कुछ लोगों को दस्त, उल्टी, जी घबराना व अन्य लक्षण प्रकट हो सकते हैं, किंतु उन लक्षणों से घबराने की आवश्यकता नहीं है, आवश्यकता है केवल इसकी मात्रा को कम या कुछ समय के लिए इसका सेवन बंद कर सकते हैं।

होशियार रहना नगर में चोर आएगा

#spiritual

मूरावाला कबीर - Mooralala Marwada - Hiye Kaya Mein

#kabir
#sufi
#spiritual

Saturday, December 21, 2013

आवश्यकता आविष्कार की जननी है

प्रस्तुति - दैनिक भास्कर

#need
#innovation

‘आवश्यकता आविष्कार की जननी है..’ इस कहावत को चरितार्थ करता यह मामला है गुजरात स्थित पवित्र ज्योतिर्लिंग सोमनाथ के पास का। सोमनाथ के आसपास कई अन्य तीर्थ स्थल भी हैं, जिनमें त्रिभेट का नाम भी शामिल है। इसे त्रिभेट इसलिए कहा जाता है कि यहां तीन नदियों.. घेलो, वाघेश्वरी और मीनल नदियों का संगम होता है। 
त्रिभेट के एक ओर रहने वाले कई किसानों के खेत दूसरी तरफ हैं। इसलिए त्रिभेट से अक्सर उनका आवागमन होता रहता है। इसी के चलते किसानों ने इस 100 मीटर की नदी को पार करने के लिए एक अनोखा परिवहन मार्ग बना रखा है।
किसानों की इंजीनियरिंग का कमाल, ये है इनका अनोखा जल परिवहन मार्ग

ग्रामीणों ने नदी के दोनों ओर सायकल के दो रिमों के बीच रस्सी बांधकर एक ऐसी कामचलाऊ तकनीक ईजाद कर ली है, जिसकी सहायता से वे आसानी से नदी पार कर सकते हैं। इसे देखकर कहा जा सकता है कि इस तकनीक के पीछे लगा दिमाग किसी बड़े इंजीनियर के दिमाग से बिल्कुल भी कम नहीं। क्योंकि इसके सहारे किसानों ने अपने आवागमन को सुगम बना लिया है।

किसानों की इंजीनियरिंग का कमाल, ये है इनका अनोखा जल परिवहन मार्ग

एलोवेरा

सौजन्य से : www.facebook.com (https://www.facebook.com/AcharyaBalkrishanJi)

#elovera
#health

एलोवेरा को आयुर्वेद में संजीवनी कहा गया है। त्‍वचा की देखभाल से लेकर बालों की खूबसूरती तक और घावों को भरने से लेकर सेहत की सुरक्षा तक में इस चमत्‍कारिक औषधि का कोई जवाब नहीं है। एलोवेरा विटामिन ए और विटामिन सी का बड़ा स्रोत है।

* एलोवेरा का जूस नियमित पीने वाला व्‍यक्ति कभी बीमार नहीं पड़ता है।

* एलोवेरा जूस के सेवन से पेट के रोग जैसे वायु, अल्सर, अम्‍लपित्‍त आदि की शिकायतें दूर हो जाती हैं। पाचन क्रिया को बेहतर बनाने में इससे बड़ा कोई औषधि नहीं है।

* जोडों के दर्द और रक्त शोधक के रूप में भी एलोवेरा बेजोड़ है।

* एलोवेरा बालों की कुदरती खूबसूरती बनाए रखता है। यह बालों को असमय टूटने और सफेद होने से बचाता है।

* रोज सोने से पहले एड़ियों पर एलोवेरा जेल की मालिश करने से एड़ियां नहीं फटती हैं।



* एलोवेरा त्वचा की नमी को बनाए रखता है।

* एलोवेरा त्वचा को जरूरी मॉश्चयर देता है।

* गर्मियों में सनबर्न की शिकायत हो जाती है। एलोवेरा वाले मोश्‍चराइजर व सनस्‍क्रीन का उपयोग त्‍वचा के सनबर्न को समाप्‍त करता है।

* एलोवेरा एक बेहतरीन स्किन टोनर है। एलोवेरा फेशवॉश से त्‍वचा की नियमित सफाई से त्‍वचा से अतिरिक्‍त तेल निकल जाता है, जो पिंपल्‍स यानी कील-मुहांसे को पनपने ही नहीं देता है।

Thursday, December 19, 2013

गिल्ली-डंडा से भी शिक्षा

प्रस्तुति - दैनिक भास्कर

#education
#help

वह टाटा कंसल्टेंसी सर्विस में काम करता था। काम भी ऐसा कि हमेशा आंकड़ों के इर्द-गिर्द। वह चाहता तो अपने वेतन के चेक में न जाने कितने जीरो जोड़ सकता था। लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। इसके बजाय उसने उन लोगों को नंबरों की शिक्षा देने का फैसला किया जो मैथमैटिक्स से डरते हैं। 2011 में आठ युवा पेशेवरों ने भारी-भरकम वेतन पैकेज को ठुकराकर जरूरतमंद बच्चों को मैथ की शिक्षा देने का फैसला किया था। पढ़ाने का जरिया बनाया गिल्ली-डंडा और क्रिकेट को। इस समूह के अगुआ थे अभिषेक चक्रवर्ती। उम्र 29 साल।
जिस वक्त जॉब छोड़ा वे टाटा कंसल्टेंसी में चार्टर्ड फायनेंशियल एनालिस्ट थे। लेकिन यह नौकरी छोड़कर उन्होंने अपनी टीम के साथ पांच सरकारी स्कूलों के 200 बच्चों को पढ़ाने का बीड़ा उठाया। शुरुआत झारखंड के धनबाद जिले से हुई। वहां के निरसा ब्लॉक के पांड्रा, शानपुर, पोद्दारडीह, खासनिरसा और बैजान गांवों से बच्चों को चुना गया। धनबाद पहुंचने से पहले अभिषेक व्हिजमंत्रा एजुकेशनल सॉल्यूशन्स की स्थापना कर चुके थे। इसके जरिए उन्होंने दिल्ली, मुंबई, गोवा, अहमदाबाद और राजगीर में गरीब बच्चों को शिक्षा भी दी थी। वह एक तरह का पायलट प्रोजेक्ट था। इस काम की विधिवत शुरुआत उन्होंने धनबाद से की। क्रिकेट मैच के जरिए अभिषेक और उनकी टीम बच्चों को गिनती और जोड़-घटाना सिखा रही थी। मैच में बनने वाले रनों को ही इस कवायद का आधार बनाया जाता। ऐसे ही लट्टू के जरिए रेखागणित की मुश्किलें हल की जातीं। उनका दावा है कि बच्चों को कागज पर सर्किल वगैरह बनाकर समझाने से खेल-खेल में यह सब चीजें समझाना ज्यादा आसान है। 
अभिषेक और उनकी टीम 2011 में ही धनबाद के सभी 500 सरकारी स्कूल के बच्चों तक अपना प्रोजेक्ट ले जाने की योजना बना रही थी। और आगे चलकर आदिवासी और अल्पसंख्यक समुदाय के बच्चों को इसके जरिए लाभान्वित करना चाहती थी। दिसंबर 2013 में यह टीम गरीब बच्चों का ग्रेड बेहतर करने के लिए प्रयास कर रही थी। ये बच्चे थे स्कूल आ रहे थे लेकिन दूसरे स्टूडेंट्स की तुलना में ठीक-ठाक स्कोर भी नहीं कर पा रहे थे। साल 2013 में 20 नवंबर से पांच दिसंबर तक अभिषेक की टीम ने एक और काम किया। निरसा ब्लॉक के ही तीन सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को भी ट्रेनिंग दे डाली। कक्षा एक से आठवीं तक के पढ़ाई में कुछ धीमे 200 बच्चों को पढ़ाने के लिए अलग से कक्षाएं भी लगाईं। इसके बाद अब इस टीम ने पूरे साल इस तरह की अतिरिक्त कक्षाएं लगाने का फैसला किया है। 
चुने गए स्कूलों में यह कवायद 20 दिसंबर से शुरू हो रही है। अभिषेक और टीम को प्रायोजक भी मिल रहे हैं। मैथोन पावर लिमिटेड ने इस टीम को मदद देना शुरू किया है। इस टीम ने जो स्टूडेंट सिलेक्ट किए हैं वे सभी कमजोर तबकों के हैं। उनके चयन के लिए टीम ने उनका टेस्ट लिया। स्कूल की रिपोर्ट देखी। टीचर्स और प्रिंसिपलों से फीडबैक भी लिया। स्कूल के शिक्षकों को भी टिप्स देने का फैसला किया ताकि वे भी पढ़ाई को आनंददायक बना सकें। अब यह टीम ई-लर्निग प्रक्रिया के तहत इन्फॉरमेशन एंड कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी का भी इस्तेमाल शुरू करने जा रही है। टीम के सदस्यों ने 16 गांवों में सर्वे भी किया है। स्टूडेंट्स, टीचर्स का चयन किया है। स्कूलों की कक्षाओं को रोचक ढंग से पेंट किया गया है। दीवारों पर भी शिक्षण के सहज तरीके नजर आते हैं। अगले साल 2014 के लिए इस टीम ने लक्ष्य तय किया है कि वह निसरा ब्लॉक के ही 50 अशिक्षित लोगों को भी शिक्षित करेगी। आगामी प्रोजेक्ट को ‘कलम पकड़ो अभियान’ नाम दिया है। टीम की सफलता की सबसे बड़ी वजह क्या है? उन्होंने शिक्षा और शिक्षण को उन चीजों से जोड़ा जो आम हैं। जैसे, गिल्ली-डंडा और क्रिकेट। इन रुचिकर खेलों के जरिए शिक्षा को बोझिल से सहज बनाने का अभियान चलाया। 
फंडा यह है कि..
अगर रचनात्मकता के साथ कोई भी काम किया जाए तो उसे सहज बनाया जा सकता है। सहज और रुचिकर होते ही काम में सफलता की दर भी बहुत ऊंची हो जाती है।

Saturday, December 14, 2013

अलसी

#alasi
#flex seed

- जब से परिष्कृत यानी “रिफाइन्ड तेल” (जो बनते समय उच्च तापमान, हेग्जेन, कास्टिक सोडा, फोस्फोरिक एसिड, ब्लीचिंग क्ले आदि घातक रसायनों के संपर्क से गुजरता है), ट्रांसफेट युक्त पूर्ण या आंशिक हाइड्रोजिनेटेड वसा यानी वनस्पति घी (जिसका प्रयोग सभी पैकेट बंद खाद्य पदार्थों व बेकरी उत्पादनों में धड़ल्ले से किया जाता है), रासायनिक खाद, कीटनाशक, प्रिजर्वेटिव, रंग, रसायन आदि का प्रयोग बढ़ा है तभी से डायबिटीज के रोगियों की संख्या बढ़ी है। हलवाई और भोजनालय भी वनस्पति घी या रिफाइन्ड तेल का प्रयोग भरपूर प्रयोग करते हैं और व्यंजनों को तलने के लिए तेल को बार-बार गर्म करते हैं जिससे वह जहर से भी बदतर हो जाता है। शोधकर्ता इन्ही को डायबिटीज का प्रमुख कारण मानते हैं। पिछले तीन-चार दशकों से हमारे भोजन में ओमेगा-3 वसा अम्ल की मात्रा बहुत ही कम हो गई है और इस कारण हमारे शरीर में ओमेगा-3 व ओमेगा-6 वसा अम्ल यानी हिंदी में कहें तो ॐ-3 और ॐ-6 वसा अम्लों का अनुपात 1:40 या 1:80 हो गया है जबकि यह 1:1 होना चाहिये। यह भी डायबिटीज का एक बड़ा कारण है। डायबिटीज के नियंत्रण हेतु आयुवर्धक, आरोग्यवर्धक व दैविक भोजन अलसी को “अमृत“ तुल्य माना गया है।

अलसी शरीर को स्वस्थ रखती है व आयु बढ़ाती है। अलसी में 23 प्रतिशत ओमेगा-3 फेटी एसिड, 20 प्रतिशत प्रोटीन, 27 प्रतिशत फाइबर, लिगनेन, विटामिन बी ग्रुप, सेलेनियम, पोटेशियम, मेगनीशियम, जिंक आदि होते हैं। सम्पूर्ण विश्व ने अलसी को सुपर स्टार फूड के रूप में स्वीकार कर लिया है और इसे आहार का अंग बना लिया है, लेकिन हमारे देश की स्थिति बिलकुल विपरीत है । अलसी को अतसी, उमा, क्षुमा, पार्वती, नीलपुष्पी, तीसी आदि नामों से भी पुकारा जाता है। अलसी दुर्गा का पांचवा स्वरूप है। प्राचीनकाल में नवरात्री के पांचवे दिन स्कंदमाता यानी अलसी की पूजा की जाती थी और इसे प्रसाद के रूप में खाया जाता था। जिससे वात, पित्त और कफ तीनों रोग दूर होते है।

- ओमेगा-3 हमारे शरीर की सारी कोशिकाओं, उनके न्युक्लियस, माइटोकोन्ड्रिया आदि संरचनाओं के बाहरी खोल या झिल्लियों का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। यही इन झिल्लियों को वांछित तरलता, कोमलता और पारगम्यता प्रदान करता है। ओमेगा-3 का अभाव होने पर शरीर में जब हमारे शरीर में ओमेगा-3 की कमी हो जाती है तो ये भित्तियां मुलायम व लचीले ओमेगा-3 के स्थान पर कठोर व कुरुप ओमेगा-6 फैट या ट्रांस फैट से बनती है, ओमेगा-3 और ओमेगा-6 का संतुलन बिगड़ जाता है, प्रदाहकारी प्रोस्टाग्लेंडिन्स बनने लगते हैं, हमारी कोशिकाएं इन्फ्लेम हो जाती हैं, सुलगने लगती हैं और यहीं से ब्लडप्रेशर, डायबिटीज, मोटापा, डिप्रेशन, आर्थ्राइटिस और कैंसर आदि रोगों की शुरूवात हो जाती है।



- आयुर्वेद के अनुसार हर रोग की जड़ पेट है और पेट साफ रखने में यह इसबगोल से भी ज्यादा प्रभावशाली है। आई.बी.एस., अल्सरेटिव कोलाइटिस, अपच, बवासीर, मस्से आदि का भी उपचार करती है अलसी।

- अलसी शर्करा ही नियंत्रित नहीं रखती, बल्कि मधुमेह के दुष्प्रभावों से सुरक्षा और उपचार भी करती है। अलसी में रेशे भरपूर 27% पर शर्करा 1.8% यानी नगण्य होती है। इसलिए यह शून्य-शर्करा आहार कहलाती है और मधुमेह के लिए आदर्श आहार है। अलसी बी.एम.आर. बढ़ाती है, खाने की ललक कम करती है, चर्बी कम करती है, शक्ति व स्टेमिना बढ़ाती है, आलस्य दूर करती है और वजन कम करने में सहायता करती है। चूँकि ओमेगा-3 और प्रोटीन मांस-पेशियों का विकास करते हैं अतः बॉडी बिल्डिंग के लिये भी नम्बर वन सप्लीमेन्ट है अलसी।

- अलसी कॉलेस्ट्रॉल, ब्लड प्रेशर और हृदयगति को सही रखती है। रक्त को पतला बनाये रखती है अलसी। रक्तवाहिकाओं को साफ करती रहती है अलसी।

- अलसी एक फीलगुड फूड है, क्योंकि अलसी से मन प्रसन्न रहता है, झुंझलाहट या क्रोध नहीं आता है, पॉजिटिव एटिट्यूड बना रहता है यह आपके तन, मन और आत्मा को शांत और सौम्य कर देती है। अलसी के सेवन से मनुष्य लालच, ईर्ष्या, द्वेश और अहंकार छोड़ देता है। इच्छाशक्ति, धैर्य, विवेकशीलता बढ़ने लगती है, पूर्वाभास जैसी शक्तियाँ विकसित होने लगती हैं। इसीलिए अलसी देवताओं का प्रिय भोजन थी। यह एक प्राकृतिक वातानुकूलित भोजन है। 

- सिम का मतलब सेरीन या शांति, इमेजिनेशन या कल्पनाशीलता और मेमोरी या स्मरणशक्ति तथा कार्ड का मतलब कन्सन्ट्रेशन या एकाग्रता, क्रियेटिविटी या सृजनशीलता, अलर्टनेट या सतर्कता, रीडिंग या राईटिंग थिंकिंग एबिलिटी या शैक्षणिक क्षमता और डिवाइन या दिव्य है।

- त्वचा, केश और नाखुनों का नवीनीकरण या जीर्णोद्धार करती है अलसी। अलसी के शक्तिशाली एंटी-ऑक्सीडेंट ओमेगा-3 व लिगनेन त्वचा के कोलेजन की रक्षा करते हैं और त्वचा को आकर्षक, कोमल, नम, बेदाग व गोरा बनाते हैं। अलसी सुरक्षित, स्थाई और उत्कृष्ट भोज्य सौंदर्य प्रसाधन है जो त्वचा में अंदर से निखार लाता है। त्वचा, केश और नाखून के हर रोग जैसे मुहांसे, एग्ज़ीमा, दाद, खाज, खुजली, सूखी त्वचा, सोरायसिस, ल्यूपस, डेन्ड्रफ, बालों का सूखा, पतला या दोमुंहा होना, बाल झड़ना आदि का उपचार है अलसी। चिर यौवन का स्रोता है अलसी। बालों का काला हो जाना या नये बाल आ जाना जैसे चमत्कार भी कर देती है अलसी। किशोरावस्था में अलसी के सेवन करने से कद बढ़ता है।

- लिगनेन का सबसे बड़ा स्रोत अलसी ही है जो जीवाणुरोधी, विषाणुरोधी, फफूंदरोधी और कैंसररोधी है। अलसी शरीर की रक्षा प्रणाली को सुदृढ़ कर शरीर को बाहरी संक्रमण या आघात से लड़ने में मदद करती हैं और शक्तिशाली एंटी-आक्सीडेंट है। लिगनेन वनस्पति जगत में पाये जाने वाला एक उभरता हुआ सात सितारा पोषक तत्व है जो स्त्री हार्मोन ईस्ट्रोजन का वानस्पतिक प्रतिरूप है और नारी जीवन की विभिन्न अवस्थाओं जैसे रजस्वला, गर्भावस्था, प्रसव, मातृत्व और रजोनिवृत्ति में विभिन्न हार्मोन्स् का समुचित संतुलन रखता है। लिगनेन मासिकधर्म को नियमित और संतुलित रखता है। लिगनेन रजोनिवृत्ति जनित-कष्ट और अभ्यस्त गर्भपात का प्राकृतिक उपचार है। लिगनेन दुग्धवर्धक है। लिगनेन स्तन, बच्चेदानी, आंत, प्रोस्टेट, त्वचा व अन्य सभी कैंसर, एड्स, स्वाइन फ्लू तथा एंलार्ज प्रोस्टेट आदि बीमारियों से बचाव व उपचार करता है।

- जोड़ की हर तकलीफ का तोड़ है अलसी। जॉइन्ट रिप्लेसमेन्ट सर्जरी का सस्ता और बढ़िया उपचार है अलसी। ¬¬ आर्थ्राइटिस, शियेटिका, ल्युपस, गाउट, ओस्टियोआर्थ्राइटिस आदि का उपचार है अलसी।

- कई असाध्य रोग जैसे अस्थमा, एल्ज़ीमर्स, मल्टीपल स्कीरोसिस, डिप्रेशन, पार्किनसन्स, ल्यूपस नेफ्राइटिस, एड्स, स्वाइन फ्लू आदि का भी उपचार करती है अलसी। कभी-कभी चश्में से भी मुक्ति दिला देती है अलसी। दृष्टि को स्पष्ट और सतरंगी बना देती है अलसी।

- 1952 में डॉ. योहाना बुडविग ने ठंडी विधि से निकले अलसी के तेल, पनीर, कैंसररोधी फलों और सब्ज़ियों से कैंसर के उपचार का तरीका विकसित किया था जो बुडविग प्रोटोकोल के नाम से जाना जाता है। यह कर्करोग का सस्ता, सरल, सुलभ, संपूर्ण और सुरक्षित समाधान है। उन्हें 90 प्रतिशत से ज्यादा सफलता मिलती थी। इसके इलाज से वे रोगी भी ठीक हो जाते थे जिन्हें अस्पताल में यह कहकर डिस्चार्ज कर दिया जाता था कि अब कोई इलाज नहीं बचा है, वे एक या दो धंटे ही जी पायेंगे सिर्फ दुआ ही काम आयेगी। उन्होंने सशर्त दिये जाने वाले नोबल पुरस्कार को एक नहीं सात बार ठुकराया।

अलसी सेवन का तरीकाः- हमें प्रतिदिन 30 – 60 ग्राम अलसी का सेवन करना चाहिये। 30 ग्राम आदर्श मात्रा है। अलसी को रोज मिक्सी के ड्राई ग्राइंडर में पीसकर आटे में मिलाकर रोटी, पराँठा आदि बनाकर खाना चाहिये। डायबिटीज के रोगी सुबह शाम अलसी की रोटी खायें। कैंसर में बुडविग आहार-विहार की पालना पूरी श्रद्धा और पूर्णता से करना चाहिये। इससे ब्रेड, केक, कुकीज, आइसक्रीम, चटनियाँ, लड्डू आदि स्वादिष्ट व्यंजन भी बनाये जाते हैं।

अलसी को सूखी कढ़ाई में डालिये, रोस्ट कीजिये (अलसी रोस्ट करते समय चट चट की आवाज करती है) और मिक्सी से पीस लीजिये. इन्हें थोड़े दरदरे पीसिये, एकदम बारीक मत कीजिये. भोजन के बाद सौंफ की तरह इसे खाया जा सकता है .

अलसी की पुल्टिस का प्रयोग गले एवं छाती के दर्द, सूजन तथा निमोनिया और पसलियों के दर्द में लगाकर किया जाता है। इसके साथ यह चोट, मोच, जोड़ों की सूजन, शरीर में कहीं गांठ या फोड़ा उठने पर लगाने से शीघ्र लाभ पहुंचाती है। यह श्वास नलियों और फेफड़ों में जमे कफ को निकाल कर दमा और खांसी में राहत देती है।

इसकी बड़ी मात्रा विरेचक तथा छोटी मात्रा गुर्दो को उत्तेजना प्रदान कर मूत्र निष्कासक है। यह पथरी, मूत्र शर्करा और कष्ट से मूत्र आने पर गुणकारी है। अलसी के तेल का धुआं सूंघने से नाक में जमा कफ निकल आता है और पुराने जुकाम में लाभ होता है। यह धुआं हिस्टीरिया रोग में भी गुण दर्शाता है। अलसी के काढ़े से एनिमा देकर मलाशय की शुद्धि की जाती है। उदर रोगों में इसका तेल पिलाया जाता हैं।

अलसी के तेल और चूने के पानी का इमल्सन आग से जलने के घाव पर लगाने से घाव बिगड़ता नहीं और जल्दी भरता है। पथरी, सुजाक एवं पेशाब की जलन में अलसी का फांट पीने से रोग में लाभ मिलता है। अलसी के कोल्हू से दबाकर निकाले गए (कोल्ड प्रोसेस्ड) तेल को फ्रिज में एयर टाइट बोतल में रखें। स्नायु रोगों, कमर एवं घुटनों के दर्द में यह तेल पंद्रह मि.ली. मात्रा में सुबह-शाम पीने से काफी लाभ मिलेगा।

इसी कार्य के लिए इसके बीजों का ताजा चूर्ण भी दस-दस ग्राम की मात्रा में दूध के साथ प्रयोग में लिया जा सकता है। यह नाश्ते के साथ लें।

बवासीर, भगदर, फिशर आदि रोगों में अलसी का तेल (एरंडी के तेल की तरह) लेने से पेट साफ हो मल चिकना और ढीला निकलता है। इससे इन रोगों की वेदना शांत होती है।

अलसी के बीजों का मिक्सी में बनाया गया दरदरा चूर्ण पंद्रह ग्राम, मुलेठी पांच ग्राम, मिश्री बीस ग्राम, आधे नींबू के रस को उबलते हुए तीन सौ ग्राम पानी में डालकर बर्तन को ढक दें। तीन घंटे बाद छानकर पीएं। इससे गले व श्वास नली का कफ पिघल कर जल्दी बाहर निकल जाएगा। मूत्र भी खुलकर आने लगेगा।

इसकी पुल्टिस हल्की गर्म कर फोड़ा, गांठ, गठिया, संधिवात, सूजन आदि में लाभ मिलता है।

डायबिटीज के रोगी को कम शर्करा व ज्यादा फाइबर खाने की सलाह दी जाती है। अलसी व गैहूं के मिश्रित आटे में (जहां अलसी और गैहूं बराबर मात्रा में हो)|

जज्बा - रेशम सिंह विरदी

प्रस्तुति - दैनिक भास्कर

#motivation 
#determination 
#innovation

मन में कुछ अलग करने का जज्बा हो तो पेशेवर डिग्री कोई मायने नहीं रखती। गांव सतीपुरा के आठवीं पास रेशम सिंह विरदी ने इस बात को फिर से साबित कर दिया है।
इस देशी वैज्ञानिक ने अपने हुनर के दम पर कबाड़ से ईंट बनाने की मशीन बनाई है। इस मशीन को बनाने में उसे साढ़े छह साल लगे। मशीन की खासियत यह है कि मिट्टी और पानी अपने आप ही मिलाती है और एक घंटे में पांच हजार ईंटें तैयार कर सकती है। 
आठवीं पास रेशमसिंह ने कबाड़ से बनाई ईंटें बनाने की मशीन
मशीन को चलाने के लिए छह लोगों की जरूरत पड़ती है, जबकि पारंपरिक तरीके से इतनी ईंटें बनाने के लिए बड़ी संख्या में मजदूरों की जरूरत होती है। रेशमसिंह बताते हैं कि ईंट बनाने की मशीन को देखने के लिए काफी लोग आ रहे हैं। सबसे ज्यादा रुचि ईंट भट्ठा मालिकों की है क्योंकि ये लोग मजदूरों की कमी के चलते परेशान हैं। रेशमसिंह का कहना है कि इस मशीन को बनाने में उनके भतीजे सुखदीपसिंह का भी काफी सहयोग रहा है। अब उसने दूसरी मशीन बनानी शुरू कर दी है। 

दोस्त की परेशानी से मिली प्रेरणा 
कृषि यंत्र बनाने वाले विरदी हमेशा कुछ न कुछ नया करते रहते हैं पर ईंट बनाने की मशीन तैयार करने की प्रेरणा उन्हें अपने दोस्त प्रेम सिंह की परेशानी सुनकर मिली। प्रेमसिंह के दामाद भी ईंट भट्ठा चलाते हैं लेकिन कई वर्षों से मजदूरों की कमी को लेकर परेशान थे। प्रेम सिंह की परेशानी सुनकर रेशमसिंह के दिमाग में ईंट तैयार करने वाली मशीन बनाने का आईडिया आया। 

वे कबाड़ से मशीन के पार्ट तैयार करते रहे। आखिरकार प्रयास रंग लाए पर इसमें साढ़े छह साल का समय लगा। अब मशीन तैयार है और रेशम सिंह इसका परीक्षण भी कर चुके हैं। उनका कहना है कि पहली मशीन बनाने में साढ़े छह साल लगे हैं पर अब ऐसी ही मशीन सिर्फ बीस दिन में तैयार कर सकते हैं। 

आठवीं पास रेशमसिंह ने कबाड़ से बनाई ईंटें बनाने की मशीन

वर्ष 2009 में बनाई थी जिप्सम लोडर मशीन 
इससे पहले भी रेशम सिंह विरदी ने सैंड एंड जिप्सम लोडर मशीन वर्ष 2009 में बनाई थी। 90 हजार रुपए की लागत से तैयार हुई इस मशीन ने रेशम सिंह को राष्ट्रपति से पुरस्कार दिलवाया था। इस मशीन का उपयोग ट्राली में मिट्टी भरने के लिए किया जाता है। 
लोडर मशीन ट्राली में मिट्टी लोड करने के अलावा जमीन को समतल भी करती है जबकि साधारण जेसीबी से सिर्फ मिट्टी लोड ही की जा सकती है। इस नई सोच के चलते लोडर मशीन के लिए राष्ट्रपति प्रवण मुखर्जी ने सात मार्च 2013 को दिल्ली में उन्हें सम्मानित किया था। राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने उन्हें सर्टिफिकेट, ट्रॉफी व एक लाख रुपए का चेक पुरस्कार स्वरूप दिया था। 

Wednesday, December 11, 2013

कुम्हड़ा या कददू #pumpkin

सौजन्य से : www.facebook.com (https://www.facebook.com/AcharyaBalkrishanJi)

#pumpkin

शीत ऋतु में कुम्हड़े के फल परिपक्व हो जाते है | पके फल मधुर, स्निग्ध, शीतल, त्रिदोषहर (विशेषत: पिक्तशामक), बुधि को मेधावी बनानेवाले, ह्रदय के लिए हितकर, बलवर्धक, शुक्रवर्धक व विषनाशक है |
कुम्हड़ा मस्तिष्क को बल व शांति प्रदान करता है | यह निद्राजनक है | अत: अनेक मनोविकार जैसे उन्माद (schizophrenia), मिर्गी (epilepsy), स्मृति-ह्रास, अनिद्रा, क्रोध, विभ्रम, उद्वेग, मानसिक अवसाद (depression), असंतुलन तथा मस्तिष्क की दुर्बलता में अत्यंत लाभदायी है | यह धारणाशक्ति को बढ़ाकर बुद्धि को स्थिर करता है | इससे ज्ञान-धारण (ज्ञान संचय) करने की बुद्धि की क्षमता बढती है | चंचलता, चिडचिडापन, अनिद्रा आदि दूर होकर मन शांत हो जाता है |
कुम्हड़ा रक्तवाहिनियों व ह्रदय की मांसपेशियों को मजबूत बनाता है | रक्त का प्रसादन (उतम रक्त का निर्माण) करता है | वायु व मल का निस्सारण कर कब्ज को दूर करता है | शीतल (कफप्रधान) व रक्तस्तंभक गुणों से नाक, योनी, गुदा, मूत्र आदि द्वारा होनेवाले रक्तस्राव को रोकने में मदद करता है | पित्तप्रधान रोग जैसे आतंरिक जलन, अत्यधिक प्यास, अम्लपित (एसिडिटी), बवासीर, पुराना बुखार आदि में कुम्हडे का रस, सब्जी, अवलेह (कुष्मांडावलेह) उपयोगी है |
क्षयरोग (टी.बी.) में कुम्हडे के सेवन से फेफड़ो के घाव भर जाते हैं तथा खांसी के साथ रक्त निकलना बंद हो जाता है |बुखार व जलन शांत हो जाती है, बल बढ़ता है |
अंग्रेजी दवाइयों तथा रासायनिक खाद द्वारा उगायी गयी सब्जियाँ, फल और अनाज के सेवन से शरीर में विषेले पदार्थों का संचय होने लगता है, जो कैंसर के फैलाव का एक मुख्या कारण है | कुम्हडे और गाय के दूध, दही इत्यादि में ऐसे विषों को नष्ट करने की शक्ति निहित है |

औषधि-प्रयोग


मनोविकारों में कुम्हड़े के रस में १ ग्राम यष्टिमधु चूर्ण मिलाकर दें


विष-नाश के लिए इसके रस में पुराना गुड़ मिलाकर पियें


पित्तजन्य रोगों में मिश्रीयुक्त रस लें


पथरी हो तो इसके रस में १-१ चुटकी हींग व यवक्षार मिलाकर लें


क्षय रोग में कुम्हड़ा व अडूसे का रस मिलाकर पियें


बल-बुद्धि बढ़ाने के लिए कुम्हड़ा उबालकर घी में सेंक के हलवा बनायें इसमें कुम्हड़े के बीज डालकर खाएं


कुम्हड़े का दही में बनाया हुआ भुरता भोजन में रूचि उत्पन्न करता है


थकान होने पर कुम्हड़े के रस में मिश्री व सेंधा नमक मिलाकर पीने से तुरंत ही ताजगी आती है


उपरोक्त सभी प्रयोगों में कुम्हड़े के रस की मात्र २०-५० मी.ली. लें

सावधानी : कच्चा कुम्हड़ा त्रिदोष-प्रकोपक है पुराना कुम्हड़ा पचने में भारी होता है, इसके मोटे रेशे आँतों में रह जाते हैं अतः कच्चा व पुराना कुम्हड़ा नहीं खाना चाहिए कुम्हड़े की शीतलता कम करनी हो तो उसमें मेथी का चौंक लगायें

बलदायक कुम्हड़े के बीज

गुण -कुम्हड़े के बीज काजू के समान गुणवत्तायुक्त, पौष्टिक, बलवर्धक, वीर्यवर्धक, बुद्धि की धारणा शक्ति बढ़ाने वाले, मस्तिष्क को शांत करने वाले व कृमिनाशक हैं

सेवन विधि - बीज पीस लें दूध में एक चम्मच मिलाकर पियें इससे शरीर पुष्ट होता है पचने में भारी होने के कारण इसे अधिक मात्रा में न लें

सर्दियों में बलदायी, कुम्हड़े के बीजों के लड्डू -

इससे वजन, शक्ति, रक्त और शुक्रधातु की वृद्धि होती है, बुद्धि भी बढ़ती है



विधि - कुम्हड़े के बीजों के अंदर की गिरी निकालकर उसे थोड़ा बारीक पीस लें लोहे के तवे पर घी में लाल होने तक भूनें मिश्री की चाशनी में मिलाकर तिल के लड्डू के समान छोटे-छोटे लड्डू बनायें सर्दियों में बच्चे १ और बड़े २-३ लड्डू चबा-चबाकर खाएं
सर्दियों में बलदायी कुम्हड़े के बीजों के लड्डू
लाभ : इससे वजन, शक्ति, रक्त और शुक्रधातु की वृद्धि होती है, बुद्धि भी बढाती है |
विधि : कुम्हड़े के बीजों के अंदर की गिरी निकलकर उसे थोडा गर्म करके बारीक पीस लें | लोहे के तवे पर घी में लाल होने तक भुनें | मिश्री की चाशनी में मिलकर तिल के लड्डू बनायें | सर्दियों में बच्चे १ और बड़े २-३ लड्डू चबा-चबाकर खायें |

Saturday, December 7, 2013

डॉक्टर राजीव दीक्षित (स्वास्थय) part 2

शुभ दिन

कराग्रे वसते लक्ष्मी करमध्ये सरस्वती |
करमूलेतगोविन्दम प्रभाते करदर्शनम ||

जिसका अर्थ है हाथो के आगे भाग में लक्ष्मी जी , मध्य में सरस्वती जी और मूल भाग में विष्णु जी का वास है. अर्थात भगवान ने हमारे हाथों में इतनी ताकत दे रखी है,ज़िसके बल पर हम धन अर्थात लक्ष्मी अर्जित करतें हैं। जिसके बल पर हम विद्या सरस्वती प्राप्त करतें हैं। इतना ही नहीं सरस्वती तथा लक्ष्मी जो हम अर्जित करते हैं, उनका समन्वय स्थापित करने के लिए प्रभू स्वयं हाथ के मध्य में बैठे हैं। ऐसे में क्यों न सुबह अपनें .हाथ के दर्शन कर प्रभू की दी हुई ताकत का अहसास करते हुए तथा प्रभू के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए दिन की अच्छी शुरूवात करें। 

आप सुबह उठ कर अंजुली बना कर दोनो हाथो का दर्शन किजिए फिर हाथों से आँखों और चेहरे को छुए . इसके पश्चात भूमि को भी वंदन करे . फिर श्वास पर ध्यान दे और जो भी स्वर चल रहा हो वही पैर भूमि पर पहले रखे .ऐसा करने से दिन शुभ होगा और जो भी कार्य हाथों से होगा वो अच्छा ही होगा .

(स्वर का पता लगाने के लिए देखे कि कौन सी नासिका में से सांस आसानी से और ज्यादा आ और जा रहा है उसी तरफ़ के पैर को भूमि पर पहले रखे)

हाथ जोड़ने से देवताओं के तत्वों की तरंगें अंजलि की ओर आकृष्ट होती है .यहाँ ये घनीभूत हो कर घुमती रहती है .अंजुली बनाने की मुद्रा को ब्रम्ह मुद्रा कहते है . इसे बनाने से सुषुम्ना नाडी कार्यरत होती है . रात्री में सोने से देह में तमो गुण बढ़ जाता है इसे कम करने में ये मुद्रा सहायक होती है .