Monday, May 19, 2014

कड़ी मेहनत - series - 03

प्रस्तुति - दैनिक भास्कर

#leader
#creative
#progressive

लाखों का पैकेज छोड़ करने लगे खेती और बदल दी गांव की सूरत

पटना. नाम यदुवेंद्र किशोर सिंह, पिता अवध किशोर सिंह। उम्र 29 वर्ष। विक्टोरिया बॉयज स्कूल, दार्जिलिंग से वर्ष 2002 में मैट्रिक। एयरफोर्स स्कूल, नई दिल्ली से इंटरमीडिएट (2004। क्राइस कॉलेज बेंगलुरु से स्नातक (2007) और ईडीआई, अहमदाबाद से 2008 में पोस्ट ग्रेजुएट डिघ्लोमा इन बिजनेस इंटरप्रन्योर मैनेजमेंट की पढ़ाई की। मल्टीनेशनल कंपनियों में लाखों रुपए का ऑफर ठुकरा कर आज समेकित खेती कर रहे हैं।  
मधुबनी जिले के फूलपसरास प्रखंड के खुटौना गांव में यदुवेंद्र ने 7.5 एकड़ में पांच तालाब बनवाया है। जलजमाव वाले इस क्षेत्र में कुछ नए तालाब भी बनवाए, जबकि कुछ पुराने तालाबों का जीर्णोद्धार भी करवाया है। इस वर्ष तालाब में इंडियन कार्प मछली का बीज डाला है। साथ ही 100 आम के पौधे लगाए। 10 गाय रखे हैं। धान, गेहूं, सरसो और अरहर की खेती भी कर रहे हैं। इस प्रकार समेकित खेती की शुरुआत की है।

लोगों ने माना लोहा
प्रबंधन की पढ़ाई के बाद नौकरी ठुकरा खेती करने जब गांव आए, तो लोग हंस रहे थे। कई लोगों ने कहा- दिमाग फिर गया है। अब लोग समेकित खेती में इनके कुशल प्रबंधन का लोहा मानने लगे हैं। मछलीपालन, बागवानी, पशुपालन और सामान्य खेती से प्रतिवर्ष कम से कम 25 लाख रुपए शुद्ध मुनाफा होने की उम्मीद है। 

लाखों का पैकेज छोड़ करने लगे खेती और बदल दी गांव की सूरत

आत्म संतुष्टि के लिए कर रहे खेती
यदुवेंद्र की योजना है कि समेकित खेती में राज्य का यह महत्वपूर्ण मॉडल बने। इसे किसानों के समेकित खेती का प्रशिक्षण केंद्र बनाने का लक्ष्य है। मधुबनी सहित राज्य के किसानों को कम खर्च में अधिक लाभ के लिए समेकित खेती का मॉडल अपनाने के लिए प्रेरित करना भी उनका लक्ष्य है। धान और गेहूं की खेती के लिए श्रीविधि तकनीक को अपनाने के लिए किसानों को वे प्रेरित करते हैं। 

Thursday, May 1, 2014

कड़ी मेहनत - series - 02

प्रस्तुति - दैनिक भास्कर

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25 पैसे रोज की मजदूरी से शुरू किया काम, अब हैं फैक्ट्री मालिक
कोलकाता. कोलकाता के एनवीआर ग्रुप के सीएमडी संजय सिंह राठौर लोगों को सत्तू पिला कर करोड़पति बने हैं।
उन्होंने पारंपरिक सत्तू में औषधि मिलाकर उसे नये रूप में बाजार में उतारा, जो जंक फूड के आदी लोगों के लिए बेहतर पौष्टिक विकल्प बना। आज लाखों लोग उनकी चक्की का सत्तू पीकर दिन की शुरुआत करते हैं।
संजय ने अपने कारोबार की शुरुआत महज एक लाख रुपए से की थी। आज उनका व्यापार 10 करोड़ रुपए का हो गया है।
मूल रूप से बिहार के होने के कारण संजय को सत्तू के साथ हमेशा ही लगाव रहा। वह सोचते थे कि सत्तू को कैसे ऊपरी तबके में लोकप्रिय बनाया जाये। वह एनवीआर रेडीमिक्स प्रीमियम सत्तू लेकर बाजार में आए।
हावड़ा के बजरंगबली में उन्होंने एक यूनिट बनाया। इसमें सत्तू की पिसाई से लेकर पैकेजिंग तक की जाती है। बाजार से श्रेष्ठ क्वालिटी का चना खरीदकर उसमें आयुर्वेदिक हर्ब मिलाया जाता है। छोटे पाउच में इसे बाजार में उतारा गया। देखते ही देखते यह उत्पाद पसंद किया जाने लगा।

कड़ी मेहनत - series - 01

प्रस्तुति - दैनिक भास्कर

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25 पैसे रोज की मजदूरी से शुरू किया काम, अब हैं फैक्ट्री मालिक

खंडवा. आर्थिक समस्या से मजबूर होकर मात्र 13 साल की उम्र में मजदूरी से करियर की शुरुआत की। शुरुआती दौर में लक्कड़ बाजार में एक फर्नीचर व्यापारी के यहां मात्र 25 पैसे प्रतिदिन पर मजदूर कर रंदा चलाया। दिन-रात कड़ी मेहनत की। यह सिलसिला 15 साल तक चला। 
मन में आगे बढ़ने की दृढ़ इच्छाशक्ति के कारण थोड़ी बहुत बचत की। इससे छोटे-मोटे ठेके लिए और 28 साल की आयु तक पहुंचने पर लक्कड़ बाजार में छोटी सी दुकान खोल ली। फिर कभी पीछे पलटकर नहीं देखा। यह कहना है शहर के प्रतिष्ठित फर्नीचर व्यवसायी कंछेदीलाल विश्वकर्मा का। 
आज वह मजदूरों के लिए आदर्श बन गए। कड़ी मेहनत और दृढ़ इच्छाशक्ति के दम पर उन्होंने लाल चौकी क्षेत्र में फर्नीचर का बड़ा शोरूम खोला है, जिसे बेटे अनिल विश्वकर्मा संचालित कर रहे हैं। उम्र 74 साल हो गई, लेकिन कारखाने में काम करने वाले मजदूरों को आज भी वे मार्गदर्शन दे रहे हैं।
दो बेटे कर रहे ठेकेदारी एक संभाल रहा शोरूम
श्री विश्वकर्मा की कड़ी मेहनत के कारण ही आज उनके बेटे प्रवीण कुमार और अशोक कुमार सरकारी विभागों के साथ ही बिल्डिंग निर्माण के ठेके ले रहे हैं। वहीं छोटे बेटे अनिल विश्वकर्मा लालचौकी क्षेत्र में शहर का भव्य फर्नीचर शोरूम संचालित कर रहे हैं। 
बच्चों को छोड़कर दिन-रात किया काम
वे बताते हैं कि उन्होंने एक व्यापारी के यहां 25 पैसे रोज पर मजदूरी से रंदा चलाया। युवा होने पर कारीगर बन गया फिर भी मजदूरी 3 रुपए रोज ही मिलती थी। 1953 से 1968 तक मजदूरी की। थोड़ी बहुत बचत करने के साथ ही परिचितों के सहयोग से 1969 में बिल्डिंग के फर्नीचर संबंधी काम के छोटे ठेके लेना शुरू किए। एक साल बाद छोटी सी दुकान शुरू की। छोटे-छोटे बच्चों को छोड़कर दिन-रात काम में लगा रहा। बच्चे बढ़े हुए तो उन्होंने भी काम में सहयोग किया।
फोटो- कारखाने में कारीगरों को डिजाइन बनाने के लिए समझाइश देते कंछेदीलाल विश्वकर्मा।