Sunday, April 19, 2015

माइक्रो चिलर

प्रस्तुति - दैनिक भास्कर

# Leader
# Creative
# Progressive

‘एमबीए करने के बाद मैं एक कंपनी में पंजाब का स्टेट हेड बन चुका था। पोस्टिंग लुधियाना में थी। और 15 लाख रुपए का एनुअल पैकेज। कई बड़ी कंपनियों से जॉब के ऑफर भी थे। लेकिन, उन्हें छोड़कर मैंने मिल्क प्रोसेसिंग का कारोबार शुरू किया। और कुछ दिनों बाद ही मैंने एक माइक्रो चिलर बनाया। डेढ़ साल के अंदर ही काम चल निकला और हमारा सालाना कारोबार एक करोड़ से ज्यादा तक जा पहुंचा। पहले मैं खुद के लिए कमाता था, लेकिन आज मेरे साथ 100 सेे ज्यादा छोटे डेयरी फॉर्मर्स जुड़े हैं। मैं खुश हूं कि, मेरी वजह से उन्हें पहले से ज्यादा फायदा मिल रहा है।'यह मेरे लिए सबसे बड़ी बात है।
15 लाख की जॉब छोड़ शुरू किया दूध का कारोबार, बने करोड़पति












मार्केट में उतारूंगा माइक्रो चिलर
एमबीए पास गौतम अग्रवाल ने बताया कि माइक्रो चिलर छोटे डेयरी फॉर्मर्स को ध्यान में रखकर बनाया है। आम तौर पर मार्केट में मिलने वाली चिलिंग मशीनें साइज में बड़ी हैं और उनकी कीमत भी एक लाख से शुरू होती है। हमने जो माइक्रो चिलर बनाया है इसकी कीमत मात्र 25 हजार रुपए के करीब है और यह साइज में भी छोटा। इस वजह से यह आम लोगों के लिए फायदेमंद साबित हो रहा है। इसकी डिमांड को देखते हुए अब जल्द ही इसे मार्केट में उतारने की सोची है। फिलहाल डेयरी फॉर्मर्स के लिए चिलिंग सेंटर भी खोल रखें हैं।
देशभर के धार्मिक स्थलों में देसी गायों के घी की सप्लाई
मैंने सिर्फ देसी गायों के दूध का कारोबार शुरू किया। साथ ही साथ जुड़े डेयरी फार्मर्स को इन्हें बढ़ावा देने के लिए तकनीकी जानकारियां देनी भी शुरू की। अभी मैं गाय के दूध का रिटेल काराेबार, पनीर और घी का कारोबार कर रहा हूं। हमारे पठानकोट स्थित फार्म से देसी घी देशभर के धार्मिक स्थलों में सप्लाई किया जा रहा है। इसका दायरा और बढ़ाया जा रहा है। हमारी कोशिश है कि और भी प्रोडक्ट ज्लद मार्केट में जल्द उतारा जाए। अब मैं पनीर, प्री-बायोटिक मिल्क ड्रिंक और मिल्क प्रोडक्ट्स की क्वाॅलिटी में सुधार के लिए शोध में जुटा हूं।

Saturday, April 11, 2015

शक्ति संचय कीजिए


#facebook
#inspiration
#motivation
जीवन एक प्रकार का संग्राम है। इसमें घड़ी-घड़ी मे विपरीत परिस्थितियों से, कठिनाइयों से, लड़ना पड़ता है। मनुष्य को अपरिमित विरोधी-तत्त्वों को पार करते हुए अपनी यात्रा जारी रखनी होती है। दृष्टि उठाकर जिधर भी देखिए, उधर ही शत्रुओं से जीवन घिरा हुआ प्रतीत होगा। ‘दुर्बल, सबलों का आहार है’ यह एक ऐसा कड़वा सत्य है, जिसे लाचार होकर स्वीकार करना ही पड़ता है। छोटी मछली को बड़ी मछली खाती है। बड़े वृक्ष अपना पेट भरने के लिए आस-पास के असंख्य छोटे-छोटे पौधों की खुराक झपट लेते हैं। छोटे कीड़ों को चिड़ियाँ खा जाती हैं और उन चिड़ियों को बाज आदि बड़ी चिड़ियाँ कार कर खाती हैं। गरीब लोग अमीरों द्वारा, दुर्बल बलवानों द्वारा सताए जाते हैं। इन सब बातों पर विचार करते हुए हमें इस निर्णय पर पहुँचना होता है कि यदि सबलों का शिकार बनने से, उनके द्वारा नष्ट किए जाने से, अपने को बचाना है तो अपनी दुर्बलता को हटाकर इतनी शक्ति तो कम से कम अवश्य ही संचय करती चाहिए कि चाहे जो कोई यों ही चट न कर जाए।
सांसारिक जीवन में प्रवेश करते हुए यह बात भली प्रकार समझ लेनी चाहिए और समझ कर गाँठ बाँध लेनी चाहिए कि केवल जागरूक और बलवान व्यक्ति ही इस दुनिया में आनंदमय जीवन के अधिकारी हैं।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
-अखण्ड ज्योति- अगस्त 1945 पृष्ठ 3
http://literature.awgp.org/maga…/AkhandjyotiHindi/…/August.3

Tuesday, April 7, 2015

गुलाब जल और गुलाब ऑयल

प्रस्तुति - दैनिक भास्कर

# Leader
# Creative
# Progressive

पंजाब में बठिंडा में कलालवाला गांव के किसान राजिंदरपाल सिंह भोला की मेहनत रंग लाने लगी है। 2004 में उन्होंने 4 रुपए की गुलाब की कलम और देग (मिट्टी का बड़ा बर्तन) के सहारे काम स्टार्ट किया और आज हर साल 6 लाख रुपए की कमाई कर रहे हैं। इसको लेकर युवा किसान भोला को स्टेट अवॉर्ड भी मिल चुका है।
भोला के गुलाब की महक अमेरिका और कनाड़ा तक पहुंचने लगी है। उनके द्वारा लगाई गई मशीन से बने गुलाब के तेल की मांग कई देशों में होने लगी है। इसको लेकर भोला ने बताया कि उन्होंने खेती में रिस्क लेते हुए एक साथ ही छह एकड़ में गुलाब की खेती शुरू कर दी। उस समय इस पर कुल 4 रुपये इन्वेस्टमेंट करनी पड़ी थी।



ऐसे बनाते हैं गुलाब जल और गुलाब ऑयल
भोला के चचेरे भाई युवा किसान रॉबिन भाकर ने बताया कि उन्होंने फैक्ट्री खुद लगा रखी है। पहले गुलाब के फूलों को सुबह-सुबह तोड़ा जाता है। 80 किलोग्राम फूलों को एक बड़ी देग (मिट्टी का बड़ा बर्तन) में डाल कर साफ पानी डाला जाता है। ऊपर से टाइट करके बंद कर दिया जाता है। देग के नीचे हल्की आग जला दी जाती है। इससे पानी वाष्प बन कर भभके में चली जाती है। उस भभके को पानी में रखा जाता है। ऐसे में भाप जब भभके में पहुंचती है, तो वहां का तापमान कम होने से वो भी तरल बन जाती है और वह यह गुलाब जल बन जाती है। जब गुलाब के चार भभके भर जाते हैं, तो उनको एक अन्य बड़ी देग में डाल कर उनको उसी प्रक्रिया से गुजारा जाता है, तो उस के ऊपर गोल्डन कलर का गुलाब ऑयल जाता है। एक क्विंटल गुलाब पर सिर्फ 3 से 5 एमएल ऑयल ही आता है। एक किलोग्राम गुलाब ऑयल की अंतर राष्ट्रीय मार्केट में कीमत 15 लाख के करीब है। उनके गुलाब जल को एक्सपोर्टर खरीद लेते हैं। उनके गुलाब की मांग कनाड़ा और अमेरिका में ज्यादा है। क्योंकि उनका गुलाब आर्गेनिक होता है। वो किसी भी खाद्य रसायन का इस्तेमाल नहीं करते हैं।

गुलाब के फूलों को तोड़ता भोला

चाचा ने दिया गुलाब की खेती का आइडिया

भोला के चाचा जगदेव सिंह को भ्रमण का काफी शौक था। वो घूमते-घूमते आगरा चले गए, वहां उन्होंने गुलाब की खेती होती देखी। तो इसके बारे में पता किया। देखा कि पंजाब का मौसम भी गुलाब की खेती के अनुकूल है। पंजाब में भी इसकी खेती की जा सकती है। इससे रिवायती खेती से छुटकारा मिलेगा और जमीन की उपजाऊ शक्ति बढ़ेगी। उन्होंने गांव आकर भोला को गुलाब की खेती करने के लिए उत्साहित किया।

लोकल में गुलाब जल की बहुत डिमांड है

भोला सिंह ने बताया कि उनके गुलाब जल की लोकल बहुत डिमांड है। उनके द्वारा भाकर आर्गेनिक प्रोडक्ट्स के नाम पर गुलाब जल की पैकिंग करके गुलाब जल सेल किया जाता है और जो भी एक बार इसका इस्तेमाल करता है, वो जिंदगी में और किसी गुलाब जल का इस्तेमाल नहीं कर सकता।