This blog is designed to motivate people, raise community issues and help them. लोगों को उत्साहित करना, समाज की ज़रुरतों एवं सहायता के लिए प्रतिबद्ध
Tuesday, February 24, 2009
Sunday, February 22, 2009
काम की तलाश में आए थे, अब दूसरों को दे रहे काम
प्रस्तुति - जागरण
कहते हैं जिंदगी हर किसी को एक बार मौका जरूर देती है। यह मौका पाने वाले पर निर्भर करता है कि वह उसका कैसे इस्तेमाल करता है। जिसने मौके की नजाकत को पहचान लिया, वह सिकंदर। कृष्णा व उसके पति उन्हीं में से एक हैं। यहां खुद काम की तलाश में आए थे, अब कई लोगों को काम दे रहे हैं।
यहां आने के कुछ वर्ष बाद कृष्णा को भी जिंदगी ने एक मौका दिया, कुछ भले लोगों का सहारा मिला। जिसे उसने जाया नहीं होने दिया। बागवानी में काम करते हुए कृष्णा ने अचार व मुरब्बा बनाना शुरू कर दिया। पति गोवर्धन मुरब्बा व आचार बेचने लगे। अब मेहनत रंग ला रही है। कृष्णा अचार- मुरब्बा बनाने में दूसरी महिलाओं का भी सहयोग ले रही है। खास बात यह कि अनपढ़ होकर भी कृष्णा के हाथ में गजब का हुनर है। उसने कंचे बांस में भी मिठास भर दी है। उसके अचार व मुरब्बे के लोग मुरीद होते जा रहे हैं।
कभी शादी के मंडप में फेरे लेते वक्त कृष्णा व गोवर्धन ने सुख दुख में साथ निभाने की कसम खाई थी। आज कारोबार भी साथ मिलकर कर रहे हैं। गोवर्धन बताते हैं कि रोजगार की तलाश में 1992 में दिल्ली आया था। वे नजफगढ़ के एक बागवानी में काम करने लगे। मालिक बलजीत त्यागी का कृषि विशेषज्ञोï के साथ उठना बैठना था। उनके कहने पर गृह विज्ञान विशेषज्ञ ऋतु सिंह ने कृष्णा को अचार व मुरब्बा बनाने का प्रशिक्षण दिया। यहीं से समय पलटा। अब कृष्ण दंपति अपनी किस्मत खुद लिख रहे हैं।
प्रशिक्षण लेने के बाद कृष्णा ने पांच किलो आम एवं आंवला से अचार व मुरब्बा बनाने का कार्य शुरू किया। अब कई फलों के अचार व मुरब्बा बनाते हैं। गोवर्धन भी अचार व मुरब्बे की किस्में बताते बताते उलझ जाते हैं। शहद में बने मुरब्बे लोग खास तौर पर पसंद करते हैं। चीनी की चासनी में बने मुरब्बे की मिठास भी कम नहीं है। कृष्णा सेब, आम, पपीता, करौंदा, गाजर, बेल, अदरक का भी मुरब्बा बनाती है। यही नही जिस बांस की खास उपयोगिता नहीं समझी जाती, उस कच्चे बांस के मुरब्बे की मिठास लोगों को कायल बना रही है।
कहते हैं जिंदगी हर किसी को एक बार मौका जरूर देती है। यह मौका पाने वाले पर निर्भर करता है कि वह उसका कैसे इस्तेमाल करता है। जिसने मौके की नजाकत को पहचान लिया, वह सिकंदर। कृष्णा व उसके पति उन्हीं में से एक हैं। यहां खुद काम की तलाश में आए थे, अब कई लोगों को काम दे रहे हैं।
यहां आने के कुछ वर्ष बाद कृष्णा को भी जिंदगी ने एक मौका दिया, कुछ भले लोगों का सहारा मिला। जिसे उसने जाया नहीं होने दिया। बागवानी में काम करते हुए कृष्णा ने अचार व मुरब्बा बनाना शुरू कर दिया। पति गोवर्धन मुरब्बा व आचार बेचने लगे। अब मेहनत रंग ला रही है। कृष्णा अचार- मुरब्बा बनाने में दूसरी महिलाओं का भी सहयोग ले रही है। खास बात यह कि अनपढ़ होकर भी कृष्णा के हाथ में गजब का हुनर है। उसने कंचे बांस में भी मिठास भर दी है। उसके अचार व मुरब्बे के लोग मुरीद होते जा रहे हैं।
कभी शादी के मंडप में फेरे लेते वक्त कृष्णा व गोवर्धन ने सुख दुख में साथ निभाने की कसम खाई थी। आज कारोबार भी साथ मिलकर कर रहे हैं। गोवर्धन बताते हैं कि रोजगार की तलाश में 1992 में दिल्ली आया था। वे नजफगढ़ के एक बागवानी में काम करने लगे। मालिक बलजीत त्यागी का कृषि विशेषज्ञोï के साथ उठना बैठना था। उनके कहने पर गृह विज्ञान विशेषज्ञ ऋतु सिंह ने कृष्णा को अचार व मुरब्बा बनाने का प्रशिक्षण दिया। यहीं से समय पलटा। अब कृष्ण दंपति अपनी किस्मत खुद लिख रहे हैं।
प्रशिक्षण लेने के बाद कृष्णा ने पांच किलो आम एवं आंवला से अचार व मुरब्बा बनाने का कार्य शुरू किया। अब कई फलों के अचार व मुरब्बा बनाते हैं। गोवर्धन भी अचार व मुरब्बे की किस्में बताते बताते उलझ जाते हैं। शहद में बने मुरब्बे लोग खास तौर पर पसंद करते हैं। चीनी की चासनी में बने मुरब्बे की मिठास भी कम नहीं है। कृष्णा सेब, आम, पपीता, करौंदा, गाजर, बेल, अदरक का भी मुरब्बा बनाती है। यही नही जिस बांस की खास उपयोगिता नहीं समझी जाती, उस कच्चे बांस के मुरब्बे की मिठास लोगों को कायल बना रही है।
Wednesday, February 18, 2009
Tuesday, February 17, 2009
बेहतरीन प्रतिभाओं को पुरस्कृत करेगी इन्फोसिस
इन्फोसिस टेक्नोलॉजिज (इन्फोसिस) ने इन्फोसिस साइंस फाउंडेशन के नाम से गैर लाभकारी ट्रस्ट की स्थापना की है, जो भारत में विज्ञान के क्षेत्र में शोध को प्रोत्साहित करेगी।
इस फाउंडेशन के तहत इन्फोसिस देशभर में विज्ञान में हुए विभिन्न योगदानों और उपलब्धियों को सम्मानित करेगी। हर श्रेणी के लिए सालाना 50 लाख रुपये का पुरस्कार दिया जाएगा।
इन्फोसिस साइंस फाउंडेशन को इन्फोसिस कार्यकारी बोर्ड सदस्यों के द्वारा 21.5 करोड़ रुपये दिया जाएगा, जबकि इन्फोसिस टेक्नोलॉजिज भी सालाना अनुदान मुहैया कराएगी।
इन्फोसिस पुरस्कार श्रेणी में भौतिकी और रसायन शास्त्र, गणित और सांख्यिकी, सभी इंजीनियरिंग शाखाओं, जीव विज्ञान और मेडीसिन, अर्थशास्त्र, इतिहास, समाज शास्त्र, राजनीति शास्त्र और दूसरे सामाजिक विज्ञान को शामिल किया गया है। इन पुरस्कारों के लिए जूरी को अपने क्षेत्र के प्रतिष्ठित शख्सियतों को फाउंडेशन की ट्रस्टी द्वारा चुना जाएगा।
इस पुरस्कार के बारे में इन्फोसिस के अध्यक्ष एन. आर. नारायणमूर्ति ने कहा, ' भारत को शैक्षणिक, सरकारी, व्यापार और समाज हर क्षेत्र में बेहतरीन प्रतिभा की जरूरत है। हम भारत में शोध की प्रवृति को प्रोत्साहित करेंगे। भारत के भविष्य बनाने में बेहतरीन प्रतिभाओं को इस पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा।'
इस फाउंडेशन के तहत इन्फोसिस देशभर में विज्ञान में हुए विभिन्न योगदानों और उपलब्धियों को सम्मानित करेगी। हर श्रेणी के लिए सालाना 50 लाख रुपये का पुरस्कार दिया जाएगा।
इन्फोसिस साइंस फाउंडेशन को इन्फोसिस कार्यकारी बोर्ड सदस्यों के द्वारा 21.5 करोड़ रुपये दिया जाएगा, जबकि इन्फोसिस टेक्नोलॉजिज भी सालाना अनुदान मुहैया कराएगी।
इन्फोसिस पुरस्कार श्रेणी में भौतिकी और रसायन शास्त्र, गणित और सांख्यिकी, सभी इंजीनियरिंग शाखाओं, जीव विज्ञान और मेडीसिन, अर्थशास्त्र, इतिहास, समाज शास्त्र, राजनीति शास्त्र और दूसरे सामाजिक विज्ञान को शामिल किया गया है। इन पुरस्कारों के लिए जूरी को अपने क्षेत्र के प्रतिष्ठित शख्सियतों को फाउंडेशन की ट्रस्टी द्वारा चुना जाएगा।
इस पुरस्कार के बारे में इन्फोसिस के अध्यक्ष एन. आर. नारायणमूर्ति ने कहा, ' भारत को शैक्षणिक, सरकारी, व्यापार और समाज हर क्षेत्र में बेहतरीन प्रतिभा की जरूरत है। हम भारत में शोध की प्रवृति को प्रोत्साहित करेंगे। भारत के भविष्य बनाने में बेहतरीन प्रतिभाओं को इस पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा।'
Monday, February 16, 2009
मेहनत ने उगाया खारे पानी में मीठा फल
प्रस्तुति - जागरण
बीएसएफ के रिटायर्ड कमाडेंट बलजीत सिंह त्यागी ने बंजर भूमि पर फलदार पेड़ लगाने में तीन बार विफल रहने पर भी हिम्मत नहीं हारी। कृषि वैज्ञानिकों से पता चला कि भूमिगत पानी खारा होने से यहा पेड़ नहीं उग सकते। उन्होंने अपनी मेहनत व लगन से डेढ़ लाख लीटर क्षमता के वाटर हार्वेस्टिंग व भूमिगत जल रिचार्ज टैंक से जमीन को मीठे पानी से तर कर दिया। जिससे बाझ जमीन की कोख उर्वरा हो गई। आज उसका आचल चीकू, आवला, जोधपुरी बेर सहित कई मीठे फलों से भर गया है। जबकि इस लगन के पीछे बीएसएफ का स्लोगन ड्यूटी अनटिल डेथ प्रेरणा स्त्रोत रहा। जिसका अर्थ है मौत आने तक कर्तव्य निभाना। रिटायर्ड कमाडेंट बलजीत त्यागी [78] ने बीएसएफ में जान की बाजी लगाकर इस मंत्र का पालन किया था। जहा कश्मीर में दुश्मनों से लड़ते हुए तीन बार जख्मी हुए और पैर गवा बैठे। लेकिन कुछ कर गुजरने के जज्बे के दम पर वाटर हार्वेस्टिंग से बंजर भूमि को उपजाऊ बना दिया। इसके लिए दिल्ली सरकार ने सन् 2007 में उन्हें पुरस्कृत भी किया था।
बलजीत सिंह त्यागी ने कहा कि वे 1991 व 92 में जम्मू कश्मीर में तीन बार युद्ध लड़ चुके हैं। जबकि 1992 में ही बीएसएफ से सेवानिवृत्त हुए। उन्होंने कहा कि नजफगढ़ स्थित छावला बीएसएफ कैंप के पास की सवा दो एकड़ जमीन पर तीन बार पेड़ लगाया। जो हर बार सूख जाते थे। इसके बाद उन्होंने पूसा व उजवा कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों से सलाह ली। वैज्ञानिकों ने बताया कि उक्त जमीन का भूमिगत जल खारा है। समस्या से निबटने के लिए फार्म में बारिश का पानी एकत्र करने के लिए जल संचय टैंक बनाया। जो 11 फुट गहरा, 22 फुट लंबा व 16 फुट चौड़ा है। साथ ही बारिश का पानी बर्बाद न हो इसके लिए भूजल रिचार्ज टैंक भी लगाया। इस जल से सिंचाई कर पौधे लगाए तो वे फलों से लद गए। जिसमें जोधपुरी बेर की तीन किस्में उमरान, गेला व सेब प्रमुख हैं। आम का पेड़ भी लगाया है। उनका सफर इतने पर ही नहीं रुका फिलहाल वे बॉटनिकल गार्डन भी बनवा रहे हैं।
बलजीत सिंह त्यागी ने कहा कि वे 1991 व 92 में जम्मू कश्मीर में तीन बार युद्ध लड़ चुके हैं। जबकि 1992 में ही बीएसएफ से सेवानिवृत्त हुए। उन्होंने कहा कि नजफगढ़ स्थित छावला बीएसएफ कैंप के पास की सवा दो एकड़ जमीन पर तीन बार पेड़ लगाया। जो हर बार सूख जाते थे। इसके बाद उन्होंने पूसा व उजवा कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों से सलाह ली। वैज्ञानिकों ने बताया कि उक्त जमीन का भूमिगत जल खारा है। समस्या से निबटने के लिए फार्म में बारिश का पानी एकत्र करने के लिए जल संचय टैंक बनाया। जो 11 फुट गहरा, 22 फुट लंबा व 16 फुट चौड़ा है। साथ ही बारिश का पानी बर्बाद न हो इसके लिए भूजल रिचार्ज टैंक भी लगाया। इस जल से सिंचाई कर पौधे लगाए तो वे फलों से लद गए। जिसमें जोधपुरी बेर की तीन किस्में उमरान, गेला व सेब प्रमुख हैं। आम का पेड़ भी लगाया है। उनका सफर इतने पर ही नहीं रुका फिलहाल वे बॉटनिकल गार्डन भी बनवा रहे हैं।
Thursday, February 5, 2009
उमा देवी
प्रस्तुति - दैनिक भास्कर
राष्ट्रीय बिलियर्डस चैंपियन उमा देवी के परिवार को अब उनकी उपलब्धियों पर नाज है। करीब एक दशक पहले तक ऐसा नहीं था। उमा के मध्यमवर्गीय परिवार में बिलियर्डस को महिलाओं का खेल नहीं माना जाता था। पिछले साल इंदौर में आयोजित राष्ट्रीय बिलियर्डस चैंपियनशिप का खिताब जीत चुकीं उमा ने एक के बाद एक कई खिताब अपने नाम कर समाज की दकियानूसी मान्यताओं को गलत साबित कर दिया है।
43 वर्षीय उमा ने बताया, ‘शुरुआत में मेरे परिवारजन इस खेल में भाग लेने के खिलाफ थे। उन्हें लगता था कि इसे क्लबों में अमीर लोग शराब पीने के बाद टाइमपास के लिए खेलते हैं।’
1995 से अपना कैरियर शुरू करने वाली उमा ने जब लगातार खिताब जीतने शुरू किए तो परिवार की यह धारणा बदल गई। उमा ने बिलियर्डस और स्नूकर के अब तक 10 राज्यस्तरीय खिताब जीते हैं। वे कहती हैं के उन्हें उनके पति ने हर कदम पर समर्थन किया। उमा को विभिन्न प्रतियोगिताओं के दौरान उनके विभाग से भी काफी समर्थन मिलता है।
उमा ने कहा कि इस खेल में कदम रखने के बाद से उन्हें लगातार कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है। उन्हें न तो पर्याप्त आर्थिक मदद मिली और न ही मीडिया ने उनकी उपलब्धियों को ठीक से पेश किया। उमा देवी ने 2002 के बाद चार बार एकलव्य अवार्ड के लिए अपना नामांकन भेजा, लेकिन सरकार को उनकी उपलब्धियां नजर नहीं र्आई।
उमा कहती हैं कि उन्होंने अब सरकार से किसी भी तरह की मदद की उम्मीद छोड़ दी है। उन्होंने कहा, ‘बिलियर्डस के प्रति समर्पण ने ही मुझे खेलते रहने को प्रेरित किया है। मैं तब तक इसे खेलती रहूंगी, जब तक मेरे लिए इसका आकर्षण खत्म नहीं हो जाता।’
संक्षिप्त प्रोफाइल
2002 : ब्रिटेन में स्नूकर चैंपियनशिप में भाग लिया, 2003 : चीन में आयोजित विश्व स्नूकर चैंपियनशिप में प्रतिभागिता, 2004 : नीदरलैंड में महिला स्नूकर चैंपियनशिप में भाग लिया, 2008 : भारत की राष्ट्रीय बिलियर्डस चैंपियन
43 वर्षीय उमा ने बताया, ‘शुरुआत में मेरे परिवारजन इस खेल में भाग लेने के खिलाफ थे। उन्हें लगता था कि इसे क्लबों में अमीर लोग शराब पीने के बाद टाइमपास के लिए खेलते हैं।’
1995 से अपना कैरियर शुरू करने वाली उमा ने जब लगातार खिताब जीतने शुरू किए तो परिवार की यह धारणा बदल गई। उमा ने बिलियर्डस और स्नूकर के अब तक 10 राज्यस्तरीय खिताब जीते हैं। वे कहती हैं के उन्हें उनके पति ने हर कदम पर समर्थन किया। उमा को विभिन्न प्रतियोगिताओं के दौरान उनके विभाग से भी काफी समर्थन मिलता है।
उमा ने कहा कि इस खेल में कदम रखने के बाद से उन्हें लगातार कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है। उन्हें न तो पर्याप्त आर्थिक मदद मिली और न ही मीडिया ने उनकी उपलब्धियों को ठीक से पेश किया। उमा देवी ने 2002 के बाद चार बार एकलव्य अवार्ड के लिए अपना नामांकन भेजा, लेकिन सरकार को उनकी उपलब्धियां नजर नहीं र्आई।
उमा कहती हैं कि उन्होंने अब सरकार से किसी भी तरह की मदद की उम्मीद छोड़ दी है। उन्होंने कहा, ‘बिलियर्डस के प्रति समर्पण ने ही मुझे खेलते रहने को प्रेरित किया है। मैं तब तक इसे खेलती रहूंगी, जब तक मेरे लिए इसका आकर्षण खत्म नहीं हो जाता।’
संक्षिप्त प्रोफाइल
2002 : ब्रिटेन में स्नूकर चैंपियनशिप में भाग लिया, 2003 : चीन में आयोजित विश्व स्नूकर चैंपियनशिप में प्रतिभागिता, 2004 : नीदरलैंड में महिला स्नूकर चैंपियनशिप में भाग लिया, 2008 : भारत की राष्ट्रीय बिलियर्डस चैंपियन
Monday, February 2, 2009
तीन शराबी
प्रस्तुति - संदीप फरीदाबाद
तीन शराबी एक शराबखाने में बैठे पी रहे थे। उनमें से 2 इस बात पर शेखियां बघार रहे थे कि कौन अपनी बीबी पर कितना रौब जमाता है।
तीसरा चुपचाप बैठा उनकी बातें सुन रहा था।
कुछ देर बाद उन दोनों ने तीसरे से पूछा : यार , तू भी तो कुछ बता ? कहीं तू अपनी बीबी से डरता तो नहीं ?
तीसरे आदमी ने कहा : अरे , कैसी बात करते हो ? मेरा अपनी बीबी पर पूरा कंट्रोल है। अभी कल ही की तो बात है , मेरी बीबी मेरे सामने घुटनों के बल चल कर आई .... ।
उन दोनों की की आंखे फैल गईं : वाह क्या बात है !
ये हुई न मर्दों वाली बात ! फिर क्या हुआ ?
तीसरा आदमी : फिर वह मुझसे बोली , अब बिस्तर के नीचे से बाहर निकलो और मर्द की तरह मुझसे लड़ो।
तीन शराबी एक शराबखाने में बैठे पी रहे थे। उनमें से 2 इस बात पर शेखियां बघार रहे थे कि कौन अपनी बीबी पर कितना रौब जमाता है।
तीसरा चुपचाप बैठा उनकी बातें सुन रहा था।
कुछ देर बाद उन दोनों ने तीसरे से पूछा : यार , तू भी तो कुछ बता ? कहीं तू अपनी बीबी से डरता तो नहीं ?
तीसरे आदमी ने कहा : अरे , कैसी बात करते हो ? मेरा अपनी बीबी पर पूरा कंट्रोल है। अभी कल ही की तो बात है , मेरी बीबी मेरे सामने घुटनों के बल चल कर आई .... ।
उन दोनों की की आंखे फैल गईं : वाह क्या बात है !
ये हुई न मर्दों वाली बात ! फिर क्या हुआ ?
तीसरा आदमी : फिर वह मुझसे बोली , अब बिस्तर के नीचे से बाहर निकलो और मर्द की तरह मुझसे लड़ो।
Sunday, February 1, 2009
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