प्रस्तुति - दैनिक भास्कर
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भारत में ज्यादातर महिलाओं की जिंदगी घर और बच्चों को संभालने में निकल जाती है। उन्हें कुछ अलग करने के बारे में सोचने का वक्त ही नहीं मिलता है। लेकिन, अगर आंखों में ख्वाब और उसे हकीकत में बदलने का जज्बा हो तो कामयाबी का रास्ता निकल ही जाता है। फरीदाबाद की शालिनी भाटिया इसकी मिसाल हैं।
उधार के 10,000 रुपये से बिजनेस शुरू करने वाली शालिनी का कारोबार आज बुलंदी पर है। उनकी कंपनी न्यू टेक ईको क्लीन का कारोबार 2 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। वह कंपनी की सीईओ हैं। यह मैकेनाइज्ड क्लीनिंग और हाउस कीपिंग सेवाएं देती है। इस कंपनी में 800 लोग काम करते हैं। राजीव कुमार ने शालिनी के कामयाबी के सफर और भविष्य की योजनाओं को जानने के लिए उनसे बातचीत की।
बिजनेस शुरू करने का ख्याल कैसे आया?
मैंने कभी इसके बारे में सोचा नहीं था। दिल्ली यूनिवर्सिटी से बीएससी करने के बाद शादी हो गई। मेरे लिए शादी का मतलब घर संभालाना और बच्चों की देखभाल करना था। मेरे पिताजी डॉक्टर थे और दोनों भाई भी डॉक्टर हैं। शुरू में बच्चों की देखभाल में उलझी रही। बच्चे बड़े होने पर लगा कि मुझे भी कुछ करना चाहिए।
मैंने कभी इसके बारे में सोचा नहीं था। दिल्ली यूनिवर्सिटी से बीएससी करने के बाद शादी हो गई। मेरे लिए शादी का मतलब घर संभालाना और बच्चों की देखभाल करना था। मेरे पिताजी डॉक्टर थे और दोनों भाई भी डॉक्टर हैं। शुरू में बच्चों की देखभाल में उलझी रही। बच्चे बड़े होने पर लगा कि मुझे भी कुछ करना चाहिए।
पति काफी व्यस्त रहते थे। वह पावर प्लांट और दूसरी बड़ी इंडस्ट्री के प्लांट के लिए क्लीनिकल सर्विसेज देते थे। यह 1996 की बात है। उन्होंने मुझे शिमला के एक प्रोजेक्ट के बारे में बताया। वहां एक होटल में कार्पेट की सफाई करनी थी। मैंने इस काम को करने के लिए हामी भर दी। यहीं से मेरे कारोबारी सफर की शुरुआत हुई।
महिला होने के नाते कभी कोई दिक्कत आई?
मुझे कभी नहीं लगा कि मैं पुरुष से किसी भी मामले में कमजोर हूं। मेरे परिवार के लोग मुझसे कहते थे कि आम्र्स का लाइसेंस ले लो क्योंकि तुम्हें अकेले साइट्स पर जाना पड़ता है। लेकिन मेरे मन में कभी असुरक्षा की भावना नहीं आई। अपने अनुभव से सीखती गई। कड़ी मेहनत का अच्छा फल मिला।
मुझे कभी नहीं लगा कि मैं पुरुष से किसी भी मामले में कमजोर हूं। मेरे परिवार के लोग मुझसे कहते थे कि आम्र्स का लाइसेंस ले लो क्योंकि तुम्हें अकेले साइट्स पर जाना पड़ता है। लेकिन मेरे मन में कभी असुरक्षा की भावना नहीं आई। अपने अनुभव से सीखती गई। कड़ी मेहनत का अच्छा फल मिला।
अपने पहले कारोबारी अनुभव के बारे में बताइएं।
अपने ससुर से 10,000 रुपये उधार लिए। काम में मदद के लिए दो लड़कों को लिया और शिमला पहुंच गई। कार्पेट की सफाई के लिए मशीन मैंने हिन्दुस्तान लीवर से किस्त पर ली। मेरा काम क्लाइंट को पसंद आया। उसके बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
अपने ससुर से 10,000 रुपये उधार लिए। काम में मदद के लिए दो लड़कों को लिया और शिमला पहुंच गई। कार्पेट की सफाई के लिए मशीन मैंने हिन्दुस्तान लीवर से किस्त पर ली। मेरा काम क्लाइंट को पसंद आया। उसके बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
बिजनेस में टर्निंग प्वाइंट कब आया?
साल 2000 तक दिल्ली में लोग मेरे बिजनेस के बारे में जानने लगे थे। दिल्ली के कई होटलों की सफाई का काम मेरी कंपनी के पास था। 2001 में पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति मुशर्रफ का आगरा समिट मेरे बिजनेस के लिए टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ। तब तक मेरी कंपनी से 80-90 कर्मचारी जुड़ चुके थे। आगरा में होटल जेपी पैलेस के अफसरों ने मुझसे मुलाकात की और कहा कि अगर आप होटल चमका दें तो समिट आयोजित करने का मौका मिल सकता है।
साल 2000 तक दिल्ली में लोग मेरे बिजनेस के बारे में जानने लगे थे। दिल्ली के कई होटलों की सफाई का काम मेरी कंपनी के पास था। 2001 में पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति मुशर्रफ का आगरा समिट मेरे बिजनेस के लिए टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ। तब तक मेरी कंपनी से 80-90 कर्मचारी जुड़ चुके थे। आगरा में होटल जेपी पैलेस के अफसरों ने मुझसे मुलाकात की और कहा कि अगर आप होटल चमका दें तो समिट आयोजित करने का मौका मिल सकता है।
कई होटल इस दौड़ में थे। इस काम के लिए मुझे 15 दिनों का समय दिया गया। मैं इस चैलेंज को स्वीकार करते हुए 60 लड़कों की टीम लेकर आगरा पहुंच गई। हमने 15 दिन की जगह 8 दिन में ही काम खत्म कर लिया। इससे मेरी काफी अच्छी ब्रांडिंग हो गई। दिल्ली के कई बड़े होटल, मॉल, फार्म हाउस मेरे क्लाइंट्स हैं।
एक सफल महिला कारोबारी होने के नाते क्या आप महिलाओं की मदद के लिए कुछ कर रही हैं ?
हां, मैंने डस्ट-बस्टर नाम से फ्रेंचाइजी देना शुरू किया है। महिलाओं को फ्रेंचाइजी देने के साथ उन्हें वित्तीय सहायता भी दी जाती है। हम काम दिलाने में भी उनकी मदद करते हैं। यह ऐसा बिजनेस मॉडल है, जिससे हमारी कंपनी के साथ फ्रेंचाइजी लेने वालों को भी फायदा होता है। 5 लाख से यह काम शुरू किया जा सकता है। अधिकतम तीन महीने में ब्रेक ईवन हो जाता है। अब तक 26 फ्रेंचाइजी दे चुकी हूं।
हां, मैंने डस्ट-बस्टर नाम से फ्रेंचाइजी देना शुरू किया है। महिलाओं को फ्रेंचाइजी देने के साथ उन्हें वित्तीय सहायता भी दी जाती है। हम काम दिलाने में भी उनकी मदद करते हैं। यह ऐसा बिजनेस मॉडल है, जिससे हमारी कंपनी के साथ फ्रेंचाइजी लेने वालों को भी फायदा होता है। 5 लाख से यह काम शुरू किया जा सकता है। अधिकतम तीन महीने में ब्रेक ईवन हो जाता है। अब तक 26 फ्रेंचाइजी दे चुकी हूं।
परिवार और बच्चों को संभालते हुए यह कैसे कर पाईं ?
शुरू में काम को लेकर जबर्दस्त जज्बा था। मैं बच्चों और बिजनेस दोनों को संभालती थी। ड्राइवर का खर्चा बचाने के लिए खुद गाड़ी ड्राइव करती थी। देर रात तक साइट्स पर रहना पड़ता था। इसके बावजूद सुबह वक्त पर बच्चों को स्कूल भेजती थी। कारोबार बढऩे पर दिक्कत होने लगी। तीन साल के लिए मैंने दोनों बच्चों को बोर्डिंग में डाल दिया। हालांकि, मैंने उनकी पढ़ाई-लिखाई से कभी समझौता नहीं किया।
शालिनी का सफर
एक समय सिर्फ घर संभालने वाली शालिनी भाटिया का बिजनेस ऊंचाइयों को छू रहा है और उनकी मेहनत रंग ला रही है...
क्लीनिंग का कमाल
1996 में हुई थी न्यू टेक ईको क्लीन की स्थापना
10000 रुपये के उधार के पैसे से शुरू किया कारोबार
800 लोग करते हैं इस समय कंपनी में काम
एक समय सिर्फ घर संभालने वाली शालिनी भाटिया का बिजनेस ऊंचाइयों को छू रहा है और उनकी मेहनत रंग ला रही है...
क्लीनिंग का कमाल
1996 में हुई थी न्यू टेक ईको क्लीन की स्थापना
10000 रुपये के उधार के पैसे से शुरू किया कारोबार
800 लोग करते हैं इस समय कंपनी में काम
: टर्निंग प्वाइंट
साल 2001 में पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति मुशर्रफ का आगरा समिट मेरे बिजनेस के लिए टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ।
साल 2001 में पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति मुशर्रफ का आगरा समिट मेरे बिजनेस के लिए टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ।
: औरों की मदद
मैंने डस्ट-बस्टर नाम से फ्रेंचाइजी देना शुरू किया है। महिलाओं को फ्रेंचाइजी देने के साथ वित्तीय सहायता दी जाती है। हम काम दिलाने में भी उनकी मदद करते हैं।
: मुझमें है दम
कभी नहीं लगा कि मैं पुरुष से किसी मामले में कमजोर हूं। घरवाले कहते थे कि आम्र्स का लाइसेंस ले लो, तुम्हें अकेले साइट्स पर जाना पड़ता है। लेकिन मेरे मन में कभी असुरक्षा की भावना नहीं आई।
: यूं हुई शुरुआत
मेरे पति पावर प्लांट के लिए क्लीनिकल सर्विसेज देते थे। उन्होंने मुझे शिमला के एक प्रोजेक्ट के बारे में बताया। वहां एक होटल में कार्पेट की सफाई करनी थी। यहीं से मेरे कारोबारी सफर की शुरुआत हुई।
मैंने डस्ट-बस्टर नाम से फ्रेंचाइजी देना शुरू किया है। महिलाओं को फ्रेंचाइजी देने के साथ वित्तीय सहायता दी जाती है। हम काम दिलाने में भी उनकी मदद करते हैं।
: मुझमें है दम
कभी नहीं लगा कि मैं पुरुष से किसी मामले में कमजोर हूं। घरवाले कहते थे कि आम्र्स का लाइसेंस ले लो, तुम्हें अकेले साइट्स पर जाना पड़ता है। लेकिन मेरे मन में कभी असुरक्षा की भावना नहीं आई।
: यूं हुई शुरुआत
मेरे पति पावर प्लांट के लिए क्लीनिकल सर्विसेज देते थे। उन्होंने मुझे शिमला के एक प्रोजेक्ट के बारे में बताया। वहां एक होटल में कार्पेट की सफाई करनी थी। यहीं से मेरे कारोबारी सफर की शुरुआत हुई।