सन् 1990 तक वे बाल काटने के पांच रुपए लेते थे और आज उनके पास 154 कारों का बेड़ा है,जिसमें 3 करोड़ 18 लाख रुपए की रोल्स रॉयस घोस्ट भी शामिल है। बेंगलुरु के रमेश बाबू अब भी रोजाना पांच घंटे अपने सैलून में बिताते हैं। हालाकि रोल्स रॉयस की खातिर लिए गए लोन के बदले हर माह 7 लाख रु. की किस्त चुकाने में उन्हें कोई दिक्कत नहीं होती।
ब्रिगेड रोड स्थित बोवरिंग इंस्टीट्यूट में सैलून चलाने वाले रमेश की ट्रैवल एजेंसी भी है,जिसके कस्टमर्स में फिल्म सितारे और कापरेरेट जगत की बड़ी हस्तियां भी शामिल हैं। रोल्स रॉयस के लिए वे एक दिन के किराए के रूप में 75 हजार रु.लेते हैं।
पिछले 25 साल से बाल काटने का अपना पुश्तैनी व्यवसाय कर रहे रमेश ने 1994 में निजी इस्तेमाल के लिए मारुति ओमनी खरीदी थी, पर बाद में उसे किराए पर देना शुरू कर दिया। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
उनकी कारों का काफिला बढ़ता ही गया,जिसमें अब मर्सिडीज, बीएमडब्ल्यू के कई मॉडल और वोल्क्सवैगन जैसी महंगी कारें भी हैं। वे अगले साल करीब नौ करोड़ कीमत वाली लिमोजिन खरीदने की योजना बना रहे हैं।
इस करिश्माई सफलता के बावजूद रमेश बाबू ने विनम्रता का दामन नहीं छोड़ा है। पॉश इलाके में सैलून और सितारा ग्राहकों के बावजूद उन्होंने हेयरकट के रेट अनाप-शनाप नहीं बढ़ाए। वे कहते हैं कि जब तक हाथ चलेंगे, वे काम करते रहेंगे। रमेश जब नौ साल के थे,तब उनके पिता की मृत्यु हो गई थी। उन्होंने जो भी हासिल किया,अपने दम पर। रमेश की कामयाबी ने कन्नड़ फिल्मों के निर्माता-निर्देशक सुरेश रेड्डी को भी आकर्षित किया है।
एस. गोपालकृष्णन
बिजनेसमैन उम्र : 56 वर्ष पढ़ाई : फिजिक्स में एमएससी और आईआईटी, चैन्नई से कंप्यूटर में डिग्री हासिल की हुनर : ईमानदारी और लगन से काम करने की प्रवृति आमदनी : 47 लाख रूपए सालाना वेतन पाते हैं
जीनियस कारोबारी एस.गोपालकृष्णन मन से भी बड़े उदार हैं। उन्होंने आईआईएम,चैन्नई को,जहां से अपनी अंतिम पढ़ाई पूरी की,बतौर दान एक बड़ी धन राशि दी।
एस.गोपालकृष्णन (क्रिस) के दादाजी टीचर थे। पिता शुरू में स्कूल क्लर्क थे,लेकिन अपने पिता के हालात देख उन्होंने नौकरी छोड़,प्लंबिंग का काम शुरू किया,जो आजीवन उनका मुख्य व्यवसाय रहा। यह काम मामूली था, पर उसने क्रिस को व्यवसाय जगत में जाने की दिशा दी। उनके मन में उद्यमी बनने की रुचि बचपन से पैदा हो गई थी, इसलिए दशकों बाद उन्होंने एनआर नारायण मूर्ति के साथ इन्फोसिस की शुरुआत की, तो उन्हें रोजगार-सुरक्षा के बारे में चिंतन की जरूरत नहीं पड़ी।
सन् 1956 में तिरुअनंतपुरम में जन्मे और पले-बढ़े क्रिस ने साइंस विषय लेकर पढ़ाई शुरू की। वे बताते हैं ‘उनके माता-पिता ने पढ़ाई के प्रति उन्हें कभी न प्रोत्साहित किया और न हतोत्साहित। हां,वे यह जरूर चाहते थे कि मैं डॉक्टर बनूं।’
क्रिस सरकारी स्कूल में पढ़े। उन्होंने मेडिकल प्रवेश परीक्षा दी, पर सीट पाने में दो नंबर कम रहे । इसके बाद आईआईएम, चैन्नई में दाखिला लिया। यहां उन्हें डर था कि अंग्रेजी कमजोर होने के कारण वे पास हो पाएंगे या नहीं। तब उन्होंने स्वप्न में भी नहीं सोचा होगा कि एक दिन वे आईआईएम के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स में होंगे। 1977 में उन्होंने एमएससी किया व 1971 में कंप्यूटर साइंस में डिग्री ली।
1981 में एनआर नारायणमूर्ति एवं अन्य पांच लोगों के साथ मिलकर, क्रिस ने ‘इन्फोसिस टेक्नोलॉजी लिमिटेड’ की स्थापना की। शुरुआत में उनकी जिम्मेदारी डिजाइन,डेवलपमेंट,इंप्लीमेंटेशन प्रबंधन के साथ कंज्यूमर प्रोडक्ट इंडस्ट्री में ग्राहकों को दी जाने वाली सूचना व्यवस्था में मदद करना था। 1987-1994 में वे अटलांटा, अमेरिका में इन्फोसिस और केएसए के संयुक्त उपक्रम में वाइस प्रेसीडेंट रहे।
1984 में वापस आए और डीएमडी बने। 2007 में एनआर नारायणमूर्ति के रिटायर होने पर,उनकी जगह सीईओ एंड मैनेजिंग डायरेक्टर नियुक्त हुए।
फोब्र्स द्वारा 2010 में उन्हें देश के सबसे धनी लोगों में 43वां और दुनिया में 773वां स्थाना दिया गया। वे दुनिया के 50 काबिल कारोबारी विचारकों में शामिल किए गए। 21 अगस्त, 2011 को रिटायर हुए गोपालकृष्णन अब इन्फोसिस बोर्ड के एक्जीक्यूटिव को-चेयरमैन हैं। इसके अलावा देश-दुनिया की कई संस्थाओं में अहम भूमिकाएं निभा रहे हैं,तो कइयों से बतौर मेंबर जुड़े हैं। जनवरी,2011 को उन्हें देश के तीसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्मभूषण से नावाजा गया।
1 comment:
दोनों ही व्यक्तित्व प्रेरक हैं। धन्यवाद!
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