Thursday, June 18, 2009

युवाओं ने दी मंदी को मात


प्रस्तुति - दैनिक भास्कर
इंदौर. दुनियाभर में मंदी का माहौल है। कुछ क्षेत्रों में स्टूडेंट्स को नए जॉब नहीं मिल पा रहे हैं। कई जगह कर्मचारियों की संख्या कम की गई है तो कुछ स्थानों पर सैलेरी कम कर दी गई है। ऐसी परिस्थिति में शहर के युवाओं ने काबिलियत के बल पर कामयाबी की नई इबारत लिखी है। इनके जुनून के आगे मंदी भी हार गई।
मंदी की वजह से आईटी सहित कुछ क्षेत्रों में जॉब हासिल करने में अभी भी थोड़ी परेशानी आ रही है। देश में हालत तेजी से सुधर रहे हैं लेकिन आउट सोर्सिग में कमी आने से परेशानी पूरी तरह खत्म नहीं हुई है। हालांकि शहर के युवा इससे हताश नहीं हुए बल्कि मेहनत के बूते अपनी तकदीर खुद लिखने का फैसला किया, जिसमें ज्यादातर सफल रहे।
शौक को बनाया सफलता का जरिया- एमबीए पूरा हो चुका था। पढाई के बाद कई इंस्टिट्यूट में जॉब के लिए ट्राय किया लेकिन बात नहीं बनी। मैंने घर के बिजनेस और अपने शौक को डेवलप किया। पढ़ाने का शौक था इसलिए एक इंस्टिट्यूट में पीडी व मैनेजमेंट की क्लास लेने लगा।
फार्मा कम्पनी से जुड़े रोहित सृजन कहते हैं मार्केटिंग का नॉलेज था इसलिए खुद की फर्म में प्रोडक्शन से मार्केटिंग तक का सारा काम किया। एक रिटेल आउटलेट में भी काम कर रहा हूं। अब मैं सुबह 5 से रात 10 बजे तक फ्री नहीं रह पाता। इंदौर में फार्मा का मार्केटिंग ऑफिस खोला है, जहां से हम मुंबई, दिल्ली, राजस्थान आदि जगहों पर वैल्यू पैड पार्सल के जरिये सप्लाय कर रहे हैं।
दोगुना सैलेरी में जॉब मिला- कॉलेज के साथ ही मेरा जॉब एक प्राइवेट बैंक में लग गया था मुझे मार्केटिंग पसंद थी इसलिए मैने भी पढ़ाई के साथ नौकरी पसंद की। कनाडिया रोड निवासी अनिल पांडे बताते हैं मेरे पास एमफिल की डिग्री है। मंदी के दौर में बैंक भी घाटे में जाने लगी मेरे साथ जितने लोगों की भर्ती हुई थी, सभी की एक साथ नौकरी छीन गई। कुछ दिनों तक बुरा लगा लेकिन इस फैसले के पीछे मेरी तरक्की ही छिपी थी। नौकरी जाने के दो महीने में ही एक कॉलेज में लेक्चरार का जॉब दोगुना सैलेरी में मिल गया। अब मैं स्टूडेंट्स को भी यही सीख देता हूं कि मंदी को तरक्की में बाधक न बनने दें।
काबिलियत के दम पर मिली मंजिल - पढ़ाई के साथ मैं जॉब भी करना चाहता था। दो साल आईटी कंपनी में बतौर ट्रेनी काम किया। मन नहीं लगा तो जॉब छोड़ दिया। कॉलेज में क्लेरिकल जॉब की। रिसेशन के दौर में कुछ क्रिएटिव करना था। कम्प्यूटर का टेक्निकल नॉलेज था इसलिए खुद की फर्म खोल ली। मनीष मित्तल कहते हैं मैंने हार नहीं मानी और पूरे जोश के साथ काम करना शुरूकिया। कम समय में ही अच्छा मुकाम हासिल कर लिया है। मेरी फर्म सफलतापूर्वक चल रही है।
खुद की राह तलाशें- अमित लोनावत कहते हैं एमबीए के बाद दोस्तों के साथ कुछ क्रिएटिव करने का सोचा। नौकरी में बेस्ट परफॉर्म करने के बाद भी टिक पाना मुश्किल है जबकि मंदी का बिजनेस पर कोई असर नहीं पड़ता। मेरे कुछ दोस्त जो नौकरी कर रहे थे उनके जॉब चले गए। इसके बाद निर्णय लिया कि खुद का बिजनेस करना अच्छा है। किसी कम्पनी को फायदा पहुंचाने से अच्छा है कि अपनी क्षमताओं का उपयोग करूं। मेरे इस निर्णय के कारण आज मैं फार्मा कम्पनी में डिस्ट्रीब्यूटर हूं। मेरा मानना है कि युवाओं को खुद कोई राह निकालना चाहिए। कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो मंजिल जरुर मिलती है।

1 comment:

राज भाटिय़ा said...

बिलकुल सही कहा आप ने कुछ करने का जज्बा हो तो ....
धन्यवाद.
मुझे शिकायत है
पराया देश
छोटी छोटी बातें
नन्हे मुन्हे