छत्तीसगढ़ में स्थित उनके गांव कुरुद की उस समय आबादी दो-तीन हजार की रही होगी। 1989 में 20 साल की उम्र में उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए जब उन्होंने गांव छोड़ा, तब उसकी आबादी दस हजार थी। मूल रूप से हिंदी भाषी केला ने 11 साल की उम्र से अंग्रेजी सीखना शुरू किया। 1987 में उन्होंने बी.कॉम किया और मुंबई पहुंचे। तब उन्हें कुछ पता नहीं था कि फाइनेंस और इन्वेस्टमेंट क्या होता है?
हिंदी मीडियम से पढ़ाई करने वाले केला ने ऊंची ख्वाहिश के साथ मैनेजमेंट स्कूल में प्रवेश के लिए आवेदन दिया। अंग्रेजी कमजोर होने के कारण उन्हें ग्रुप डिस्कशन और इंटरव्यू वगैरह में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, लेकिन आखिरकार वे‘सोमैया इंस्टिट्यूट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज’ की एडमिशन कमेटी को यह समझाने में कामयाब हो गए कि वे इंस्टिटच्यूट के एकेडमिक स्टैंडर्ड को मेंटेन करने की योग्यता रखते हैं। 1991 में ‘मास्टर ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज’ डिग्री पूरी की। उसके बाद वे सिफ्को से जुड़े, जहां दो साल इक्विटी पर शोध किया। 1994 में ‘मोतीलाल ओसवाल’ से जुड़े। यहां दो साल काम करने के बाद, 1996 में स्विस इन्वेस्टमेंट बैंक ‘यूबीएस’ ज्वाइन किया, जहां डीलिंग टीम में शामिल रहे।
वे ऐसे क्षेत्र में जाना चाहते थे, जहां कोई सीमा नहीं हो। इसके लिए उन्हें स्टॉक मार्केट उपयुक्त लगा। अपने दृढ़ संकल्प, धैर्य एवं बाजार में कुछ अर्थपूर्ण करने के जुनून के साथ, वे रिलायंस कंपनी के इक्विटी हेड बनने में कामयाब हुए। 2001 में उन्हें रिलायंस में मनपसंद काम का मौका मिला और अपने कार्यकाल में उन्होंने रिलायंस म्यूच्युअल फंड के इक्विटी संग्रह को बारह करोड़ से 2011 में करीब एक लाख करोड़ पर पहुंचाकर अपना चमत्कारिक कौशल दिखा दिया। हाल ही में लंदन में, जहां के लिए वे अपरिचित ही हैं, उन्हें भारत का 75वां प्रभावशाली व्यक्ति चुना गया।
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