This blog is designed to motivate people, raise community issues and help them. लोगों को उत्साहित करना, समाज की ज़रुरतों एवं सहायता के लिए प्रतिबद्ध
Tuesday, March 30, 2010
Friday, March 12, 2010
हीराबाई इब्राहीम लोबी
प्रस्तुति - आईबीएन18
ऐसे लोगों की कमी नहीं जो अपने समाज के सच्चे नायक हैं। अपनी और किसी ख़ासियत की वजह से नहीं बल्कि अपने काम की बदौलत वो बन गए रियल हीरोज़। अपने काम से हीराबाई ने जो कर दिखाया वो किसी भी मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट में केस स्टडी बन सकती है।
दरअसल गुजरात के जूनागढ़ की हीराबाई इब्राहीम लोबी ने एक दिन जैविक खाद के बारे में रेडियो पर सुना था। जमीन से जुड़ी इस महिला ने समझ लिया की ये इलाके की तरक्की का एक अहम जरिया हो सकता है। हीराबाई को जरूरत थी तो बस बैंक से लोन की। जल्द ही उन्होंने इलाके की महिलाओं के साथ एक कॉपरेटिव की शुरुआत की और इसका नाम रखा महिला विकास मंडल। इस पहल के नतीजे भी जल्द ही सामने आ गया। जैसे कि महिलाओं का तैयार किया गया जैविक खाद का खास ब्रांड और ग्रमीण महिलाओं का उद्योग स्थापित करने का कामयाब मॉडल।
इसका फायदा कई लोगों को हुआ। अज़राबेन अब्दुल जंगल से लकड़ी इकट्ठी कर बेचने का काम करती थी। वन विभाग के गार्ड अकसर उन्हें खदेड़ दिया करते थे और वो दिन भर में बामुश्किल 15-20 रुपए कमाया करती थी। आज उनकी आमदनी कई गुना बढ़ गई है।
आत्मनिर्भरता तो बस शुरुआत थी हीराबाई ने सिद्दी समुदाय की लगभग 600 महिलाओं की जिंदगी बदल दी। सिद्दी समुदाय में लगभग 50,000 लोग है जो जूनागढ़ के 20 गांवों में बसे हैं। इस समुदाय के लोग गरीब और अशिक्षित तो हैं ही बड़ी तादात में नशे की लत का भी शिकार हैं। हीराबाई को पता था की पढ़ाई लिखाई इस समुदाय में भारी बदलाव ला सकती है। उन्होंने छोटे बच्चों का एक स्कूल शुरू किया गया। इसमें कम्पोस्ट फार्म में काम करने वाली महिलाओं के बच्चों को लिया गया और इसका पूरा खर्च कॉपरेटिव ने उठाना शुरू किया। लेकिन हीराबाई को पता है ये अभी एक छोटा सा कदम ही है।
हीराबाई के शुरू किये गए अभियान की बदौलत अब जैविक खाद के फार्म मे काम करने वाली ज्यादातर महिलाओं के स्थानीय बैंक में बचत खाते हैं और वो समझती हैं कि छोटे-छोटे व्यवसाय और उद्योगों से वो जिंदगी मे बदलाव ला सकती हैं। अब वो अपने लिये बड़ी योजनाए बना रही हैं। हीराबाई ने फैसला किया है जब तक वो अपने गांव में कंप्यूटर क्लास, एक हाई स्कूल और एक कॉलेज ने देख लें चैन से नहीं बैठेगी।
ऐसे लोगों की कमी नहीं जो अपने समाज के सच्चे नायक हैं। अपनी और किसी ख़ासियत की वजह से नहीं बल्कि अपने काम की बदौलत वो बन गए रियल हीरोज़। अपने काम से हीराबाई ने जो कर दिखाया वो किसी भी मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट में केस स्टडी बन सकती है।
दरअसल गुजरात के जूनागढ़ की हीराबाई इब्राहीम लोबी ने एक दिन जैविक खाद के बारे में रेडियो पर सुना था। जमीन से जुड़ी इस महिला ने समझ लिया की ये इलाके की तरक्की का एक अहम जरिया हो सकता है। हीराबाई को जरूरत थी तो बस बैंक से लोन की। जल्द ही उन्होंने इलाके की महिलाओं के साथ एक कॉपरेटिव की शुरुआत की और इसका नाम रखा महिला विकास मंडल। इस पहल के नतीजे भी जल्द ही सामने आ गया। जैसे कि महिलाओं का तैयार किया गया जैविक खाद का खास ब्रांड और ग्रमीण महिलाओं का उद्योग स्थापित करने का कामयाब मॉडल।
इसका फायदा कई लोगों को हुआ। अज़राबेन अब्दुल जंगल से लकड़ी इकट्ठी कर बेचने का काम करती थी। वन विभाग के गार्ड अकसर उन्हें खदेड़ दिया करते थे और वो दिन भर में बामुश्किल 15-20 रुपए कमाया करती थी। आज उनकी आमदनी कई गुना बढ़ गई है।
आत्मनिर्भरता तो बस शुरुआत थी हीराबाई ने सिद्दी समुदाय की लगभग 600 महिलाओं की जिंदगी बदल दी। सिद्दी समुदाय में लगभग 50,000 लोग है जो जूनागढ़ के 20 गांवों में बसे हैं। इस समुदाय के लोग गरीब और अशिक्षित तो हैं ही बड़ी तादात में नशे की लत का भी शिकार हैं। हीराबाई को पता था की पढ़ाई लिखाई इस समुदाय में भारी बदलाव ला सकती है। उन्होंने छोटे बच्चों का एक स्कूल शुरू किया गया। इसमें कम्पोस्ट फार्म में काम करने वाली महिलाओं के बच्चों को लिया गया और इसका पूरा खर्च कॉपरेटिव ने उठाना शुरू किया। लेकिन हीराबाई को पता है ये अभी एक छोटा सा कदम ही है।
हीराबाई के शुरू किये गए अभियान की बदौलत अब जैविक खाद के फार्म मे काम करने वाली ज्यादातर महिलाओं के स्थानीय बैंक में बचत खाते हैं और वो समझती हैं कि छोटे-छोटे व्यवसाय और उद्योगों से वो जिंदगी मे बदलाव ला सकती हैं। अब वो अपने लिये बड़ी योजनाए बना रही हैं। हीराबाई ने फैसला किया है जब तक वो अपने गांव में कंप्यूटर क्लास, एक हाई स्कूल और एक कॉलेज ने देख लें चैन से नहीं बैठेगी।
Wednesday, March 10, 2010
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