Saturday, October 11, 2014

जेपी ग्रुप के फाउंडर जयप्रकाश गौर

प्रस्तुति - दैनिक भास्कर

# Leader
# Creative
# Progressive


घर से निकले 100 रुपए लेकर, अब MP में लगाएंगे 35 हजार करोड़

आज मैं 84 साल का हूं और 40 साल से प्रदेश में काम कर रहा हूं। साल 1950 में मैं रुड़की से सिविल इंजीनियरिंग का कोर्स कर जेब में 100 रुपए लेकर काम करने निकला था। शुरुआत झांसी से की और फिर 1958 में मैं मुरैना आ गया और अपना कंस्ट्रक्शन का काम शुरू किया। जापान से 55 करोड़ का लोन मिला रेल लाइन बिछाने के लिए। साल 1983 में रीवा आया रेल लाइन का काम करने के लिए। 

घर से निकले 100 रुपए लेकर, अब MP में लगाएंगे 35 हजार करोड़
लोगों ने मुझसे कहा- यह मुश्किल काम है। मैंने जीवन में एक ही चीज सीखी कि कोई काम यदि मुश्किल है और कोई न कह रहा हो तो वह जरूर करना चाहिए। मेरे लिए यह शगुन होता है और इससे पॉजीटिव एनर्जी मिलती है। इराक में 1979 में 250 करोड़ का काम निकला, मेरा टेंडर सबसे नीचा था। ग्रुप की बैलेंस शीट कम थी और बैंक से 20 करोड़ की गारंटी लेना थी। बैंक वालों ने मुझे बुलाया और मेरी हाइट और वजन देखकर तैश से देखा.. जब कोई तैश से देखता है तो मुझे अच्छा लगता है। आखिर मेरा काम हुआ। मुझे नहीं पता था कि मैं दुनिया में इतना जी पाऊंगा और इतना काम कर पाऊंगा। प्रदेश की जमीन काफी पवित्र है और मैं यहां 35 हजार करोड़ रुपए निवेश करूंगा।

Sunday, September 28, 2014

बिजनस बिजनस

प्रस्तुति - नवभारत टाइम्स

# Leader
# Creative


रुटीन लाइफ की नौकरी पर निकलते वक्त हमेशा आपको लगता है कि 'कुछ' अपना करता तो ज्यादा अच्छा होता। किसी आस-पड़ोस वाले या दोस्त को बिजनस के दम पर दशकों की दौड़ बरसों में पूरा करते देखने पर लगता है कि 'कुछ' अपना करता तो अच्छा होता। यह 'कुछ' करने का आइडिया आपको रात-दिन सोने नहीं दे रहा तो अब वक्त आ चुका है। आंत्रप्रेन्योरशिप की दुनिया में एंट्री मारने को बेताब लोगों को रोड मैप दे रहे हैं अमित मिश्रा:

स्टेप 1 - वॉट इज योर आइडिया
सर जी यह बात भले ही आप कई बार सुन चुके हों कि एक आइडिया आपकी दुनिया बदल सकता है लेकिन है यह सौ फीसदी सच। आप अपने आसपास नजर दौड़ाइए और देखिए किसी एक इंसान की आइडिए ने ही दुनिया बदल रखी है। वह चाहें आपके किचन में सीटी देने वाला कुकर(इसे 20वीं सदी का सबसे बड़ा अविष्कार माना गया है) हो या भारत समेत दुनिया भर में एक नई सोसाइटी खड़ी कर देने वाला फेसबुक, सभी की शुरुआत एक आइडिए से हुई। बरसों से संजोए अपने आइडिए को परवान चढ़ाने से पहले चंद सवाल खुद से पूछें

-क्या मेरी सर्विस या प्रॉडक्ट की वाकई में किसी को जरूरत है?
-क्या इस जरूरत को पूरा करने के लिए शुरू किए बिजनस से आपको फायदा होगा?
-क्या मेरे आइडिए पर पहले से कंपनियां काम कर रही हैं अगर हां तो आप उनसे कैसे बेहतर या अलग हैं।
-क्या आइडिए को जमीन पर लाना प्रैक्टिकल तरीके से संभव है?
-मेरा आइडिया कितना लीगल है?
-क्या यह सेफ है?
-मेरा आइडिया अच्छा तो है लेकिन क्या इसे लोगों तक पहुंचाना मुमकिन है?
-इसे बनाने और इसकी मार्केटिंग में आने वाला खर्च को जुटाना क्या मुमकिन है?
-बिजनस से मुनाफा मिलने की दर इतनी होगी कि मैं सफलता से अपने आइडिए की जमीन पर जमाए रख सकूं?
-अगर बेसिक आइडिया सफल हो गया तो क्या वक्त के हिसाब से इसके और वर्जन निकालना मुमकिन होगा?
-क्या मैं अपने आइडिया को कॉपीराइट या पेटेंट के जरिए सेफ करने की स्थिति में हैं?
-कहीं मेरे आइडिया किसी दूसरे के पेटेंट या कॉपीराइट का उल्लंघन तो नहीं है?
-क्या इसके लिए कच्चा माल और मैन पावर उपलब्ध है?

अगर आपका आइडिया इन कसौटियों पर खरा नहीं उतरता तो कोई गम नहीं मतलब साफ है इसे और रिफाइन करने का वक्त निकलना पड़ेगा। अगर आइडिया फिट है तो अगला स्टेप एक्सपरिएंस सर्वे का आता है।

स्टेप 2 : क्या है एक्सपीरिएंस सर्वे
इसका मतलब है आपने आइडिए से जुड़े प्रफेशनल्स से मिलना चाहिए और उनकी इनसाइट का फायदा उठाना चाहिए। ये लोग आपके लिए मददगार साबित हो सकते हैं।

इंजीनियर: यह वक्त तकनीक का है और आपके आइडिए से जुड़े इंजीनियर से बेहतर इसके बारे में कोई नहीं बता सकता। उससे बिजनस के तकनीकी पहलू पर राय ले सकते हैं।
सप्लायर: आपके बिजनस आइडिए में कच्चे माल या सर्विसेज में सप्लाई चेन की बड़ी भूमिका है। इसलिए इसकी उपलब्धता और रेट्स की जानकारी लेकर रखना जरूरी है।
एजेंट: कई बार आपके बिजनस आइडिए और उसके कस्टमर के बीच एजेंट की भूमिका अहम होती है। ऐसे में उससे बात करना होगा बेहतर आइडिया।
सरकारी अधिकारी/वकील: इनसे सेफ्टी लाइसेंस, पॉल्यूशन सर्टिफिकेट, लेबलिंग या डिस्क्लेमर से जुड़ी सलाह ले सकते हैं।

इस सबके अलावा आपका आइडिया चाहें जितना भी ओरिजनल क्यों न हो इस बात की गुंजाइश बनी रहती है कि कोई और भी इसे कर रहा हो। इसलिए जितना हो सके रिसर्च कर लें। इसमें इंटरनेट मददगार हो सकता है। मार्केट में कंपिटिशन के बारे में भी रिसर्च जरूरी है। बेहतर होगा कि उनकी प्राइसिंग, मार्केटिंग, डिस्ट्रीब्यूशन और प्रॉफिट के बारे में अच्छी तरह से जान लें। ऐसा करने में इकॉनॉमिक अफेयर से जुड़े न्यूज पोर्टल, अखबार और मैगजीन आपके लिए मददगार साबित हो सकती हैं।

स्टेप 3 : कंपनी रजिस्ट्रेशन
भारत में किसी भी कंपनी को रजिस्टर्ड करने के लिए बाकायदा मिनस्ट्री ऑफ कार्पोरेट अफेयर काम करती है। भारत में कंपनियां दो स्वरूपों, सोल प्रोप्राइटरशिप और प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की तरह रजिस्टर कराया जा सकता है।

- कंपनी लॉ के अनुसार किसी भी रजिस्टर्ड कंपनी के लिए कम से कम 2 पार्टनर और 2 शेयर होल्डर होना जरूरी है।
- शेयर होल्डर्स किसी भी हाल में 50 से ज्यादा नहीं हो सकते।
- किसी भी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में आम पब्लिक शेयर नहीं खरीद सकती है।
- ऑनलाइन रडिस्ट्रेशन के लिए www.mca.gov.in/MCA21/RegisterNewComp.html पर जा सकते हैं।
- सोल प्रोप्राइटरशिप बिजनस करने के लिए किसी कंपनी लॉ के तहत रजिस्ट्रेशन नहीं कराना पड़ता।
- नई कंपनी खोलने का यह आसान और पुराना तरीका है।
- ऐसी कंपनी का बैंक अकाउंट तो कंपनी के नाम पर ही होता है लेकिन उसे ऑपरेट कंपनी का फाउंडर अपने सिग्नेचर से ही करता है।
- इसमें किसी भी तरह के कम से कम या अधिक से अधिक पैसे की लिमिट नहीं होती।
- ऐसी कंपनी की पहचान उसके ओनर से ही होती है और इसके अलावा उसकी कोई कानूनी वैधता नहीं होती।

स्टेप 4 : फंड का जुगाड़
इतना सब करने के बाद भी एक सचाई का सामना आपको करना पड़ेगा कि आपका बेहतरीन आइडिया अभी कागजों पर ही है। इसे जमीन पर लाने के लिए सबसे जरूरी चीज यानी 'कैपिटल' यानी पैसे। इसके इंतजाम के लिए अनुभवी बिजनसमैन तरीके बताते हैं:

1 - अपना पैसा लगा कर
2- बैंक से लोन लेकर
3 - किसी पार्टनर को फाइनैंसर बना कर या प्राइवेट इक्विटी (हिस्सेदारी) देकर
4 - VC (वेंचर कैपिटलिस्ट) के सहारे कैसे मिलेगा बैंक से लोन
- अपना बिजनस शुरू करने के लिए अगर आपको बैंक लोन लेना है तो कंपनी लॉ के तहत रजिस्ट्रेशन होना जरूरी है।
- इसके बाद कंपनी को मिनिस्ट्री ऑफ माइक्रो स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज से अप्रूवल लेना होगा। यह तब ही मिलेगा जब इस मिनिस्ट्री की गाइडलाइन पर आप खरे उतरेंगे। इसकी पूरी जानकारी के लिए आप dcmsme.gov.in पर जाकर ले सकते हैं।
- एक बार यहां से अप्रूव हो जाने के बाद बैंक 1 करोड़ तक का लोन बिना कुछ गिरवी रखे दे सकता है।
- बैंक लोन देते वक्त खाता खुलवाते वक्त की गई औपचारिकताओं के अलावा बिजनस की प्रोजेक्ट रिपोर्ट भी मांगती है।
- अगर प्रोडक्शन से जुड़ा बिजनस शुरू करते हैं तो पॉल्यूशन और लेबर मिनिस्ट्री से मिलने वाली एनओसी भी देनी पड़ती है।
- अगर कंपनी सोल प्रोप्राइटरशिप (केवल एक इंसान द्वारा चलाई जा रही) वाली है या शुरू करने के लिए पैसा चाहती है तो उसे स्टेट लेवल पर चलने वाले डिपार्टमेंट ऑफ माइक्रो स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज से संपर्क करना होता है। हर स्टेट में इनके लिए अलग-अलग मापदंड रखे गए हैं।

प्राइवेट इक्विटी का जोर या वेंचर कैपिटलिस्ट की ओर किसी भी आइडिया को उड़ान देने के लिए जरूरी है कि फंडिंग के फंडे को पूरी तरह से समझा जाए। बैंक से लोन लेकर बिजनस करने का पारंपरिक तरीका अब यूथ को उतना पसंद नहीं आ रहा जितना प्राइवेट इक्विटी या वेंचर कैपिटलिस्ट के जरिए बिजनस शुरू करके आ रहा है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि लोन लेकर बिजनस करने में सारा दरोमदार आप पर आ जाता है जबिक वेंचर कैपिटलिस्ट आइजिएशन से लेकर एक्सपर्ट एडवाइस तक देने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। वैसे देखा जाए तो वेंचर कैपिटलिस्ट और प्राइवेट इक्विटी बिजनस के लिए पैसा जुटाने का मिलता जुलता ही तरीका है जिसमें आपके आइडिया के पीछे पैसा लगाने के बदले आपको प्रॉफिट शेयर करना होता है। लेकिन कुछ अंतर हैं तो प्राइवेट इक्विटी और वेंचर कैपिटलिस्ट को अलग-अलग करते हैं।

प्राइवेट इक्विटी इन्वेस्टर

-यह अक्सर पहले से कमाई करने वाली कंपनी या घाटे में चल रही कंपनियों पर पैसा लगाना चाहते हैं।
-यह हर तरह की कंपनियों पर पैसा लगाती हैं और मुनाफा को ही महत्व देते हैं।
-ये बड़ी फंडिंग के लिए आराम से तैयार हो जाती हैं। बिजनस मॉडल और साइज के हिसाब से इन्वेस्मेंट की रकम तय करते हैं।
-कम से कम 6 से 10 साल तक में पूरी फंडिंग करती हैं।
-अक्सर कंपनी पर पूरा कंट्रोल रखती हैं और बड़े शेयर की डिमांड करते हैं।
-इन्वेस्ट कंपनी के रोजमर्रा के काम में ज्यादा एक्टिव नहीं रहते जब तक कि कंपनी पॉलिसी के लेवल पर कोई भारी बदलाव न करना चाहे। वेंचर कैपिटलिस्ट
-किसी आइडिया को बिजनस की शक्ल देने की शुरुआत में ही वेंचर कैपिटलिस्ट का बड़ा रोल होता है। कम पूंजी से शुरू किए गए बिजनस को अक्सर इनसे फायदा होता है।
-इस तरह की फंडिंग अक्सर हाई ग्रोथ सेक्टर वाले बिजनस जैसे आईटी, बायोमेडिकल और अल्टरनेच एनर्जी आदि सेक्टर में ज्यादा होती है।
-छोटे इन्वेस्टमेंट के लिए ही तैयार होती हैं। अक्सर वेंचर कैपिटलिस्ट 10 लाख रुपये तक की रकम ही फंड करते हैं।
-फंडिंग पीरियड 4 से लेकर 7 साल का होता है।
-वेंचर कैपिटलिस्ट कंपनी में अक्सर छोटे शेयर ही लेती हैं लेकिन शर्तें आइडिया देने वाले और कंपनी के बीच तय होती हैं।
-इन्वेस्टर हर मुकाम पर राय देते हैं और अपने कनेक्शन और डिस्ट्रिब्यूशन सर्कल का भी फायदा देते हैं।

स्टेप 5 - प्लान होना चाहिए दमदार
अपने बिजनस के जमीन पर लाने के लिए जरूरी है एक बिजनस प्लान। यह प्लान वह दस्तावेज है यह दिखाता है कि आप कितनी गहराई से अपने बिजनस को समझते हैं और यही इन्वेस्टर को आपकी ओर आकर्षित करेगा।

बिजनस प्लान के मुख्य फीचर्स होते हैं:
बिजनस डिटेल्स:
1-नाम
2-लोकेशन
3-प्रॉडक्ट
4-मार्केट और कॉम्पिटिशन
5-मैनेजमेंट का अनुभव (किसी भी तरह का)
-बिजनस से आप क्या पाना चाहते हैं और कैसे पाना चाहते हैं इसके बारे में भी एक नोट लिखें।
-कितने फंड की जरूरत है फंड के लिए एप्लीकेशन

मार्केट अनैलेसिस:
1-अपने प्रॉडक्ट से जुड़ी पूरी मार्केट का ब्योरा
2-इंडस्ट्री के ट्रेंड की जानकारी
3-टारगेट मार्केट क्या है?

प्रॉडक्ट या सर्विस:
1-प्रॉडक्ट या सर्विस लाइन का पूरा ब्यौरा
2-पेटेंट, कॉपीराइट और लीगल इश्यू

मैन्युफैक्चरिंग प्रॉसेस (अगर है तो):
1-मैटीरियल
2-कच्चे माल की सप्लाई का ब्यौरा
3-प्रॉडक्शन का तरीका

मार्केटिंग की रणनीति:
1-किन तरीकों से होगी मार्केटिंग
2-प्रॉडक्ट या सर्विस की कीमत कितनी होगी
3-प्रॉडक्ट या सर्विस बेचने का कौन सा तरीका आजमाएंगे

मैनेजमेंट प्लान:
1-किस तरह का ऑफिस ऑर्गेनाइजेशन स्ट्रक्चर आपनाएंगे
2-बोर्ड ऑफ डायरेक्टर या ओनरशिप किसके पास होगी
3-कामों की जिम्मेदारी किस पर कौन सी होगी
4-स्टाफ प्लान या कितने कर्मचारी होंगे

5-अगले एक या दो साल तक बिजनस चलाने का ऑपरेशनल प्लान

इनक्यूबेटर और एसेलरेटर को भी समझें
बिजनस की शुरुआत करने वालों के लिए इन दो शब्दों के मायने जानना बहुत जरूरी हैं। इन्क्यूबेटर आपको अपने आइडिया के शुरुआती दौर में उसे प्रॉडक्ट के लेवल तक ले जाने में मदद करता है। इस दौरान वह एक्सपर्ट सलाह तो देता ही है साथ ही पूरे आइडिया को फाइन ट्यून करने का काम भी करता है। एसेलरेटर, जैसा कि नाम से ही पता चलता है आपके आइडिया को स्पीड देने का काम करता है। इनका रोल तब अधिक होता है जब एक बिजनस आइडिया चल तो निकला है लेकिन बड़ा बनने में कुछ कसर बाकी है। यह तय वक्त के लिए आपके बिजनस आइडिया को अपने सहारे ऊंची उड़ान दिलाने में मदद करते हैं। इन्क्यूबेटर और एसेलरेटर अमूमन नए बिजनस आइडिया को एक ऑफिस स्पेस के साथ ही एक्सपर्ट्स की मदद भी दिलाते हैं।ये दोनो ही बेहतरीन आइडिया को हर मुकाम पर पालने पोसने की जिम्मेदारी उठाते हैं ।

यहां से मिलेगी आपको मदद
हम कुछ ऐसे ठिकानों के बारे में दे रहे हैं जो आपके आइडिया को एक मुकाम देने का काम कर सकते हैं।

इंडियन एंजल नेटवर्क इनक्यूबेटर
दिल्ली भारत सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नॉल्जी का चलाया गया यह बेहतरीन आंत्रप्रेन्योरशिप प्रोग्राम है जिसमें आइडिया को बेहतरीन तरीके से सपोर्ट किया जाता है। यहां किसी भी वेंचर को 18-24 महीने तक इनक्यूबेट किया जाता है। एक्सपर्ट्स का इनसे बढ़िया नेटवर्क फिलहाल भारत में मौजूद नहीं है।

टेक्नॉलजी बिजनस इन्क्यूबेटर
आईआईटी दिल्ली हालांकि यह केवल तकनीकी बिजनस को ही बढ़ाने में मदद करते हैं लेकिन इनके सहारे कई आईआईटी स्टूडेंट्स ने अपने आइडिया को बड़ा बनाया है। इसमें आईआईटी किसी भी अच्छे बिजनस आइडिया को वेंचर कैपिटलिस्ट की मदद से आगे बढ़ाती है। एक्सपर्ट्स के लिहाज से यह किसी भी आइडिया को शुरू करने के लिए अच्छी जगह साबित हो सकती है।

टीलैब्स
दिल्ली यह टाइम्स इंटरनेट लिमिटेड का एक एसेलेरेटर है जो 10 फीसदी हिस्सेदारी के बदले 10 लाख रुपये तक फंड करता है। 13 महीने का इस प्रोग्राम को बिजनस जगत की बड़ी हस्तियां मेंटर करती हैं। यह ऑफिस के लिए जगह भी देते हैं। प्रोग्राम की शुरुआत फरवरी और अगस्त में होती है।

सोसाइटी फॉर इनोवेशन ऐंड आंत्रप्रेन्योरशिप, आईआईटी मुंबई
साइंस और टेक्नॉलजी के क्षेत्र में एंटप्रेन्योरशिप के लेवल पर चलने वाली किसी भी रिसर्च या शुरुआत को आईआईटी मुंबई का यह हिस्सा बखूबी करता है। इसे भी सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नॉल्जी का सपोर्ट मिलता है। हालांकि यहां केवल आईआईटी मुंबई से जुड़े स्टूडेंट्स को ही मौका मिल पाता है।

अनलिमिटेड इंडिया (UnLtd) मुंबई
यह सोशल आंत्रप्रेन्योरशिप को बढ़ावा देने के लिहाज से बेहतरीन इनवेस्टर साबित हो सकता है। यहां एक्सपर्ट्स की देखरेख में बेहतरीन स्टार्टअप इनक्यूबेशन के साथ-साथ सीड फंडिंग (बिजनस शुरु करने के लिए पैसा) का जुगाड़ भी हो जाता है। 3 टियर की फंडिग में 80 हजार से 20 लाख तक की फंडिंग हो सकती है।

सिडबी इनोवेशन एंड इनक्यूबेशन सेंटर, आईआईटी कानपुर
छोटी इंडस्ट्रीज को मदद करने के लिहाज से आईआईटी कानपुर का यह प्रोग्राम काफी खास है जो स्मॉल इडस्ट्रीज डिवेलपमेंट डिपार्टमेंट के सहयोग से चल रहा है। यह न केवल टेक्नॉल्जी बेस आइडिया को सपोर्ट करता है बल्कि उन्हें बड़े बिजनस की शक्ल देने के लिहाज से सपोर्ट भी करता है। छोटे लेवल के बिजनस आइडिया के लिहाज से इस सेंटर को एक्सपर्ट माना जाता है।

Saturday, September 27, 2014

सॉफ्ट स्किल्स और बिहेवियर

प्रस्तुति - दैनिक भास्कर

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बेशुमार पूंजी से ही करोड़ों के उद्यम खड़े किए जा सकते हैं, यह एक भ्रम है। आपके भीतर का हुनर भी ऐसा कर पाने में सक्षम है। स्वप्निल कामत ने अपनी प्रतिभा की बदौलत इस बात को साबित किया है। एक बेहतरीन वक्ता होने के बावजूद स्वप्निल को कुछ सालों पहले तक यह अंदाजा नहीं था कि एक दिन अपनी इस खूबी की बदौलत वे एक कामयाब उद्यमी बन पाएंगे।

कंपनी : वर्क बेटर
संस्थापक : स्वप्निल कामत
क्या खास : कॉर्पोरेट जगत के जूनियर और मिडिल लेवल कर्मचारियों को दिलचस्प तरीके से सॉफ्ट स्किल्स और बिहेवियर में ट्रेनिंग प्रदान करना। 
गोवा में पले-बढ़े स्वप्निल कामत ने गोवा के धेम्पे कॉलेज से बीकॉम किया। पढ़ाई के दौरान वह अपने पिता के हार्डवेयर बिजनेस में सेल्स एग्जीक्यूटिव के तौर पर मदद किया करता था। बचपन में शर्मीले और कम बोलने वाले स्वप्निल ने इस काम की बदौलत अपने भीतर कुछ नई खूबियों को पोषित किया। सबसे महत्वपूर्ण खूबी जो उसने अपने आपमें विकसित की थी, वह थी संवाद कुशलता यानी बात करने की कला। टेक्निकल आईटी फीचर्स को वह ग्राहकों को बड़ी सरलता से समझा देता था। इसके साथ ही कॉलेज में उसने ईएनटी नामक ईवेंट कंपनी शुरू की, जो कॉलेज और यूथ ईवेंट्स आयोजित करती थी। 
इसी दौरान स्वप्निल यह समझ चुका था कि एंटरप्रिन्योरशिप में उसकी खासी दिलचस्पी थी जिसकी बारीकियां उसे इन कामों से सीखने को मिलीं। लेकिन अभी भी वह यह नहीं जान पाया था कि उसे किस दिशा में आगे बढ़ना है। पढ़ाई पूरी हुई तो स्वप्निल ने एमबीए करने का फैसला लिया और पुणे के सिम्बायोसिस इंस्टीट्यूट ऑफ बिजनेस मैनेजमेंट में एडमिशन ले लिया।
यंग एंटरप्रेन्योर : नया करने के हौसले ने बनाया करोड़पति कारोबारी

एमबीए पूरा करने के बाद उसने लॉरियल में ब्रांड मैनेजर के रूप में काम करना शुरू किया। एक सुरक्षित और प्रतिष्ठित नौकरी के बावजूद स्वप्निल एंटरप्रिन्योरशिप का आकर्षण छोड़ नहीं पाया था। कुछ ही दिनों में उसे लगने लगा कि उसे नौकरी के बजाय खुदका वेंचर शुरू करना चाहिए। आखिरकार स्वप्निल ने अपना जॉब छोड़कर 2006 में ट्रिप टू गोवा डॉट कॉम की शुरुआत की। पहले वर्ष में ही इस वेंचर को अच्छा रेस्पॉन्स मिला और खासा मुनाफा भी। इसी दौरान स्वप्निल को बैंक ऑफ अमेरिका के लिए एक ईवेंट आयोजित करने का मौका मिला।

नए प्रयोग करने की जरूरत ने बदला रास्ता 

यह मौका उनके करियर का टर्निंग प्वाइंट था। यहां स्वप्निल ने सॉफ्ट स्किल्स की वर्कशॉप्स देखी। उन्होंने महसूस किया कि हिंदुस्तानी मिडिल व जूनियर एग्जीक्युटिव्स को इस ट्रेनिंग की जरूरत कुछ नए प्रयोगों के साथ थी। यही सब सोचते हुए स्वप्निल ने सॉफ्ट स्किल ट्रेनिंग को व्यवसाय में तब्दील करने के बारे में सोचा। उनका यह आइडिया अनोखा होने के साथ-साथ जोखिम भरा भी था। अनोखा इसलिए क्योंकि वे पारंपरिक कॉर्पोरेट ट्रेनिंग को एक नया और दिलचस्प रूप देना चाहते थे और जोखिम भरा इसलिए क्योंकि उन्हें कॉर्पोरेट ट्रेनिंग का अनुभव नहीं था। स्वप्निल ने इस जोखिम को एक अवसर के तौर पर देखा और एक कॉर्पोरेट ट्रेनिंग कंपनी खोलने का फैसला किया।


कम उम्र में ऊंचा मुकाम

स्वप्निल कामत की उम्र सिर्फ 32 वर्ष है लेकिन कॉर्पोरेट सॉफ्ट स्किल ट्रेनर के रूप में उन्होंने एक ऊंचा मुकाम हासिल किया है। एग्जीक्यूटिव ट्रेनिंग कंपनी वर्क बेटर के जरिए स्वप्निल कॉर्पोरेट कर्मचारियों को बिहेवियरल और सॉफ्ट स्किल्स में ट्रेनिंग प्रदान कर रहे हैं। अब तक वर्क बेटर देश भर में 75,000 से ज्यादा लोगों को ट्रेनिंग प्रदान कर चुकी है। अपने कर्मचारियों को प्रशिक्षण देने के लिए वर्क बेटर की सेवाएं लेने वाले कॉर्पोरेट्स में एचडीएफसी बैंक, एनएसई, जॉनसन एंड जॉनसन और महिन्द्रा एंड महिन्द्रा जैसी नामी कंपनियों का नाम शामिल है।

रिसर्च के बाद की शुरुआत 
अनुभव हासिल करने के लिए स्वप्निल ने कॉर्पोरेट ट्रेनिंग सेशन्स में जाना शुरू किया, लेकिन ये उन्हें काफी नीरस और टेक्निकल लगे। ट्रेनिंग के पुराने और बोरिंग तरीकों को दिलचस्प बनाने के लिए उन्होंने रणनीति बनाना शुरू किया। काफी रिसर्च और अध्ययन के बाद एग्जीक्यूटिव ट्रेनिंग की प्रक्रिया में मूलभूत बदलाव करके प्रोफेशनल्स की मदद के लिए कुछ नए तरीके इजाद किए। इस तैयारी के बाद 2008 के अंत में अपनी बचत के 2.5 लाख रुपए से स्वप्निल ने अपनी कंपनी वर्क बेटर की नींव रखी।
मंजिल के रास्ते में मुश्किलें
मुंबई में एक छोटा ऑफिस किराए पर लेकर स्वप्निल ने काम शुरू किया। वर्क बेटर की स्थापना के बाद डेढ़ साल उनके लिए काफी मुश्किलों भरा था। इसके दो कारण थे, पहला यह कि वर्क बेटर का आइडिया नया था और दूसरा यह कि उन्हें इस फील्ड का ज्यादा अनुभव नहीं था। एक क्लाइंट से शुरुआत हुई और फिर धीरे-धीरे संख्या बढ़ती गई। नौ माह में वर्क बेटर ने 5.5 लाख रुपए कमाए। 500 एग्जीक्यूटिव्स की ट्रेनिंग से शुरुआत करने वाली वर्क बेटर वर्तमान में 18,000 एग्जीक्यूटिव्स को सालाना ट्रेनिंग दे रही है। साथ ही कंपनी का का टर्नओवर 2013-14 में 4.2 करोड़ के आंकड़े को पार कर चुका है, जो पहले वर्ष में 15 लाख रुपए था। 
स्वप्निल ने इस वर्ष 50 प्रतिशत वृद्धि की उम्मीद के साथ मुंबई के बाद अब गोवा में भी अपनी कंपनी का बैक ऑफिस शुरू किया है। एंटरप्रिन्योर बनने की महत्वाकांक्षा रखने वाले युवाओं के लिए स्वप्निल कामत का संदेश है कि अपनी क्षमता, पसंद और लंबे समय तक फायदेमंद साबित होने वाले काम को पहचानिए। इन तीन चीजों का मेल आपको एक सफल करियर की मंजिल पर पहुंचा सकता है।

Saturday, September 20, 2014

रमेशभाई - मिनी ट्रैक्टर

प्रस्तुति - दैनिक भास्कर

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आपने यह कहावत तो सुनी ही होगी..जहां चाह, वहां राह। दुनिया में ऐसे बहुत से लोग हैं, जो इस कहावत को चरितार्थ करते हुए भी नजर आते हैं। इन्हीं में से एक हैं राजकोट जिले के बगथला गांव में रहने वाले रमेशभाई प्रभुभाई सरडवा। सिर्फ 7वीं कक्षा तक पढ़े रमेश पेशे से किसान हैं। रमेशभाई के पास 25 एकड़ जमीन है और वे बचपन से ही खेती-किसानी में लगे हुए हैं।

7वीं तक पढ़े किसान ने 60 हजार में बना लिया ‘जुगाड़’ ट्रैक्टर, देखे तस्वीरें... 
इसके साथ ही उनका एक और शौक था, वाहनों के पेंच-पुर्जो का तकनीकी ज्ञान लेने का। इसीलिए वे बचपन में अक्सर मैकैनिक की दुकान पर बैठे रहा करते थे। काफी हद तक काम सीख लेने के बाद उन्होंने गांव में ही एक ऑटो रिक्शा का गैरेज भी खोल लिया था। इसी बीच उनके मन में विचार आया कि क्यों न अपने खेतों को जोतने के लिए खुद ही कुछ बना लिया जाए। कुछ ऐसा, जो ट्रैक्टर का काम करे और ट्रैक्टर खरीदने में लगाई जाने वाली भारी-भरकम रकम भी बच जाए। फिर क्या था, रमेशभाई अपने इस मिशन में लग गए और अपनी सूझ-बूझ से खुद ही एक मिनी ट्रैक्टर बना लिया।

7वीं तक पढ़े किसान ने 60 हजार में बना लिया ‘जुगाड़’ ट्रैक्टर, देखे तस्वीरें...

इन चीजों का किया उपयोग:

- ऑटो का इंजन
मारुतिवेन की गियर किट
- मारुति फ्रंट की व्हीलप्लेट
- मिनी ट्रैक्टर के टायर व कुछ अन्य सामान
रमेशभाई ने यह सब सामान भी पुराने वाहनों से जुगाड़े। इसमें 50-60 हजार रुपए का खर्च आया। निर्माण में उन्हें दो महीनों का समय लगा।

7वीं तक पढ़े किसान ने 60 हजार में बना लिया ‘जुगाड़’ ट्रैक्टर, देखे तस्वीरें...

पैसों की बचत और कमाई भी:
अगर ट्रैक्टर किराए का लिया जाए तो 3-4 हजार रुपए किराया देना पड़ता है। वहीं, ट्रैक्टर की बाजार कीमत 6 लाख रुपए से ऊपर होती है, जिसे खरीदना हरेक किसान के बस की बात नहीं। वहीं, रमेशभाई के मिनी ट्रैक्टर के प्रतिदिन का खर्च मुश्किल से 600 रुपए आता है। रमेशभाई अपने मिनी ट्रैक्टर से अन्य किसानों के खेत भी जोत चुके हैं, वह भी बड़े ट्रैक्टर की तुलना में बहुत कम पैसों में।

इस कारनामे से रमेशभाई न सिर्फ पैसों की बचत व कमाई भी कर पा रहे है, बल्कि अब वे आसपास के गांवों में भी फेमस हो चुके हैं। उनके यह मिनी ट्रैक्टर जहां से भी गुजरता है, लोग देखते ही रह जाते हैं।

Wednesday, August 20, 2014

गूगल ग्लास जैसी डिवाइस


प्रस्तुति - नवभारत टाइम्स

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भारतीय ने ओपन-सोर्स हार्डवेयर से बनाई 4500 रुपए में गूगल ग्लास जैसी डिवाइस



Arvind-Sanjeev
कोच्चि के अरविंद संजीव ने गूगल ग्लास जैसी डिवाइस एक महीने के अंदर केवल 4500 रुपए में बना दी।
वरुण अग्रवाल, बेंगलुरु
भले ही गूगल को गूगल ग्लास बनाने में एक साल का वक्त लगा और वह इसे करीब एक लाख रुपए में बेच रही है, लेकिन कोच्चि के अरविंद संजीव ने ऐसी ही एक डिवाइस एक महीने के अंदर केवल 4500 रुपए में बना दी। हालांकि यह चश्मे की शक्ल में न होकर एक टोपी जैसी है। इसके लिए उन्होंने ओपन-सोर्स हार्डवेयर की मदद ली।

अपने इस प्रॉडक्ट से पैसे कमाने की जगह उन्होंने समाज की भलाई के मकसद से एक ब्लॉग लिखा। ब्लॉग में उन्होंने बताया कि किस तरह कोई भी इस 'स्मार्टकैप' को बना सकता है और इसके लिए ओपनसोर्स हार्डवेयर जैसे रासबेरी पाई कंप्यूटर, आर्ड्यिनो बोर्ड और ऐंड्रॉयड सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल कर सकता है। इस स्मार्टकैप में विडियो शेयरिंग और रेकॉर्डिंग के लिए एक वेबकैम है, 2.5 इंच का डिस्प्ले है और हैंड्स-फ्री काम करने के लिए वॉइस रिकग्निशन सिस्टम भी है।

इस जैसे हार्डवेयर प्लैटफॉर्म्स और रेपरैप 3D प्रिंटर्स से इलेक्ट्रॉनिक्स की कम या कोई जानकारी न रखने वाले स्टूडेंट, इंजिनियर और उद्यमी हार्डवेयर प्रॉडक्ट्स बनाना शुरू कर सकते हैं।

23 साल के संजीव अपने इंजिनियरिंग कॉलेज में कंप्यूटर हार्डवेयर बनाने के बारे में कुछ भी नहीं सीख सके, तो उन्होंने फैसला किया कि वह अपने सभी प्रॉजेक्ट्स को सभी के लिए उपलब्ध करवाएंगे, ताकि जो चाहे उन्हें बना सके। उन्होंने कहा, 'कॉलेज में आर्ड्यिनो को जानने से पहले मुझे नहीं पता था कि कोई कैलकुलेटर कैसे काम करता है या मैं उसे कैसे बना सकता हूं।'

उन्होंने एक ऐसा प्लैटफॉर्म विकसित किया है, जो उनके मुताबिक आपकी कार को कंट्रोल कर सकता है। उन्होंने कहा, 'ओपन-सोर्स हार्डवेयर की मदद से मैंने एक प्लैटफॉर्म बनाया है, जिससे आप केवल एक मोबाइल ऐप से अपनी कार को पूरा कंट्रोल कर सकते हैं।' संजीव ने इसके पेटेंट का आवेदन किया है और उन्हें उम्मीद है कि वह इसे एक पीस के 9000 रुपए के हिसाब से बेच सकेंगे।

मुंबई के श्रीकांत ने भी आर्ड्यिनो कंप्यूटर बोर्ड के इस्तेमाल से डायबीटीज़ के मरीजों का ग्लूकोज़ लेवल चेक करने के लिए एक मेडिकल डिवाइस बनाई। वह अपने डायबिटो को ओपन सोर्स बनाकर ओपन-सोर्स हार्डवेयर कम्यूनिटी में सहयोग करना चाहते हैं। इस डिवाइस में ग्लोबल फार्मा कंपनियों ने रुचि दिखाई है। वह कहते हैं, 'ओपन-सोर्स हार्डवेयर की वजह से आप प्रोटोटाइपिंग और डिज़ाइन टाइम को बहुत कम कर सकते हैं। यहां आपको हर चरण पर बड़ा कम्यूनिटी सपॉर्ट मिलता है। '

अपने बोर्ड्स की भारत में तेजी से बढ़ रही मांग को देखते हुए पिछले साल आर्ड्यिनो ने भारत में अपना पहला ऑफिस बेंगलुरु में खोला था। बेंगलुरु में आर्ड्यिनो की मैनेजिंग डायरेक्टर प्रिया कुबेर ने कहा, 'हमारा बिज़नस भारत में बहुत तेजी से बढ़ रहा है। हम यहां की कंपनियों से बात कर रहे हैं ताकि अगले कुछ महीनों में हमारे बोर्ड्स भारत में बनने शुरू हो जाएं।' इसके बाद इसकी कीमत 1200 रुपए से घटकर 900 रुपए तक हो जाएगी।

एक और ओपन-सोर्स हार्डवेयर टूलकिट रेपरैप की मदद से कई भारतीय स्मार्टअप्स 3D प्रिंटर्स बना सके हैं, जो कमर्शली बेचे भी जा रहे हैं। बेंगलुरु में ब्रह्मा3 के को-फाउंडर निखिल कहते हैं, 'हमने अपना 3D प्रिंटर बनाने के लिए प्लैटफॉर्म के तौर पर रेपरैप और आर्ड्यिनो का इस्तेमाल किया।'

IIIT (इंटरनैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ इन्फॉर्मा इंस्टिट्यूट ऑफ इन्फर्मेशन टेक्नॉलजी) के प्रोफेसर एस सदगोपन ने कहा, 'बहुत जल्द स्कूल और कॉलेज में ओपन-सोर्स हार्डवेयर का इस्तेमाल होने लगेगा। इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी की कीमत से हार्डवेयर महंगा हो जाता है। ओपन-सोर्स हार्डवेयर इस कीमत को कम करता है और इलेक्ट्रॉनिक्स हार्डवेयर को सबकी पहुंच में लाता है।'

इसकी शुरुआत हो भी चुकी है। केरल सरकार स्कूली छात्रों को 10 हजार रासबेरी पाई कंप्यूटर्स देने का फैसला पहले ही ले चुकी है।

कुछ उद्यमी भारत में हार्डवेयर प्रॉडक्ट बनाने को बढ़ावा देने के लिए अपना ओपन-सोर्स हार्डवेयर बना रहे हैं। इसका एक उदाहरण मेरठ की इलेक्ट्रॉब्रिक्स है। यह कंपनी 2000 रुपए का बेसिक किट बेचती है, जिससे बच्चे और रुचि रखने वाले लोग कई तरह के हार्डवेयर प्रॉडक्ट्स बना सकते हैं।

Monday, May 19, 2014

कड़ी मेहनत - series - 03

प्रस्तुति - दैनिक भास्कर

#leader
#creative
#progressive

लाखों का पैकेज छोड़ करने लगे खेती और बदल दी गांव की सूरत

पटना. नाम यदुवेंद्र किशोर सिंह, पिता अवध किशोर सिंह। उम्र 29 वर्ष। विक्टोरिया बॉयज स्कूल, दार्जिलिंग से वर्ष 2002 में मैट्रिक। एयरफोर्स स्कूल, नई दिल्ली से इंटरमीडिएट (2004। क्राइस कॉलेज बेंगलुरु से स्नातक (2007) और ईडीआई, अहमदाबाद से 2008 में पोस्ट ग्रेजुएट डिघ्लोमा इन बिजनेस इंटरप्रन्योर मैनेजमेंट की पढ़ाई की। मल्टीनेशनल कंपनियों में लाखों रुपए का ऑफर ठुकरा कर आज समेकित खेती कर रहे हैं।  
मधुबनी जिले के फूलपसरास प्रखंड के खुटौना गांव में यदुवेंद्र ने 7.5 एकड़ में पांच तालाब बनवाया है। जलजमाव वाले इस क्षेत्र में कुछ नए तालाब भी बनवाए, जबकि कुछ पुराने तालाबों का जीर्णोद्धार भी करवाया है। इस वर्ष तालाब में इंडियन कार्प मछली का बीज डाला है। साथ ही 100 आम के पौधे लगाए। 10 गाय रखे हैं। धान, गेहूं, सरसो और अरहर की खेती भी कर रहे हैं। इस प्रकार समेकित खेती की शुरुआत की है।

लोगों ने माना लोहा
प्रबंधन की पढ़ाई के बाद नौकरी ठुकरा खेती करने जब गांव आए, तो लोग हंस रहे थे। कई लोगों ने कहा- दिमाग फिर गया है। अब लोग समेकित खेती में इनके कुशल प्रबंधन का लोहा मानने लगे हैं। मछलीपालन, बागवानी, पशुपालन और सामान्य खेती से प्रतिवर्ष कम से कम 25 लाख रुपए शुद्ध मुनाफा होने की उम्मीद है। 

लाखों का पैकेज छोड़ करने लगे खेती और बदल दी गांव की सूरत

आत्म संतुष्टि के लिए कर रहे खेती
यदुवेंद्र की योजना है कि समेकित खेती में राज्य का यह महत्वपूर्ण मॉडल बने। इसे किसानों के समेकित खेती का प्रशिक्षण केंद्र बनाने का लक्ष्य है। मधुबनी सहित राज्य के किसानों को कम खर्च में अधिक लाभ के लिए समेकित खेती का मॉडल अपनाने के लिए प्रेरित करना भी उनका लक्ष्य है। धान और गेहूं की खेती के लिए श्रीविधि तकनीक को अपनाने के लिए किसानों को वे प्रेरित करते हैं। 

Thursday, May 1, 2014

कड़ी मेहनत - series - 02

प्रस्तुति - दैनिक भास्कर

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25 पैसे रोज की मजदूरी से शुरू किया काम, अब हैं फैक्ट्री मालिक
कोलकाता. कोलकाता के एनवीआर ग्रुप के सीएमडी संजय सिंह राठौर लोगों को सत्तू पिला कर करोड़पति बने हैं।
उन्होंने पारंपरिक सत्तू में औषधि मिलाकर उसे नये रूप में बाजार में उतारा, जो जंक फूड के आदी लोगों के लिए बेहतर पौष्टिक विकल्प बना। आज लाखों लोग उनकी चक्की का सत्तू पीकर दिन की शुरुआत करते हैं।
संजय ने अपने कारोबार की शुरुआत महज एक लाख रुपए से की थी। आज उनका व्यापार 10 करोड़ रुपए का हो गया है।
मूल रूप से बिहार के होने के कारण संजय को सत्तू के साथ हमेशा ही लगाव रहा। वह सोचते थे कि सत्तू को कैसे ऊपरी तबके में लोकप्रिय बनाया जाये। वह एनवीआर रेडीमिक्स प्रीमियम सत्तू लेकर बाजार में आए।
हावड़ा के बजरंगबली में उन्होंने एक यूनिट बनाया। इसमें सत्तू की पिसाई से लेकर पैकेजिंग तक की जाती है। बाजार से श्रेष्ठ क्वालिटी का चना खरीदकर उसमें आयुर्वेदिक हर्ब मिलाया जाता है। छोटे पाउच में इसे बाजार में उतारा गया। देखते ही देखते यह उत्पाद पसंद किया जाने लगा।

कड़ी मेहनत - series - 01

प्रस्तुति - दैनिक भास्कर

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25 पैसे रोज की मजदूरी से शुरू किया काम, अब हैं फैक्ट्री मालिक

खंडवा. आर्थिक समस्या से मजबूर होकर मात्र 13 साल की उम्र में मजदूरी से करियर की शुरुआत की। शुरुआती दौर में लक्कड़ बाजार में एक फर्नीचर व्यापारी के यहां मात्र 25 पैसे प्रतिदिन पर मजदूर कर रंदा चलाया। दिन-रात कड़ी मेहनत की। यह सिलसिला 15 साल तक चला। 
मन में आगे बढ़ने की दृढ़ इच्छाशक्ति के कारण थोड़ी बहुत बचत की। इससे छोटे-मोटे ठेके लिए और 28 साल की आयु तक पहुंचने पर लक्कड़ बाजार में छोटी सी दुकान खोल ली। फिर कभी पीछे पलटकर नहीं देखा। यह कहना है शहर के प्रतिष्ठित फर्नीचर व्यवसायी कंछेदीलाल विश्वकर्मा का। 
आज वह मजदूरों के लिए आदर्श बन गए। कड़ी मेहनत और दृढ़ इच्छाशक्ति के दम पर उन्होंने लाल चौकी क्षेत्र में फर्नीचर का बड़ा शोरूम खोला है, जिसे बेटे अनिल विश्वकर्मा संचालित कर रहे हैं। उम्र 74 साल हो गई, लेकिन कारखाने में काम करने वाले मजदूरों को आज भी वे मार्गदर्शन दे रहे हैं।
दो बेटे कर रहे ठेकेदारी एक संभाल रहा शोरूम
श्री विश्वकर्मा की कड़ी मेहनत के कारण ही आज उनके बेटे प्रवीण कुमार और अशोक कुमार सरकारी विभागों के साथ ही बिल्डिंग निर्माण के ठेके ले रहे हैं। वहीं छोटे बेटे अनिल विश्वकर्मा लालचौकी क्षेत्र में शहर का भव्य फर्नीचर शोरूम संचालित कर रहे हैं। 
बच्चों को छोड़कर दिन-रात किया काम
वे बताते हैं कि उन्होंने एक व्यापारी के यहां 25 पैसे रोज पर मजदूरी से रंदा चलाया। युवा होने पर कारीगर बन गया फिर भी मजदूरी 3 रुपए रोज ही मिलती थी। 1953 से 1968 तक मजदूरी की। थोड़ी बहुत बचत करने के साथ ही परिचितों के सहयोग से 1969 में बिल्डिंग के फर्नीचर संबंधी काम के छोटे ठेके लेना शुरू किए। एक साल बाद छोटी सी दुकान शुरू की। छोटे-छोटे बच्चों को छोड़कर दिन-रात काम में लगा रहा। बच्चे बढ़े हुए तो उन्होंने भी काम में सहयोग किया।
फोटो- कारखाने में कारीगरों को डिजाइन बनाने के लिए समझाइश देते कंछेदीलाल विश्वकर्मा। 

Saturday, February 15, 2014

क्रिस गोपालकृष्णन

प्रस्तुति - दैनिक भास्कर

#leader
#introvert
#progressive

क्रिस गोपालकृष्णन इन्फोसिस के एग्जीक्यूटिव वाइस चेयरमैन व सह संस्थापक हैं। क्रिस का जन्म केरल के तिरुअनंतपुरम में 5 अप्रैल 1956 को हुआ था। हाल ही में उनके ट्रस्ट ‘प्रतीक्षा’ ने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस को ब्रेन रिसर्च सेंटर बनाने के लिए 225 करोड़ रु. दिए हैं। IISC के 105 सालों के इतिहास में पहली बार किसी एक व्यक्ति ने इतनी बड़ी राशि दान दी।

बनना चाहते थे इंजीनियर 
क्रिस का सांइस से लगाव बचपन से था। जिस उम्र में बच्चे खेलते-कूदते, वे चीजें बनाते, बिगाड़ते और दोबारा बनाने लगते। ऐसा करने से उनके अभिभावकों ने न कभी रोका, न प्रोत्साहित किया। वे इंजीनियर बनना चाहते थे। परिवार में कोई डॉक्टर नहीं था, इसलिए पिता ने मेडिसिन पढ़ने को कहा।

जानें उस पहले शख्स के बारे में, जिन्होंने साइंस के लिए दिए 225 करोड़ रु.

मेडिकल एंट्रेंस के लिए जी-जान से जुटे
उन्होंने मेडिकल एंट्रेंस पास करने के लिए जी-जान लगा दी, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। मात्र दो नंबरों से मेडिकल सीट हाथ से निकल गई। पिता का मामूली बिजनेस था। उनके पास डॉक्टरी की सीट खरीदने के लिए पैसे नहीं थे। खुद पर पूरा यकीन था कि डॉक्टर ही बनेंगे इसलिए कोई प्लान-बी था ही नहीं। 

डॉक्टरी की तैयारी में दो साल बर्बाद
उन्होंने किसी इंजीनयरिंग कॉलेज का फॉर्म नहीं भरा था। डॉक्टरी की तैयारी में दो साल बर्बाद हो चुके थे। इस विफलता के बाद पिता ने उन्हें कुछ कहना छोड़ दिया। उनका आत्मविश्वास कांपने लगा, पर संघर्ष जारी रहा। काफी जद्दोजहद के बाद सब्जेक्ट बदल पाए। लोकल कॉलेज से फिजिक्स में बीएससी किया। गणित उनकी समझ से बाहर था। उनका आत्मविश्वास दोबारा डगमगाया। ट्यूशन टीचर सीसी फिलिप्स ने गणित में मदद की।

खोया हुआ आत्मविश्वास लौटने लगा और वे यूनिवर्सिटी में पांचवें स्थान पर आए। इसी दौरान किसी ने उन्हें आईआईएम में पढ़ने की सलाह दी और वे फॉर्म भर आए। तैयारी शुरू कर दी। एंट्रेंस टेस्ट पास कर लिया। इंटरव्यू तक पहुंचे। अंग्रेजी कमजोर होने के कारण बात नहीं बनीं। किसे मालूम था कि जिस आईआईएम ने उन्हें नकार दिया था, वे एक दिन उसके बोर्ड ऑफ गवर्नर्स में होंगे। 

इंट्रोवर्ट नेचर बना ताकत 
21 साल की उम्र में उन्होंने आईआईटी मद्रास से फिजिक्स में एमएससी और 23वें साल में कम्प्यूटर साइंस में एमटेक किया। कैंपस प्लेसमेंट में पटनी कम्प्यूटर के संस्थापक नरेंद्र पटनी ने नौकरी दी और कहा, ‘मुझे शांत और मेहनती व्यक्ति की तलाश थी। ये दोनों बातें तुममें हैं’। इंट्रोवर्ट नेचर उनकी ताकत बना। वे पटनी कम्प्यूटर्स में कोर टीम के सदस्य बने। एनआर नारायण मूर्ति भी इस टीम में थे जिन्होंने बाद में इन्फोसिस की स्थापना की। 1981 में इन्फोसिस की स्थापना हुई। वे सात संस्थापकों में से एक थे। इन्फोसिस और अमेरिकी कंपनी केएसए के जॉइंट वेंचर की जिम्मेदारी संभालने के लिए 1987 में अमेरिका चले गए और 1994 में भारत लौट आए। उन्हें डिप्टी मैनेजिंग डायरेक्टर बनाया गया। इन्फोसिस बनने के 26 साल के बाद वे सीईओ बने। 51 वर्षीय क्रिस ने जुलाई 2007 में सीईओ का पद संभाला। इससे पहले वे सीओओ और प्रेसीडेंट थे।

गैजेट फ्रीक हैं गोपालकृष्णन
वे गैजेट फ्रीक हैं। यहां तक कि हर महीने लेटेस्ट स्मार्टफोन खरीद सकते हैं। 2009-10 में उन्होंने पत्नी के साथ ‘प्रतीक्षा’ ट्रस्ट बनाया, जो पढ़ाई में जरूरतमंद बच्चों की आर्थिक मदद करता है। जनवरी 2011 में उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था और इसी साल अगस्त से मई 2013 तक एग्जीक्यूटिव को-चेयरमैन रहे और जून 2013 में एग्जीक्यूटिव वाइस चेयरमैन बना दिया गया। 

Thursday, January 30, 2014

दूध उत्पादन

प्रस्तुति - दैनिक भास्कर
#innovation
#new thinking
#motivational
छत्तीसगढ़ में महासमुंद जिला दूध के उत्पादन के लिए जाना जाता है। अब नई राजधानी का कोटराभाठा गांव इस क्षेत्र में तेजी से अपनी पहचान बना रहा है। रायपुर से 25 किमी दूर इस गांव में डेढ़ सौ घर हैं और हर घर में 25 से 100 गाय और भैंस हैं। यहां रोजाना 10 से 12 हजार लीटर दूध का उत्पादन हो रहा है। रुपए में बात करें तो हर माह डेढ़ करोड़ और सालाना 17 से 18 करोड़ का कारोबार हो रहा है। बढ़ती उत्पादन क्षमता को देखते हुए  नया रायपुर विकास प्राधिकरण (एनआरडीए) ने कोटराभाठा को डेयरी हब बनाने का निर्णय लिया है।
इस गांव का हर घर बना दूध की फैक्ट्री, हर महीने हो रही डेढ़ करोड़ की कमाई
इस गुमनाम से गांव कोटराभाठा की जानकारी तब मिली जब नया रायपुर क्षेत्र में इसे शामिल किया गया। रायपुर में देवभोग और अमूल सहित कई ब्रांड के दूध की बिक्री होती है। लेकिन अत्यधिक मात्रा में कोटराभाठा से दूध की सप्लाई हो रही है। भास्कर की टीम ने जब इस गांव का दौरा किया तो पता चला कि रायपुर के लगभग 45 फीसदी मिठाई दुकानों के साथ ही कई बड़ी कॉलोनियों व मोहल्लों में यहीं से दूध जाता है। गांव के भारत यदु का कहना है कि तेलीबांधा क्षेत्र के 200 घरों में प्रतिदिन वे दूध देते हैं। इसी तरह धनेश्वर यादव ने बताया कि रायपुर के 15 होटल और मिठाई दुकानों में उनके दूध की सप्लाई होती है।
50 एकड़ में बनेगा गोकुल धाम 
कोटराभाठा गांव में दूध के उत्पादन को देखते हुए एनआरडीए यहां डेयरी हब बनाने जा रहा है। पहले चरण में 50 एकड़ भूमि में गोकुल धाम बनाया जाएगा। यहां पशुओं के लिए चारागाह के साथ ही तमाम तरह की आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर को डेवलप किया जाएगा। ग्रामीणों को दूध की खपत के साथ ही उचित मूल्य मिले, इसके लिए दूध को डेयरी में ही ले लिया जाएगा। यानी ग्रामीणों को दूर शहर जाने की जरूरत नहीं होगी। इसके अलावा मवेशियों का चारा समेत अन्य सुविधाएं भी गांव में ही उपलब्ध कराई जाएगी।

इस गांव का हर घर बना दूध की फैक्ट्री, हर महीने हो रही डेढ़ करोड़ की कमाई

नया रायपुर बनने के बाद उत्पादन बढ़ा
कोटराभाठा गांव के लोग अपनी परंपरा के अनुसार दुधारू पशु पालते रहे हैं। लेकिन वर्ष 2006 में नया रायपुर बनने के बाद उनकी जमीन का अधिग्रहण हुआ और इसके बाद मिले मुआवजा ने लोगों के जीवन स्तर को बदल दिया। पूंजी बढऩे के बाद ग्रामीणों ने पशुओं की संख्या बढ़ा ली। ऐसे में अब ग्रामीणों का मुख्य पेशा दुग्ध उत्पादन ही हो गया है।
उन्होंने दूसरे गांवों में जमीनें भी खरीद लीं, जहां वे धान की खेती कर रहे हैं और उसका पैरा गाय-भैंसों के चारे के रूप में काम आ रहा है।

Thursday, January 23, 2014

हस्क पावर सिस्टम्स (एचपीएस)

प्रस्तुति - दैनिक भास्कर

#innovation
#research

100 रुपए में पूरे एक महीने बिजली, जानें हिंदुस्तानी सफलता की ये पूरी कहानी
बिहार के बैठानिया गांव में जन्मे ज्ञानेश ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से इजीनियरिंग की और उसके बाद न्यूयॉर्क के रेनसिलिर पॉलीटेक्निक इंस्टीट्यूट से इलेक्ट्रिक पावर एंड पावर इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में मास्टर्स डिग्री हासिल की। इसके बाद ज्ञानेश लॉस एंजिल्स में इंटरनेशनल रेक्टिफायर नामक कंपनी के साथ सीनियर यील्ड एनहेंसमेंट इंजीनियर के रूप में काम कर रहे थे, लेकिन यह ज्ञानेश का मकसद नहीं था।
गांवों में काम करने की तीव्र इच्छा ज्ञानेश ज्ञानेश को लॉस एंजिल्स से बिहार खींच लाई। अमेरिका में अपना सफल कॅरिअर छोड़कर लाखों लोगों की जिंदगियों को रोशन करने के सपने के साथ ज्ञानेश भारत लौट आए। बिहार लौटकर ज्ञानेश ने हस्क पावर सिस्टम्स (एचपीएस) की स्थापना की। ज्ञानेश और उनके तीन दोस्तों रत्नेश यादव, चार्ल्‍स रैंसलर और मनोज सिन्हा ने मिलकर इस पर काम करना शुरू किया। एचपीएच चावल की भूसी से बिजली उत्पादन करके सस्ती दरों पर ग्रामीणों को बेचती है।


100 रुपए में पूरे एक महीने बिजली, जानें हिंदुस्तानी सफलता की ये पूरी कहानी

आइडिया 
गैसीफायर सेल्समैन कृष्णा मुरारी ने इस काम में ज्ञानेश की मदद की। गैसीफायर वह उपकरण होता है, जो प्लांट मटीरियल को गैस में तब्दील कर देता है, जिसका इस्तेमाल ईंधन के रूप में हो सकता है। इस दौरान ज्ञानेश को पता लगा कि चावल मिलों के लिए बिजली उत्पन्न करने के लिए चावल की भूसी को ऑक्सीजन नियंत्रित गैसीफायर में जलाया जाता है। हालांकि मात्र यही तकनीक पर्याप्त नहीं थी। असल में चावल की भूसी से पैदा होने वाली गैस में टार काफी मात्रा में था। इसके लिए पांडे ने एक तरीका ढूंढ़ निकाला। टार के इंजन को जाम करने से पहले उसे साफ करने पर इस समस्या से छुटकारा मिल रहा था। अब पांडे और उनके साथियों ने मिलकर ऐसी तकनीक का इस्तेमाल किया जिसमें चावल की भूसी को ऑक्सीजन के साथ जलाने पर एक गैस उत्पन्न होती है, जो इंटरनल कंब्यूशन इंजन को चलाती है। इससे अल्टरनेटर के माध्यम से बिजली उत्पन्न होती है। यह तकनीक चल निकली और 2008 में बिहार का पश्चिम चंपारन जिले का तमकुहा गांव पहली बार रोशनी से जगमगा गया। ऐसा आजादी के 60 साल बाद हुआ था।

100 रुपए में पूरे एक महीने बिजली, जानें हिंदुस्तानी सफलता की ये पूरी कहानी

काम की शैली
एचपीएच के पास सफलता की सारी सामग्री उपलब्ध थी। चावल की भूसी 60 रुपए प्रति क्विंटल में उपलब्ध थी। 500 घरों को रोशनी पहुंचाने के लिए 32 किलोवाट बिजली की जरूरत थी, जिसके लिए प्रतिदिन तीन क्विंटल चावल की भूसी चाहिए थी। एक प्लांट को संचालित करने का खर्च एक महीने के लिए 20,000 रुपए था। बिजली की सप्लाई प्रतिमाह 80 रुपए की कीमत पर हो रही थी जिससे दो सीएफएल बल्क(15 वाट प्रत्येक) और एक मोबाइल चार्जिग प्वाइंट के लिए बिजली मिलती थी। एचएफएस सूर्यास्त के बाद इन गांवों को 7-8 घंटे बिजली सप्लाई करती थी। तीन सालों में एचपीएस ने 24 प्लांट लगाए और 80 गांवों के 12,000 घरों को रोशनी पहुंचाई। एचपीएस करीबन 8 से 10 घंटे 18,500 घरों को रोशनी पहुंचाती है। करीबन 1.5 लाख से ज्यादा ग्रामीणों को इससे फायदा मिल रहा है और 250 लोगों को रोजगार। अब कंपनी अपनी 84 इकाइयों के साथ बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और हैदराबाद के लगभग 350 गांवों को प्रकाश दे रही है। बिजली ग्रामीणों को 100 रुपए में मिल जाती है।

Wednesday, January 22, 2014

मेथी

सौजन्य से : www.facebook.com (https://www.facebook.com/AcharyaBalkrishanJi)

#aayurveda

#health
#body
#nature

आयुर्वेद के अनुसार मेथी एक बहुगुणी औषधि के रूप में प्रयोग की जा सकती है.भारतीय रसोईघर की यह एक महत्वपूर्ण हरी सब्जी है.प्राचीनकाल से ही इसके स्वास्थ्यवर्धक गुणों के कारण इसे सब्जी और औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता रहा है.
मेथी की सब्जी तीखी, कडवी और उष्ण प्रकृति की होती है.इसमें प्रोटीन केल्शियम,पोटेशियम, सोडियम,फास्फोरस,करबोहाई ड्रेट , आयरन और विटामिन सी प्रचुर मात्र में होते हैं. ये सब ही शरीर के लिए आवश्यक पौष्टिक तत्व हैं.यह कब्ज, गैस,बदहजमी, उलटी, गठिया, बवासीर, अपच, उच्चरक्तचाप , साईटिका जैसी बीमारियों को दूर करने में सहायक है.यह ह्रदय रोगियों के लिए भी लाभकारी है.मेथी के सूखे पत्ते, जिन्हें कसूरी मेथी भी कहते हैं का प्रयोग कई व्यंजनों को सुगन्धित बनाने में होता है.मेथी के बीज भी एक बहुमूल्य औषधि के सामान हैं.ये भूख को बढ़ाते हैं एवं संक्रामक रोगों से रक्षा करते हैं.इनको खाने से पसीना आता है, जिससे शरीर के विजातीय तत्व बाहर निकलते हैं. इससे सांस एवं शरीर की दुर्गन्ध से भी छुटकारा मिलता है.आधुनिक शोध के अनुसार यह अल्सर में भी लाभकारी है.


मेथी से बने लड्डू एक अच्छा टॉनिक है जो प्रसूति के बाद खिलाये जाते हैं.शरीर की सारी व्याधियों को दूर कर यह शरीर में बच्चे के लिए दूध की मात्र बढाती है.डायबिटीज में मेथी के दानों का पावडर बहुत लाभकारी होता है.इसमें अमीनो एसिड होते है जो कि इन्सुलिन निर्माण में सहायक होता है.ये थकान , कमरदर्द और बदनदर्द में लाभदायक है.इसकी पत्तियों का लेप बालों एवं चहरे के कई विकारों को दूर कर उसे कांतिमय बनाता है.