Saturday, February 15, 2014

क्रिस गोपालकृष्णन

प्रस्तुति - दैनिक भास्कर

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#introvert
#progressive

क्रिस गोपालकृष्णन इन्फोसिस के एग्जीक्यूटिव वाइस चेयरमैन व सह संस्थापक हैं। क्रिस का जन्म केरल के तिरुअनंतपुरम में 5 अप्रैल 1956 को हुआ था। हाल ही में उनके ट्रस्ट ‘प्रतीक्षा’ ने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस को ब्रेन रिसर्च सेंटर बनाने के लिए 225 करोड़ रु. दिए हैं। IISC के 105 सालों के इतिहास में पहली बार किसी एक व्यक्ति ने इतनी बड़ी राशि दान दी।

बनना चाहते थे इंजीनियर 
क्रिस का सांइस से लगाव बचपन से था। जिस उम्र में बच्चे खेलते-कूदते, वे चीजें बनाते, बिगाड़ते और दोबारा बनाने लगते। ऐसा करने से उनके अभिभावकों ने न कभी रोका, न प्रोत्साहित किया। वे इंजीनियर बनना चाहते थे। परिवार में कोई डॉक्टर नहीं था, इसलिए पिता ने मेडिसिन पढ़ने को कहा।

जानें उस पहले शख्स के बारे में, जिन्होंने साइंस के लिए दिए 225 करोड़ रु.

मेडिकल एंट्रेंस के लिए जी-जान से जुटे
उन्होंने मेडिकल एंट्रेंस पास करने के लिए जी-जान लगा दी, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। मात्र दो नंबरों से मेडिकल सीट हाथ से निकल गई। पिता का मामूली बिजनेस था। उनके पास डॉक्टरी की सीट खरीदने के लिए पैसे नहीं थे। खुद पर पूरा यकीन था कि डॉक्टर ही बनेंगे इसलिए कोई प्लान-बी था ही नहीं। 

डॉक्टरी की तैयारी में दो साल बर्बाद
उन्होंने किसी इंजीनयरिंग कॉलेज का फॉर्म नहीं भरा था। डॉक्टरी की तैयारी में दो साल बर्बाद हो चुके थे। इस विफलता के बाद पिता ने उन्हें कुछ कहना छोड़ दिया। उनका आत्मविश्वास कांपने लगा, पर संघर्ष जारी रहा। काफी जद्दोजहद के बाद सब्जेक्ट बदल पाए। लोकल कॉलेज से फिजिक्स में बीएससी किया। गणित उनकी समझ से बाहर था। उनका आत्मविश्वास दोबारा डगमगाया। ट्यूशन टीचर सीसी फिलिप्स ने गणित में मदद की।

खोया हुआ आत्मविश्वास लौटने लगा और वे यूनिवर्सिटी में पांचवें स्थान पर आए। इसी दौरान किसी ने उन्हें आईआईएम में पढ़ने की सलाह दी और वे फॉर्म भर आए। तैयारी शुरू कर दी। एंट्रेंस टेस्ट पास कर लिया। इंटरव्यू तक पहुंचे। अंग्रेजी कमजोर होने के कारण बात नहीं बनीं। किसे मालूम था कि जिस आईआईएम ने उन्हें नकार दिया था, वे एक दिन उसके बोर्ड ऑफ गवर्नर्स में होंगे। 

इंट्रोवर्ट नेचर बना ताकत 
21 साल की उम्र में उन्होंने आईआईटी मद्रास से फिजिक्स में एमएससी और 23वें साल में कम्प्यूटर साइंस में एमटेक किया। कैंपस प्लेसमेंट में पटनी कम्प्यूटर के संस्थापक नरेंद्र पटनी ने नौकरी दी और कहा, ‘मुझे शांत और मेहनती व्यक्ति की तलाश थी। ये दोनों बातें तुममें हैं’। इंट्रोवर्ट नेचर उनकी ताकत बना। वे पटनी कम्प्यूटर्स में कोर टीम के सदस्य बने। एनआर नारायण मूर्ति भी इस टीम में थे जिन्होंने बाद में इन्फोसिस की स्थापना की। 1981 में इन्फोसिस की स्थापना हुई। वे सात संस्थापकों में से एक थे। इन्फोसिस और अमेरिकी कंपनी केएसए के जॉइंट वेंचर की जिम्मेदारी संभालने के लिए 1987 में अमेरिका चले गए और 1994 में भारत लौट आए। उन्हें डिप्टी मैनेजिंग डायरेक्टर बनाया गया। इन्फोसिस बनने के 26 साल के बाद वे सीईओ बने। 51 वर्षीय क्रिस ने जुलाई 2007 में सीईओ का पद संभाला। इससे पहले वे सीओओ और प्रेसीडेंट थे।

गैजेट फ्रीक हैं गोपालकृष्णन
वे गैजेट फ्रीक हैं। यहां तक कि हर महीने लेटेस्ट स्मार्टफोन खरीद सकते हैं। 2009-10 में उन्होंने पत्नी के साथ ‘प्रतीक्षा’ ट्रस्ट बनाया, जो पढ़ाई में जरूरतमंद बच्चों की आर्थिक मदद करता है। जनवरी 2011 में उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था और इसी साल अगस्त से मई 2013 तक एग्जीक्यूटिव को-चेयरमैन रहे और जून 2013 में एग्जीक्यूटिव वाइस चेयरमैन बना दिया गया।