=>> प्रदीप भारद्वाज ‘कवि’ तिबडा-रोड मोदीनगर (गाजियाबाद)
(१) सिंहासन है चूसता , अब जनता का खून. जनता भूखों मर रही , आलू खाती भून. आलू खाती भून. ख़तम सब राशन कोटा . देख तेल की धार दाल आटे में टोटा. कह प्रदीप बेफिक्र है पूंजीवादी शासन . त्राहि-त्राहि मच रही किन्तु सोता सिंहासन.
(२) सिंहासन तेरा अगर भूखा सोता लाल . कर लेता एहसास यदि होता तू बेहाल . होता तू बेहाल , भूख हाई कैसी होती . बच्चों का मुंह देख , रूह तेरी भी रोती. कह प्रदीप मत भरो, तोंद में सारा राशन . भूंख करेगी क्रांति बचेगा क्या सिंहासन.
(3) सिंहासन बेफिक्र है रहा शांत सब दीख . महगाई की मार से नहीं निकलती चीख . नहीं निकलती चीख, भूख से गृहणी आकुल. कंकर रही उबाल लाडले सो गये व्याकुल. कह प्रदीप कह कविराय ,हाय!ये कैसा शासन . विलासिता में मस्त , भ्रष्ट अब भी सिहासन .
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