Thursday, January 20, 2011

कविता : मिट्टी

- श्रीमती लीला तिवानी (नवभारतटाइम्स)

मिट्टी किसी भी तरह सोने या चांदी से कम नहीं है,
कि मिट्टी में ही अंकुर फूट सकते हैं, सोने या चांदी में नहीं.

दीपक किसी भी तरह सूरज या चांद से कम नहीं है,
कि दीपक दिन में या रात में, अंदर या बाहर, उजाला करने में सक्षम है सूरज या चांद नहीं.

स्वास्थ्य किसी भी तरह धन-दौलत से कम नहीं है,
कि स्वस्थता ही सफलता की निर्णायक है, केवल धन-दौलत ही नहीं.

सद्गुण किसी भी तरह उच्च पद से कम नहीं है,
कि सद्गुण ही मानवता के परिचायक हैं, केवल उच्च पद ही नहीं.

संयम किसी भी तरह आनंद से कम नहीं है,
कि संयम की आंतरिक मस्ती की लहरें ही सदैव, आनंद के परचम को फहराती है.

कोई शिक्षाप्रद रचना किसी महानतम कृति से कम नहीं हैं,
कि शिक्षाप्रद रचना ही समाज का मार्गदर्शन कर उसे आगे बढ़ाती है.

एक सच्चा मानव किसी देवता से कम नहीं है,
कि मानव की सच्ची मानवता देवताओं के देवत्व से कम नहीं है....

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