Tuesday, November 8, 2011

पान की दुकान

Source: बिजनेस ब्यूरो | Last Updated 00:46(09/11/11)

यह दास्तान एक ऐसे उद्यमी की है जिसने अपनी मेहनत और लगनशीलता से न केवल अपना बल्कि अपने परिवार का भाग्य बदल कर रख दिया। यह सज्जन हैं वी पी नंदकुमार और इस समय वह भारत की एक शीर्ष कंपनी चलाते हैं। इस कंपनी का नाम है मण्णपुरम फाइनेंस इसकी देश भर में 2,600 शाखाएं हैं, इसका सालाना कारोबार 2200 करोड़ रुपए का है। और इसके पास 11,000 करोड़ रुपए की परिसंपत्ति है।



मण्णपुरम फाइनेंस का जन्म पान की एक दुकान से हुआ। यह दुकान केरल के त्रिसूर 1949 में खोली गई थी। पान की इस दुकान को नंदकुमार के पिता चलाते थे। वह जरूरतमंदों का सोना गिरवी रखकर उन्हें पैसे देते थे। नंदकुमार की माँ बच्चों को पढ़ाती थीं। लेकिन इन सबसे घर बड़ी मुश्किल से चल पाता था। इसलिए उन्होंने पढ़ाई पूरी करने के बाद बैंक में नौकरी कर ली।



1986 में नंदकुमार के पिता को कैंसर हो गया और तब उन पर घर-परिवार की जिम्मेदारी आ पड़ी। तब उनसे नौकरी छोड़नी पड़ी। उन्होंने नौकरी छोड़ दी। उस समय उनकी पिता के पास पांच लाख रुपए की पूंजी थी। नंदकुमार ने उस पान की दुकान को नया स्वरूप दिया और अपने बिज़नेस को एक कॉरपोरेट की तरह चलाना शुरू किया। य़ह काम आसान नहीं था। उन्होंने अपने इलाके में सबसे पहले कंप्यूटर इस्तेमाल करना शुरू किया।



लेकिन बिज़नेस करना इतना आसान नहीं था क्योंकि उनके पास पर्याप्त धन नहीं था। उन्होंने सोना गिरवी लेने का काम तेज कर दिया। 5-6 सालों में उनके पास 7 करोड़ रुपए की संपत्ति हो गई। लेकिन इससे काम नहीं चलने वाला था। फिर उन्होंने एक नॉन बैंकिंग फाइनेंस कंपनी खोली जिसका नाम था मण्णपुरम जेनरल फाइनेंस ऐंड लीजिंग कंपनी और यह कंपनी महज 10 लाख रुपए से शुरू हुई। यह कंपनी 30-40 प्रतिशत की दर से बढ़ी और इसने पीछे मुड़कर पीछे नहीं देखा। बाद में इसी कंपनी का नाम बदलकर मण्णपुरम फाइनेंस हो गया।



इस कंपनी के बारे में न्यूयॉर्क टाइम्स जैसे बड़े अखबारों ने विस्तार से छापा और इसे एक मिसाल माना गया है। 57 वर्षीय नंदकुमार इसके चेयरमैन हैं।


No comments: