Friday, May 1, 2015

अमृता डेयरी फार्म्स

प्रस्तुति - दैनिक भास्कर

# Leader
# Creative
# Progressive


फ़ार्म में अपनी गायों के साथ संतोष डी सिंह

यह कहानी संतोष डी सिंह की है जिन्होंने आईटी करियर छोड़कर डेयरी फ़ार्म उद्योग खड़ा किया, आज उनके उद्यम का कुल टर्नओवर 1 करोड़ रुपए सालाना है।
कंपनी : अमृता डेयरी फार्म्स
संस्थापक : संतोष डी सिंह
क्या खास : आईटी सेक्टर प्रोफेशनल द्वारा कम संसाधनों के साथ शुरू किया गया उद्यम जो समय के साथ कामयाब बिजनेस की शक्ल ले चुका है।

बेंगलुरु से तकनीकी शिक्षा में पोस्ट ग्रैजुएशन की डिग्री लेने के बाद संतोष डी सिंह को इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी इंडस्ट्री में एक अच्छी नौकरी मिल गई। डेल और अमेरिका ऑनलाइन जैसे आईटी सेक्टर के मल्टीनेशनल दिग्गजों के साथ करीब 10 साल तक संतोष ने काम किया। इन 10 सालों के अपने अनुभव को साझा करते हुए संतोष बताते हैं कि ‘उन दिनों भारत में आईटी इंडस्ट्री फल-फूल रही थी। मुझे अपने काम के दौरान दुनिया के कई देशों का सफर करने का मौका मिला। देश-विदेश की यात्रा के बीच मुझे ऐसे कई उदाहरण देखने को मिले जहां अपने उद्योग के माध्यम से लोग अच्छा कमा रहे थे। यहीं से मुझे एक ऐसा उद्योग शुरू करने की प्रेरणा मिली जिसके जरिए मैं हमेशा प्रकृति के नजदीक रहकर काम कर सकूं। इसी बीच डेयरी फार्मिंग का आइडिया मेरे जेहन में आया।’
संतोष को महसूस हुआ कि भारतीय कृषि की अनिश्चितता को देखते हुए डेयरी फार्मिंग तुलनात्मक रूप से स्थिर और लाभदायक व्यवसाय है। इसी सोच के साथ अपने इस आइडिया को उद्यम में बदलने के लिए संतोष ने अपनी जॉब छोड़ने का फैसला कर लिया। कॉरपोरेट दुनिया की अपनी सुरक्षित नौकरी छोड़ने से पहले संतोष ने अपने परिवार की सहमति हासिल की और फिर अपने आइडिया को उद्योग की शक्ल देने में जी-जान से जुट गए। इस काम में संतोष को प्रोजेक्ट मैनेजमेंट, प्रोसेस इम्प्रूवमेंट, बिजनेस इंटेलिजेंस, एनालिटिक्स और रिसोर्स मैनेजमेंट के वे सभी गुर काम आए जो उन्होंने अपनी जॉब के दौरान सीखे थे।
ट्रेनिंग से हासिल की बुनियादी जानकारी 
फार्मिंग की कोई पृष्ठभूमि होने के कारण संतोष को इस क्षेत्र का कोई तजुर्बा नहीं था। अनुभवहीनता को दूर करने के लिए उन्होंने डेयरी फार्मिंग की ट्रेनिंग लेने का निर्णय लिया और नेशनल रिसर्च डेयरी इंस्टीट्यूट में फुल टाइम ट्रेनिंग के लिए एडमिशन ले लिया। इस ट्रेनिंग के दौरान संतोष को पशुओं के साथ रहकर उनकी देखभाल का व्यावहारिक प्रशिक्षण मिला। इस ट्रेनिंग के बारे में संतोष कहते हैं कि ‘एयर-कंडीशंड वर्कप्लेस की तुलना में डेयरी फार्म के खुले माहौल ने मुझे एनर्जी से भर दिया। खेतों में रहकर ट्रेनिंग पाकर मुझमें यह आत्मविश्वास गया था कि पशुपालन एक आकर्षक पेशा है जिसे मैं लंबे समय तक करना चाहूंगा।’
तीन गायों से हुई शुरुआत 
संतोष ने अपने उद्यम की शुरुआत तीन गायों के साथ अमृता डेयरी फार्म्स के नाम से की। करीब 20 लाख रुपए के इन्वेस्टमेंट के साथ इसकी स्थापना उन्होंने बेंगलुरु से 40 किमी दूर अपने तीन एकड़ के पुश्तैनी खेत में की, जहां नौकरी के दौरान वे वीकेंड बिताने जाते थे। शुरुआत में गायों को नहलाने, दूध निकालने और उनके छप्पर की साफ-सफाई संतोष खुद ही करते थे। धीरे-धीरे संतोष की योजना सफल होने लगी और शुरुआत के पहले ही साल में गायों की संख्या तीन से बढ़कर बीस तक पहुंच गई।
इसी के चलते संतोष ज्यादा गायों के लिए बुनियादी सुविधाएं जुटाने के प्रयास करने लगे। इसी दौरान संतोष को ट्रेनिंग देने वाले एनडीआरआई के एक ट्रेनर का उनके फार्म पर आना हुआ। उन्होंने संतोष को टेक्नोलॉजिकल सपोर्ट के लिए नाबार्ड से सहायता लेने की सलाह दी। इस सलाह पर अमल करते हुए संतोष ने प्रयास किए तो उन्हें नाबार्ड से पूरा सहयोग मिला। इससे अपने काम को और विस्तार देने का प्रोत्साहन मिला और उन्होंने गायों की संख्या बढ़ाकर 100 कर दी।

2 comments:

JEEWANTIPS said...

सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार...

Unknown said...

Good information and thanks for sharing
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