प्रस्तुति - जागरण लखनऊ [प्रेम सिंह]।
मेहनतकशों के लिए एक मौजू शेर है:-
कुछ लोगों ने तदवीर से किस्मत संवार ली,
कुछ लोग ज्योतिषियों को हाथ दिखाते रह गए।
ज्वार-बाजरा और मोटे अनाजों की पैदावार के लिए उपयुक्त समझी जाने वाली बहराइच की जमीन के उन किसानों के लिए उक्त शेर और भी मौजू बन गया है जिन्होंने परंपरागत खेती की गुदड़ी को उतारकर अलग धर दिया है।
सीलन खाए विचारों से आगे बढ़कर अब उसी जमीन को अपने पसीने से तर-बतर कर वहां 'टिश्यू कल्चर' की पौध रोपकर केले की उन्नतशील खेती कर रहे हैं।
इससे मोटे अनाज के मुकाबले न केवल उनकी आय में दस गुना तक इजाफा हो रहा है बल्कि लखनऊ, वाराणसी और आसपास के जिलों के आढ़तियों व व्यापारियों का मन केले की लंबी-लंबी घारें [केले के गुच्छे] देख कर खरीदने के लिए मचल उठता है।
यहां यह उल्लेखनीय है कि चावल उत्पादकता के मामले में बहराइच का नाम प्रदेश के जिलों में 42 वें नंबर पर है। यहां मात्र 15 कुंटल प्रति हेक्टेयर की उत्पादकता है, जबकि 41 अन्य जिलों में यह उत्पादकता 25 से 30 क्विंटल तक है। इसी प्रकार मक्का में यहां 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की उत्पादकता है, जबकि प्रदेश के 47 जिले ऐसे हैं जहां 15 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की उत्पादकता है। ज्वार और बाजरा में बहराइच को अन्य जिलों से बेहतर माना जाता है।
बहराइच-श्रावस्ती रोड पर परयूपुर गांव में दिनेश प्रताप सिंह, डा. उमेश प्रताप सिंह, वीरेंद्र कुमार सिंह, रवींद्र, मुन्नन, कमलेश और मल्लीपुर रोड के पास कमाल अहमद के एकड़ों में फैले केले के खेत इन किसानों में भरे आत्मविश्वास के नमूने हैं।
ये किसान कहते हैं कि अहंकार और आत्मविश्वास दो अलग-अलग चीजें हैं। अहंकार दूसरे पर चोट करता है किन्तु जो अहंकार दूसरे पर नोक-झोंक किए बिना ही अपने प्राणों में शक्ति के अनुभव को जागृत करता है, वही आत्मविश्वास है।
इन किसानों में भी सबसे अलग हैं बहराइच जिला मुख्यालय से 27 किलोमीटर तथा पखरपुर कस्बे से 12 किलोमीटर दूर सुपनी गांव में तिवारी परिवार के युवा पीढ़ी के बीकाम, एलएलबी महेश त्रिपाठी जो आजकल केले की फसल के रिकार्ड उत्पादन के लिए चर्चित होते जा रहे हैं और जिनके केले के खेत औरों के लिए प्रेरणाश्रोत हैं।
खुद महेश बेरोजगारों की उस फौज के लिए एक मिसाल हैं जो सरकारी योजनाओं के जरिए नौकरी पाने और इम्दाद के लिए सरकारों का मुंह ताकती रहती है। अनखाए दिन और अनसोई रातों के दम पर महेश ने क्षेत्र में केले के उत्पादन का यह रिकार्ड बनाया है।
क्षेत्र में केले की फसल के जनक माने जाने वाले हरदेव सिंह के पुत्र महिपाल सिंह बताते हैं कि अभी तक 55 किलो केले की घार का रिकार्ड था लेकिन महेश के खेतों में 60-60 और इससे भी अधिक की वजनी घारें प्रगतिशील किसानों के मध्य चर्चा का केंद्र बनी हुई हैं।
42 सदस्यीय इस परिवार के मुखिया और महेश के बाबा राम रंगीले तिवारी पोते महेश की मेहनत और लीक से हटकर खेती करने की ललक पर खेत में केले की एक लंबी घार को निहारते हुए कहते हैं कि पहले 60-70 हजार की जोंधरी [मक्का] बाजरा, अरहर और उर्द बेचते थे। केले की खेती शुरू की तो यह आय बढ़कर चार से छह लाख के बीच हुई और इस बार तो अभी से वाराणसी और दूसरे जिलों से व्यापारी यहां आकर एक दूसरे से बढ़-बढ़कर दाम लगा रहे हैं। हमसे कहते हैं कि वाराणसी लाओ तो और अधिक पैसा मिलेगा। लेकिन हमें तो यहीं पर और ज्यादा दाम मिलने की उम्मीद है।
कुछ लोगों ने तदवीर से किस्मत संवार ली,
कुछ लोग ज्योतिषियों को हाथ दिखाते रह गए।
ज्वार-बाजरा और मोटे अनाजों की पैदावार के लिए उपयुक्त समझी जाने वाली बहराइच की जमीन के उन किसानों के लिए उक्त शेर और भी मौजू बन गया है जिन्होंने परंपरागत खेती की गुदड़ी को उतारकर अलग धर दिया है।
सीलन खाए विचारों से आगे बढ़कर अब उसी जमीन को अपने पसीने से तर-बतर कर वहां 'टिश्यू कल्चर' की पौध रोपकर केले की उन्नतशील खेती कर रहे हैं।
इससे मोटे अनाज के मुकाबले न केवल उनकी आय में दस गुना तक इजाफा हो रहा है बल्कि लखनऊ, वाराणसी और आसपास के जिलों के आढ़तियों व व्यापारियों का मन केले की लंबी-लंबी घारें [केले के गुच्छे] देख कर खरीदने के लिए मचल उठता है।
यहां यह उल्लेखनीय है कि चावल उत्पादकता के मामले में बहराइच का नाम प्रदेश के जिलों में 42 वें नंबर पर है। यहां मात्र 15 कुंटल प्रति हेक्टेयर की उत्पादकता है, जबकि 41 अन्य जिलों में यह उत्पादकता 25 से 30 क्विंटल तक है। इसी प्रकार मक्का में यहां 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की उत्पादकता है, जबकि प्रदेश के 47 जिले ऐसे हैं जहां 15 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की उत्पादकता है। ज्वार और बाजरा में बहराइच को अन्य जिलों से बेहतर माना जाता है।
बहराइच-श्रावस्ती रोड पर परयूपुर गांव में दिनेश प्रताप सिंह, डा. उमेश प्रताप सिंह, वीरेंद्र कुमार सिंह, रवींद्र, मुन्नन, कमलेश और मल्लीपुर रोड के पास कमाल अहमद के एकड़ों में फैले केले के खेत इन किसानों में भरे आत्मविश्वास के नमूने हैं।
ये किसान कहते हैं कि अहंकार और आत्मविश्वास दो अलग-अलग चीजें हैं। अहंकार दूसरे पर चोट करता है किन्तु जो अहंकार दूसरे पर नोक-झोंक किए बिना ही अपने प्राणों में शक्ति के अनुभव को जागृत करता है, वही आत्मविश्वास है।
इन किसानों में भी सबसे अलग हैं बहराइच जिला मुख्यालय से 27 किलोमीटर तथा पखरपुर कस्बे से 12 किलोमीटर दूर सुपनी गांव में तिवारी परिवार के युवा पीढ़ी के बीकाम, एलएलबी महेश त्रिपाठी जो आजकल केले की फसल के रिकार्ड उत्पादन के लिए चर्चित होते जा रहे हैं और जिनके केले के खेत औरों के लिए प्रेरणाश्रोत हैं।
खुद महेश बेरोजगारों की उस फौज के लिए एक मिसाल हैं जो सरकारी योजनाओं के जरिए नौकरी पाने और इम्दाद के लिए सरकारों का मुंह ताकती रहती है। अनखाए दिन और अनसोई रातों के दम पर महेश ने क्षेत्र में केले के उत्पादन का यह रिकार्ड बनाया है।
क्षेत्र में केले की फसल के जनक माने जाने वाले हरदेव सिंह के पुत्र महिपाल सिंह बताते हैं कि अभी तक 55 किलो केले की घार का रिकार्ड था लेकिन महेश के खेतों में 60-60 और इससे भी अधिक की वजनी घारें प्रगतिशील किसानों के मध्य चर्चा का केंद्र बनी हुई हैं।
42 सदस्यीय इस परिवार के मुखिया और महेश के बाबा राम रंगीले तिवारी पोते महेश की मेहनत और लीक से हटकर खेती करने की ललक पर खेत में केले की एक लंबी घार को निहारते हुए कहते हैं कि पहले 60-70 हजार की जोंधरी [मक्का] बाजरा, अरहर और उर्द बेचते थे। केले की खेती शुरू की तो यह आय बढ़कर चार से छह लाख के बीच हुई और इस बार तो अभी से वाराणसी और दूसरे जिलों से व्यापारी यहां आकर एक दूसरे से बढ़-बढ़कर दाम लगा रहे हैं। हमसे कहते हैं कि वाराणसी लाओ तो और अधिक पैसा मिलेगा। लेकिन हमें तो यहीं पर और ज्यादा दाम मिलने की उम्मीद है।
1 comment:
वाह मेहनत का परिणाम अच्छा रहा
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