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Tuesday, December 27, 2011
बिहार के लाल
भागलपुर.मन में लगन के साथ कुछ करने की चाहत हो तो बेकार समझे जाने वाली चीजों से भी कुछ नया आविष्कार किया जा सकता है। कुछ ऐसा ही कारनामा कर दिखाया है अंग के एक लाल ने।
शहर के नाथनगर नयाटोला के निवासी निक्की कुमार झा ने विद्युत घर से निकले कोयले की राख से बिजली उत्पन्न कर फिर बचे हुए वेस्टेज राख से डैमप्रूफ सीमेंट बनाने की दिशा में एक उपलब्धि हासिल की है। सीमेंट को परीक्षण के लिए आईआइटी कानपुर एवं मद्रास भेजा गया है। जिसकी रिपोर्ट अभी आनी है।
कैसे मिली सफलता ?
वर्तमान में टीएनबी कॉलेज बीएससी भौतिकी प्रथम वर्ष के छात्र निक्की का कहना है कि उसके द्वारा बनाया गया सीमेंट बाजार से सस्ता और मजबूत है। इस सीमेंट से छत बनाया जाय तो इससे छड़ में कभी जंग नहीं लगेगा।
उन्होंने बताया कि जब राख का परीक्षण किया तो पाया कि उसमें सोडियम और कैल्शियम का ऑयन होता है। फिर उसमें सोडियम सल्फाइड को पानी में घुलाकर बाहर कर लिया और कैल्शियम सल्फाइड को रहने दिया और उचित मात्रा में जिप्स मिलाने से सीमेंट तैयार हो गया।
पिता का मिला सहयोग
इस कार्य में उनके पिता सुनील कुमार झा का भी पूरा सहयोग मिला है। उनके पिता वर्तमान में कहलगांव स्थित संत जोसफ स्कूल में भौतिकी के शिक्षक हैं। टीएनबी रसायण शास्त्र के शिक्षक प्रो. राजेश कुमार एवं नवयुग विद्यालय के शिक्षक माधवेन्द्र चौधरी ने सहयोग किया। निक्की के पिता सुनील झा व मां रीना रानी ने बताया कि उसका झुकाव बचपन से ही वैज्ञानिक प्रयोग की तरफ रहा है।
पहले भी दिखा चुका है हुनर
वर्ष 2007 में नरगा स्थित सरस्वती विद्या मंदिर में निक्की उर्जा रुपान्तरण व प्रबंधन पर मॉडल तैयार कर विज्ञान मेले का टॉपर बना था। दसवीं कक्षा में वर्ष 2010 में कोयले की राख से बिजली तैयार किया। 5 दिसंबर 2010 को बिजली बनाने के बाद बचे हुए अवशिष्ट राख से डैमरोधी सीमेंट तैयार किया। निक्की ने बताया कि 200 ग्राम राख से दो बोल्ट तक बिजली पैदा की जा सकती है।
कुछ ऐसे मिली प्रेरणा
मिक्की ने बताया कि अपने पापा से अक्सर एनटीपीसी द्वारा उत्सर्जित कोयले की राख से फैल रहे प्रदूषण के बारे में वह सुनता था। इसी से प्रेरणा पाकर राख पर काम करना शुरु किया। निक्की ने बताया कि एनटीपीसी और उसके आसपास के क्षेत्रों को प्रदुषण मुक्त करने के दिशा में वह एक प्रोजेक्ट पर काम करने की सोच रहा है। जिसके डिमोस्ट्रेशन के लिए उचित मौके की तलाश में है।
है इच्छा
निक्की ने अपनी इच्छा बताते हुए कहा कि वो अपनी तमाम चीजें जिसे वह करना चाहता है वह राज्य के सीएम नीतीश कुमार के साथ बांटना चाहता है। ताकि एक सही प्लेटफार्म मिल सके। राख से बिजली बनाने के लिए निक्की को इंडियन सेंटर फॉर वाइल्ड लाइफ एंड इन्वायारामेंटल स्टडीज साउथ एशिया रीजन की ओर से पर्यावरण रत्न अवार्ड मिल चुका है।
भारत सरकार के सहयोग से प्रकाशित पुस्तक भूमि संसाधन एवं पृथ्वी ग्रह एनसीटीसी नेटवर्क में 2009 एवं 2010 में निक्की के दो लेख भी प्रकाशित हुए हैं। इसके अलावे वह विद्या भारती उत्तर पूर्व क्षेत्र के क्षेत्रीय विज्ञान मेला का टॉपर रहा है। विज्ञान के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य के लिए कई पुरस्कार मिले हैं।
जीमेल से फेसबुक तक कंट्रोल करेगा रोबोट
निक्की वर्तमान में सुभारती विवि मेरठ का छात्र रवि कुमार के सहयोग से प्लास्टिक से इंधन निकालने एवं एक ऐसा रोबोट तैयार कर रहे हैं जो मैसेज, फोन, फेसबुक, जी-मेल आदि को भी कंट्रोल कर लेगा। निक्की की इच्छा भविष्य में न्यूक्लियर यूजन को कंट्रोल करना व इस पर नोबेल पुरस्कार जीतना है।
Monday, December 19, 2011
साइकिल के पुर्जे
भारत में एक से बढ़कर एक कर्मयोगी हैं और उनमें ज्यादातर लोगों ने जबर्दस्त मेहनत की और गजब की प्रतिबद्धता दिखाई। इसका ही नतीजा है कि वे उन ऊंचाइयों पर जा पहुंचे हैं जहां पहुंचना मुश्किल ही नहीं लगभग नामुमकिन है।
इनमें से ही एक हैं बृजमोहन लाल मुंजाल जो दुनिया की सबसी बड़ी टू व्हीलर कंपनी हीरो मोटोकॉर्प के चेयरमैन हैं। आज उनकी कुल संपत्ति 1.5 अरब डॉलर की है और वह भारत के 38 वें सबसे अमीर हैं।
उनका जन्म कमालिया में हुआ जो अब पाकिस्तान में है। बंटवारे के पहले ही वहां से अमृतसर चले आए और यहां छोटा-मोटा काम करने लगे। बाद में वह लुधियाना चले गए जहां वह अपने तीन भाइयों के साथ साइकिलों के पार्ट्स बेचने लगे। 1954 में उन्होंने पार्ट्स बेचने की बजाय साइकिलों के हैंडल, फोर्क वगैरह बनाना शुरू कर दिया। उनकी कंपनी का नाम था हीरो साइकिल्स लिमिटेड। 1956 में पंजाब सरकार ने साइकिलें बनाने का लाइसेंस जारी किया। यह लाइसेंस उनकी कंपनी को मिला और यहां से उनकी दुनिया बदल गई। पंजाब सरकार ने उन्हें लोन भी दिया और यह उनकी मेहनत का परिणाम था कि 1986 में हीरो साइकिल को दुनिया की सबसे बड़ी साइकिल कंपनी माना गया।
इसके बाद उन्होंने एक टू व्हीलर कंपनी खोली जिसका नाम था हीरो मैजेस्टिक कंपनी। इसमें उन्होंने मैजेस्टिक स्कूटर बनाने शुरू किए। 1984 में उन्होंने जापान की बड़ी ऑटो कंपनी होंडा से करार किया और यहीं से उनकी दुनिया बदल गई। उन्होंने होंडा के साथ मिलकर हरियाणा के धारूहेड़ा में प्लांट लगाया। यहां हीरो होंडा मोटरसाइकिलें बननी शुरू हुईं। आज यह दुनिया की सबसे बड़ी मोटरसाइकिल निर्माता कंपनी है।
81 वर्षीय बृजमोहन मुंजाल अपने बेटों पवन और सुनील के साथ हीरो समूह चला रहे हैं। उन्होंने जापानी कंपनी होंडा की कंपनी में 27 प्रतिशत हिस्सेदारी भी खरीद ली।
Monday, December 12, 2011
मिलावट
दूध में पानी मिलाने की बात अब काफी पुरानी हो चुकी है। अब जेहन में यही सवाल बार-बार आता है कि आज की तारीख में बाजार में ऐसा क्या बिकता है, जो शुद्ध हो, जिसमें मिलावट न हो, जिसकी शुद्धता पर कोई सवाल न उठता हो। गौर करें तो शायद ही ऐसी कोई चीज हो जिसके बारे में हम यह दावे और बड़े इत्मीनान से कह सकें कि अमुक चीज में मिलावट नहीं है। दूध और घी में मिलावट की बात पुरानी हो चुकी है। अब तो मिनरल वाटर में भी मिलावट करना शुरू कर दिया गया है।
पर्व-त्यौहारों के करीब आते ही आप ऐसी खबरों से दो-चार होते हैं। त्यौहार शुरू होते ही मिलावटखोरों का बाजार गर्म हो जाता है। आप सुनते है कि मावा, खोया में अमुक जगह पर मिलावट हो रही थी, मिलावटी रैकेट पकड़ा गया, हजारों टन नकली पनीर बरामद हुआ। यह सब इतना बताने के लिए काफी है कि आप लाख अपनी सेहत के मामले में ऐहतियात बरतें, मिलावटखोरों को इसकी चिंता नहीं। उन्हें अपने मुनाफे की चिंता है आपके सेहत की नहीं। अगर आपका सेहत उनके लिए मायने रखता तो मिलावट जैसा अपराध हरगिज नहीं होती। मिलावट भी ऐसा कि उसे सुनकर सहज ही यकीन करना मुश्किल होता है।
बाजारों में मिलने वाले खाद्य पदार्थों में हल्दी में रंग, काली मिर्च में पपीते का बीज, लाल मिर्च में ईंट का चूर्ण, दाल-चावल में कंकड़, सरसों के तेल में केमिकल, घी में पशुओं की चर्बी तक मिलावटखोर मिला देते हैं। दूध को आयुर्वेद में संपूर्ण आहार कहा गया है और उसमें भी खूब मिलावट हो रही है। दूध में कॉस्टिक सोडा, डिटरजेंट, यूरिया, साबुन, चर्बी और तेल के साथ एसेंस मिलाकर सिंथेटिक दूध तैयार किया जाता है। सरसों के तेल में आर्जीमोन और बिनौले के बीज की मिलावट की जाती है। देशी घी में चर्बी मिलाने की बातें सामने आती हैं।
मिलावट का सेहत पर मंडराता खतरा
जानकारों के मुताबिक, मिलावट के इस्तेमाल से हमारा खाना इतना खतरनाक हो चुका है कि लोगों को इससे कैंसर और जेनेटिक डिसऑर्डर का खतरा तेजी से बढ़ रहा है। ये बीमारियां जंक फूड और रोज के खाने-पीने की चीजों में हो रही मिलावट की वजह से हो रही है।
फसल बढ़ाने के लिए और उसे खाने के लिए लंबे समय तक सुरक्षित रखने के लिए पेस्टीसाइड का इस्तेमाल भी तेजी से बढ़ा है। फल और सब्जियों में भारी मात्रा में डीजीटी मिलाया जा रहा है, जो पुरुषों में स्पर्म काउंट्स को कम कर रहा है। इसके साथ ही महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर के खतरे को भी बढ़ा रहा है। सब्जी को हरा रंग देने के लिए प्रयोग किए जाने वाला मेलेकाइट ग्रीन लीवर, आंत, किडनी सहित पूरे पाचन तंत्र को नुकसान पहुंचाता है। मेलेकाइट ग्रीन का अधिक सेवन पुरुषों में नपुंसकता और औरतों में बांझपन का भी कारण बन सकता है। यह कैंसर की वजह भी बन सकता है।
मिलावट की जांच के कुछ तरीके
दूध में ज्यादातर पानी, यूरिया, सर्फ, स्टार्च आदि चीजों की मिलावट की जाती है। इसमें मिलावट की जांच के लिए लैक्टोमीटर इस्तेमाल किया जा सकता है। अगर लैक्टोमीटर 30 यूनिट से ज्यादा डूब जाता है, तो इसका मतलब दूध में पानी या पाउडर मिला हुआ है।
यूरिया का पता लगाने के लिए टेस्ट ट्यूब में 5 मिली दूध लें और उसमें ब्रोमोथाइमोल ब्लू का घोल डालें। 10 मिनट बाद, अगर उसमें नीला रंग दिखाई देता है, तो इसका मतलब दूध में यूरिया मिला हुआ है। इसके अलावा, आप दूध में आयोडीन सल्यूशन की कुछ बूंदे डालें। अगर दूध का रंग नीला हो जाता है, तो समझ जाइए उसमें मिलावट की गई है।
आइसक्रीम में वॉशिंग पाउडर और सैकरीन की मिलावट की जाती है। इसकी जांच के लिए आइसक्रीम में थोड़ा-सा नींबू का रस मिलाएं। वॉशिंग पाउडर होने की स्थिति में इसमें झाग बनने लगेगा। अगर सैकरीन की मिलावट की गई है तो आइसक्रीम का टेस्ट शुरू में बहुत मीठा लगता है, लेकिन बाद में काफी कड़वा स्वाद महसूस होता है।
चीनी में चॉक पाउडर की मिलावट की जाती है। इसकी जांच करने के लिए एक गिलास पानी में 10 ग्राम चीनी मिलाएं। उसे 2 मिनट तक बिना हिलाए रख दें। अगर तली में कुछ सफेद पदार्थ आता है तो वह चॉक पाउडर है।
शहद में पानी और चीनी के घोल की मिलावट की जाती है। इसकी जांच के लिए रुई को शहद में भिगो लें और आग लगा दें। यह पूरी तरह जल जाए, तो शहद शुद्ध है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो मिलावट की गई है। चीनी के घोल की मिलावट होने पर यह जलते हुए कड़-कड़ की आवाज करेगा। दूसरा तरीका है कि शहद की कूछ बूंदों को एक पानी भरे ग्लास में गिराएं। अगर शहद की बूंदें बिना इधर-उधर बिखरे सीधे तलछट में जाकर बैठ जाए तो इसका मतलब हुआ शहद बिल्कुल शुद्ध है।
कॉफी में भी चिकोरी की मिलावट की जाती है। इसकी जांच के लिए एक गिलास पानी लें। उसके ऊपर कॉफी के सैंपल को थोड़ा सा छिड़कें। शुद्ध कॉफी पानी के ऊपर तैरती रहेगी, लेकिन चिकोरी कुछ ही सेकंड में पानी में डूबने लगेगी। जब आप सतह को थोड़ा तिरछा करेंगे, तो वह कैरेमल की वजह से रंग भी छोड़ेगी।
चाय पत्ती में रंग वाली पत्तियां और इस्तेमाल की गई चाय पत्ती मिलाई जाती है। इसकी जांच के लिए रंग वाली चाय पत्ती को अगर आप सफेद कागज पर रगड़ेंगे, तो यह रंग छोड़े। वहीं गीले फिल्टर पेपर पर मिलावटी चाय पत्ती छिड़कने पर वह गुलाबी लाल रंग का दाग छोड़ेगी।
लाल मिर्च में ईँट के बुरादे की मिलावट की जाती है। इसकी जांच के लिए 2 ग्राम लाल मिर्च को टेस्ट ट्यूब में डालें और उसमें 5 मिली एसीटोन मिलाएं, अगर तुरंत लाल रंग दिखाई दे, तो इसका मतलब इसमें ईंट का बुरादा मिलाया गया है। पानी में मिलाने पर ईंट का बुरादा नीचे बैठ जाएगा।
कई रोगों में गुणकारी हल्दी में पीले रंग की मिलावट की जाती है। इसकी जांच करनी होत तो पानी में मिलाई हुई हल्दी का थोड़ा-सा हिस्सा अलग कर लें। उसमें हाइड्रोक्लोरिक एसिड की कुछ बूंदें मिलाएं। अगर तुरंत उसका रंग बैंगनी हो जाए, तो इसका मतलब रंग मिलाया गया है।
काली मिर्च में पपीते के बीज मिलाए जाने की बात सभी जानते हैं लेकिन इसकी जांच करनी हो तो काली मिर्च के कुछ दाने अल्कोहल में मिलाएं। काली मिर्च नीचे बैठ जाएगी, पपीते के बीज और हल्की काली मिर्च उसके ऊपर आ जाएंगी।
हींग में सोप स्टोन और मिट्टी की मिलावट की जाती है। इसे जांचना हो तो इसमें भी पानी में मिलाएं और थोड़ी देर के लिए छोड़ दें। सोप और मिट्टी नीचे तल में बैठ जाएंगी। नमक में वाइट पाउडर स्टोन या शैलक्री की मिलावट की जाती है।
इसकी जांच करनी हो तो पानी में एक चम्मच नमक मिलाएं। नमक से पानी का रंग सफेद नहीं होता. मिलावट होने पर पानी का रंग सफेद होगा। बाकी मिलावट नीचे सतह पर रह जाएगी।
आलू, शकरकंदी की जांच करने के लिए घी में कुछ बूंदे आयोडीन की डालें। जब भूरा आयोडीन अपना रंग बदलकर नीला हो जाए, तो यह घी में मिलावट का संकेत है।
मिलावट पर सजा का प्रावधान
इस कानून के तहत दोषी को कम-से-कम छह महीने की कैद और 1,000 रुपये का जुर्माना हो सकता है। अगर किसी चीज के खाने से किसी की मृत्यु हो जाती है, तो कम-से-कम तीन साल की कैद से लेकर उम्रकैद तक की सजा भी हो सकती है। साथ ही 5,000 रुपये या उससे ज्यादा जुर्माना भी हो सकता है।
मिलावट रोकना तो हमारे हाथ में नहीं है लेकिन कुछ एहतियात ऐसे है जिसका सहारा लेकर मिलावटी पदार्थ को जांच-परख कर उससे बचा जा सकता है, सजग रहा जा सकता है। अपनी सेहत की हिफाजत करनी है तो कुछ न कुछ करना तो होगा ही। हम थोड़ी कोशिश कर मिलावट की जांच कर सकते हैं और मिलावटी पदार्थ से बचने की सजगता भी बरत सकते हैं। पश्चिमी देशों में मिलावट पर बने कानून काफी सख्त हैं, लेकिन हमारे देश में लचर कानून मिलावट के दलालों को बच निकलने का मौका देता है।
Sunday, December 11, 2011
ढाई घंटे में कमाती हूं ढाई लाख
आंखों में सपने पाले एक स्कूली बच्चे के लिए मोटिवेशनल ट्रेनर दिलचस्प करियर साउंड करता है। इसमें करियर बनाने के लिए क्या करना होगा? आपकी अंग्रेजी बहुत अच्छी होनी चाहिए। स्पीकिंग एक्सेंट न्यूट्रल होना चाहिए। ऐसे शब्द इस्तेमाल करें जो सीधे असर करें। नॉलेज बहुत जरूरी है। इसके लिए फिलॉस्फी से लेकर ल्रिटेचर तक हर तरह की किताबें पढ़नी चाहिए। करेंट अफेयर्स से भी खुद को अपडेट रखना चाहिए। कई बार बेमतलब के सवाल भी किए जाते हैं। उनका जवाब देने के लिए नॉलेज और कॉन्फिडेंस होना बहुत जरूरी है।
ये सारी खूबियां तो एक प्रफेसर या थिंकर में भी हो सकती हैं? हां, लेकिन दूसरों को मोटिवेट करने के लिए उसे खुद भी मोटिवेटेड होना चाहिए। ‘मैं नहीं कर सका तो आप करें’ वाला एटीट्यूड नहीं चलेगा। एक मोटिवेटर को अपने फील्ड में सफल होना चाहिए। नंबर वन से कम तो कुछ नहीं चलेगा। इसके अलावा, लोगों से प्यार करने वाला हो, उसे दोस्त बनाने का शौक हो, चुप न बैठता हो।
ये तो गुण हो गए। प्रफेशनल लाइफ में कैसे एंट्री हो? ये गुण अनिवार्य समझिए। उसके बाद प्रफेशनल लेवल पर शुरू कर सकते हैं। शुरुआत छोटे लेवल से ही होती है। कॉलेज और क्लबों में अकसर मोटिवेशनल स्पीकर को बुलाते रहते हैं। ऐसी जगहों से अनुभव कमाएं, फिर बड़े लेवल पर खुद को लॉन्च करें।
आप कितना चार्ज करती हैं? दो-ढाई घंटों के लिए ढाई लाख रुपए।
10-15 साल पहले मोटिवेशनल स्पीकर नाम की चीज नहीं थी। इस बीच ऐसा क्या हुआ कि जिन लोगों ने इसे करियर बनाया, वे एक दिन में ही लाखों कमाने लगे? स्ट्रेस हो गया है लोगों की लाइफ में। काम करने के घंटे बढ़ गए हैं। पैसे कमाने की होड़ लगी है। हमने टेक्नीक को इतना बड़ा बना दिया है कि लोग जिंदादिली भूल गए हैं। मैं जब ट्रेनिंग शुरू करती हूं तो लोगों के मोबाइल अलग रखवा लेती हूं।
सुना है आप ट्रेनिंग के असामान्य तरीके अपनाती हैं? मैं लोगों को आग और कांच पर चलवाती हूं। पहले वे मानने को तैयार नहीं होते कि वे ऐसा कर पाएंगे। लेकिन जब ऐसा कर लेते हैं, तो उनका खुद में विश्वास जगता है। एक पॉजिटिव एनर्जी मिलती है। नेगेटिविटी सिर्फ एक नजरिया है। कांच पर आराम से चलने के बाद लोगों को लगता है कि उस पार भी कुछ है।
स्टील रॉड मोड़ने को भी कहती हैं? हाहाहा। जी। वह भी गले से। यकीन मानिए ऐसा करके लोग बिल्कुल अलग महसूस करते हैं।
एक मोटिवेशनल स्पीकर के लिए कहां-कहां मौके हैं? आजकल हर कंपनी में ऐसी ट्रेनिंग कराई जाती है। बल्कि इसके लिए अलग से बजट रखा जाता है। कॉरपोरेट्स के अलावा सरकारी विभागों और कॉलेजों में भी इसकी जरूरत रहती है। पैसा भी अच्छा है। आपने कुछ बॉलीवुड हस्तियों को भी ट्रेन किया है? कई को किया है। पर सबके नाम नहीं बता सकती। उनके साथ एक कॉन्फिडेंशियल कॉन्ट्रैक्ट साइन करना पड़ता है। ज्यादातर को यह सिखाया कि असफलता के दौर से कैसे बाहर निकला जाता है।
ट्रेनिंग के वक्त एप्रोच क्या हो? सबसे पहला मकसद लोगों को इंगेज करना होता है। फिर लोगों को समझौता न करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। समझौता करना सबसे खतरनाक क्रिया है। मैं कभी ब्रूस ली जैसे घिसे-पिटे उदाहरण नहीं देती। किताब पढ़कर दूसरों के उदाहरण देने से अच्छा है कि आप अपनी लाइफ के उदाहरण दें।
आपकी तीसरी किताब आई है। आप भाषा में परफेक्शन की बात करती हैं। तो आप बेहतर ट्रेनर हैं, स्पीकर हैं या लेखक हैं? बेहतर लेखक हूं। यह मेरी लाइफ का वह पहलू है जिसे मैंने डिस्कवर किया।
तो फुल प्लेज राइटर क्यों नहीं बन जातीं? राइटर को पैसे नहीं मिलते ना। आप यह किताब खरीदेंगे तो मुझे सिर्फ 19 रुपए मिलेंगे। इससे अच्छा आप मुझसे 19 रुपए ले लो और किताब पढ़ो।
छत्तीसगढ़ के छोटे से किसान का गौरवशाली बेटा
छत्तीसगढ़ में स्थित उनके गांव कुरुद की उस समय आबादी दो-तीन हजार की रही होगी। 1989 में 20 साल की उम्र में उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए जब उन्होंने गांव छोड़ा, तब उसकी आबादी दस हजार थी। मूल रूप से हिंदी भाषी केला ने 11 साल की उम्र से अंग्रेजी सीखना शुरू किया। 1987 में उन्होंने बी.कॉम किया और मुंबई पहुंचे। तब उन्हें कुछ पता नहीं था कि फाइनेंस और इन्वेस्टमेंट क्या होता है?
हिंदी मीडियम से पढ़ाई करने वाले केला ने ऊंची ख्वाहिश के साथ मैनेजमेंट स्कूल में प्रवेश के लिए आवेदन दिया। अंग्रेजी कमजोर होने के कारण उन्हें ग्रुप डिस्कशन और इंटरव्यू वगैरह में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, लेकिन आखिरकार वे‘सोमैया इंस्टिट्यूट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज’ की एडमिशन कमेटी को यह समझाने में कामयाब हो गए कि वे इंस्टिटच्यूट के एकेडमिक स्टैंडर्ड को मेंटेन करने की योग्यता रखते हैं। 1991 में ‘मास्टर ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज’ डिग्री पूरी की। उसके बाद वे सिफ्को से जुड़े, जहां दो साल इक्विटी पर शोध किया। 1994 में ‘मोतीलाल ओसवाल’ से जुड़े। यहां दो साल काम करने के बाद, 1996 में स्विस इन्वेस्टमेंट बैंक ‘यूबीएस’ ज्वाइन किया, जहां डीलिंग टीम में शामिल रहे।
वे ऐसे क्षेत्र में जाना चाहते थे, जहां कोई सीमा नहीं हो। इसके लिए उन्हें स्टॉक मार्केट उपयुक्त लगा। अपने दृढ़ संकल्प, धैर्य एवं बाजार में कुछ अर्थपूर्ण करने के जुनून के साथ, वे रिलायंस कंपनी के इक्विटी हेड बनने में कामयाब हुए। 2001 में उन्हें रिलायंस में मनपसंद काम का मौका मिला और अपने कार्यकाल में उन्होंने रिलायंस म्यूच्युअल फंड के इक्विटी संग्रह को बारह करोड़ से 2011 में करीब एक लाख करोड़ पर पहुंचाकर अपना चमत्कारिक कौशल दिखा दिया। हाल ही में लंदन में, जहां के लिए वे अपरिचित ही हैं, उन्हें भारत का 75वां प्रभावशाली व्यक्ति चुना गया।