Thursday, January 30, 2014

दूध उत्पादन

प्रस्तुति - दैनिक भास्कर
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छत्तीसगढ़ में महासमुंद जिला दूध के उत्पादन के लिए जाना जाता है। अब नई राजधानी का कोटराभाठा गांव इस क्षेत्र में तेजी से अपनी पहचान बना रहा है। रायपुर से 25 किमी दूर इस गांव में डेढ़ सौ घर हैं और हर घर में 25 से 100 गाय और भैंस हैं। यहां रोजाना 10 से 12 हजार लीटर दूध का उत्पादन हो रहा है। रुपए में बात करें तो हर माह डेढ़ करोड़ और सालाना 17 से 18 करोड़ का कारोबार हो रहा है। बढ़ती उत्पादन क्षमता को देखते हुए  नया रायपुर विकास प्राधिकरण (एनआरडीए) ने कोटराभाठा को डेयरी हब बनाने का निर्णय लिया है।
इस गांव का हर घर बना दूध की फैक्ट्री, हर महीने हो रही डेढ़ करोड़ की कमाई
इस गुमनाम से गांव कोटराभाठा की जानकारी तब मिली जब नया रायपुर क्षेत्र में इसे शामिल किया गया। रायपुर में देवभोग और अमूल सहित कई ब्रांड के दूध की बिक्री होती है। लेकिन अत्यधिक मात्रा में कोटराभाठा से दूध की सप्लाई हो रही है। भास्कर की टीम ने जब इस गांव का दौरा किया तो पता चला कि रायपुर के लगभग 45 फीसदी मिठाई दुकानों के साथ ही कई बड़ी कॉलोनियों व मोहल्लों में यहीं से दूध जाता है। गांव के भारत यदु का कहना है कि तेलीबांधा क्षेत्र के 200 घरों में प्रतिदिन वे दूध देते हैं। इसी तरह धनेश्वर यादव ने बताया कि रायपुर के 15 होटल और मिठाई दुकानों में उनके दूध की सप्लाई होती है।
50 एकड़ में बनेगा गोकुल धाम 
कोटराभाठा गांव में दूध के उत्पादन को देखते हुए एनआरडीए यहां डेयरी हब बनाने जा रहा है। पहले चरण में 50 एकड़ भूमि में गोकुल धाम बनाया जाएगा। यहां पशुओं के लिए चारागाह के साथ ही तमाम तरह की आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर को डेवलप किया जाएगा। ग्रामीणों को दूध की खपत के साथ ही उचित मूल्य मिले, इसके लिए दूध को डेयरी में ही ले लिया जाएगा। यानी ग्रामीणों को दूर शहर जाने की जरूरत नहीं होगी। इसके अलावा मवेशियों का चारा समेत अन्य सुविधाएं भी गांव में ही उपलब्ध कराई जाएगी।

इस गांव का हर घर बना दूध की फैक्ट्री, हर महीने हो रही डेढ़ करोड़ की कमाई

नया रायपुर बनने के बाद उत्पादन बढ़ा
कोटराभाठा गांव के लोग अपनी परंपरा के अनुसार दुधारू पशु पालते रहे हैं। लेकिन वर्ष 2006 में नया रायपुर बनने के बाद उनकी जमीन का अधिग्रहण हुआ और इसके बाद मिले मुआवजा ने लोगों के जीवन स्तर को बदल दिया। पूंजी बढऩे के बाद ग्रामीणों ने पशुओं की संख्या बढ़ा ली। ऐसे में अब ग्रामीणों का मुख्य पेशा दुग्ध उत्पादन ही हो गया है।
उन्होंने दूसरे गांवों में जमीनें भी खरीद लीं, जहां वे धान की खेती कर रहे हैं और उसका पैरा गाय-भैंसों के चारे के रूप में काम आ रहा है।

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