प्रस्तुति - दैनिक भास्कर
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खंडवा. आर्थिक समस्या से मजबूर होकर मात्र 13 साल की उम्र में मजदूरी से करियर की शुरुआत की। शुरुआती दौर में लक्कड़ बाजार में एक फर्नीचर व्यापारी के यहां मात्र 25 पैसे प्रतिदिन पर मजदूर कर रंदा चलाया। दिन-रात कड़ी मेहनत की। यह सिलसिला 15 साल तक चला।
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खंडवा. आर्थिक समस्या से मजबूर होकर मात्र 13 साल की उम्र में मजदूरी से करियर की शुरुआत की। शुरुआती दौर में लक्कड़ बाजार में एक फर्नीचर व्यापारी के यहां मात्र 25 पैसे प्रतिदिन पर मजदूर कर रंदा चलाया। दिन-रात कड़ी मेहनत की। यह सिलसिला 15 साल तक चला।
मन में आगे बढ़ने की दृढ़ इच्छाशक्ति के कारण थोड़ी बहुत बचत की। इससे छोटे-मोटे ठेके लिए और 28 साल की आयु तक पहुंचने पर लक्कड़ बाजार में छोटी सी दुकान खोल ली। फिर कभी पीछे पलटकर नहीं देखा। यह कहना है शहर के प्रतिष्ठित फर्नीचर व्यवसायी कंछेदीलाल विश्वकर्मा का।
आज वह मजदूरों के लिए आदर्श बन गए। कड़ी मेहनत और दृढ़ इच्छाशक्ति के दम पर उन्होंने लाल चौकी क्षेत्र में फर्नीचर का बड़ा शोरूम खोला है, जिसे बेटे अनिल विश्वकर्मा संचालित कर रहे हैं। उम्र 74 साल हो गई, लेकिन कारखाने में काम करने वाले मजदूरों को आज भी वे मार्गदर्शन दे रहे हैं।
दो बेटे कर रहे ठेकेदारी एक संभाल रहा शोरूम
श्री विश्वकर्मा की कड़ी मेहनत के कारण ही आज उनके बेटे प्रवीण कुमार और अशोक कुमार सरकारी विभागों के साथ ही बिल्डिंग निर्माण के ठेके ले रहे हैं। वहीं छोटे बेटे अनिल विश्वकर्मा लालचौकी क्षेत्र में शहर का भव्य फर्नीचर शोरूम संचालित कर रहे हैं।
बच्चों को छोड़कर दिन-रात किया काम
वे बताते हैं कि उन्होंने एक व्यापारी के यहां 25 पैसे रोज पर मजदूरी से रंदा चलाया। युवा होने पर कारीगर बन गया फिर भी मजदूरी 3 रुपए रोज ही मिलती थी। 1953 से 1968 तक मजदूरी की। थोड़ी बहुत बचत करने के साथ ही परिचितों के सहयोग से 1969 में बिल्डिंग के फर्नीचर संबंधी काम के छोटे ठेके लेना शुरू किए। एक साल बाद छोटी सी दुकान शुरू की। छोटे-छोटे बच्चों को छोड़कर दिन-रात काम में लगा रहा। बच्चे बढ़े हुए तो उन्होंने भी काम में सहयोग किया।
फोटो- कारखाने में कारीगरों को डिजाइन बनाने के लिए समझाइश देते कंछेदीलाल विश्वकर्मा।
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