Sunday, November 9, 2008

'वरदान शिशु गृह' - राकेश-मंजू


प्रस्तुति : जागरण लखनऊ


राकेश रंजन दुबे और डा। मंजू खुद न बताएं, तो कोई कल्पना नहीं कर सकता कि उनकी गोद में इठलाती दो साल की दुर्गा व एक महीने की दीपा किसी दूसरे चमन की कलियां हैं। जिस दौर में दुर्गा व दीपा जैसे बच्चों के कूड़ेदान में फेंके जाने की घटनाएं सुर्खी बनती हों, राकेश-मंजू के तंग आंगन में मासूमों की किलकारियों में किसी शायर की इन लाइनों की ध्वनि फूटती है-
'आदम को खुदा मत कहो, आदम खुदा नहीं, लेकिन खुदा के नूर से, आदम जुदा नहीं'
तीन सालों से इंदिरानगर में किराए के दो कमरों के मकान में लावारिस बच्चों का एडाप्शन सेंटर 'वरदान शिशु गृह' चला रहे राकेश-मंजू का यह जज्बा उनके निजी हालात की वजह से भी वंदनीय है। इस उच्च शिक्षित दंपति की आय का कोई ठोस साधन नहीं, इसके बावजूद वे सेंटर चलाने के लिए किसी सरकारी या गैर-सरकारी एजेंसी से मदद नहीं लेते। राकेश कहते हैं, बच्चे जितने दिन घर में रहते हैं, 'हम इन्हें अपनी संतान मानते हैं। कभी कूड़ादान, तो कभी नाले किनारे मिले लावारिस बच्चे हमें सौंपे जाते हैं, तो हालत देखकर हमारे आंसू बहते हैं, लेकिन जब उनकी हालत बेहतर होती है, तो उनकी मुस्कराहट से मिलने वाला आनंद अमूल्य है।' सेंटर में अब तक तेरह बच्चे आ चुके हैं। दुर्गा और दीपा के अलावा दस बच्चों को यह नि:संतान दंपति गोद ले चुकाहै, जबकि एक नवजात बच्चा इलाज के बावजूद बचाया नहीं जा सका।
मेकेनिकल इंजीनियरिंग व बिजनेस मैनेजमेंट डिग्रीधारी राकेश रंजन फोटोग्राफर, आर्टिस्ट, शौकिया गायक व संवेदनशील नागरिक हैं, लिहाजा सिवान [बिहार] से शुरू पीसीएस अधिकारी के इस यायावर पुत्र की जीवन यात्रा कई पड़ावों से गुजरती अंतत:1989 में लखनऊ आकर स्थिर हुई, जब नौकरियां ढोने का इरादा हमेशा के लिए छोड़कर वह पार्को के सौंदर्यीकरण, वृक्षारोपण व पशुसेवा को समर्पित हो गए। पीएच डी मंजू इस अभियान में भी राकेश की सहधर्मिणी साबित हुई। परिवार के योग-क्षेम आज भी एकैडमिक प्रकृति की सरकारी परियोजनाओं में मंजू के योगदान के बदले होने वाली आय से ही पूरे होते हैं। राकेश फोटो प्रदर्शनियों व अन्य माध्यमों से होने वाली थोड़ी-बहुत आय 'वरदान' के संचालन व अपने अन्य शौक पूरे करने में खर्च करते हैं।
इकलौता बेटा पढ़-लिखकर प्रतिष्ठित कंपनी में साफ्टवेयर इंजीनियर बन गया, तो राकेश-मंजू के मन में जिम्मेदारी के बोझ तले दबा जज्बा पूरी तरह तनकर खड़ा हो गया, और 2004 में उन्होंने 'वरदान शिशु गृह' चलाने का लाइसेंस लिया। अगले वर्ष दो सितंबर की रात डेढ़ बजे पुलिसकर्मी राजाजीपुरम के एक नाले के किनारे पड़ी मिली नवजात बच्ची उन्हें सौंपने पहुंचे, तो राकेश-मंजू की जिंदगी का भी नया अध्याय शुरू हुआ। एक खुशहाल परिवार द्वारा गोद लिए जाने से पहले दो महीने मिली उनके घर रही। जिस शाम गई, खाना नहीं बना, लेकिन फिर खुशबू आ गई। इसके बाद रानी, शिवा, एकलव्य, रेनू, वासु, राखी, अंश, अंकुर, अंचिका और फिर दुर्गा-दीपा।
दुर्गा कुछ महीने की थी, जब मथुरा में पुलिस ने उसे ऐसे पाखंडियों के चंगुल से मुक्त कराया, जो उसकी बलि चढ़ाने जा रहे थे। बदमाशों के भाग जाने के कारण दुर्गा के बारे में और कुछ तो पता नहीं चल सका, लेकिन कुछ दिन बाद उसे फिर मथुरा के संरक्षण गृह से उठा ले जाने की कोशिश हुई, तो प्रशासन ने उसे लखनऊ भिजवा दिया। दुर्गा के साथ त्रासदी यह है कि वह ठीक से बोलना नहीं सीख पाई। शायद इसी वजह से किसी ने उसे अब तक गोद नहीं लिया। अब उसका इलाज चल रहा है।
अगस्त में लगातार बारिश के दौरान जब 'वरदान' का एक बच्चा बीमार पड़ा, तो उसे अस्पताल ले जाने की जद्दोजहद में राकेश को अपनी साधनहीनता बहुत खली। तब पति-पत्‍‌नी ने फैसला लिया कि वे अपना पुराना भूखंड बेचकर 'वरदान' को ऐसे शिशुगृह के रूप में विकसित करेंगे, जहां पारिवारिक माहौल के साथ अच्छे रहन-सहन व छोटे-मोटे इलाज की भी व्यवस्था हो। राकेश को उम्मीद है कि अगले जून तक यह सपना पूरा हो जाएगा। मियां-बीवी 'वरदान' के लिए कभी किसी के आगे झोली नहीं फैलाते। उन्हें अब बच्चों की किलकारियों में ही जिंदगी नजर आती है।

Saturday, November 8, 2008

'आतंकवाद को धर्म से न जोड़ा जाए'





सम्मेलन में छह हज़ार मुसलमान प्रतिनिधि हिस्सा ले रहे हैं
हैदराबाद में मुसलमानों के धार्मिक नेताओं के एक विशाल सम्मेलन में देश भर से आए छह हज़ार से अधिक इस्लाम के विद्वान (उलेमा) हिस्सा ले रहे हैं.
इन धार्मिक नेताओं ने सरकार, मीडिया, राजनीनीतिक दलों और देश की जनता से अपील की है कि वह आतंकवाद की समस्या से मिल-जुलकर निबटे.
मुस्लिम धार्मिक नेताओं के राष्ट्रीय संगठन जमीयत-ए-उलेमा-ए-हिंद की ओर से आयोजित सम्मेलन में जमाते इस्लामी सहित कई अन्य संगठनों से जुड़े उलेमा भी शामिल हुए हैं.
जमीयत-ए-उलेमा-ए-हिंदी के प्रमुख नेता और राज्यसभा सांसद मौलाना महमूद मदनी ने सम्मेलन का उदघाटन करते हुए सांप्रदायिक हिंसा और आतंकवाद की बढ़ती घटनाओं पर चिंता प्रकट की.

मालेगाँव बम कांड के सिलसिले में हुई गिरफ़्तारी के संदर्भ में उन्होंने कहा, "आतंकवाद को न तो इस्लाम से जोड़ा जाना चाहिए और न ही हिंदू धर्म से. ये कुछ पागल लोगों का जुनून है और ऐसे लोगों से देश के हिंदुओं और मुसलमानों को मिलकर लड़ना होगा तभी हमारा देश तरक्की करेगा, यही हमारा मिशन है."
इस सम्मेलन में इस्लामी संस्था दारूलउलूम देवबंद के उस फ़तवे को भी मान्यता दी गई जिसमें आतंकवाद को 'इस्लाम विरोधी' क़रार दिया गया है.
मौलाना मदनी ने कहा, "पहले इस फ़तवे पर चार मुफ़्तियों के दस्तख़त थे, अब इसे सम्मेलन में पढ़कर सुनाया गया है और इस हस्ताक्षर अभियान शुरू हो गया है, इसका मक़सद हज़ारों इस्लाम के विद्वानों के माध्यम से यह संदेश देना है कि इस्लाम में आतंकवाद की कोई गुंजाइश नहीं है."
इस सम्मेलन में यह भी माँग की गई कि सांप्रदायिक हिंसा को रोकने के लिए क़ानून बनाने, पिछड़े मुसलमानों के लिए आरक्षण और राष्ट्रीय एकता के मुद्दे पर इस आयोजन में विस्तार से चर्चा की जाएगी.
रविवार को इस सम्मेलन को श्रीश्रीरविशंकर, स्वामी अग्निवेश और ईसाई नेता जोसेफ़ डिसूज़ा भी संबोधित करने वाले हैं।
मेरा विचार
१। ऐसे कई (हिंदु मुसलमान और ईसाई) सम्मेलनों की देश को आवश्कता है ।
२। भाषाई आतंकवाद को भी रोकने की आवश्कता है ।
३। भाषा का इस्तेमाल लोगों को जोड़ने के लिए होना चाहिए ना कि तोड़ने के लिए ।
४। राज्यों को संस्कृतिक केन्द्र बनाने चाहिए जिससे दूसरे राज्यों के लोग दूसरे राज्यों की संस्कृति और भाषा सीख सके ।

Friday, November 7, 2008

कुछ चुटकले

हेअर ऑइल
पत्नीः यह लीजिए हेअर ऑइल। इससे बाल मज़बूत होते हैं और झड़ते नहीं।
पतिः लेकिन मेरे बाल तो कभी नहीं झड़ते।
पत्नीः यह आपके लिए नहीं आपकी सेक्रिटरी के लिए है।

पहला पहला किस
लड़की बॉयफ्रेंड के साथ अपने ड्रॉइंग रूम में बैठी थी। घर में कोई नहीं था। शाम का वक्त था। रोमैंटिक म्यूज़िक बज रहा था। लड़का धीरे से आगे बढ़ा और लड़की को बाहों में भरकर किस कर लिया।
लड़की ने कुछ कहने के लिए बड़ी अदा से मुंह खोला ही था कि पिंजरे में बैठा तोता बोल पड़ा - सुनो डार्लिन्ग , तुम पहले आदमी हो जिसने मुझे किस किया है।

कुत्ता क्यों चाहिए
पतिः मुझे समझ में नहीं आता कि तुम कुत्ता ही क्यों खरीदना चाहती हो।
पत्नीः ताकि तुम्हारे ऑफिस जाने के बाद आगे-पीछे घूमने वाला कोई तो हो।

टॉफी खाओ चुप हो जाओ
एक गाड़ी चलाने वाले ने स्कूल जाते बच्चे के ऊपर कीचड़ फेंक दिया। बच्चा ज़ोर - ज़ोर से रोने लगा। ड्राइवर ने बाहर निकलकर अपनी जेब से एक चॉकलेट निकाला और बोला - बेटे यह ले लो और चुप हो जाओ। इतना कह कर वह चला गया। बच्चा चुप हो गया और उस आदमी की गाड़ी के पास गया। उसने एक पत्थर से गाड़ी का शीशा तोड़ डाला।
ड्राइवर गुस्से में चिल्लाने लगा तो बच्चे ने अपने जेब से एक चॉकलेट निकालकर उसके हाथ पर रखी और बोला - यह ले लो और चुप हो जाओ।

Wednesday, November 5, 2008

'भलस्वा की चिंगारी'

प्रेम में तल्लीन स्त्री के बहुत-से चेहरे हमने देखे हैं। संयम, शिथिलता और पराकाष्ठा के चेहरे..पर स्त्री का अस्तित्व महज प्रेम तक तो सीमित नहीं! समस्याओं के भस्मासुर से भी स्त्रियां लड़ रही हैं और हां, जीत भी हासिल कर रही हैं।
भलस्वा में ऐसी ही 11 महिलाओं ने एक मंच का गठन किया है। इनका किसी संगठन या सियासी पार्टी से कोई लेना-देना नहीं है। बैठने के लिए न दफ्तर है, न अधिकारियों के सामने बात रखने को किसी 'बड़े आदमी' का सहारा। घर ही उनका दफ्तर है और आत्मविश्वास सबसे बड़ा संबल। इसी सहारे से वे क्षेत्र की समस्याओं के समाधान के लिए संघर्ष कर रही हैं। दावा है कि उन्होंने बिजली की दरें कम कराने से लेकर भलस्वा पुनर्वासित कॉलोनी में हकदारों को जमीन कब्जा दिलाने तक की मुहिम छेड़ी है। यही वजह है कि एमसीडी अधिकारी और पुलिसकर्मी इन महिलाओं को 'भलस्वा की चिंगारी' कहने लगे हैं। समस्या से जूझने का जज्बा उनमें इस कदर है कि कुछ ने तो मंच बनाने के बाद पढ़ना-लिखना भी सीखा। बिजली-पानी की समस्या हो, साफ-सफाई या फिर राशन की, हर दिक्कत के हल के लिए नई मुहिम शुरू की जाती है। इन दिनों ये महिलाएं राशन की धाधली करने वालों से मुकाबले के लिए अभियान चला रही हैं।
मंच से जुड़ी भलस्वा पुनर्वासित कॉलोनी निवासी शकुंतला ने बताया कि इलाके में दूषित पानी की आपूर्ति, बिजली कटौती, राशन में धांधली जैसी दिक्कतें झेलनी पड़ रही हैं। घर के सभी पुरुष दिन में काम पर चले जाते हैं, इसलिए अधिकारियों तक शिकायत पहुंचाने वाला कोई भी नहीं रहता। ऐसे में हमने 'भलस्वा लोकशक्ति मंच' बनाया। उन्होंने बताया कि तीन वर्ष पहले एमसीडी के अधिकारी कॉलोनी में खाली पड़े प्लाट का सर्वे कर रहे थे। मंच की महिलाओं ने विरोध किया। इसके बाद पूरी दिल्ली की पुनर्वासित कॉलोनियों में होने वाला यह सर्वे बंद हुआ। तब से टाउन हॉल के अधिकारी इन महिलाओं को 'भलस्वा की चिंगारी' कहने लगे हैं।
मंच संचालन पुष्पा करती हैं। उन्होंने बताया कि अधिकारियों के पास समस्या लेकर जाने पर वे उन्हें अनपढ़ समझकर दुत्कार देते थे, इसलिए हर सदस्य को बातचीत करने का प्रशिक्षण दिया गया है। अब अधिकारी जानते हैं कि ये महिलाएं सब कुछ जानती हैं, तो वे हमारी बात गंभीरता से सुनने लगे हैं।

Tuesday, November 4, 2008

ओबामा पहले अश्वेत अमरीकी राष्ट्रपति होंगे


अमरीका के राष्ट्रपति चुनावों में रिपब्लिकन जॉन मक्कैन ने हार मान ली है और इस तरह डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार बराक ओबामा अमरीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति होंगे.
अमरीकी राष्ट्रपति चुनने के लिए 538 इलेक्टॉरल कॉलेज मतों में से 270 की आवश्यकता होती है. चुनावों के ताज़ा रुझानों के मुताबिक ओबामा को इससे ज़्यादा मत मिलेंगे. इस बारे में आधिकारिक घोषणा में कुछ समय लगेगा.
रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार जॉन मैक्केन ने रुझानों के आधार पर ही अपनी हार स्वीकार कर ली और इसे 'अमरीका के इतिहास में अश्वेत अमरीकियों के लिए इसे एक महत्वपूर्ण क्षण बताया.'
उनका कहना था, "मैं सीनेटर ओबामा का प्रशंसक हूँ. मैं आप से अपील करता हूँ कि अगले चार साल आप उन्हें सहयोग दें. लाखों अफ़्रीकी अमरीकियों के लिए एक नया दौर शुरु हुआ है. अमरीका दुनिया का सबसे महान देश है. ओबामा ने ये साबित कर दिया है कि अमरीका सभी लोगों को अपने सपने साकार करने का बराबर का अवसर प्रदान करता है."

Sunday, November 2, 2008

बांग्लादेश: रिक्शा चालक बना पॉप स्टार



प्रस्तुति : बीबीसी
बांग्लादेश में एक रिक्शा चालक टेलीविज़न शो 'पॉप आइडल' में जीत हासिल कर देश के नए पॉप स्टार बन गए हैं.
उमर अली नामक इस शख़्स का संबंध राजधानी ढाका से सटे एक गाँव से हैं और वो रिक्शा चलाते हैं.
सुनहरी आवाज़ के मालिक उमर अली को लाखों दर्शकों ने टेलीविज़न शो 'पॉप आइडल' जीतने के लिए उनके पक्ष में वोट दिया. जिसके साथ ही वो रातों रात कामयाबी की बुलंदी पर पहुंच गए.

उमर अली
इस टेलीविज़न शो 'पॉप आइडल' में सिर्फ़ रिक्शा चालक ही हिस्सा ले सकते थे.
इस कामयाबी से अभिभूत उमर अब रिक्शा चलाने का काम छोड़ कर संगीत की दुनिया में आगे बढ़ना चाहते हैं.
उमर का आख़िरी प्रदर्शन काफ़ी प्रभावशाली रहा. बांगला लोक गीत में उनका गाना 'प्यार डूबता नहीं' को दर्शकों ने काफ़ी दाद दी. दाद देने वालो में अग्रणी पॉप स्टार भी शामिल थे.
पॉप आइडल नामक ये शो बांग्लादेश में काफ़ी हिट रहा और इसे एटीएन बांगला टेलीविज़न ने प्रसारित किया.
उमर को इनाम के तौर पर 2000 अमरीकी डॉलर दिया गया है. साथ ही उनके गानों की सीडी और डीवीडी भी रिलीज़ की गई है.
संगीत से प्यार पुराना
इस टेलीविज़न पॉप आइडल में सिर्फ़ रिक्शा चलाने वाले ही प्रतियोगी बन सकते थे.
अपनी जीत के बाद 45 वर्षीय उमर ने कहा, " मैं जीत गया ये बड़ी बात है, पैसा बड़ी चीज़ नहीं है. संगीत से मेरी भक्ति बहुत पुरानी है."
सभी अंतिम प्रतियोगियों को दुनिया के सभी बंगाली दर्शोकों के माध्यम से कुल मिलाकर एक करोड़ एसएमएस मिले. बाक़ी प्रतियोगियों को इनाम के तौर पर कम से कम 300 अमरीकी डॉलर दिया गया ताकि वो अपने लिए रिक्शा ख़रीद सकें.
ज़्यादतर रिक्शा चलाने वाले किराये पर रिक्शा लेकर चलते है.
अंतिम दस में आने वाले एक रिक्शा चालक का कहना था कि इनाम की राशि को छोटे व्यापार में लगाना चाहते हैं. उनका कहना था, " मैं पॉल्ट्री फॉर्म खोलना चाहता हूँ और इसकी आमदनी से अपनी छोटी बहन को स्कूल में पढ़ने भेजना चाहता हूँ."
तीसरे स्थान पर रहे अब्दुल रहमान खोकोन का कहना था कि वो अपनी इनाम की राशि को अपनी माँ को खोजने में लगाएंगे. उनकी माँ पिछले तीन बरस से लापता हैं.
वो कहते हैं, "मैं इस राशि से अपनी माँ को तलाशने के लिए अख़बार में विज्ञापन दे सकता हूँ. मैं उन्हें तलाशना चाहता हूँ, मैं ये जानना चाहता हूँ कि उनके साथ क्या हुआ."
प्रोग्राम के संचालन कर्त्ता असदुज़मान का कहना है कि बांग्लादेशी कड़ी मेहत से काम करते हैं और संगीत से भी प्यार करते हैं.