राजस्थान का इंजीनियर यहां उगा रहा बेबी-कॉर्न, सेवन स्टार होटलों तक में मांग
प्रस्तुति - दैनिक भास्कर, अभिषेक चौबे
रांची। नीतिश सिंह हैं तो राजस्थान के। लेकिन, कर्मभूमि चुना झारखंड स्थित गुमला का छोटा सा गांव हाफामुनी। घोर नक्सल प्रभावित क्षेत्र। मात्र 27 वर्षीय इस सॉफ्टवेयर इंजीनियर ने खेती जैसा मेहनतकश काम चुना और आज उनके उगाए बेबी कॉर्न (छोटी मकई) की मांग प्रमुख भारतीय शहरों से लेकर अरब देशों तक है। वहां के कई फाइव और सेवन स्टार होटलों की इतनी मांग है कि पूरा करना मुश्किल है।
नक्सलियों से बेखौफ उनकी मेहनत का प्रतिफल आज 40 से अधिक को रोजगार के रूप में मिल रहा है। वह भी सिर्फ दो साल में। पत्नी रितू ने भी नीतिश का भरपूर साथ दिया। जबकि, वह भी इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी में एमएससी हैं। नीतिश ने भूमि लीज पर ले रखी है। इसके अलावा पत्नी रितू की पैतृक भूमि का भी वह उपयोग कर रहे हैं। वह उत्पादन के साथ रखरखाव, पैकिंग और ट्रांसपोटेशन पर भी खासा ध्यान रखते हैं।
जड़ी-बूटी की भी पैदावार नितीश बेबी कॉर्न के अलावा चेरी, टमाटर, अजवाइन, लेमन ग्रास, स्टीविया वगैर शामिल हैं। इनके अलावा हाथों-हाथ बिकने वाली कुछ जड़ी-बूटियां इनके उत्पादन में शामिल हैं।
उनसे रोजगार पाने वाले नीतिश के एक इशारे पर किसी भी काम में लग जाते हैं। नीतिश खुद भी अधिकतर समय खेतों में ही नजर आते हैं। हालांकि, कुछ समय जरूरतमंदों को फसल और जड़ी-बूटीयों को बांटने में भी देते हैं।
कितनी खेती? फिलहाल वह 1२५ एकड़ में लेमन ग्रास, 65 एकड़ में बेबी कॉर्न, 2 एकड़ में चेरी, 5 एकड़ में अन्य चीजों का उत्पादन कर रहे हैं। हाल में उन्होंने तीन मीट्रिक टन बेबी कॉर्न का उत्पाद किया है। वह झारखंड में सबसे ज्यादा दो टन मशरूम हर महीने पैदा करते हैं। वह लगातार खेती की भूमि बढ़ाने के प्रयास में जुटे हैं।
आपूर्ति विदेश में ज्यादा क्यों? वैसे वह करीब 30-35 फीसदी बेबी कॉर्न दिल्ली, मुंबई आदि शहरों को भेजते हैं। लेकिन, अरब देशों से उत्पादन का बेहतर मूल्य मिलता है। इसलिए निर्यात पर ज्यादा फोकस है।
खेती ही क्यों चुना? नीतिश ने बीआईटी मेसरा से सॉफ्टवेयर इंजीनियर की डिग्री ली। इसके बाद नोएडा स्थित एक मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी की। इसके बाद राजस्थान योजना भवन में मैनेजर भी रहे।
हालांकि, मन नहीं लगता था। इसी दौरान सऊदी अरब जाने का मौका मिला। वहां हैंडीक्राफ्ट का काम करने का विचार बनाया। लेकिन, पैसे की कमी आड़े आ गई। इसी दौरान उन्हें कुछ कृषि उत्पादों का पता चला, जिनकी मांग खूब है लेकिन आपूर्ति बहुत कम। यही सोचकर खेती करने की सोची। जानकार व परिवार ने खासा विरोध भी किया। लेकिन, वह माने नहीं और जुट गए मेहनत में।
गुमला ही क्यों?
उनकी सोच का समर्थन सिर्फ पत्नी व उनके घर वालों ने किया। वह पहले से इस तरह के प्रयास में जुटी थीं। उनके पास पैतृक खेती भी थी। इसलिए पत्नी का गांव ही चुना।युवाओं को संदेश नीतिश कहते है कि सफलता ऐसे नहीं मिलती। हर सफलता के पीछे कड़ी मेहनत और और पक्की धुन होती है। जो सोच लिया, वह जरूर करना चाहिए। नहीं तो बाद में पछतावा होता है।
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