प्रस्तुति - दैनिक भास्कर
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मन में कुछ अलग करने का जज्बा हो तो पेशेवर डिग्री कोई मायने नहीं रखती। गांव सतीपुरा के आठवीं पास रेशम सिंह विरदी ने इस बात को फिर से साबित कर दिया है।
इस देशी वैज्ञानिक ने अपने हुनर के दम पर कबाड़ से ईंट बनाने की मशीन बनाई है। इस मशीन को बनाने में उसे साढ़े छह साल लगे। मशीन की खासियत यह है कि मिट्टी और पानी अपने आप ही मिलाती है और एक घंटे में पांच हजार ईंटें तैयार कर सकती है।
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मशीन को चलाने के लिए छह लोगों की जरूरत पड़ती है, जबकि पारंपरिक तरीके से इतनी ईंटें बनाने के लिए बड़ी संख्या में मजदूरों की जरूरत होती है। रेशमसिंह बताते हैं कि ईंट बनाने की मशीन को देखने के लिए काफी लोग आ रहे हैं। सबसे ज्यादा रुचि ईंट भट्ठा मालिकों की है क्योंकि ये लोग मजदूरों की कमी के चलते परेशान हैं। रेशमसिंह का कहना है कि इस मशीन को बनाने में उनके भतीजे सुखदीपसिंह का भी काफी सहयोग रहा है। अब उसने दूसरी मशीन बनानी शुरू कर दी है।
दोस्त की परेशानी से मिली प्रेरणा
कृषि यंत्र बनाने वाले विरदी हमेशा कुछ न कुछ नया करते रहते हैं पर ईंट बनाने की मशीन तैयार करने की प्रेरणा उन्हें अपने दोस्त प्रेम सिंह की परेशानी सुनकर मिली। प्रेमसिंह के दामाद भी ईंट भट्ठा चलाते हैं लेकिन कई वर्षों से मजदूरों की कमी को लेकर परेशान थे। प्रेम सिंह की परेशानी सुनकर रेशमसिंह के दिमाग में ईंट तैयार करने वाली मशीन बनाने का आईडिया आया।
वे कबाड़ से मशीन के पार्ट तैयार करते रहे। आखिरकार प्रयास रंग लाए पर इसमें साढ़े छह साल का समय लगा। अब मशीन तैयार है और रेशम सिंह इसका परीक्षण भी कर चुके हैं। उनका कहना है कि पहली मशीन बनाने में साढ़े छह साल लगे हैं पर अब ऐसी ही मशीन सिर्फ बीस दिन में तैयार कर सकते हैं।
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वर्ष 2009 में बनाई थी जिप्सम लोडर मशीन
इससे पहले भी रेशम सिंह विरदी ने सैंड एंड जिप्सम लोडर मशीन वर्ष 2009 में बनाई थी। 90 हजार रुपए की लागत से तैयार हुई इस मशीन ने रेशम सिंह को राष्ट्रपति से पुरस्कार दिलवाया था। इस मशीन का उपयोग ट्राली में मिट्टी भरने के लिए किया जाता है।
लोडर मशीन ट्राली में मिट्टी लोड करने के अलावा जमीन को समतल भी करती है जबकि साधारण जेसीबी से सिर्फ मिट्टी लोड ही की जा सकती है। इस नई सोच के चलते लोडर मशीन के लिए राष्ट्रपति प्रवण मुखर्जी ने सात मार्च 2013 को दिल्ली में उन्हें सम्मानित किया था। राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने उन्हें सर्टिफिकेट, ट्रॉफी व एक लाख रुपए का चेक पुरस्कार स्वरूप दिया था।
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