प्रस्तुति - दैनिक भास्कर
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इसके साथ ही उनका एक और शौक था, वाहनों के पेंच-पुर्जो का तकनीकी ज्ञान लेने का। इसीलिए वे बचपन में अक्सर मैकैनिक की दुकान पर बैठे रहा करते थे। काफी हद तक काम सीख लेने के बाद उन्होंने गांव में ही एक ऑटो रिक्शा का गैरेज भी खोल लिया था। इसी बीच उनके मन में विचार आया कि क्यों न अपने खेतों को जोतने के लिए खुद ही कुछ बना लिया जाए। कुछ ऐसा, जो ट्रैक्टर का काम करे और ट्रैक्टर खरीदने में लगाई जाने वाली भारी-भरकम रकम भी बच जाए। फिर क्या था, रमेशभाई अपने इस मिशन में लग गए और अपनी सूझ-बूझ से खुद ही एक मिनी ट्रैक्टर बना लिया।
इन चीजों का किया उपयोग:
- ऑटो का इंजन
- मारुतिवेन की गियर किट
- मारुति फ्रंट की व्हीलप्लेट
- मिनी ट्रैक्टर के टायर व कुछ अन्य सामान
रमेशभाई ने यह सब सामान भी पुराने वाहनों से जुगाड़े। इसमें 50-60 हजार रुपए का खर्च आया। निर्माण में उन्हें दो महीनों का समय लगा।
पैसों की बचत और कमाई भी:
अगर ट्रैक्टर किराए का लिया जाए तो 3-4 हजार रुपए किराया देना पड़ता है। वहीं, ट्रैक्टर की बाजार कीमत 6 लाख रुपए से ऊपर होती है, जिसे खरीदना हरेक किसान के बस की बात नहीं। वहीं, रमेशभाई के मिनी ट्रैक्टर के प्रतिदिन का खर्च मुश्किल से 600 रुपए आता है। रमेशभाई अपने मिनी ट्रैक्टर से अन्य किसानों के खेत भी जोत चुके हैं, वह भी बड़े ट्रैक्टर की तुलना में बहुत कम पैसों में।
इस कारनामे से रमेशभाई न सिर्फ पैसों की बचत व कमाई भी कर पा रहे है, बल्कि अब वे आसपास के गांवों में भी फेमस हो चुके हैं। उनके यह मिनी ट्रैक्टर जहां से भी गुजरता है, लोग देखते ही रह जाते हैं।
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