प्रस्तुति - नवभारत टाइम्स
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स्टेप 1 - वॉट इज योर आइडिया
सर जी यह बात भले ही आप कई बार सुन चुके हों कि एक आइडिया आपकी दुनिया बदल सकता है लेकिन है यह सौ फीसदी सच। आप अपने आसपास नजर दौड़ाइए और देखिए किसी एक इंसान की आइडिए ने ही दुनिया बदल रखी है। वह चाहें आपके किचन में सीटी देने वाला कुकर(इसे 20वीं सदी का सबसे बड़ा अविष्कार माना गया है) हो या भारत समेत दुनिया भर में एक नई सोसाइटी खड़ी कर देने वाला फेसबुक, सभी की शुरुआत एक आइडिए से हुई। बरसों से संजोए अपने आइडिए को परवान चढ़ाने से पहले चंद सवाल खुद से पूछें
-क्या मेरी सर्विस या प्रॉडक्ट की वाकई में किसी को जरूरत है?
-क्या मेरे आइडिए पर पहले से कंपनियां काम कर रही हैं अगर हां तो आप उनसे कैसे बेहतर या अलग हैं।
-क्या आइडिए को जमीन पर लाना प्रैक्टिकल तरीके से संभव है?
-मेरा आइडिया कितना लीगल है?
-क्या यह सेफ है?
-मेरा आइडिया अच्छा तो है लेकिन क्या इसे लोगों तक पहुंचाना मुमकिन है?
-इसे बनाने और इसकी मार्केटिंग में आने वाला खर्च को जुटाना क्या मुमकिन है?
-बिजनस से मुनाफा मिलने की दर इतनी होगी कि मैं सफलता से अपने आइडिए की जमीन पर जमाए रख सकूं?
-अगर बेसिक आइडिया सफल हो गया तो क्या वक्त के हिसाब से इसके और वर्जन निकालना मुमकिन होगा?
-क्या मैं अपने आइडिया को कॉपीराइट या पेटेंट के जरिए सेफ करने की स्थिति में हैं?
-कहीं मेरे आइडिया किसी दूसरे के पेटेंट या कॉपीराइट का उल्लंघन तो नहीं है?
-क्या इसके लिए कच्चा माल और मैन पावर उपलब्ध है?
अगर आपका आइडिया इन कसौटियों पर खरा नहीं उतरता तो कोई गम नहीं मतलब साफ है इसे और रिफाइन करने का वक्त निकलना पड़ेगा। अगर आइडिया फिट है तो अगला स्टेप एक्सपरिएंस सर्वे का आता है।
स्टेप 2 : क्या है एक्सपीरिएंस सर्वे
इसका मतलब है आपने आइडिए से जुड़े प्रफेशनल्स से मिलना चाहिए और उनकी इनसाइट का फायदा उठाना चाहिए। ये लोग आपके लिए मददगार साबित हो सकते हैं।
इंजीनियर: यह वक्त तकनीक का है और आपके आइडिए से जुड़े इंजीनियर से बेहतर इसके बारे में कोई नहीं बता सकता। उससे बिजनस के तकनीकी पहलू पर राय ले सकते हैं।
सप्लायर: आपके बिजनस आइडिए में कच्चे माल या सर्विसेज में सप्लाई चेन की बड़ी भूमिका है। इसलिए इसकी उपलब्धता और रेट्स की जानकारी लेकर रखना जरूरी है।
एजेंट: कई बार आपके बिजनस आइडिए और उसके कस्टमर के बीच एजेंट की भूमिका अहम होती है। ऐसे में उससे बात करना होगा बेहतर आइडिया।
सरकारी अधिकारी/वकील: इनसे सेफ्टी लाइसेंस, पॉल्यूशन सर्टिफिकेट, लेबलिंग या डिस्क्लेमर से जुड़ी सलाह ले सकते हैं।
इस सबके अलावा आपका आइडिया चाहें जितना भी ओरिजनल क्यों न हो इस बात की गुंजाइश बनी रहती है कि कोई और भी इसे कर रहा हो। इसलिए जितना हो सके रिसर्च कर लें। इसमें इंटरनेट मददगार हो सकता है। मार्केट में कंपिटिशन के बारे में भी रिसर्च जरूरी है। बेहतर होगा कि उनकी प्राइसिंग, मार्केटिंग, डिस्ट्रीब्यूशन और प्रॉफिट के बारे में अच्छी तरह से जान लें। ऐसा करने में इकॉनॉमिक अफेयर से जुड़े न्यूज पोर्टल, अखबार और मैगजीन आपके लिए मददगार साबित हो सकती हैं।
स्टेप 3 : कंपनी रजिस्ट्रेशन
भारत में किसी भी कंपनी को रजिस्टर्ड करने के लिए बाकायदा मिनस्ट्री ऑफ कार्पोरेट अफेयर काम करती है। भारत में कंपनियां दो स्वरूपों, सोल प्रोप्राइटरशिप और प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की तरह रजिस्टर कराया जा सकता है।
- कंपनी लॉ के अनुसार किसी भी रजिस्टर्ड कंपनी के लिए कम से कम 2 पार्टनर और 2 शेयर होल्डर होना जरूरी है।
- शेयर होल्डर्स किसी भी हाल में 50 से ज्यादा नहीं हो सकते।
- किसी भी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में आम पब्लिक शेयर नहीं खरीद सकती है।
- ऑनलाइन रडिस्ट्रेशन के लिए www.mca.gov.in/MCA21/RegisterNewComp.html पर जा सकते हैं।
- सोल प्रोप्राइटरशिप बिजनस करने के लिए किसी कंपनी लॉ के तहत रजिस्ट्रेशन नहीं कराना पड़ता।
- नई कंपनी खोलने का यह आसान और पुराना तरीका है।
- ऐसी कंपनी का बैंक अकाउंट तो कंपनी के नाम पर ही होता है लेकिन उसे ऑपरेट कंपनी का फाउंडर अपने सिग्नेचर से ही करता है।
- इसमें किसी भी तरह के कम से कम या अधिक से अधिक पैसे की लिमिट नहीं होती।
- ऐसी कंपनी की पहचान उसके ओनर से ही होती है और इसके अलावा उसकी कोई कानूनी वैधता नहीं होती।
स्टेप 4 : फंड का जुगाड़
इतना सब करने के बाद भी एक सचाई का सामना आपको करना पड़ेगा कि आपका बेहतरीन आइडिया अभी कागजों पर ही है। इसे जमीन पर लाने के लिए सबसे जरूरी चीज यानी 'कैपिटल' यानी पैसे। इसके इंतजाम के लिए अनुभवी बिजनसमैन तरीके बताते हैं:
1 - अपना पैसा लगा कर
2- बैंक से लोन लेकर
3 - किसी पार्टनर को फाइनैंसर बना कर या प्राइवेट इक्विटी (हिस्सेदारी) देकर
4 - VC (वेंचर कैपिटलिस्ट) के सहारे कैसे मिलेगा बैंक से लोन
- अपना बिजनस शुरू करने के लिए अगर आपको बैंक लोन लेना है तो कंपनी लॉ के तहत रजिस्ट्रेशन होना जरूरी है।
- इसके बाद कंपनी को मिनिस्ट्री ऑफ माइक्रो स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज से अप्रूवल लेना होगा। यह तब ही मिलेगा जब इस मिनिस्ट्री की गाइडलाइन पर आप खरे उतरेंगे। इसकी पूरी जानकारी के लिए आप dcmsme.gov.in पर जाकर ले सकते हैं।
- एक बार यहां से अप्रूव हो जाने के बाद बैंक 1 करोड़ तक का लोन बिना कुछ गिरवी रखे दे सकता है।
- बैंक लोन देते वक्त खाता खुलवाते वक्त की गई औपचारिकताओं के अलावा बिजनस की प्रोजेक्ट रिपोर्ट भी मांगती है।
- अगर प्रोडक्शन से जुड़ा बिजनस शुरू करते हैं तो पॉल्यूशन और लेबर मिनिस्ट्री से मिलने वाली एनओसी भी देनी पड़ती है।
- अगर कंपनी सोल प्रोप्राइटरशिप (केवल एक इंसान द्वारा चलाई जा रही) वाली है या शुरू करने के लिए पैसा चाहती है तो उसे स्टेट लेवल पर चलने वाले डिपार्टमेंट ऑफ माइक्रो स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज से संपर्क करना होता है। हर स्टेट में इनके लिए अलग-अलग मापदंड रखे गए हैं।
प्राइवेट इक्विटी का जोर या वेंचर कैपिटलिस्ट की ओर किसी भी आइडिया को उड़ान देने के लिए जरूरी है कि फंडिंग के फंडे को पूरी तरह से समझा जाए। बैंक से लोन लेकर बिजनस करने का पारंपरिक तरीका अब यूथ को उतना पसंद नहीं आ रहा जितना प्राइवेट इक्विटी या वेंचर कैपिटलिस्ट के जरिए बिजनस शुरू करके आ रहा है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि लोन लेकर बिजनस करने में सारा दरोमदार आप पर आ जाता है जबिक वेंचर कैपिटलिस्ट आइजिएशन से लेकर एक्सपर्ट एडवाइस तक देने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। वैसे देखा जाए तो वेंचर कैपिटलिस्ट और प्राइवेट इक्विटी बिजनस के लिए पैसा जुटाने का मिलता जुलता ही तरीका है जिसमें आपके आइडिया के पीछे पैसा लगाने के बदले आपको प्रॉफिट शेयर करना होता है। लेकिन कुछ अंतर हैं तो प्राइवेट इक्विटी और वेंचर कैपिटलिस्ट को अलग-अलग करते हैं।
प्राइवेट इक्विटी इन्वेस्टर
-यह अक्सर पहले से कमाई करने वाली कंपनी या घाटे में चल रही कंपनियों पर पैसा लगाना चाहते हैं।
-यह हर तरह की कंपनियों पर पैसा लगाती हैं और मुनाफा को ही महत्व देते हैं।
-ये बड़ी फंडिंग के लिए आराम से तैयार हो जाती हैं। बिजनस मॉडल और साइज के हिसाब से इन्वेस्मेंट की रकम तय करते हैं।
-कम से कम 6 से 10 साल तक में पूरी फंडिंग करती हैं।
-अक्सर कंपनी पर पूरा कंट्रोल रखती हैं और बड़े शेयर की डिमांड करते हैं।
-इन्वेस्ट कंपनी के रोजमर्रा के काम में ज्यादा एक्टिव नहीं रहते जब तक कि कंपनी पॉलिसी के लेवल पर कोई भारी बदलाव न करना चाहे। वेंचर कैपिटलिस्ट
-किसी आइडिया को बिजनस की शक्ल देने की शुरुआत में ही वेंचर कैपिटलिस्ट का बड़ा रोल होता है। कम पूंजी से शुरू किए गए बिजनस को अक्सर इनसे फायदा होता है।
-इस तरह की फंडिंग अक्सर हाई ग्रोथ सेक्टर वाले बिजनस जैसे आईटी, बायोमेडिकल और अल्टरनेच एनर्जी आदि सेक्टर में ज्यादा होती है।
-छोटे इन्वेस्टमेंट के लिए ही तैयार होती हैं। अक्सर वेंचर कैपिटलिस्ट 10 लाख रुपये तक की रकम ही फंड करते हैं।
-फंडिंग पीरियड 4 से लेकर 7 साल का होता है।
-वेंचर कैपिटलिस्ट कंपनी में अक्सर छोटे शेयर ही लेती हैं लेकिन शर्तें आइडिया देने वाले और कंपनी के बीच तय होती हैं।
-इन्वेस्टर हर मुकाम पर राय देते हैं और अपने कनेक्शन और डिस्ट्रिब्यूशन सर्कल का भी फायदा देते हैं।
स्टेप 5 - प्लान होना चाहिए दमदार
अपने बिजनस के जमीन पर लाने के लिए जरूरी है एक बिजनस प्लान। यह प्लान वह दस्तावेज है यह दिखाता है कि आप कितनी गहराई से अपने बिजनस को समझते हैं और यही इन्वेस्टर को आपकी ओर आकर्षित करेगा।
बिजनस प्लान के मुख्य फीचर्स होते हैं:
बिजनस डिटेल्स:
1-नाम
2-लोकेशन
3-प्रॉडक्ट
4-मार्केट और कॉम्पिटिशन
5-मैनेजमेंट का अनुभव (किसी भी तरह का)
-बिजनस से आप क्या पाना चाहते हैं और कैसे पाना चाहते हैं इसके बारे में भी एक नोट लिखें।
-कितने फंड की जरूरत है फंड के लिए एप्लीकेशन
मार्केट अनैलेसिस:
1-अपने प्रॉडक्ट से जुड़ी पूरी मार्केट का ब्योरा
2-इंडस्ट्री के ट्रेंड की जानकारी
3-टारगेट मार्केट क्या है?
प्रॉडक्ट या सर्विस:
1-प्रॉडक्ट या सर्विस लाइन का पूरा ब्यौरा
2-पेटेंट, कॉपीराइट और लीगल इश्यू
मैन्युफैक्चरिंग प्रॉसेस (अगर है तो):
1-मैटीरियल
2-कच्चे माल की सप्लाई का ब्यौरा
3-प्रॉडक्शन का तरीका
मार्केटिंग की रणनीति:
1-किन तरीकों से होगी मार्केटिंग
2-प्रॉडक्ट या सर्विस की कीमत कितनी होगी
3-प्रॉडक्ट या सर्विस बेचने का कौन सा तरीका आजमाएंगे
मैनेजमेंट प्लान:
1-किस तरह का ऑफिस ऑर्गेनाइजेशन स्ट्रक्चर आपनाएंगे
2-बोर्ड ऑफ डायरेक्टर या ओनरशिप किसके पास होगी
3-कामों की जिम्मेदारी किस पर कौन सी होगी
4-स्टाफ प्लान या कितने कर्मचारी होंगे
5-अगले एक या दो साल तक बिजनस चलाने का ऑपरेशनल प्लान
इनक्यूबेटर और एसेलरेटर को भी समझें
बिजनस की शुरुआत करने वालों के लिए इन दो शब्दों के मायने जानना बहुत जरूरी हैं। इन्क्यूबेटर आपको अपने आइडिया के शुरुआती दौर में उसे प्रॉडक्ट के लेवल तक ले जाने में मदद करता है। इस दौरान वह एक्सपर्ट सलाह तो देता ही है साथ ही पूरे आइडिया को फाइन ट्यून करने का काम भी करता है। एसेलरेटर, जैसा कि नाम से ही पता चलता है आपके आइडिया को स्पीड देने का काम करता है। इनका रोल तब अधिक होता है जब एक बिजनस आइडिया चल तो निकला है लेकिन बड़ा बनने में कुछ कसर बाकी है। यह तय वक्त के लिए आपके बिजनस आइडिया को अपने सहारे ऊंची उड़ान दिलाने में मदद करते हैं। इन्क्यूबेटर और एसेलरेटर अमूमन नए बिजनस आइडिया को एक ऑफिस स्पेस के साथ ही एक्सपर्ट्स की मदद भी दिलाते हैं।ये दोनो ही बेहतरीन आइडिया को हर मुकाम पर पालने पोसने की जिम्मेदारी उठाते हैं ।
यहां से मिलेगी आपको मदद
हम कुछ ऐसे ठिकानों के बारे में दे रहे हैं जो आपके आइडिया को एक मुकाम देने का काम कर सकते हैं।
इंडियन एंजल नेटवर्क इनक्यूबेटर
दिल्ली भारत सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नॉल्जी का चलाया गया यह बेहतरीन आंत्रप्रेन्योरशिप प्रोग्राम है जिसमें आइडिया को बेहतरीन तरीके से सपोर्ट किया जाता है। यहां किसी भी वेंचर को 18-24 महीने तक इनक्यूबेट किया जाता है। एक्सपर्ट्स का इनसे बढ़िया नेटवर्क फिलहाल भारत में मौजूद नहीं है।
टेक्नॉलजी बिजनस इन्क्यूबेटर
आईआईटी दिल्ली हालांकि यह केवल तकनीकी बिजनस को ही बढ़ाने में मदद करते हैं लेकिन इनके सहारे कई आईआईटी स्टूडेंट्स ने अपने आइडिया को बड़ा बनाया है। इसमें आईआईटी किसी भी अच्छे बिजनस आइडिया को वेंचर कैपिटलिस्ट की मदद से आगे बढ़ाती है। एक्सपर्ट्स के लिहाज से यह किसी भी आइडिया को शुरू करने के लिए अच्छी जगह साबित हो सकती है।
टीलैब्स
दिल्ली यह टाइम्स इंटरनेट लिमिटेड का एक एसेलेरेटर है जो 10 फीसदी हिस्सेदारी के बदले 10 लाख रुपये तक फंड करता है। 13 महीने का इस प्रोग्राम को बिजनस जगत की बड़ी हस्तियां मेंटर करती हैं। यह ऑफिस के लिए जगह भी देते हैं। प्रोग्राम की शुरुआत फरवरी और अगस्त में होती है।
सोसाइटी फॉर इनोवेशन ऐंड आंत्रप्रेन्योरशिप, आईआईटी मुंबई
साइंस और टेक्नॉलजी के क्षेत्र में एंटप्रेन्योरशिप के लेवल पर चलने वाली किसी भी रिसर्च या शुरुआत को आईआईटी मुंबई का यह हिस्सा बखूबी करता है। इसे भी सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नॉल्जी का सपोर्ट मिलता है। हालांकि यहां केवल आईआईटी मुंबई से जुड़े स्टूडेंट्स को ही मौका मिल पाता है।
अनलिमिटेड इंडिया (UnLtd) मुंबई
यह सोशल आंत्रप्रेन्योरशिप को बढ़ावा देने के लिहाज से बेहतरीन इनवेस्टर साबित हो सकता है। यहां एक्सपर्ट्स की देखरेख में बेहतरीन स्टार्टअप इनक्यूबेशन के साथ-साथ सीड फंडिंग (बिजनस शुरु करने के लिए पैसा) का जुगाड़ भी हो जाता है। 3 टियर की फंडिग में 80 हजार से 20 लाख तक की फंडिंग हो सकती है।
सिडबी इनोवेशन एंड इनक्यूबेशन सेंटर, आईआईटी कानपुर
छोटी इंडस्ट्रीज को मदद करने के लिहाज से आईआईटी कानपुर का यह प्रोग्राम काफी खास है जो स्मॉल इडस्ट्रीज डिवेलपमेंट डिपार्टमेंट के सहयोग से चल रहा है। यह न केवल टेक्नॉल्जी बेस आइडिया को सपोर्ट करता है बल्कि उन्हें बड़े बिजनस की शक्ल देने के लिहाज से सपोर्ट भी करता है। छोटे लेवल के बिजनस आइडिया के लिहाज से इस सेंटर को एक्सपर्ट माना जाता है।
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