Sunday, August 31, 2008

कुछ बेताबियों का नाम इन्सां हो गया

कुष्ठ रोग के कारण सीतापुर की शिवरानी को ससुराल से निकाल दिया गया। पति भी अलग रहने लगा। पेट भरने के लिए उसे भीख मांगनी पड़ी, लेकिन अब शिवरानी की जिंदगी बदल गई है। बीमारी पीछे छूट चुकी है।
-लिंब सेंटर में ही भर्ती सत्तर वर्षीय परमात्मा की दास्तां भी शिवरानी जैसी ही है। पंद्रह वर्ष पहले कुष्ठ रोग का शिकार क्या हुए, सभी ने अछूत घोषित कर दिया। एक मंदिर में पनाह मिली। यहां भी उनके प्रति लोगों का रवैया कुछ अलग नहीं था, पर अब सब कुछ पहले जैसा हो गया है। बीमारी गायब हो चुकी है। दोस्त-रिश्तेदार नियमित तौर पर हालचाल लेने आ रहे हैं।
लिंब सेंटर में इस समय इलाज करा रहे शिवरानी, परमात्मा, सुरेश, ममता उन कुष्ठ रोगियों की फेहरिस्त में शामिल हैं, जिनके जीवन में लिंब सेंटर के प्रोफेसर डा. एके अग्रवाल के प्रयास से उजाला आ चुका है। इसकी प्रेरणा कहां से मिली? डा. अग्रवाल बताते हैं कि पांच वर्ष पहले पत्नी के देहांत के बाद उन्होंने गरीब मरीजों की सेवा को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया। गांव-देहात जाकर नि:शुल्क स्वास्थ्य शिविर लगाए। दो वर्ष पहले ओपीडी में इलाज के लिए आए एक कुष्ठ रोगी की व्यथा देखी, तो ऐसे मरीजों के पुनर्वास को अपने जीवन का ध्येय बना लिया। पत्नी के नाम पर 'स्नेह फाउंडेशन' नामक संस्था बनाई, जिसमें अपने सभी नाते-रिश्तेदारों को प्रतिमाह पांच सौ से एक हजार रुपये दान देने के लिए प्रेरित किया। हर महीने छह से आठ हजार रुपये जमा होने लगे। पर इस राशि से वह एक माह में बमुश्किल एक मरीज के इलाज का ही खर्च उठा पा रहे थे। आर्थिक मदद के लिए कई लोगों से संपर्क किया। इसी बीच रोटरी क्लब ने पांच लाख रुपये से अधिक की मदद दी। फिर क्या था, प्रो. अग्रवाल के ध्येय को पंख लग गए। इस पुनीत कार्य में इन्हें चिकित्सा विश्वविद्यालय के प्लास्टिक सर्जरी विभाग के अध्यक्ष प्रो. एके सिंह का साथ मिला। प्रो. सिंह ने न्यूनतम खर्च में रविवार के दिन कुष्ठ मरीजों की सर्जरी की। प्रो.अग्रवाल ने कुछ स्थानीय डाक्टरों के सहयोग से बाराबंकी, हरदोई और लखनऊ में शिविर लगाकर अस्सी निर्धन कुष्ठ मरीजों को इलाज के लिए चिह्नित किया। पिछले दिसंबर से इन रोगियों का क्रमवार नि:शुल्क आपरेशन किया गया और लिंब सेंटर में फिजियोथेरेपी के सहायक उपकरण लगाए गए। इस कार्य में लिंब सेंटर की कार्यशाला के प्रमुख अरविंद निगम ने तो साथ दिया ही, यहां की सिस्टर प्रोमिला पाल और सिस्टर नीलम ने विशेष रूप से अपनी ड्यूटी कुष्ठ रोगियों के वार्ड में लगवा कर उन्हें नर्सिग सेवा दी। इन सभी के प्रयास से अब तक 109 कुष्ठ रोगियों का पुनर्वास हो चुका है। हौसला अभी बरकरार है। लक्ष्य ज्यादा से ज्यादा कुष्ठ रोगियों को अभिशप्त जीवन से निकाल कर समाज में खोया मुकाम फिर से दिलाने का है। ऐसे लोगों के लिए जिगर मुरादाबादी ने अपने भाव इस तरह जाहिर किए थे-'वरना क्या था, सिर्फ तरतीबे-अनासिर [पंचतत्व] के सिवा। खास कुछ बेताबियों का नाम इन्सां हो गया।।'

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