Saturday, November 8, 2008

'आतंकवाद को धर्म से न जोड़ा जाए'





सम्मेलन में छह हज़ार मुसलमान प्रतिनिधि हिस्सा ले रहे हैं
हैदराबाद में मुसलमानों के धार्मिक नेताओं के एक विशाल सम्मेलन में देश भर से आए छह हज़ार से अधिक इस्लाम के विद्वान (उलेमा) हिस्सा ले रहे हैं.
इन धार्मिक नेताओं ने सरकार, मीडिया, राजनीनीतिक दलों और देश की जनता से अपील की है कि वह आतंकवाद की समस्या से मिल-जुलकर निबटे.
मुस्लिम धार्मिक नेताओं के राष्ट्रीय संगठन जमीयत-ए-उलेमा-ए-हिंद की ओर से आयोजित सम्मेलन में जमाते इस्लामी सहित कई अन्य संगठनों से जुड़े उलेमा भी शामिल हुए हैं.
जमीयत-ए-उलेमा-ए-हिंदी के प्रमुख नेता और राज्यसभा सांसद मौलाना महमूद मदनी ने सम्मेलन का उदघाटन करते हुए सांप्रदायिक हिंसा और आतंकवाद की बढ़ती घटनाओं पर चिंता प्रकट की.

मालेगाँव बम कांड के सिलसिले में हुई गिरफ़्तारी के संदर्भ में उन्होंने कहा, "आतंकवाद को न तो इस्लाम से जोड़ा जाना चाहिए और न ही हिंदू धर्म से. ये कुछ पागल लोगों का जुनून है और ऐसे लोगों से देश के हिंदुओं और मुसलमानों को मिलकर लड़ना होगा तभी हमारा देश तरक्की करेगा, यही हमारा मिशन है."
इस सम्मेलन में इस्लामी संस्था दारूलउलूम देवबंद के उस फ़तवे को भी मान्यता दी गई जिसमें आतंकवाद को 'इस्लाम विरोधी' क़रार दिया गया है.
मौलाना मदनी ने कहा, "पहले इस फ़तवे पर चार मुफ़्तियों के दस्तख़त थे, अब इसे सम्मेलन में पढ़कर सुनाया गया है और इस हस्ताक्षर अभियान शुरू हो गया है, इसका मक़सद हज़ारों इस्लाम के विद्वानों के माध्यम से यह संदेश देना है कि इस्लाम में आतंकवाद की कोई गुंजाइश नहीं है."
इस सम्मेलन में यह भी माँग की गई कि सांप्रदायिक हिंसा को रोकने के लिए क़ानून बनाने, पिछड़े मुसलमानों के लिए आरक्षण और राष्ट्रीय एकता के मुद्दे पर इस आयोजन में विस्तार से चर्चा की जाएगी.
रविवार को इस सम्मेलन को श्रीश्रीरविशंकर, स्वामी अग्निवेश और ईसाई नेता जोसेफ़ डिसूज़ा भी संबोधित करने वाले हैं।
मेरा विचार
१। ऐसे कई (हिंदु मुसलमान और ईसाई) सम्मेलनों की देश को आवश्कता है ।
२। भाषाई आतंकवाद को भी रोकने की आवश्कता है ।
३। भाषा का इस्तेमाल लोगों को जोड़ने के लिए होना चाहिए ना कि तोड़ने के लिए ।
४। राज्यों को संस्कृतिक केन्द्र बनाने चाहिए जिससे दूसरे राज्यों के लोग दूसरे राज्यों की संस्कृति और भाषा सीख सके ।

9 comments:

डा गिरिराजशरण अग्रवाल said...

वास्तविकता यही है कि आतंकवादियों का कोई ईमान नहीं होता. वे अपने हित में किसी को भी अपना निशाना बना सकते हैं.मैं आपकी बात का समर्थन करता हूं.
डा. गिरिराजशरण अग्रवाल

Udan Tashtari said...

निश्चित ही आतंकवाद को धर्म से नहीं जोड़ना चाहिये.

Smart Indian said...

अन्य अपराधों की तरह आतंकवाद भी क़ानून-व्यवस्था की समस्या है धर्म की नहीं.

Gyan Dutt Pandey said...

टेरर किसी सम्प्रदाय या धर्म की चौधराहट का सिक्का जमाने का सॉफ्ट और सबसे घटिया ऑप्शन है। और यह कहना कि इसका प्रयोग नहीं होता, मुद्दे को डक करना हुआ।

sandhyagupta said...

aatankvaadiyon ka koi dharm koi majhab nahi hota.

guptasandhya.blogspot.com

योगेन्द्र मौदगिल said...

आपकी प्रस्तुति को नमन... बधाई हो...

Dr. Ashok Kumar Mishra said...

अच्छा िलखा है आपने ।

http://www.ashokvichar.blogspot.com

Unknown said...

उम्मीद है इस फतवे का कोई असर होगा. पिछले फतवा तो असरहीन रहा. उस के बाद तो कई शहरों में बम धमाके हुए.

परमजीत सिहँ बाली said...

sahi vichaar presit kie hain.