प्रस्तुति : जागरण लखनऊ
राकेश रंजन दुबे और डा। मंजू खुद न बताएं, तो कोई कल्पना नहीं कर सकता कि उनकी गोद में इठलाती दो साल की दुर्गा व एक महीने की दीपा किसी दूसरे चमन की कलियां हैं। जिस दौर में दुर्गा व दीपा जैसे बच्चों के कूड़ेदान में फेंके जाने की घटनाएं सुर्खी बनती हों, राकेश-मंजू के तंग आंगन में मासूमों की किलकारियों में किसी शायर की इन लाइनों की ध्वनि फूटती है-
'आदम को खुदा मत कहो, आदम खुदा नहीं, लेकिन खुदा के नूर से, आदम जुदा नहीं'
तीन सालों से इंदिरानगर में किराए के दो कमरों के मकान में लावारिस बच्चों का एडाप्शन सेंटर 'वरदान शिशु गृह' चला रहे राकेश-मंजू का यह जज्बा उनके निजी हालात की वजह से भी वंदनीय है। इस उच्च शिक्षित दंपति की आय का कोई ठोस साधन नहीं, इसके बावजूद वे सेंटर चलाने के लिए किसी सरकारी या गैर-सरकारी एजेंसी से मदद नहीं लेते। राकेश कहते हैं, बच्चे जितने दिन घर में रहते हैं, 'हम इन्हें अपनी संतान मानते हैं। कभी कूड़ादान, तो कभी नाले किनारे मिले लावारिस बच्चे हमें सौंपे जाते हैं, तो हालत देखकर हमारे आंसू बहते हैं, लेकिन जब उनकी हालत बेहतर होती है, तो उनकी मुस्कराहट से मिलने वाला आनंद अमूल्य है।' सेंटर में अब तक तेरह बच्चे आ चुके हैं। दुर्गा और दीपा के अलावा दस बच्चों को यह नि:संतान दंपति गोद ले चुकाहै, जबकि एक नवजात बच्चा इलाज के बावजूद बचाया नहीं जा सका।
मेकेनिकल इंजीनियरिंग व बिजनेस मैनेजमेंट डिग्रीधारी राकेश रंजन फोटोग्राफर, आर्टिस्ट, शौकिया गायक व संवेदनशील नागरिक हैं, लिहाजा सिवान [बिहार] से शुरू पीसीएस अधिकारी के इस यायावर पुत्र की जीवन यात्रा कई पड़ावों से गुजरती अंतत:1989 में लखनऊ आकर स्थिर हुई, जब नौकरियां ढोने का इरादा हमेशा के लिए छोड़कर वह पार्को के सौंदर्यीकरण, वृक्षारोपण व पशुसेवा को समर्पित हो गए। पीएच डी मंजू इस अभियान में भी राकेश की सहधर्मिणी साबित हुई। परिवार के योग-क्षेम आज भी एकैडमिक प्रकृति की सरकारी परियोजनाओं में मंजू के योगदान के बदले होने वाली आय से ही पूरे होते हैं। राकेश फोटो प्रदर्शनियों व अन्य माध्यमों से होने वाली थोड़ी-बहुत आय 'वरदान' के संचालन व अपने अन्य शौक पूरे करने में खर्च करते हैं।
इकलौता बेटा पढ़-लिखकर प्रतिष्ठित कंपनी में साफ्टवेयर इंजीनियर बन गया, तो राकेश-मंजू के मन में जिम्मेदारी के बोझ तले दबा जज्बा पूरी तरह तनकर खड़ा हो गया, और 2004 में उन्होंने 'वरदान शिशु गृह' चलाने का लाइसेंस लिया। अगले वर्ष दो सितंबर की रात डेढ़ बजे पुलिसकर्मी राजाजीपुरम के एक नाले के किनारे पड़ी मिली नवजात बच्ची उन्हें सौंपने पहुंचे, तो राकेश-मंजू की जिंदगी का भी नया अध्याय शुरू हुआ। एक खुशहाल परिवार द्वारा गोद लिए जाने से पहले दो महीने मिली उनके घर रही। जिस शाम गई, खाना नहीं बना, लेकिन फिर खुशबू आ गई। इसके बाद रानी, शिवा, एकलव्य, रेनू, वासु, राखी, अंश, अंकुर, अंचिका और फिर दुर्गा-दीपा।
दुर्गा कुछ महीने की थी, जब मथुरा में पुलिस ने उसे ऐसे पाखंडियों के चंगुल से मुक्त कराया, जो उसकी बलि चढ़ाने जा रहे थे। बदमाशों के भाग जाने के कारण दुर्गा के बारे में और कुछ तो पता नहीं चल सका, लेकिन कुछ दिन बाद उसे फिर मथुरा के संरक्षण गृह से उठा ले जाने की कोशिश हुई, तो प्रशासन ने उसे लखनऊ भिजवा दिया। दुर्गा के साथ त्रासदी यह है कि वह ठीक से बोलना नहीं सीख पाई। शायद इसी वजह से किसी ने उसे अब तक गोद नहीं लिया। अब उसका इलाज चल रहा है।
अगस्त में लगातार बारिश के दौरान जब 'वरदान' का एक बच्चा बीमार पड़ा, तो उसे अस्पताल ले जाने की जद्दोजहद में राकेश को अपनी साधनहीनता बहुत खली। तब पति-पत्नी ने फैसला लिया कि वे अपना पुराना भूखंड बेचकर 'वरदान' को ऐसे शिशुगृह के रूप में विकसित करेंगे, जहां पारिवारिक माहौल के साथ अच्छे रहन-सहन व छोटे-मोटे इलाज की भी व्यवस्था हो। राकेश को उम्मीद है कि अगले जून तक यह सपना पूरा हो जाएगा। मियां-बीवी 'वरदान' के लिए कभी किसी के आगे झोली नहीं फैलाते। उन्हें अब बच्चों की किलकारियों में ही जिंदगी नजर आती है।
18 comments:
'आदम को खुदा मत कहो, आदम खुदा नहीं, लेकिन खुदा के नूर से, आदम जुदा नहीं'
बहुत अच्छा।
गुप्ता जी धन्यवाद इस नेक जानकारी के लिये.
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'आदम को खुदा मत कहो, आदम खुदा नहीं, लेकिन खुदा के नूर से, आदम जुदा नहीं'
-बिल्कुल सही..यही शब्द निकलते हैं इनके लिए.
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद यह जानकारी सब के साथ बांटने के लिए. ऐसे इंसान इंसानियत पर भरोसे को और बढ़ाते हैं.
राकेश रंजन और मन्जू जी के बारे में पढ़ कर अच्छा लगा।
सचमुच इन दोनों का प्रयास सराहनीय है. भगवान करें कि लोगों को सबुद्धि आए कि बच्चों को लावारिस न छोड्रे.
सुन्दर लेख के लिए आप भी बधाई के पात्र हैं
बहुत बहुत धन्यवाद, इस जानकारी को यहां हम सब से बांटने के लिए ।
इस नेक जानकारी के लिये आपको बहुत-बहुत धन्यवाद/राकेश रंजन और मंजू जी बहुत ही सराहनीय कार्य कर रहे है/शायर ने क्या खूब कहा है-'आदम को खुदा मत कहो,आदम खुदा नहीं,लेकिन खुदा के नूर से,आदम जुदा नहीं/
badhiyaa jaanakaari ke lie aabhaar.
वंदनीय हैं राकेश और मंजू जी
साधुवाद
आपकी बेहतर प्रस्तुति है ये
आज सबसे बड़ी जरूरत इंसानियत है जिसे लोग भूल रहें हैं .इस अच्छी सूचना के लिए आपको धन्यवाद .
padker achchi jankaari mili...shukriya...is post ke liye aap defenitely badhai ke patra hai...
यह देश ऐसे ही निस्वार्थ लोगों कि तपस्या के बल पर चल रहा है. जानकारी के लिए धन्यवाद.
vichar jaankar achchha laga .shukriya mere blog par aane ke liye shukriya
Samaj ko aise hi prayason ki jarurat hai.
इतने दिनों से कहां हो भाई ?
Bahut sateek jankari dete h Rakesh hi Sat Sat pranam
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