Sunday, February 22, 2009

काम की तलाश में आए थे, अब दूसरों को दे रहे काम

प्रस्तुति - जागरण
कहते हैं जिंदगी हर किसी को एक बार मौका जरूर देती है। यह मौका पाने वाले पर निर्भर करता है कि वह उसका कैसे इस्तेमाल करता है। जिसने मौके की नजाकत को पहचान लिया, वह सिकंदर। कृष्णा व उसके पति उन्हीं में से एक हैं। यहां खुद काम की तलाश में आए थे, अब कई लोगों को काम दे रहे हैं।
यहां आने के कुछ वर्ष बाद कृष्णा को भी जिंदगी ने एक मौका दिया, कुछ भले लोगों का सहारा मिला। जिसे उसने जाया नहीं होने दिया। बागवानी में काम करते हुए कृष्णा ने अचार व मुरब्बा बनाना शुरू कर दिया। पति गोवर्धन मुरब्बा व आचार बेचने लगे। अब मेहनत रंग ला रही है। कृष्णा अचार- मुरब्बा बनाने में दूसरी महिलाओं का भी सहयोग ले रही है। खास बात यह कि अनपढ़ होकर भी कृष्णा के हाथ में गजब का हुनर है। उसने कंचे बांस में भी मिठास भर दी है। उसके अचार व मुरब्बे के लोग मुरीद होते जा रहे हैं।
कभी शादी के मंडप में फेरे लेते वक्त कृष्णा व गोवर्धन ने सुख दुख में साथ निभाने की कसम खाई थी। आज कारोबार भी साथ मिलकर कर रहे हैं। गोवर्धन बताते हैं कि रोजगार की तलाश में 1992 में दिल्ली आया था। वे नजफगढ़ के एक बागवानी में काम करने लगे। मालिक बलजीत त्यागी का कृषि विशेषज्ञोï के साथ उठना बैठना था। उनके कहने पर गृह विज्ञान विशेषज्ञ ऋतु सिंह ने कृष्णा को अचार व मुरब्बा बनाने का प्रशिक्षण दिया। यहीं से समय पलटा। अब कृष्ण दंपति अपनी किस्मत खुद लिख रहे हैं।
प्रशिक्षण लेने के बाद कृष्णा ने पांच किलो आम एवं आंवला से अचार व मुरब्बा बनाने का कार्य शुरू किया। अब कई फलों के अचार व मुरब्बा बनाते हैं। गोवर्धन भी अचार व मुरब्बे की किस्में बताते बताते उलझ जाते हैं। शहद में बने मुरब्बे लोग खास तौर पर पसंद करते हैं। चीनी की चासनी में बने मुरब्बे की मिठास भी कम नहीं है। कृष्णा सेब, आम, पपीता, करौंदा, गाजर, बेल, अदरक का भी मुरब्बा बनाती है। यही नही जिस बांस की खास उपयोगिता नहीं समझी जाती, उस कच्चे बांस के मुरब्बे की मिठास लोगों को कायल बना रही है।



2 comments:

Udan Tashtari said...

प्रेरणादायी कार्य किया इस दंपत्ति ने. आभार जानकारी का.

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर, हमेशा मएहनत अपना रंग दिखती है.
धन्यवाद