This blog is designed to motivate people, raise community issues and help them. लोगों को उत्साहित करना, समाज की ज़रुरतों एवं सहायता के लिए प्रतिबद्ध
Friday, November 13, 2009
बाल दिवस - चाचा नेहरू
तीन मूर्ति भवन के बगीचे में पेड़-पौधों के बीच से गुजरते घुमावदार रास्ते पर चाचा टहल रहे थे। तीन मूर्ति भवन प्रधानमंत्री का सरकारी निवास था और चाचा नेहरू भारत के पहले प्रधानमंत्री थे। पौधों पर छाई बहार से वे निहाल हो ही रहे थे कि उन्हें एक नन्हे बच्चे के बिलखने की आवाज आई। चाचा ने आस-पास देखा तो उन्हें झुरमुट में एक दो माह का बच्चा दिखाई दिया जो दहाड़े मारकर रो रहा था।
इसकी माँ कहाँ होगी? वह कहीं भी नजर नहीं आ रही थी। चाचा ने सोचा शायद वह माली के साथ बगीचे में ही कहीं काम कर रही होगी। बच्चे को छाँह में सुला कर, काम करते-करते दूर निकल गई होगी। चाचा पता नहीं कब तक सोचते रहते लेकिन बच्चे के कर्कश रोने से उन्हें लगा कि अब कुछ करना चाहिए और उन्होंने माँ की भूमिका निभाने का मन बना लिया।
चाचा ने झुककर बच्चे को उठाया। उसे बाँहों में झुलाया। उसे थपकियाँ दीं। बच्चा चुप हो गया और देखते ही देखते उसके पोपले मुँह में मुस्कान खिल उठी। चाचा भी खुश हो गए और लगे बच्चे के साथ खेलने, जब तक धूल-पसीने में सराबोर बच्चे की माँ दौड़ते वहाँ न आ पहुँची। उसे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ। उसका प्यारा बच्चा पंडितजी की गोद में था। जिन्होंने अपनी भूमिका खूब अच्छे से निभाई थी।
पंडित नेहरू तमिलनाडु के दौरे पर थे। जिस सड़क से उनकी सवारी गुजरी उसके दोनों ओर लोगों के हुजूम खड़े थे। कुछ साइकलों पर खड़े थे तो कुछ दीवारों और छज्जों पर। इमारतों की बाल्कनियाँ और पेड़ बच्चों-बड़ों से लदे थे। हर कोई अपने प्रिय प्रधानमंत्री की एक झलक देखना चाहता था।
इस भारी भीड़ के पीछे, दूर एक गुब्बारे वाला भी था, जो अब अपने तरह-तरह के आकार वाले गुब्बारे मुश्किल से संभाले पंडितजी को देखने के लिए पंजों के बल खड़ा डगमगा रहा था। रंगीन गुब्बारे उसके पीछे डोल रहे थे मानो वे भी नेहरूजी को देखने के लिए उतावले थे।
जैसे ही पंडित नेहरू वहाँ से गुजरे, उन्होंने गुब्बारे वाले को देखा और बोले गाड़ी रोको। वे उनकी खुली जीप से नीचे कूदे और भीड़ में से रास्ता बनाते हुए गुब्बारे वाले तक जा पहुँचे। अब गुब्बारे वाला हक्का-बक्का था। उससे कहीं कोई गुस्ताखी तो नहीं हुई? फिर भी उसने पंडितजी को सलाम किया और एक गुब्बारा पेश किया। पंडितजी ने कहा मुझे एक नहीं सभी गुब्बारे चाहिए। फिर उन्होंने अपने तमिल जानने वाले सचिव से कहा कि इसके सब गुब्बारे खरीद लो बच्चों में बाँट दो। गुब्बारे वाला खुद ही दौड़ दौड़ कर बच्चों को गुब्बारे थमाने लगा और नेहरूजी कमर पर हाथ रखे देखने लगे। जैसे-जैसे गुब्बारे बच्चों के हाथ में आने लगे चाचा नेहरू-चाचा नेहरू की आवाजें आने लगीं। जब तक वे जीप पर सवार हो फिर चलने को हुए आसमान चाचा नेहरू जिंदाबाद के नारों से गूँज रहा था।
प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट शंकर ने जब बच्चों के लिए अंतरराष्ट्रीय चित्रकला प्रतियोगिता शुरू की, पंडित नेहरू ने उन्हें बच्चों के नाम एक पत्र उनकी पत्रिका में प्रकाशित करने के लिए दिया-
...मुझे आपके साथ रहना अच्छा लगता है और आपके संग बतियाना पसंद है, और खेलना तो सबसे अच्छा। मैं आपसे हमारी इस सुंदर दुनिया के बारे में बात करना चाहता हूँ। फूलों के बारे में, पेड़-पौधे और प्राणियों के बारे में, सितारों और पहाड़ों के बारे में और उन तमाम आश्चर्यजनक चीजों के बारे में जो इस दुनिया में हमें घेरे रहती हैं। यह दुनिया ही अब तक लिखी गई सबसे अद्भुत साहस कथा और परीकथा है। हमें सिर्फ अपनी आँखें, कान और दिमाग की खिड़कियाँ खुली रखने की जरूरत है ताकि हम इस सुंदर जीवन का आनंद ले सकें।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
5 comments:
बेहद रोचक
हमें सिर्फ अपनी आँखें, कान और दिमाग की खिड़कियाँ खुली रखने की जरूरत है ताकि हम इस सुंदर जीवन का आनंद ले सकें। -सत्य वचन!!!
बहुत अच्छी जानकारी है शायद ही उन जैसा दूरदर्शी नेता अब कभी पैदा हो हमारे शहर नंगल मे भाखडा डैम उनकी ही देन है अपने प्रधान पन्त्री कार्यकाल मे वो 14 बार नंगल आये। नंगल आज भी उनका ऋणी है बाल दिवस की शुभकामनायें
हमे तो पता ही नही था चाचु इतने महान थे,
bahut khub
Post a Comment