Monday, November 11, 2013

जिंदगी की बच्चों के नाम

प्रस्तुति - दैनिक भास्कर

लाखों की नौकरी छोड़ पति-पत्नी ने जिंदगी की बच्चों के नाम
जमशेदपुर. बहुराष्ट्रीय कंपनियों की लाखों की नौकरी छोड़ कोई गांव के बच्चों को पढ़ाने का फैसला ले, तो इसे कॅरियर के प्रति जोखिम मोल लेना ही कहा जाएगा। लेकिन, शहर की इंजीनियर दंपती अनुराग जैन और शिखा जैन ने इसकी परवाह नहीं की और निकल पड़े गांव की ओर शिक्षा का अलख जगाने।
उन्हें घर और समाज का विरोध भी झेलना पड़ा। इसके बावजूद उन्होंने ग्रामीण बच्चों की जिंदगी में शिक्षा की रोशनी फैलाने के फैसले को नहीं बदला। उन्होंने गोविंदपुर में नीव (न्यू एजुकेशन एंड इनवायरमेंट विजन) नाम से स्कूल खोला, जहां 150 से ज्यादा बच्चे शिक्षा हासिल कर रहे हैं। यहां पर गोविंदपुर के अलावा सरजामदा, गरूड़बासा और हुरलुंग जैसे क्षेत्र के बच्चों को इंजीनियर दंपती अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा दे रहे हैं।  
संक्षिप्त परिचय
नाम : अनुराग जैन व शिखा जैन
निवासी :  रिवर व्यू इनक्लेव टेल्को
शिक्षा : वर्ष 97 में रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज, कुरुक्षेत्र से बीटेक (दोनों ने ली डिग्री)
नौकरी : अनुराग एलएंडटी और शिखा मेटाफोर ग्लोबल सोल्यूशन (बाद में छोड़ दी नौकरी)
कहां पढ़ाते हैं : गोविंदपुर, सरजामदा, गरूड़बासा और हुरलुंग ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों को दे रहे शिक्षा
संघर्ष
चेन्नई के स्कूल में पढ़ाया 
अनुराग ने स्कूली शिक्षा लिटिल फ्लावर स्कूल, जमशेदपुर से पूरी की। वर्ष 1997 में रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज, कुरुक्षेत्र से इंजीनियरिंग की है। शिखा और अनुराग यहां बैचमेट थे। डिग्री लेने के बाद एलएंडटी में अनुराग और शिखा की नौकरी मेटाफोर ग्लोबल सोल्यूशन में लग गई। ]
लेकिन, जल्द ही नौकरी से उनका मन भर गया और वे बेचैन रहने लगे। एक दिन उन्होंने नौकरी छोड़ दी और कृष्णमूर्ति फाउंडेशन के बैनर तले चेन्नई में चलने वाले स्कूल में पढ़ाने लगे। अनुराग के मुताबिक, नौकरी छोडऩे के बाद काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। इस दौरान पत्नी शिखा का काफी सपोर्ट रहा। उन्होंने हमेशा हौसला बढ़ाया और अच्छे-बुरे वक्त में साथ दिया।
सीख
शिक्षा ही बदलाव का जरिया
अनुराग कहते हैं कि चेन्नई में बच्चों को पढ़ाने के दौरान उनके व्यक्तित्व में बदलाव आया। यहां से कुछ दिनों के लिए वे आंध्र प्रदेश के एक गांव में गए और ऑर्गेनिक फार्मिंग की। वहां उन्हें महसूस हुआ कि अपने लिए तो सभी जीते हैं, दूसरों को अच्छी जिंदगी देने की पहल कम लोग ही करते हैं। उन्हें लगा कि इसके लिए गांव में बदलाव जरूरी है और शिक्षा की रोशनी ही एकमात्र जरिया है, जो किसी का मौलिक रूपांतरण (फंडामेंटल ट्रांसफॉर्मेशन) कर सकता है। इसके बाद वे जमशेदपुर आ गए और नीव स्कूल की स्थापना की। इसके पहले कुछ समय तक केपीएस, एनएमएल में भी काम किया।
प्रयास
कैसे चलाते हैं स्कूल
अनुराग ने बताया कि उनके दोस्तों के अलावा देश-दुनिया में काम करने वाले भारतीय गांव के गरीब बच्चों को स्पांसर करते हैं। नीव में रूरल किड्स स्पांसरशिप प्रोग्राम के तहत 150 बच्चों में से 80 बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं। इसके अलावा जेवियर लेबर रिलेशंस इन्स्टीट्यूट (एक्सएलआरआई) के छात्र समय-समय पर बच्चों को मोटिवेशन और कॅरियर काउंसिलिंग करते हैं। स्कूल के बच्चे भी एक्सएलआरआई विजिट करते हैं, ताकि उन्हें आगे बढऩे के लिए प्रोत्साहन मिले।

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