सौजन्य से : www.facebook.com (https://www.facebook.com/AcharyaBalkrishanJi)
- चिरौंजी या चारोली पयार या पियाल, प्रियाल नामक वृक्ष के फलों के बीज की गिरी है जो खाने में बहुत स्वादिष्ट होती है।
- इसका प्रयोग भारतीय पकवानों, मिठाइयों और खीर व सेंवई इत्यादि में किया जाता है।
- चारोली वर्षभर उपयोग में आने वाला पदार्थ है जिसे संवर्द्धक और पौष्टिक जानकर सूखे मेवों में महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है।
- चारोली का वृक्ष अधिकतर सूखे पर्वतीय प्रदेशों में पाया जाता है। दक्षिण भारत, उड़ीसा, हिमाचल प्रदेश, मध्यप्रदेश, छोटा नागपुर आदि स्थानों पर यह वृक्ष विशेष रूप से पैदा होता है।
- चिरौंजी या चारोली पयार या पियाल, प्रियाल नामक वृक्ष के फलों के बीज की गिरी है जो खाने में बहुत स्वादिष्ट होती है।
- इसका प्रयोग भारतीय पकवानों, मिठाइयों और खीर व सेंवई इत्यादि में किया जाता है।
- चारोली वर्षभर उपयोग में आने वाला पदार्थ है जिसे संवर्द्धक और पौष्टिक जानकर सूखे मेवों में महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है।
- चारोली का वृक्ष अधिकतर सूखे पर्वतीय प्रदेशों में पाया जाता है। दक्षिण भारत, उड़ीसा, हिमाचल प्रदेश, मध्यप्रदेश, छोटा नागपुर आदि स्थानों पर यह वृक्ष विशेष रूप से पैदा होता है।
- इसके पत्तों से पत्तल भी बनाई जाती है।
- इस वृक्ष के फल से निकाली गई गुठली को मींगी कहते हैं।
- चारोली बादाम की प्रतिनिधि मानी जाती है। जहाँ बादाम न मिल सकें वहाँ चारोली का प्रयोग किया जा सकता है।
- चारोली स्वाद में मधुर, स्निग्ध, भारी, शीतल एवं हृद्य (हृदय को रुचने वाली) है। देह का रंग सुधारने वाली, बलवर्धक, वायु-दर्दनाशक एवं शिरःशूल को मिटाने वाली है।
- यह मधुर बल वीर्यवर्द्धक, हृदय के लिए उत्तम, स्निग्ध, विष्टंभी, वात पित्त शामक तथा आमवर्द्धक होती है।
- इसका सेवन रूग्णावस्था और शारीरिक दुर्बलता में किया जाता है।
- चारोली का पका हुआ फल भारी होने के साथ-साथ मधुर, स्निग्ध, शीतवीर्य तथा दस्तावार और वात पित्त, जलन, प्यास और ज्वर का शमन करने वाला होता है।
- चिरौंजी कफ को दस्त द्वारा बाहर निकाल देता है।
- शहद चिरौंजी के दोषों को दूर कर इसके गुणों को सुरक्षित रखता है।
- इस वृक्ष के फल की गुठली से निकली मींगी और छाल दोनों उपयोगी होती है।
- चिरौंजी का उपयोग अधिकतर मिठाई में जैसे हलवा, लड्डू, खीर, पाक आदि में सूखे मेवों के रूप में किया जाता है।
- सौंदर्य प्रसाधनों में भी इसका उपयोग किया जाता है।
- मुँहासे- नारंगी और चारोली के छिलकों को दूध के साथ पीस कर इसका लेप तैयार कर लें और चेहरे पर लगाए। इसे अच्छी तरह सूखने दें और फिर खूब मसल कर चेहरे को धो लें। इससे चेहरे के मुँहासे गायब हो जाएँगे। अगर एक हफ्ते तक प्रयोग के बाद भी असर न दिखाई दे तो लाभ होने तक इसका प्रयोग जारी रखें।
- गीली खुजली - गीली खुजली में 10 ग्राम सुहागा पिसा हुआ, 100 ग्राम चारोली, 10 ग्राम गुलाब जल इन तीनों को साथ में पीसकर इसका पतला लेप तैयार करें और खुजली वाले सभी स्थानों पर लगाते रहें। ऐसा करीबन 4-5 दिन करें। इससे खुजली में काफी आराम मिलेगा।
- चेहरे पर लेप- चारोली को गुलाब जल के साथ सिलबट्टे पर महीन पीस कर लेप तैयार कर चेहरे पर लगाएँ। लेप जब सूखने लगे तब उसे अच्छी तरह मसलें और बाद में चेहरा धो लें। इससे चेहरा चिकना, सुंदर और चमकदार हो जाएगा। इसे एक सप्ताह तक हर रोज प्रयोग में लाए। बाद में सप्ताह में दो बार लगाते रहें।
- ददोड़े/शीत पित्ती- शरीर पर शीत पित्ती के ददोड़े या फुंसियाँ होने पर दिन में एक बार 20 ग्राम चिरौंजी को खूब चबा कर खाएँ। साथ ही दूध में चारोली को पीसकर इसका लेप करें। इससे बहुत फायदा होगा। यह नुस्खा शीत पित्ती में बहुत उपयोगी है।
- चारोली का तेल बालों को काला करने के लिए उपयोगी है।
- 5-10 ग्राम चारोली को पीसकर दूध के साथ लेने से रक्तातिसार (खूनी दस्त) में लाभ होता है।
- खांसी में चिरौंजी का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम पीने से लाभ मिलता है।
- छठवें महीने के गर्भाशय के रोग: चिरौंजी, मुनक्का और धान की खीलों का सत्तू, ठण्डे पानी में मिलाकर गर्भवती स्त्री को पिलाने से गर्भ का दर्द, गर्भस्राव आदि रोगों का निवारण हो जाता है।
- इस वृक्ष के फल से निकाली गई गुठली को मींगी कहते हैं।
- चारोली बादाम की प्रतिनिधि मानी जाती है। जहाँ बादाम न मिल सकें वहाँ चारोली का प्रयोग किया जा सकता है।
- चारोली स्वाद में मधुर, स्निग्ध, भारी, शीतल एवं हृद्य (हृदय को रुचने वाली) है। देह का रंग सुधारने वाली, बलवर्धक, वायु-दर्दनाशक एवं शिरःशूल को मिटाने वाली है।
- यह मधुर बल वीर्यवर्द्धक, हृदय के लिए उत्तम, स्निग्ध, विष्टंभी, वात पित्त शामक तथा आमवर्द्धक होती है।
- इसका सेवन रूग्णावस्था और शारीरिक दुर्बलता में किया जाता है।
- चारोली का पका हुआ फल भारी होने के साथ-साथ मधुर, स्निग्ध, शीतवीर्य तथा दस्तावार और वात पित्त, जलन, प्यास और ज्वर का शमन करने वाला होता है।
- चिरौंजी कफ को दस्त द्वारा बाहर निकाल देता है।
- शहद चिरौंजी के दोषों को दूर कर इसके गुणों को सुरक्षित रखता है।
- इस वृक्ष के फल की गुठली से निकली मींगी और छाल दोनों उपयोगी होती है।
- चिरौंजी का उपयोग अधिकतर मिठाई में जैसे हलवा, लड्डू, खीर, पाक आदि में सूखे मेवों के रूप में किया जाता है।
- सौंदर्य प्रसाधनों में भी इसका उपयोग किया जाता है।
- मुँहासे- नारंगी और चारोली के छिलकों को दूध के साथ पीस कर इसका लेप तैयार कर लें और चेहरे पर लगाए। इसे अच्छी तरह सूखने दें और फिर खूब मसल कर चेहरे को धो लें। इससे चेहरे के मुँहासे गायब हो जाएँगे। अगर एक हफ्ते तक प्रयोग के बाद भी असर न दिखाई दे तो लाभ होने तक इसका प्रयोग जारी रखें।
- गीली खुजली - गीली खुजली में 10 ग्राम सुहागा पिसा हुआ, 100 ग्राम चारोली, 10 ग्राम गुलाब जल इन तीनों को साथ में पीसकर इसका पतला लेप तैयार करें और खुजली वाले सभी स्थानों पर लगाते रहें। ऐसा करीबन 4-5 दिन करें। इससे खुजली में काफी आराम मिलेगा।
- चेहरे पर लेप- चारोली को गुलाब जल के साथ सिलबट्टे पर महीन पीस कर लेप तैयार कर चेहरे पर लगाएँ। लेप जब सूखने लगे तब उसे अच्छी तरह मसलें और बाद में चेहरा धो लें। इससे चेहरा चिकना, सुंदर और चमकदार हो जाएगा। इसे एक सप्ताह तक हर रोज प्रयोग में लाए। बाद में सप्ताह में दो बार लगाते रहें।
- ददोड़े/शीत पित्ती- शरीर पर शीत पित्ती के ददोड़े या फुंसियाँ होने पर दिन में एक बार 20 ग्राम चिरौंजी को खूब चबा कर खाएँ। साथ ही दूध में चारोली को पीसकर इसका लेप करें। इससे बहुत फायदा होगा। यह नुस्खा शीत पित्ती में बहुत उपयोगी है।
- चारोली का तेल बालों को काला करने के लिए उपयोगी है।
- 5-10 ग्राम चारोली को पीसकर दूध के साथ लेने से रक्तातिसार (खूनी दस्त) में लाभ होता है।
- खांसी में चिरौंजी का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम पीने से लाभ मिलता है।
- छठवें महीने के गर्भाशय के रोग: चिरौंजी, मुनक्का और धान की खीलों का सत्तू, ठण्डे पानी में मिलाकर गर्भवती स्त्री को पिलाने से गर्भ का दर्द, गर्भस्राव आदि रोगों का निवारण हो जाता है।
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