४। संकल्प स्वतंत्र नहीं होता, वह भी कार्य कारण से बंधा एक तत्व है, लेकिन संकल्प के पीछे कुछ है, जो स्व - तन्त्र है ।
५। यदि आत्मा के जीवन में मुझे आनन्द नहीं मिलता, तो क्या मैं इन्द्रियों के जीवन में आनन्द पाउँगा? यदि मुझे अमृत नहीं मिलता, तो क्या मैं गड्ढे के पानी से प्यास बुझाऊं ? चातक सिर्फ बादलों से ही पानी पीता है और उंचा उड़ता हुआ चिल्लाता है , 'शुद्ध पानी। शुद्ध पानी ।' और कोई आंधी तूफान उसके पंखों को डिगा नहीं पाते और न ही उसे धरती का पानी पीने के लिए बाध्य कर पातें हैं ।
६। जिस प्रकार हाथी के दांत बाहर निकलते हैं, परन्तु अन्दर नहीं जाते, उसी प्रकार मनुष्य ने जो वचन एक बार मुख से निकल दिए, वे वचन पुनः वापिस नहीं जा सकते ।
2 comments:
स्वामी विवेकानंद की सूक्तियों से अवगत कराकर आप सराहनीय कार्य कर रहे हैं, आभार।
सुन्दर।
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