Wednesday, December 24, 2008

मैडॉफ - एक जालसाज


अमेरिका के शेयर बाज़ारों में सबसे प्रतिष्ठित नैस्डैक के पूर्व चेयरमैन बर्नार्ड मैडॉफ अपनी छोटी सी जेल यात्रा के बाद एक करोड़ डॉलर के मुचलके पर रिहा हो चुके हैं। पश्चिमी दुनिया के लिए मंदी तबाही का सबब बनी हुई है, लेकिन अब इसमें एक नया आयाम मैडॉफ का भी जुड़ गया है। पहली नजर में मैडॉफ का घोटाला 50 अरब डॉलर (करीब ढाई लाख करोड़ रुपये) का है, लेकिन यह इससे ज्यादा का भी हो सकता है। असली चिंता यह है कि अमेरिका और यूरोप में कहीं सतह के नीचे और भी बहुत सारे मैडॉफ अपना धंधा न चला रहे हों। जिस तरीके से मैडॉफ ने अपना साम्राज्य खड़ा किया, उसकी झलक भारत समेत कई अन्य पूर्वी समाजों में भी दिखाई देती रही है। मंदी ने उन सब की असलियत सामने ला दी तो आम आदमी को महंगाई और बेरोजगारी के साथ अब इस घपलेबाजी की एक नई विपत्ति का भी सामना करना पड़ेगा।

पुलिस के सामने अपने इकबालिया बयान में बर्नार्ड मैडॉफ ने बताया है कि शेयरों की खरीद-फरोख्त का उसका धंधा एक अर्से पहले डूब चुका है। तभी से अपने पुराने ग्राहकों के निवेश पर रिटर्न्स की अदायगी वह नए ग्राहकों के निवेश किए पैसों से करता आ रहा है। अभी की मंदी में जब नए ग्राहक आने बंद हो गए और पुराने ग्राहकों ने रिटर्न्स से संतुष्ट रहने के बजाय अपना मूलधन निकालने की कोशिश शुरू की तो मैडॉफ के सामने हाथ खड़े कर देने के अलावा कोई चारा नहीं बचा।

अर्थशास्त्र में ऐसे धंधे को पोंजी स्कीम के नाम से जाना जाता है। 1929 से शुरू हुई महामंदी के ठीक पहले अमेरिका में चार्ल्स पोंजी नाम का एक इतालवी जालसाज पकड़ा गया था, जो लोगों से साल भर में उनकी रकम 20 से 30 प्रतिशत बढ़ा देने के नाम पर वसूली करता था। उसका धंधा कई साल आराम से चलता रहा। लोग अपने पैसों पर बैंकों से चार या पांच गुना ब्याज पाकर खुश थे। इतने अच्छे ब्याज के बाद मूलधन वापसी की बात भला कौन सोचता। लेकिन इस भव्य इमारत की बुनियाद नए ग्राहकों की लगातार आवक पर टिकी हुई थी। पोंजी का कौशल अमेरिका में मौजूद अपने इतालवी संपर्क का अधिकतम लाभ उठाने में निहित था। नए ग्राहकों की उसके यहां लाइन लगी रहती थी, जिनकी जमा राशि से वह पुराने ग्राहकों को ब्याज की अदायगी कर दिया करता था। मंदी के माहौल में जब नए ग्राहक आने बंद हो गए और पुराने ग्राहकों ने मूलधन मांगना शुरू किया तो पोंजी का पिरामिड ढह गया।

बर्नार्ड मैडॉफ के साथ चार्ल्स पोंजी की तुलना धंधे की एकरूपता के अलावा किसी और संदर्भ में नहीं की जा सकती। पोंजी खुद एक गैरकानूनी प्रवासी था। अमेरिका में रहने का वीजा तक उसके पास नहीं था। उसके शुरूआती ग्राहकों में भी ज्यादातर इतालवी प्रवासी ही थे, जिनका खुद का गुजारा मेहनत-मजदूरी या छोटी-मोटी दुकानें चला कर होता था। इसके बरक्स मैडॉफ की गिनती न्यूयॉर्क के सबसे इज्जतदार व्यापारियों में होती थी। इस बात की तस्दीक कई साल तक उसके नैस्डैक का चेयरमैन बने रहने से की जा सकती है। और तो और, मैडॉफ ने कुछ समय तक भ्रष्ट गतिविधियों की जांच और रोकथाम के सरकारी विभाग में एक मानद पद भी संभाला था।

1960 के दशक में बर्नार्ड मैडॉफ का कारोबार पार्क में फव्वारे लगाने का था। इससे जुटाए गए 5000 डॉलरों के बल पर उसने शेयर ब्रोकरेज का अपना काम शुरू किया था। 1990 में पहली बार उसने साइड बिज़नस के रूप में लोगों के पैसे निवेश करने का काम शुरू किया और 2005 में पक्के रिटर्न के दावे के साथ मैनहटन में मौजूद एक भव्य दफ्तर से अपने हेज फंड की शुरुआत की। यहां हाशिये पर इस बात का उल्लेख किया जा सकता है कि जिस तरह चार्ल्स पोंजी ने अपने इतालवी होने का फायदा उठाया था, उसी तरह मैडॉफ ने अपने यहूदी होने का लाभ अमेरिकी फाइनैंशल पावर की रीढ़ समझे जाने वाले यहूदियों का भरोसा जीत कर उठाया। इसके बाद जो हुआ वह खुद में किसी मिथक की रचना जैसा है।

हालत यह थी कि मैडॉफ के यहां अपना पैसा जमा करने के लिए बड़े-बड़े लोग भिखारियों की तरह गिड़गिड़ाते थे, लेकिन दस लाख डॉलर से कम रकम उसके यहां स्वीकार ही नहीं की जाती थी। मिलियन डॉलर या इससे ज्यादा लगाना हो तभी आएं प्लीज। और सिर्फ तभी, जब मैडॉफ ऐंड कंपनी की ओर से आपको इसके लिए ऑफिशियल इन्वीटेशन भेजा जाए! बहुचर्चित हेज फंड बर्नार्ड एल। मैडॉफ एलएलसी का ब्रोशर बताता है कि मंदी हो या तेजी, 1990 के बाद से मैडॉफ की कंपनी ने लोगों के निवेश पर हर साल 11 प्रतिशत का रिटर्न दिया था। मैडॉफ के ग्राहकों की तुलना अस्सी साल पहले बने पोंजी के गरीब-अधपढ़ ग्राहकों से करने का सवाल ही पैदा नहीं होता। दुनिया के कुछ सबसे समझदार बैंकर, म्यूचुअल फंड और पेंशन फंड मैनिजर, वेलफेयर ट्रस्ट और न्यूनतम जोखिम पर पैसा लगाने वाले सबसे कंजर्वेटिव निवेशक भी उसके यहां अपना पैसा रखने के बाद चैन की सांस लेते थे।

एक आम भारतीय के लिए अहम सवाल यह है कि क्या बर्नार्ड मैडॉफ के कुछ छोटे-बड़े संस्करण भारत में भी सक्रिय हैं? इस मामले में अमेरिकी निवेशाचार्य (इनवेस्टमंट गुरु) वारेन बफेट की एक उक्ति गौर करने लायक है- ज्वार का पानी उतरने के बाद ही पता चलता है कि समुद्र में कौन नंगा तैर रहा था। यानी जितनी ज्यादा तेजी उतना ही फाइनैंशल घपलों का खतरा। चिट फंड और रीयल एस्टेट कंपनियों की बात ही छोड़ें, एक पुराना म्युचुअल फंड यूएस-64 का इस्तेमाल भी इसके अफसर पोंजी स्कीम की तरह ही कर रहे थे। फिक्स्ड मचुअरिटी स्कीम के नाम पर देश में जितनी भी योजनाएं चल रही हैं, सरकार को उन सभी के प्रबंधन को एक बार ठोंक-बजा कर देख लेना चाहिए। यही प्रक्रिया पीएफ और पेंशन के प्रबंधन पर भी आजमाई जानी चाहिए क्योंकि लंबी मंदी के माहौल में फिक्स्ड रिटर्न की बात कहना बड़े खतरों को न्योता देने जैसा ही है।

2 comments:

राज भाटिय़ा said...

क्या करेगा इंसान दुसरो के मुह से रोटी छीन कर, बहुत सुंदर लेख लिखा आप ने.
धन्यवाद

Anonymous said...

Some of the content is very worthy of my drawing, I like your information!