परोपकार के महत्व पर संस्कृत के एक श्लोक का हिंदी भावार्थ कुछ यूं है कि नदी अपना पानी नहीं पीती और पेड़ अपना फल नहीं खाते। इस श्लोक को सुना और पढ़ा तो बहुत लोगों ने होगा, लेकिन इसे जिस तरह जीवन में उतारा जम्मू के अशोक टाडिया ने, वैसा विरले ही कर पाते हैं।
शौकिया और व्यापार के लिए बागवानी करने वाले तो बहुत हैं, लेकिन ऐसे कितने लोग होंगे, जो बड़े पैमाने पर कोई फल उगाएं, लेकिन उसे बेचने की जगह लोगों को खिला दें, बिल्कुल मुफ्त। आप चकित तो होंगे, लेकिन कठुआ की हीरानगर तहसील के अशोक टाडिया को पपीते के पौधे लगाकर उसके फल लोगों को मुफ्त खिलाने का जुनून है। वह बस इतना चाहते हैं कि पपीते की खेती को बढ़ावा मिले, क्योंकि यह जम्मू के निर्धन किसानों के मुफीद है। दो पौधों से शुरुआत करने वाले अशोक की गृह वाटिका में आज सैकड़ों पौधे हैं।
पपीता बेचने से उन्हें काफी आमदनी हो सकती है, लेकिन अशोक फल बेचने के लिए तैयार नहीं। वह कहते हैं कि लोगों को खिलाकर जो आनंद मिलता है, वह चंद पैसे कमाकर नहीं मिल सकता। उनका कहना है कि जम्मू की जलवायु पपीते की खेती के अनुकूल है, लेकिन जागरूकता न होने के कारण लोग इसकी खेती से कतराते हैं। पपीते की खेती की शुरुआत उन्होंने मात्र दो पौधों से की, लेकिन बीज अच्छी क्वालिटी का न होने के कारण पेड़ों में फल काफी कम लगे। फिर उन्होंने उत्तरांचल से 25 ग्राम बीज मंगवाकर नर्सरी डाली, जिससे 350 पौधे तैयार हुए। पपीते की खेती को बढ़ावा देने के लिए इसी नर्सरी से वह सैकड़ों पौधे मुफ्त बांट चुके हैं।
अशोक की देखादेखी और लोग भी पपीते की खेती में उतरे। अशोक का कहना है कि पपीता उगाने में काफी कम खर्च आता है तथा एक पौधे से एक वर्ष में 50-60 किलो फल मिलता है। कम लागत के कारण ही वह पपीते को जम्मू खासकर असिंचित क्षेत्र के किसानों के लिए वरदान मानते हैं। उधर बागवानी विभाग ने भी अब टाडिया से सीख लेते हुए किसानों को बीज उपलब्ध कराने की पहल की है। बागवानी अधिकारी अश्विनी शर्मा अशोक टाडिया की पहल के लिए तारीफ करते हैं। उनका कहना है कि विभाग पपीते का बीज बाहर से मंगवा कर लोगों को मुफ्त देने को तैयार है।
शौकिया और व्यापार के लिए बागवानी करने वाले तो बहुत हैं, लेकिन ऐसे कितने लोग होंगे, जो बड़े पैमाने पर कोई फल उगाएं, लेकिन उसे बेचने की जगह लोगों को खिला दें, बिल्कुल मुफ्त। आप चकित तो होंगे, लेकिन कठुआ की हीरानगर तहसील के अशोक टाडिया को पपीते के पौधे लगाकर उसके फल लोगों को मुफ्त खिलाने का जुनून है। वह बस इतना चाहते हैं कि पपीते की खेती को बढ़ावा मिले, क्योंकि यह जम्मू के निर्धन किसानों के मुफीद है। दो पौधों से शुरुआत करने वाले अशोक की गृह वाटिका में आज सैकड़ों पौधे हैं।
पपीता बेचने से उन्हें काफी आमदनी हो सकती है, लेकिन अशोक फल बेचने के लिए तैयार नहीं। वह कहते हैं कि लोगों को खिलाकर जो आनंद मिलता है, वह चंद पैसे कमाकर नहीं मिल सकता। उनका कहना है कि जम्मू की जलवायु पपीते की खेती के अनुकूल है, लेकिन जागरूकता न होने के कारण लोग इसकी खेती से कतराते हैं। पपीते की खेती की शुरुआत उन्होंने मात्र दो पौधों से की, लेकिन बीज अच्छी क्वालिटी का न होने के कारण पेड़ों में फल काफी कम लगे। फिर उन्होंने उत्तरांचल से 25 ग्राम बीज मंगवाकर नर्सरी डाली, जिससे 350 पौधे तैयार हुए। पपीते की खेती को बढ़ावा देने के लिए इसी नर्सरी से वह सैकड़ों पौधे मुफ्त बांट चुके हैं।
अशोक की देखादेखी और लोग भी पपीते की खेती में उतरे। अशोक का कहना है कि पपीता उगाने में काफी कम खर्च आता है तथा एक पौधे से एक वर्ष में 50-60 किलो फल मिलता है। कम लागत के कारण ही वह पपीते को जम्मू खासकर असिंचित क्षेत्र के किसानों के लिए वरदान मानते हैं। उधर बागवानी विभाग ने भी अब टाडिया से सीख लेते हुए किसानों को बीज उपलब्ध कराने की पहल की है। बागवानी अधिकारी अश्विनी शर्मा अशोक टाडिया की पहल के लिए तारीफ करते हैं। उनका कहना है कि विभाग पपीते का बीज बाहर से मंगवा कर लोगों को मुफ्त देने को तैयार है।
6 comments:
बहुत अच्छा काम कर रहे हैं । पपीता स्वास्थ्य के लिए भी बढ़िया होता है और फल भी बहुत जल्दी देता है ।
घुघूती बासूती
अशोक टाडिया जी जैसे ही मानवता का गहना हैं।
अरे यह काम भी महानता का पैमाना है तो कई महान लोग मेरी जानकारी मे है .
अशोक टाडिया एक नया रास्ता दिखा रहे है उन लोगो को, उन्हे हमारा नमन.
आप को धन्यवाद
सच में आप महान हैं मित्र |
i am also interested to know much about the cultivation of papaya, please provide us seeds and some more special tips related to plantation of papaya.
saurabh
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