प्रस्तुति - नवभारत टाइम्स
कचरे में फेंकी गई प्लास्टिक की थैलियों को वैज्ञानिक प्रक्रिया से गलाकर
पेट्रॉल में परिवर्तित किया जा सकता है। जानी-मानी वैज्ञानिक जोड़ी महेश्वर शरण और उनकी पत्नी माधुरी ने ऐसी टेक्नॉलजी तैयार की है कि जिससे 25 किलो प्लास्टिक की थैलियों से लगभग 25 लीटर पेट्रॉल बनाया जा सकता है। पति महेश्वर आईआईटी-मुम्बई के केमिकल टेक्नॉलजी डिपार्टमंट से रिटायर हुए हैं और पत्नी माधुरी ने पति के हार्ट अटैक आने के बाद 'रिलायंस लाइफसाइंसेस' के डाइरेक्टर का पद त्याग चुकी हैं।
दोनों बेटियों के अमेरिका में बस जाने के बाद आजकल शरण दंपती भारत को 'कटिंग एज टेक्नॉलजी' में बढ़त दिलाने में दिनरात जुटे हुए हैं। पति-पत्नी के निर्देशन में 22 वैज्ञानिक नैनो-टेक्नॉलजी के विभिन्न क्षेत्रों में रिसर्च कर रहे हैं। महेश्वर भारत में कार्बन नैनो-टेक्नॉलजी के जनक माने जाते हैं। माधुरी जी बताती हैं कि 26 जुलाई 2005 को मुम्बई को डुबोने वाली भीषण बाढ़ ने मुम्बई के सुदूर उपनगर डोंबिवली के 'लोढा हैवन' की हरियाली में बना 'शरण बंगला' भी डुबो दिया।
इसी तबाही से हुई थी चमत्कारिक परिणाम देने वाले एक्सपेरिमेंट्स की शुरूआत। तब प्रशासन और सरकार ने प्लास्टिक की थैलियों को बाढ़ के लिए जिम्मेदार ठहराया था, जिसकी वजह से नालियां बंद हो जाती हैं। ये भय भी व्यक्त किया गया कि प्लास्टिक की झिल्लियां कई पीढ़ियों के लिए सिरदर्द बनेंगी क्योंकि ये हजारों साल तक नष्ट नहीं होंगी।
भारत के अलावा अमेरिका, इंग्लैंड, जापान, इटली में अपना लोहा मनवा चुके मस्तिष्कों की इस बेजोड़ युति ने हल निकाल ही लिया। हल भी ऐसा कि विश्व भर के पर्यावरण के सामने मुंह बाए खड़ा प्लास्टिक का संकट तो हल हुआ ही दिनों-दिन कम हो रहे ऊर्जा भंडार को भी एक नया स्त्रोत भी दिखाई देने लगा। कल्याण से बिरला कॉलिज में सीएसआईआर की सहायता से बने भारत के एकमात्र 'नैनो बॉयो-टेक्नॉलजी सेन्टर' में युद्धस्तर पर काम शुरू हुआ। महीने भर में प्लास्टिक को पिघलाकर मोम (वैक्स) बनाने की टेक्नॉलजी ने आकार लिया।
वैज्ञानिक युगल ने सितंबर 2005 को महाराष्ट्र सरकार को पत्र लिखकर बताया कि प्लास्टिक के संकट पर हल निकाल लिया गया है। नौकरशाही के मकड़जाल के बीच से आजतक कोई खबर नहीं जवाबी प्रतिक्रिया नहीं आई है। मगर वैज्ञानिक जगत की हलचल केन्द्रीय पर्यावरण विभाग तक पहुंची और दिल्ली में प्लास्टिक से 'वैक्स' बनाने का संयंत्र कागजों पर दौड़ लगा रहा है।
यह 'क्रांतिकारी' संयंत्र वास्तव में आकार ले पाता, इससे पहले शरण दंपती की लैबोरेटरी में प्लास्टिक से पट्रोलियम बनाए जाने की नई खबर ने हलचल मचा दी है। ' नवभारत टाइम्स' के लिए विशेष तौर पर किए परीक्षण में दोनों ने उच्च दर्जे का पेट्रॉल बनाने का प्रदर्शन किया। एक छोटे से 'फर्नेस' में प्लास्टिक के कचरे से बने दाने डाले गए। कंटेनर में ज्यादा प्लास्टिक भरा जा सके, इसके लिए प्लास्टिक की थैलियों को गलाकर उनके दाने बना लिए जाते हैं। परीक्षण में एक 'कैटेलिस्ट' की कुछ बूंदें डाली जाती हैं और कुछ घंटे तक करीब 400 डिग्री तक तपाने के बाद दूसरे सिरे पर लगे पाइप में पेट्रॉल जमा होने लगता है। कैटलिस्ट, तापमान और प्लास्टिक की क्वॉलिटी और इस मिश्रण की मात्रा बदलकर वैक्स, फरनैस आयल या पेट्रॉल, विभिन्न तरह के पेट्रो-केमिकल पाए जा सकते हैं। धीर-गंभीर महेश्वर शरण अपने कम शब्दों के बोलचाल में स्पष्ट करते हैं।
कभी धीरूभाई अंबानी से 65 लाख की तन्ख्वाह के अलावा रोजाना जामनगर से मुम्बई लौटने के लिए प्राइवेट प्लेन की मांग रखकर उसे मनवाने वाली माधुरी इस वैज्ञानिक चमत्कार के बाद अपना उत्साह थाम नहीं पा रहीं। 'इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह ''क्लीन फ्यूल'' है। न तो परीक्षण में किसी तरह की जहरीली गैस निकलती है, न ही कोई केमिकल कचरा बचता है। सभी कुछ या तो वैक्स या पेट्रॉल में बदल जाता है या फिर मीथेन गैस में, जिसका उपयोग फिर ऊर्जा के तौर पर किया जा सकता है।
एक और बात यह भी कि इस पेट्रोल में खतरनाक 'लेड' बिलकुल नदारद है।' आज पेट्रॉल और वैक्स बनाने के लिए जिस मशीनरी का उपयोग किया जा रहा है, वह घर में भी लगाई जा सकती है। महाराष्ट्र में जहां यह काम हो रहा वहां प्लास्टिक की पतली झिल्लियों पर प्रतिबंध लगाया चुका है, शरण दंपती के एक्सपेरिमंट में यह बात सामने आई है कि इसी से कॉस्मेटिक उपयोग में लाया जानेवाला 'सॉफ्ट वैक्स' और बेहतर पेट्रॉल बनता है।
वैक्स भी भारत में नहीं बनता और इसको फिलहाल ईरान और चीन से इम्पोर्ट किया जा रहा है। फिलहाल इसके कमर्शल प्रॉडक्शन की कॉस्टिंग उनके कुछ मित्र कर रहे हैं। जाहिर है, कैटलिस्ट के केमिकल काम्पोजीशिन की तरह फिलहाल इस बारे में वे गोपनीयता बरत रहे हैं।
12 comments:
वाह.. अगर ये सच है तो बहुत बहुत बड़ी उपलब्धि होगी यहाँ भारत के लिए..
अच्छी खबर है ! वाह !!!!
वाह !!!!अच्छी खबर है !
बहुत ख़ूब, पर प्रदूषण का क्या?
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चाँद, बादल और शाम
http://prajapativinay.blogspot.com/
बहुत सुंदर कबर है, वेसे हमारे विगयानिक दुनिया मै अपना लोहा मनावा चुके है, भारत मै सिर्फ़ इस लिये काम याब नही होते की यहां नोकर शाही ओर बहुत सी ऎसी बाते है कि भारतीया ड्रा ओर विग्यनिक अपने ही देश मै सफ़ल नही हो पाते, अमेरिका मे ४०% भारतीया ड्रा ओर विगाय्निक है, ओर इन के बिना अमेरिका जीरो है, ओर जब कोई भारतीया अपना नाम करता है तो हमारे मत्री फ़िर उसे सर पे बिठाते है कुछ दिनो के लिये.
ओर अगर यह खबर सच्ची है तो बहुत अच्छी खबर है हम सब भारतीयो के लिये.
धन्यवाद
विवेक जी,
इस खबर को पिछले कई महीनों में जगह जगह पढ चुका हूँ लेकिन इसका कोई ठोस लिंक नहीं मिल रहा है ।
आज से करीब ४-५ वर्ष पहले UDCT Mumbai की लैब में भी प्लास्टिक से पेट्रोल बनाने की खबर की चर्चा खूब थी लेकिन कुछ सामने नहीं आया । मैं खुद एक कैमिकल इंजीनियर हूँ इससे इसके बारे में जानने का ज्यादा इच्छुक हूँ ।
आप अपनी खबर के स्रोत के बारे में कुछ जानकारी दीजिये । मैने कुछ खोज की लेकिन किसी Technical Journal में इस प्रकार का कोई शोधपत्र नहीं मिला है ।
अधिक जानकारी का इन्तजार रहेगा, और मन में भय भी है कि कहीं ये एक और Internet Hoax तो नहीं ।
ज्यादा जानकारी तो IIT MUMBAI से पता चल सकती है वही पर वैज्ञानिक जोड़ी महेश्वर शरण और उनकी पत्नी माधुरी काम करते थे |
खबर सही है तो यह नोबुल प्राइज के लायक काम है। दुनिया को कचरा मुक्त करने और ईंधन उपलब्ध कराने के लिए।
I do not believe this, where is the scientific publication and documentation and validation by scientific institute.
If this is true, It should have been a Nature or Science publication.
शुभ समाचार है। भारत का आत्मविश्वास जाग रहा है॥
I think I come to the right place, because for a long time do not see such a good thing the!
It seems my language skills need to be strengthened, because I totally can not read your information, but I think this is a good BLOG
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