Saturday, January 31, 2009

भारतीय यूकी भांबरी


जूनियर ग्रैंडस्लैम खिताब जीतने वाले चौथे और ऑस्ट्रेलियाई ओपन अपने नाम करने वाले पहले भारतीय यूकी भांबरी अब सीनियर सर्किट में ध्यान केंद्रित करेंगे। यहाँ शनिवार को जर्मनी के एलेक्जांद्रोस फर्दीनान्दोस जियोरगाउडास को 6-3 और 6-1 से हराकर खिताब हासिल करने वाले इस 16 वर्षीय शीर्ष वरीय ने कहा कि अगर मैंने यहाँ खिताब नहीं जीता होता तब भी मैंने पुरुष टूर्नामेंट पर ध्यान केंद्रित कर और पुरुष सर्किट में ज्यादा से ज्यादा खेलने की योजना बना ली थी।
इस जीत से दिल्ली का यह युवा पूर्व ऑस्ट्रेलियाई ओपन के जूनियर चैम्पियन की सूची में आ गया है, जिन्होंने पुरुष सर्किट में शानदार प्रदर्शन किया है। इनमें एंडी राडिक, मार्कोस बघदातिस और गेल मोंफिल्स शामिल हैं।
मेलबोर्न पार्क की भयानक गर्मी से नोवाक जोकोविच जैसे दिग्गज खिलाड़ियों को थका दिया हो, लेकिन यूकी ने कहा कि यह उनके लिए बड़ी समस्या नहीं थी। यूकी ने कहा कि भारतीय होने के हिसाब से मुझे इसमें काफी मदद मिली। आप भले ही इस गर्मी के आदी नहीं हो सकते, लेकिन भारत में आप ऐसी ही परिस्थितियों में खेलते हो।
यह पूछे जाने पर कि यहाँ जूनियर एकल खिताब जीतने वाला पहला भारतीय बनने से कैसा महसूस हो रहा है तो यूकी ने कहा कि जब वे आज कोर्ट पर उतरे थे तो उन्हें इसकी जानकारी नहीं थी।उन्होंने कहा कि पहला भारतीय होने के अलावा भी ऑस्ट्रेलियाई ओपन जीतना निश्चित रूप से एक बड़ी उपलब्धि है। मेरा मतलब है कि यह सचमुच मेरे लिए एक खबर थी, लेकिन मैंने इसे जीतने का सपना देखा था और अब यह सच हो गया।
यूकी ने कहा कि वे मेलबोर्न पार्क में कोर्ट पर उतरने से पहले नर्वस थे, लेकिन बाद में दर्शकों की भीड़ के आदी हो गए और उन्होंने फाइनल के दौरान अद्भुत माहौल का आनंद उठाया। उन्होंने कहा मैं पहली बार इतने बड़े स्टेडियम में खेल रहा था। जैसे ही मैच आगे बढ़ा, मैं थोड़ा सहज हो गया। मैच के लिए अपनी योजना के बारे में यूकी ने कहा कि वे अपने प्रतिद्वंद्वी के बारे में कुछ नहीं जानते थे, इसलिए वे सिर्फ अपने गेम पर ही ध्यान लगा रहे थे। यूकी ने जर्मनी के अपने प्रतिद्वंद्वी को 57 मिनट में 6-3 और 6-1 से शिकस्त दी। यूकी ने कहा कि मैं सिर्फ अपने खेल पर ध्यान लगाना चाहता था। मैं जानता था कि यह एक बड़ा मैच होगा। वे 2008 ऑस्ट्रेलिया ओपन के सेमीफाइनल में बाहर हो गए थे।

Wednesday, January 28, 2009

जुनून कुछ कर गुजरने का


प्रस्तुति - जयदीप कर्णिक

वैसे उनका एक परिचय और भी है। ... पर वो बाद में। नाम वे लिखती हैं आशीष रामगोविंद। काम है समाजसेवा। जुनून है कुछ कर गुजरने का। उनकी सादगी और सौम्य, शिष्ट व्यवहार के बावजूद आप उनके हौसलों की बुलंदी और निश्चय की गहराई को भाँप सकते हैं।उनका जन्म डर्बन में हुआ।

लोक प्रशासन में पीएचडी की। समाज में बदलाव की उत्कट अभिलाषा उन्हें सारी दुनिया घुमा लाई। अपने जन्म स्थान डर्बन और बाकी दक्षिण अफ्रीका में भी उन्होंने खूब काम किया। पर भारत से जुड़े उनके तार इतने मजबूत थे कि उनके कदम हिन्दुस्तान की ओर मुड़ ही गए।अपनी माँ को मिले पद्मभूषण पुरस्कार को लेने जब वे उनके साथ भारत आईं तो रिश्तों की डोर ने उन्हें यहीं खींच लिया।

भारत में भी उन्होंने इंदौर को अपनी कर्मभूमि के रूप में चुना। यहाँ के समाजसेवी महेंद्र सोमानी के साथ विचारों का साम्य बैठा। देवकी नगर की कीचड़ सनी गलियों को पार कर बच्चों को पढ़ाने व महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने का बीड़ा उठाया। वे संस्था पीडीआई की निदेशक हैं। अब इनका एक और परिचय। आशीष महात्मा गाँधी की परपोती हैं। वे गाँधीजी के पुत्र मणिलाल गाँधी की सुपुत्री इला गाँधी की बेटी हैं। उनके पिता मेवा रामगोविंद दक्षिण अफ्रीका में सांसद हैं।आप चौंक गए न ! जी हाँ। यह वह परिचय है, जिसका इस्तेमाल वे कम से कम करना चाहती हैं।

बहरहाल, इंदौर के लिए अच्छी खबर यह है कि उन्होंने दक्षिण अफ्रीका से यहीं आकर बसने का निर्णय ले लिया है। वे अपनी संस्था पीडीआई के माध्यम से कार्यों को आगे बढ़ाना चाहती हैं और चाहती हैं कि शहर के बाकी लोग भी इसमें मदद करें। उनसे चलते-चलते पूछा कि अब आपको गाँधीजी कहाँ नजर आते हैं... उन्होंने तपाक से कहा- बस पुतलों में !! हम उम्मीद करें कि गाँधीजी की ये परपोती अपनी विरासत को सार्थक करते हुए गाँधीजी को पुतलों से बाहर इंसानों में बसा पाएँगी।

Tuesday, January 27, 2009

चीन के विद्वान को भी पद्म भूषण सम्मान

इस बार पद्म भूषण सम्मान एक ऐसी शख्सियत को भी दिया गया है जिन्होंने चीन को रामायण और भारतीय संस्कृति से रू-ब-रू कराया है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह चीन की यात्रा पर गए थे और उनके लौटने के 10 दिनों के भीतर जी जियानलीन को पद्म भूषण से सम्मानित करने का फैसला किया गया।

इसे भारत की ओर से चीन की तरफ दोस्ती और विश्वास बहाली की दिशा में बढ़ाए गए कदम के रूप में देखा जा रहा है। जी जियानलीन ने संस्कृत की कई रचनाओं का चीनी भाषा में अनुवाद किया है। ऐसा माना जाता है कि चीन के लोग भारतीय संस्कृति के बारे में जो भी जानते हैं उसमें जियानलीन का बहुत बड़ा योगदान है। पेइचिंग यूनिवर्सिटी में सेंटर फॉर इंडियन स्टडीज के उप निदेशक जियांग क्यू का कहना है, ' यह भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की ओर से दोनों देशों के बीच रिश्ते को मजबूत करने के लिए उठाया गया बड़ा कदम है। इससे चीन में भारत के बारे में विचार बदलेंगे। ' लेकिन ऐसा नहीं है कि जियानलीन को सिर्फ राजनीति कारणों से ही पद्म भूषण सम्मान दिया गया है, वह हर कसौटी से इस सम्मान के हकदार है।

वह चीन में भारतीय संस्कृति के जानकार और विचारक माने जाते हैं। सूत्रों का तो यह भी कहना है कि मनमोहन सिंह की यात्रा के दौरान चीन के प्रधानमंत्री वेन जियाबओ ने उन्हें बताया था कि जियानलीन उनके गुरु रहे हैं। भारत में चीन की राजदूत निरुपमा राव पिछले साल जियानलीन से मिली थीं और उसके बाद दिसंबर से ही सरकार उनको सम्मानित करने के बारे में सोच रही थी। लेकिन जब जियाबओ ने भी उनकी तारीफ की तो भारत सरकार ने उन्हें सम्मानित करने का फैसला कर लिया।

97 साल के जियानलीन सैन्य अस्पताल में रहते हैं और लोगों से काफी कम मिलते-जुलते हैं। पेइचिंग यूनिवर्सिटी में संस्कृत के प्रोफेसर वांग बांग का कहना है, ' जियानलीन को सम्मानित करने से चीन में भारत के प्रति नजरिये में बदलाव होगा। जियानलीन इस सम्मान के लिए सबसे बेहतरीन विचारक हैं। '

Monday, January 26, 2009

नो स्मोकिंग



TAR = चारकोल = कार्बन रसायनों का मिश्रण

Thursday, January 22, 2009

राहुल द्रविड़ की मां - पुष्पा द्रविड़


स्टार क्रिकेटर राहुल द्रविड़ की मां नहीं, पुष्पा द्रविड़ कहिए। मुझे यही संबोधन प्रिय है। मेरी अपनी पहचान यही है। देश के प्रसिद्ध चित्रकारों में शामिल, कर्नाटक की लोकप्रिय चित्रकार डॉ. पुष्पा द्रविड़ के लैंडस्केप, पोट्रेट और वॉश के फिगरेटिव पेंटिंग्स भी देशभर में सराही जाती हैं।
इंदौर से बेंगलुरू?
मेरा बचपन इंदौर में बीता। 1965 में उज्जैन के विक्रम विश्वविद्यालय से एमए (चित्रकला) के पहले बैच की छात्रा बनीं। यही जिंदगी का टर्निग प्वाइंट रहा। इसके बाद कला और कलाकारों की संगत ने जीवन के रंग ही बदल दिए। यहां मैं और डॉ. भावसार बैचमेट थे। पढ़ाई के बाद कुछ वष्रो तक इंदौर में अध्यापन फिर ग्वालियर में शादी हुई। वहां से पति शरद के तबादलों के चलते अनेक शहरों में रहते हुए, 1992 में बेंगलुरू पहुंचे और फिर वहीं के होकर रह गए।अब किसी को बताएं कि द्रविड़ परिवार मुख्यत: मप्र से संबंध रखता है तो लोगों को यकीन नहीं होता।
परिवार , कला और क्रिकेट ?
चित्रकला को करियर के रूप में अपनाने के बाद भी मेरी प्राथमिकताओं में परिवार सबसे पहले रहा। मैंने बच्चों की शिक्षा, परवरिश और संस्कारों का पूरा ध्यान रखा। उसके बाद कला फिर क्रिकेट देखने के लिए समय निकाला। राहुल के भीतर जो धर्य है, उसमें मेरे घंटों तक रंगों के काम्ॅबीनेशन, ब्रश के सलीके का भी खासा योगदान है। राहुल को क्रिकेट की ललक पिता से मिली और ‘बेस्ट इन क्लास’ की प्रेरणा मुझसे।
क्रिकेट पर बात नहीं ?
क्रिकेट पर बात के लिए राहुल ही परफेक्ट है। मेरे पास क्रिकेट देखने के लिए लंबा समय नहीं है। कभी-कभी झलकियां जरूर देख लेती हूं।
58 वर्ष में पीएचडी ?
कॉलेज की पढ़ाई के दौरान ही मेरा मन पीएचडी करने का था, लेकिन उस समय संभव नहीं हुआ। बाद में भी किसी न किसी कारण से यह टलता रहा। रिटायरमेंट के अंतिम वर्षो में मुझे लगा कि अब परिवार की जिम्मेदारियां पूरी हो गई हैं, तो सोचा कि यही समय है और बस पीएचडी कर ली।
राहुल की सर्वोत्तम पारी ?
मेरे ख्याल से राहुल की सबसे अच्छी पारी उस समय आई जब वह तीसरी क्लास में था। राहुल ने उस मैच में शतक लगाया था और 3 विकेट भी लिए थे। यह इतना शानदार प्रदर्शन था कि स्कूल ने एक सप्ताह बाद राहुल को ट्राफी देकर सम्मानित किया। मेरे लिए यह बेटे का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है।

Sunday, January 18, 2009

बुजुर्गो के हमसफर

प्रस्तुति - जागरण नई दिल्ली


समाज में कुछ बुजुर्ग ऐसे भी हैं, जिन्हें उम्र के इस पड़ाव पर प्यार और सम्मान के बजाय उपेक्षा और अकेलेपन का दंश झेलना पड़ता है। इस कारण बहुत से बुजुर्ग बुढ़ापे को बोझ मानने लगते हैं, पर समाज में ऐसे लोग भी हैं, जो बुजुर्गो के जीवन को सुविधाजनक बनाने में लगे हुए हैं। ऐसा ही एक अभियान है 'बुजुर्गो के हमसफर'। इस अभियान का उद्देश्य है बुजुर्गो के लिए कहीं भी आने-जाने के लिए मुफ्त वाहन सेवा उपलब्ध करवाना। दिल्ली में रहने वाले किसी बुजुर्ग को चाहे उसे बैंक, अस्पताल आदि जाना हो या दिल्ली की सैर करनी हो।
उसे बस, एक हेल्पलाइन नंबर डॉयल करना होगा और थोड़ी ही देर में उनके दरवाजे पर ड्राइवर के साथ गाड़ी हाजिर हो जाएगी। फिलहाल दिल्ली में इस सेवा के जरिए हर रोज तीन-चार बुजुर्ग लाभान्वित हो रहे हैं। बुजुर्गो के लिए राजधानी में अपने किस्म की यह अनूठी सुविधा उपलब्ध करवा रही है, गैर सरकारी संस्था 'द पाथ' और इस अभियान का मीडिया पार्टनर है, सामाजिक सरोकारों के प्रति प्रतिबद्ध अखबार 'दैनिक जागरण'।
पिछले साल अगस्त माह से चल रही इस सेवा को शुरू करने का आइडिया कैसे आया? यह पूछने पर 'द पाथ' की अंजली गुप्ता ने बताया कि दिलशाद गार्डन में जहां वे रहती हैं। उस कॉलोनी में बहुत से बुजुर्ग भी रहते हैं। वे अक्सर देखती थी कि उनको कहीं आने-जाने में बहुत तकलीफ होती थी। एक बार एक अंकल-आंटी को अपने बेटे का कार्यक्रम देखने जाना था। उन्होंने हमसे वहां ले चलने का आग्रह किया। मुझे ड्राइविंग आती नहीं थी, सो पति को फोन करके बुलाया और उनको कार्यक्रम दिखाने ले गए। उस दिन जो खुशी मिली उसे शब्दों में नहीं बता सकती। फिर तो सिलसिला ही चल पड़ा। किसी बुजुर्ग को कहीं जाना होता, हम ऑटो या टैक्सी करके भी उनको ले जाते थे। ऐसा करते हुए डेढ़ साल बीत जाने के बाद लगने लगा कि हर माह इस काम पर खर्च बढ़ता ही जा रहा है। बावजूद इसके हम इसे जारी रखे हुए थे।
इसमें मुझे मेरे पति बाल रोग विशेषज्ञ डॉ.पीयूष गुप्ता का भरपूर सहयोग मिलता रहा। अंजली बताती हैं कि एक कार्यक्रम के दौरान ओजोन ग्रुप के एससी सहगल से मुलाकात हुई और उन्होंने न केवल इस कार्य को सराहा, बल्कि हमें इसके लिए गाड़ी भी दी। आज इस सेवा के अंतर्गत तीन गाडि़यां चल रही हैं। ड्राइवर, ईधन आदि का पूरा खर्च प्रायोजित कंपनी ही वहन करती है। हमारे इस कार्य को आगे बढ़ाने में असीम घोष और वीएस माथुर का भी भरपूर सहयोग मिला है। कुछ दिनों में 'बुजुर्गो के हमसफर' में दो और गाडि़यां शामिल हो जाएंगी। इस अभियान को चलाने का हमारा उद्देश्य यही है कि समाज बुजुर्गो को बोझ न समझे। उनको प्यार और भरपूर सम्मान दे। बहुत तकलीफ होती है, जब साधन-संपन्न परिवारों में भी बुजुर्गो को दयनीय हालत में देखती हूं।

एक और ग़ज़ल (नूर ज़हान)

Saturday, January 17, 2009

नूर ज़हान - मुझसे पहिली सी मुहब्बत

मुझसे पहिली सी मुहब्बत मेरे महबूब न मांग
गायक - नूर ज़हान


Friday, January 16, 2009

चुटकला और अमेरिका की ठण्ड

















चुटकला

संता सड़क पर जा रहा था कि तभी एक चिड़िया उसके सिर पर बीट करके उड़ गई।
रुमाल से सिर साफ करते हुए संता बोला - भगवान का लाख लाख शुक्र है कि उसने गाय भैंसों को उड़ने के लायक नहीं बनाया।

अमेरिका की ठण्ड

आजकल अमेरिका के उत्तर पश्चिम में -३३ फारेनहाईट (-३६ सेल्सियस) तापमान चल रहा है । चित्र में माता जी अपने बालक को स्कूल छोड़ने जा रही हैं ।

Wednesday, January 14, 2009

श्लोक - संस्कृति संजीवनी से

उत्थायोत्थाय बोधह्व्यम किमद्य सुकृतं कृतम ।
आयुष: खंडमादाय रविरस्तम गमिष्यति । ।

मनुष्य को प्रतिदिन प्रात: काल उठते ही यह सोचना चाहिए की आज मुझे क्या सुकर्म करना है, क्या सुकर्म मैंने किया है? क्योंकि आयु के एक भाग को लेकर आज भी सूर्य अस्त हो जायेगा । प्रतिदिन मनुष्य की आयु का एक भाग छीण होता रहता है ।

Tuesday, January 13, 2009

गुलज़ार साहेब का गाना (slumdog millionarrie से )

गुलज़ार साहेब का गाना (slumdog millionarrie से )

Sunday, January 11, 2009

ग़ज़ल - हम उन्हें वो हमें भुला बैठे

खुमार बाराबंकी साहेब की ग़ज़ल

Wednesday, January 7, 2009

रंग का असर

नीला और हरा रंग पुरुषों को खुशनुमा अहसास देता है। इससे पुरुषों में आत्म विश्वास भी बढ़ता है। जबकि नीला, बैंगनी और नारंगी रंग महिलाओं में खुशियां भर देता है और उनका कॉन्फिडेंस लेवल बढ़ा देता है।
इंसानों पर रंगों के असर को जानने के लिए यह स्टडी की गई। इसमें लोगों को कुछ रंग और उन्हीं रंगों की लाइटें दिखाई गईं। जिन लोगों को इन रंगों के संपर्क में रखा गया, उन्होंने मेंटल टेस्ट को 25 फीसदी तेजी से पूरा किया। प्रतिक्रिया देने का समय भी 12 फीसदी बढ़ गया। याददाश्त में भी गजब का सुधार देखा गया। यहां तक कि चमकदार रंगों के संपर्क में मौजूद लोगों की ताकत में भी इजाफा दिखाई दिया। रिसर्चर डॉ. डेविड लेविस ने बताया कि काफी ठंड वाले दिन इंसानों की मनोदशा पर काफी बुरा असर डाल सकते हैं। मौसम जितना अंधेरे वाला होगा, उतना ही हम पर बुरा असर डालेगा। ऐसे मौसम में हमारा डिप्रेशन भी बढ़ सकता है।

आप सभी भी कोशिश कीजिए कि आपके घरों, विशेषकर बूढों एवं बच्चों के कमरे में रंग का ध्यान रखा जाए

Monday, January 5, 2009

अभी तो मैं ज़वान हूँ - मल्लिका पुखराज

अभी तो मैं ज़वान हूँ




आपकी याद आती रही रात भर

चुटकला

चुटकला #१

लड़का वालों को लड़की पसंद आ गई और उन्होंने लड़की वालों से कहा कि शादी कब करनी है ?

इस पर लड़की वालों ने कहा कि अभी हमारी लड़की पढ़ रही है , पढ़ाई के बाद शादी होगी।

लड़के वालों ने गुस्से में कहा कि हमारा लड़का क्या बंदर है , जो किताबें फाड़ देगा ?

चुटकला #२

पागलखाने के एक डॉक्टर ने घर पहुंचकर पत्नी को आवाज लगाते हुए कहा ,

दिन भर पागलों के साथ रहते रहते मैं भी आधा पागल हो गया हूं।

किचन में काम करती पत्नी वहीं से बड़बड़ाई , कोई काम तो पूरा कर लिया करो।

चुटकला #३

बस चली , झटका लगा।

संता जी एक लड़की पर जा गिरा।

लड़की बोली , बदतमीज़ क्या कर रहे हो ?

संता : जी , पंजाब यूनिवर्सिटी से बीए फाइनल।

Saturday, January 3, 2009

देसी फंडा - फिटनस मंत्र

अब यूथ का फिटनस मंत्र बदल रहा है। यूथ फिटनस के शॉर्टकट तरीकों से बाहर निकल नैचुरल फंडा अपना रहे हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी फिगर मेंटेन करने वाली पिल्स पर बैन लगा दिया है। इसके बाद देसी फंडे का महत्व बढ़ा है।

इसकी खासियत है होम मेड ड्रिंक के साथ वर्कआउट और बैलंस डाइट। ग्लैमरस फिगर के लिए परफेक्ट मंत्र। डायटीशियन्स का भी कहना है कि अगर यूथ इस मंत्र को अपना लें, तो बॉलिवुड स्टार सलमान खान व करीना कपूर जैसी फिगर पाना कोई मुश्किल काम नहीं होगा।
यूथ अब परफेक्ट फिगर पाने के लिए डायटीशियन से कंसर्ट कर रहे हैं। कुछ हेल्थ क्लबों में जमकर वर्कआउट कर रहे हैं। हेल्थ एक्सपर्ट व डॉक्टर्स का मानना है कि दवाइयों से स्लिम ट्रिम बॉडी पाई जा सकती है लेकिन दवा छोड़ते ही साइड इफेक्ट का सामना करना पड़ता है। अब जबकि इन पर बैन लगा दिया गया है, तो फिटनेस के लिए देसी नुस्खे अपनाए जा सकते हैं। डायटीशियन पारूल पाटनी ने बताया कि बैलंस डाइट के साथ वर्कआउट कर फिगर मेंटेन की जा सकती है।
आजमाएं इन टिप्स को बहुत ज्यादा फ्रूट्स, बॉयल वेजिटेबल और जंक फूड अवाइड करें। इनके ज्यादा इस्तेमाल से मेटाबॉलिक रेट कम हो जाता है। नतीजा बीमारियां। इनकी जगह पर प्लेन सैंडविच व इडली-डोसा लिया जा सकता है , वह भी होम मेड।
-कोल्ड ड्रिंक की जगह घर में बना नींबू पानी, सर्दियों में गुनगुने पानी में शहद डालकर सुबह ले सकते हैं। इसके अलावा नारियल पानी पिया जा सकता है। जूस ले सकते हैं।
-चाय-कॉफी से परहेज करना चाहिए। इनकी जगह ग्रीन टी लेना ज्यादा फायदेमंद है। चाय की पत्ती व दूध न होने से एंटीऑक्सिडंट बहुत ज्यादा होते हैं, जो हेल्थ के लिए अच्छे हैं। इसके अलावा ग्रीन टी कैलरी फ्री होती है। इसलिए मोटापे की कोई टेंशन ही नहीं।
-सर्दियों में अक्सर गजक व रेवड़ी खाई जाती हैं। इन्हें लिया जा सकता है। चीनी की गजक की जगह गुड की गजक फायदेमंद है। सर्दियों में गुड़ फायदा पहुंचाता है। इसके अलावा स्वीट्स में खीर ली जा सकती है। इसमें चीनी की जगह शुगर फ्री यूज़ करें।
-विंटर में ग्रीन वेजिटेबल ज्यादा से ज्यादा खानी चाहिए। बॉडी को आयरन व कैल्शियम व प्रोटीन खूब मिलते हैं। इन्हें खाने से फिर किसी प्रोटीन पाउडर की जरूरत नहीं रहेगी।

मेरा विचार

मैंने कई दिन पहिले प्रतिदिन व्यायाम करना प्रारम्भ किया । उससे मुझे काफी फायदा हुआ ।

१। आपका शरीर स्वस्थ रहता है ।

२। आपके शरीर में सदैव नई उर्जा रहेगी ।

३। आपकी ध्यान शक्ति बढती है ।

४। आपकी भूख खुलती है ।

५। आपमें शक्ति का संचय होना प्रारम्भ हो जाता है ।

६। व्यायाम करने वाले सभी लोगों को जूस तथा दूसरे शक्तिवर्धक ड्राई फूट, हरी सब्जी और फल ज़रूर लेने चाहिए । अपनी डाईट का इंतजाम ख़ुद कीजिए (जूस निकालना आदि आदि) । पूरे परिवार को इसके लिए परेशान नहीं कीजिए ।

Friday, January 2, 2009

जंगल उगाने का जुनून

भोपाल कोई व्यक्ति अपने जीवन में कितने पौधों को रोप सकता है। पांच, दस, पंद्रह या फिर सौ, लेकिन इब्राहिमपुरा की शेख बत्ती गली में रहने वाले उमर अलीम ने जंगल उगाने के जुनून में 12 हजार पेड़ों का पूरा जंगल खड़ा कर दिया।
श्री अलीम ने भोपाल से 15 किलोमीटर दूर बैरागढ़ रोड स्थित ग्राम हिनोतिया जागीर में अपने जमीन के पास की पहाड़ी पर यह जंगल उगाया है। यह श्री अलीम के जंगल उगाने के जुनून का ही नतीजा है कि 24 साल पहले बंजर हो चुकी 65 एकड़ की पहाड़ी का 15 एकड़ क्षेत्र आज घने जंगल में तब्दील होकर कई जंगली जानवरों की पनाहगाह बन गया है।
लगाया सागौन का जंगल:
उम्र के पांच दशक पार कर चुके श्री अलीम 1984 के पूर्व सऊदी अरब में एक कंपनी में काम करते थे। बढ़ती उम्र ने बुजुर्र्गो की जायदाद याद दिलाई और वे वापस भोपाल आ गए। यहां उन्होंने ग्राम हिनोतिया जागीर की पुरखों की 40 एकड़ जमीन पर खेती करना शुरू किया। श्री अलीम के अनुसार उनकी जमीन के पास की बंजर पहाड़ी देखकर उन्हें बहुत दु:ख होता था। उन्होंने इसे हरा-भरा करने का संकल्प लिया। वन विभाग में कार्यरत मित्रों के सहयोग से उन्हें सागौन के पौधे मिले और 24 साल में उन्होंने 12 हजार सागौन के पेड़ों का जंगल खड़ा कर दिया।
जेब से किए दस लाख खर्च:
इस जुनूनी शख्स के परिवार में पत्नी के अलावा दो पुत्र हैं। दोनों ही उच्च शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। पारिवारिक जिम्मेदारी उठाते हुए श्री अलीम ने विगत 24 वर्र्षो में जंगल को खड़ा करने में अपनी जेब से दस लाख से अधिक रुपए खर्च किए। यह रुपए पौधों को पानी देने से लेकर उनकी रखवाली में खर्च किए गए।
खुशी के साथ है दु:ख भी
श्री अलीम बताते हैं कि इतना बड़ा जंगल खड़ा करने की खुशी के साथ उन्हें दु:ख भी है। वे बताते हैं कि कई लोग चोरी-छिपे पेड़ों को काट देते हैं और अधिकारी फौरी कार्रवाई करके रह जाते हैं। ऐसे में जंगल का संरक्षण उनके लिए बड़ी चुनौती बन गया है। वे बताते हैं कि जिस जंगल को इतनी मेहनत के साथ खड़ा किया उसे कटते हुए देखना काफी दुखदायी है।

Thursday, January 1, 2009

30 रुपए के ईंधन में पूरे हफ्ते घर का खाना

( इंदौर से ) 30 रुपए के ईंधन में पूरे हफ्ते घर का खाना बन जाएगा। यही नहीं, हीटर के कारण बढ़ता जा रहा बिजली का बिल भी धराशायी हो जाएगा। ऊर्जा संरक्षण दिवस के मौके पर गांधी हॉल में शनिवार से शुरू हुए सोलर मेले में सूरज की किरणों के ऐसे ही कमाल देखकर लोग हैरान हो रहे हैं।
मेले का उद्घाटन ऊर्जा अनुसंधान एवं शोध केंद्र के डायरेक्टर डॉ. एस.पी. सिंह ने किया। अतिथि स्वागत ऊर्जा अधिकारी एस.एल. बजाज ने किया। इस मौके पर संचालक गिरीश बुलेट ने बताया घरों में लगने वाले वाटर हीटर पर सबसे ज्यादा बिजली की खपत होती है। उन्होंने कहा यदि घरों में सोलर वाटर हीटर लग जाए तो करीब 60 प्रतिशत बिजली बचाई जा सकती है। गवर्नमेंट भी सोलर संबंधी उपकरण खरीदने पर 2 प्रतिशत ब्याज की दर पर लोन दे रही है। मेले का उद्देश्य लोगों को ऊर्जा बचाने के लिए जागरूक करना है। उन्होंने बताया ऊर्जा संरक्षण दिवस 14 दिसंबर को प्रतिवर्ष देशभर में इसी तरह प्रदर्शनी लगाकर मनाया जाता है।
बढ़ते बिल से परेशान
मेले में आए एमजी रोड निवासी एम.एल. बरफा बोले मैं बिजली के बिलों से परेशान हो गया हूं, कभी तीन हजार तो कभी चार हजार रुपए का बिल महीने में आ जाता है। मैं यहां सोलर हीटर व अन्य चीजें देखने आया हूं, अगर पसंद आ गया तो खरीद लूंगा।
लोग जागरूक हो रहे हैं
डॉ. एस.पी. सिंह ने बताया सौर ऊर्जा के प्रति लोग जागरुक हो रहे हैं। देशहित में ऊर्जा की बचत बहुत जरूरी है। अगर अभी भी लोग जागरूक नहीं होंगे तो फिलहाल जिस तरह पानी के लिए हाहाकार मचा हुआ है आने वाले समय में बिजली के लिए भी ऐसा ही हाहाकर मच सकता है।
अब समय आ गया है कि सरकार टीवी, रेडियो व अखबारों में विज्ञापन देकर लोगों को सौर ऊर्जा के प्रति जागरूक करें। इजराइल में तो गर्वमेंट ने बिजली से गीजर चलाने पर पूरी तरह से रोक लगा दी है। हमारे यहां भी ऐसी ही सख्ती बरतनी होगी। फिलहाल डिंडोरी के 20 व झाबुआ के 27 गांवों में सौर ऊर्जा से लोगों को बिजली मिल रही है। यहां हरेक घर में ऊर्जा स्टोव भी खरीद लिए गए हैं। अब किसान खेतों में मोटर चलाने के लिए भी सौर ऊर्जा के उपकरण खरीद रहे हैं।

नव वर्ष मंगलमय हो



नव वर्ष की आप सभी को बधाई । भगवान् ने हमें एक और वर्ष दिया है कि हमारी खुशियाँ और बडें ।