इस बार पद्म भूषण सम्मान एक ऐसी शख्सियत को भी दिया गया है जिन्होंने चीन को रामायण और भारतीय संस्कृति से रू-ब-रू कराया है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह चीन की यात्रा पर गए थे और उनके लौटने के 10 दिनों के भीतर जी जियानलीन को पद्म भूषण से सम्मानित करने का फैसला किया गया।
इसे भारत की ओर से चीन की तरफ दोस्ती और विश्वास बहाली की दिशा में बढ़ाए गए कदम के रूप में देखा जा रहा है। जी जियानलीन ने संस्कृत की कई रचनाओं का चीनी भाषा में अनुवाद किया है। ऐसा माना जाता है कि चीन के लोग भारतीय संस्कृति के बारे में जो भी जानते हैं उसमें जियानलीन का बहुत बड़ा योगदान है। पेइचिंग यूनिवर्सिटी में सेंटर फॉर इंडियन स्टडीज के उप निदेशक जियांग क्यू का कहना है, ' यह भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की ओर से दोनों देशों के बीच रिश्ते को मजबूत करने के लिए उठाया गया बड़ा कदम है। इससे चीन में भारत के बारे में विचार बदलेंगे। ' लेकिन ऐसा नहीं है कि जियानलीन को सिर्फ राजनीति कारणों से ही पद्म भूषण सम्मान दिया गया है, वह हर कसौटी से इस सम्मान के हकदार है।
वह चीन में भारतीय संस्कृति के जानकार और विचारक माने जाते हैं। सूत्रों का तो यह भी कहना है कि मनमोहन सिंह की यात्रा के दौरान चीन के प्रधानमंत्री वेन जियाबओ ने उन्हें बताया था कि जियानलीन उनके गुरु रहे हैं। भारत में चीन की राजदूत निरुपमा राव पिछले साल जियानलीन से मिली थीं और उसके बाद दिसंबर से ही सरकार उनको सम्मानित करने के बारे में सोच रही थी। लेकिन जब जियाबओ ने भी उनकी तारीफ की तो भारत सरकार ने उन्हें सम्मानित करने का फैसला कर लिया।
97 साल के जियानलीन सैन्य अस्पताल में रहते हैं और लोगों से काफी कम मिलते-जुलते हैं। पेइचिंग यूनिवर्सिटी में संस्कृत के प्रोफेसर वांग बांग का कहना है, ' जियानलीन को सम्मानित करने से चीन में भारत के प्रति नजरिये में बदलाव होगा। जियानलीन इस सम्मान के लिए सबसे बेहतरीन विचारक हैं। '
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