Wednesday, January 28, 2009

जुनून कुछ कर गुजरने का


प्रस्तुति - जयदीप कर्णिक

वैसे उनका एक परिचय और भी है। ... पर वो बाद में। नाम वे लिखती हैं आशीष रामगोविंद। काम है समाजसेवा। जुनून है कुछ कर गुजरने का। उनकी सादगी और सौम्य, शिष्ट व्यवहार के बावजूद आप उनके हौसलों की बुलंदी और निश्चय की गहराई को भाँप सकते हैं।उनका जन्म डर्बन में हुआ।

लोक प्रशासन में पीएचडी की। समाज में बदलाव की उत्कट अभिलाषा उन्हें सारी दुनिया घुमा लाई। अपने जन्म स्थान डर्बन और बाकी दक्षिण अफ्रीका में भी उन्होंने खूब काम किया। पर भारत से जुड़े उनके तार इतने मजबूत थे कि उनके कदम हिन्दुस्तान की ओर मुड़ ही गए।अपनी माँ को मिले पद्मभूषण पुरस्कार को लेने जब वे उनके साथ भारत आईं तो रिश्तों की डोर ने उन्हें यहीं खींच लिया।

भारत में भी उन्होंने इंदौर को अपनी कर्मभूमि के रूप में चुना। यहाँ के समाजसेवी महेंद्र सोमानी के साथ विचारों का साम्य बैठा। देवकी नगर की कीचड़ सनी गलियों को पार कर बच्चों को पढ़ाने व महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने का बीड़ा उठाया। वे संस्था पीडीआई की निदेशक हैं। अब इनका एक और परिचय। आशीष महात्मा गाँधी की परपोती हैं। वे गाँधीजी के पुत्र मणिलाल गाँधी की सुपुत्री इला गाँधी की बेटी हैं। उनके पिता मेवा रामगोविंद दक्षिण अफ्रीका में सांसद हैं।आप चौंक गए न ! जी हाँ। यह वह परिचय है, जिसका इस्तेमाल वे कम से कम करना चाहती हैं।

बहरहाल, इंदौर के लिए अच्छी खबर यह है कि उन्होंने दक्षिण अफ्रीका से यहीं आकर बसने का निर्णय ले लिया है। वे अपनी संस्था पीडीआई के माध्यम से कार्यों को आगे बढ़ाना चाहती हैं और चाहती हैं कि शहर के बाकी लोग भी इसमें मदद करें। उनसे चलते-चलते पूछा कि अब आपको गाँधीजी कहाँ नजर आते हैं... उन्होंने तपाक से कहा- बस पुतलों में !! हम उम्मीद करें कि गाँधीजी की ये परपोती अपनी विरासत को सार्थक करते हुए गाँधीजी को पुतलों से बाहर इंसानों में बसा पाएँगी।

3 comments:

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर, लेकिन जब तक यह राजनेतिकता से दुर रहती है तब तक.
आप का धन्यवाद

Udan Tashtari said...

आभार इस परिचय का.

Gyan Dutt Pandey said...

स्वागत!