Wednesday, January 14, 2009

श्लोक - संस्कृति संजीवनी से

उत्थायोत्थाय बोधह्व्यम किमद्य सुकृतं कृतम ।
आयुष: खंडमादाय रविरस्तम गमिष्यति । ।

मनुष्य को प्रतिदिन प्रात: काल उठते ही यह सोचना चाहिए की आज मुझे क्या सुकर्म करना है, क्या सुकर्म मैंने किया है? क्योंकि आयु के एक भाग को लेकर आज भी सूर्य अस्त हो जायेगा । प्रतिदिन मनुष्य की आयु का एक भाग छीण होता रहता है ।

4 comments:

अनुनाद सिंह said...

बहुत प्रेरणादायी विचार है!

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

sabse achcha yahi laga aaj.

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर विचार.
धन्यवाद

Gyan Dutt Pandey said...

अत्यन्त उपयोगी विचार।