Wednesday, October 1, 2008

चामुंडा मंदिर हादसा : हांफी राहें, टूटा दम

किले की दीवारें अवाक् रह र्गई। संकरी राहें सिसकने लगीं। एक पल में कई गोद सूनी हो गईं। जयकारों के बीच ‘मां-मां’ की पुकारें गूंजने लगीं। किले के सदियों के इतिहास में मंगलवार को एक स्याह पल में कलंक लग गया।
जोधपुर के मेहरानगढ़ दुर्ग स्थित चामुंडा माता मंदिर व्यवस्था में लापरवाही का स्थाई दस्तावेज बन गया! ..लापरवाही की फिसलन, हजारों श्रद्धालु.. प्रशासनिक अमला नदारद।
कभी जयघोष से गूंजने वाली किले की बुर्जियां घायलों की हृदयविदारक चीत्कारों से जार-जार हो र्गई। ऐसे हालात में भी शहर ने दिखाया, जोधपुरी परंपरा में कितना माद्दा है। बाकी बेटे आ जुटे, टैक्सी वाले निशुल्क सेवाएं देने लगे, रक्त देने के लिए अस्पताल में कतारें लग गईं..
फिसलन भरा हादसा
नारियल फोड़ने से निकले पानी की फिसलन से लोग एक दूसरे पर गिरते गए और पैरों के नीचे दबने से ज्यादातर मौतें हुईं।
अफवाह की भगदड़
जैसे ही कुछ लोग गिरे, कहीं दीवार गिरने, तो कहीं बम की अफवाहें फैल गईं, जिससे भगदड़ मच गई।
खामियों का इंतजाम
मंदिर व रास्ते में नारियल फोड़ने को प्रतिबंधित नहीं किया गया था। बेरिकेड्स इस तरह लगाए थे कि रास्ता मात्र 5 फीट का रह गया।
बुझ गए चिराग
मरने वालों में ज्यादातर पुरुष थे, उनमें भी युवा व किशोर अधिक हैं। 12 से 26 वर्ष के युवकों की संख्या अधिक बताई जा रही है।
फूट पड़ा गुस्सा
लोगों में इस हादसे की वजह से इतना गुस्सा था कि सांसद की पिटाई कर डाली व विधायक को भी खरी-खोटी सुना दी।
हर जगह चल रहा था इलाज
शहर के निजी अस्पतालों में भी कोहराम मचा हुआ था। अस्पतालों के बाहर कोई रो रहा था तो कोई अपने रिश्तेदार को ढूंढ रहा था। कहीं पर शव को घर ले जाने की तैयारी थी तो कही पर हाथों में उठाए बेहोश लोगों को लाया जा रहा था।
कमोबेश आठ से दोपहर बारह बजे तक यह दृश्य शहर के निजी अस्पतालों में देखे गए। भीतर के दृश्य तो रुलाने वाले थे। अस्पतालों के इंतजार कक्ष ही मुर्दाघर बने हुए थे। लाशें कतार में रखी थीं। पुलिस मृतकों की शिनाख्त कर रही थी तो परिजन शव के पास विलाप कर रहे थे। गोयल अस्पताल में 31 जनों की मौत हुई।
एमडीएम के समीप होने से दुर्ग से कई गंभीर घायलों को गोयल अस्पताल लाया गया। अस्पताल के बाहर पुलिस का जमावड़ा था तो परिजनों की भीड़। भीतर स्ट्रेचर पर कइयों का उपचार किया जा रहा था। अंडर ग्राउंड में बड़ा कमरा जहां मरीजों के परिजन इंतजार करते हैं, वो कक्ष मुर्दाघर नजर आया।
करीब एक दर्जन शव वहां पड़े थे। पुलिस शवों की श्निाख्त कर रहा थी। परिजन जल्द से जल्द शव ले जाने की गुहार कर रहे थे। कमला नगर अस्पताल में 28 जनों की मौत हुई। दुर्ग से घायलों को सूरसागर के रास्ते इस अस्पताल में लाया गया। अस्पताल में गमगीन माहौल था। शव एंबुलेंस में ले जाने की व्यवस्था की जा रही थी तो कई स्वयंसेवी संस्थाओं की गाड़ियां मदद के लिए आ गई। र्न्िसग स्टाफ व चिकित्सक घायलों को हर संभव उपचार देते नजर आए। मणिधारी अस्पताल में 16 जनों ने दम तोड़ा।
कनात की स्ट्रेचर बनाई
घायलों को नीचे लेजाने के लिए दुर्ग पर लगे अस्थाई हाट बाजार में लगी कनातें उखाड़ कर लोगों ने स्ट्रेचर की तरह उपयोग में लिया।
क्रेन को बनाया एंबुलेंस
हादसे के समय एंबुलेंस मौजूद नहीं होने से दुर्ग के बाहर खड़ी यातायात क्रेन को ही एंबुलेंस बनाया व उस पर घायलों व मृतकों को डालकर अस्पताल पहुंचाया। वहीं दुर्ग के बाहर खड़ी कारों, बसों व जीपों आदि में भी घायलों को अस्पताल ले जाया गया।

मेरा विचार

१। आप लोग भी अपने शहर, गांवों के मंदिरों को देखें

२। उनकी क्या व्यवस्था है उसे देखें और अपने ब्लागों पर लिखे तथा चित्र भेजे

३। अगर मन्दिर में नारियल फोडे तो अंत में मन्दिर में जो कचरा आप फैला कर आए हैं उसके प्रति जिम्मेवार बने

४। संकोच त्याग कर अपना कचरा अपनी पोलीथिन में ले आए और अपने क्षेत्र के कूड़ाघर में डाले

1 comment:

Gyan Dutt Pandey said...

अत्यन्त दुखद रही यह घटना। और इस तरह के मामले कुछ मोटे असूलों के पालन से रोके जा सकते हैं।
स्काउट बेहतर भीड़ मैनेजमेण्ट कर लेते होंगे पुलीस की बजाय।