भारतीय लेखक अरविंद अदिगा को उनकी पहली पुस्तक 'द व्हाइट टाइगर' के लिए इस वर्ष का बुकर पुरस्कार दिया जाएगा.
बुकर पुरस्कारों की शार्ट लिस्ट में छह लेखक थे जिसमें अदिगा के अलावा भारतीय मूल के अमिताभ घोष, सेबास्टियन बैरी, स्टीव टोल्ट्ज, लिंडा ग्रांट और फिलिप हेनशर थे.
बुकर पुरस्कार के जजों के चेयरमैन और पूर्व राजनेता माइकल पोर्टिलो का कहना था, '' कई मायनों में यह एक संपूर्ण उपन्यास था.''
इन लेखकों में 34 वर्ष के अदिगा सबसे कम उम्र के थे. अदिगा ने पुरस्कार की घोषणा के बाद पुरस्कार जीतने में मदद करने वाले लोगों का शुक्रिया अदा किया.
मैं यह पुरस्कार नई दिल्ली के लोगों को समर्पित करना चाहूंगा क्योंकि यही वो जगह है जहां मैं रहा और यह किताब लिख पाया
अरविंद अदिगा, बुकर विजेता
उनका कहना था, ''मैं यह पुरस्कार नई दिल्ली के लोगों को समर्पित करना चाहूंगा क्योंकि यही वो जगह है जहां मैं रहा और यह किताब लिख पाया. तीन सौ साल पहले दिल्ली दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण शहरों में था और मुझे लगता है कि अब समय आ गया है कि दिल्ली एक बार फिर दुनिया के महत्वपूर्ण शहरों में गिना जाएगा.''
अदिगा की यह पुस्तक एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जो सफल होने के लिए किसी भी रास्ते को ग़लत नहीं मानता है.
अदिगा बार बार दिल्ली का शुक्रिया अदा करते हुए कहते हैं, ''भारत में जो कुछ भी अच्छा और जो कुछ भी बुरा है उसका निपटारा दिल्ली में ही होता है और मुझे लगता है कि कुछ वर्षों में दिल्ली के सभी लोग ग़रीब और अमीर मिलकर यह सुनिश्चित करेंगे कि जो अच्छा है वही जीते.''
अदिगा की पुस्तक पश्चिमी देशों ख़ासकर अमरीका में अत्यंत लोकप्रिय हुई है और अब इस पुरस्कार के बाद पुस्तक की बिक्री और बढ़ने की उम्मीद है.
यह पुस्तक बिहार के गया ज़िले से आए एक ड्राइवर बलराम हलवाई की है जो चीनी प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर अपनी सफलता की कहानी सुनाता है.
पुस्तक में भारत के दो रुप दिखाए गए हैं एक जो ड्राईवर का सच है यानि ग़रीब लोगों का और दूसरा जो ड्राईवर के पीछे बैठता है यानी अमीर लोगों का जीवन है.
कहानी में भारत की ग़रीबी-अमीरी, जाति प्रथा के साथ साथ कोयला माफ़िया, ज़मींदारी, कॉल सेंटर, नवनिर्मित मॉलों की संस्कृति सभी का ज़िक्र है.
इस उपन्यास कहानी उसके मुख्य पात्र बलराम हवाई के इर्द गिर्द घूमती है. वो किस तरह एक चाय की दुकान में काम करता हुआ ड्राईवर बनता है और फिर किस तरह वो अंत में अपना स्वयं का व्यापार शुरु करता है और इसके लिए उसे क्या ग़लत और सही रास्ते चुनने पड़ते हैं.
अरविंद अदिगा का जन्म 1974 में भारत में हुआ. उनकी प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड में हुई है जिसके बाद उन्होंने ऑक्सफोर्ड और कोलंबिया विश्वविद्यालय में भी पढ़ाई की है.
अदिगा ने दो साल तक टाइम पत्रिका के लिए भारत में काम किया है और कई अन्य अख़बारों के लिए लिखते रहे हैं.
बुकर पुरस्कारों की शार्ट लिस्ट में छह लेखक थे जिसमें अदिगा के अलावा भारतीय मूल के अमिताभ घोष, सेबास्टियन बैरी, स्टीव टोल्ट्ज, लिंडा ग्रांट और फिलिप हेनशर थे.
बुकर पुरस्कार के जजों के चेयरमैन और पूर्व राजनेता माइकल पोर्टिलो का कहना था, '' कई मायनों में यह एक संपूर्ण उपन्यास था.''
इन लेखकों में 34 वर्ष के अदिगा सबसे कम उम्र के थे. अदिगा ने पुरस्कार की घोषणा के बाद पुरस्कार जीतने में मदद करने वाले लोगों का शुक्रिया अदा किया.
मैं यह पुरस्कार नई दिल्ली के लोगों को समर्पित करना चाहूंगा क्योंकि यही वो जगह है जहां मैं रहा और यह किताब लिख पाया
अरविंद अदिगा, बुकर विजेता
उनका कहना था, ''मैं यह पुरस्कार नई दिल्ली के लोगों को समर्पित करना चाहूंगा क्योंकि यही वो जगह है जहां मैं रहा और यह किताब लिख पाया. तीन सौ साल पहले दिल्ली दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण शहरों में था और मुझे लगता है कि अब समय आ गया है कि दिल्ली एक बार फिर दुनिया के महत्वपूर्ण शहरों में गिना जाएगा.''
अदिगा की यह पुस्तक एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जो सफल होने के लिए किसी भी रास्ते को ग़लत नहीं मानता है.
अदिगा बार बार दिल्ली का शुक्रिया अदा करते हुए कहते हैं, ''भारत में जो कुछ भी अच्छा और जो कुछ भी बुरा है उसका निपटारा दिल्ली में ही होता है और मुझे लगता है कि कुछ वर्षों में दिल्ली के सभी लोग ग़रीब और अमीर मिलकर यह सुनिश्चित करेंगे कि जो अच्छा है वही जीते.''
अदिगा की पुस्तक पश्चिमी देशों ख़ासकर अमरीका में अत्यंत लोकप्रिय हुई है और अब इस पुरस्कार के बाद पुस्तक की बिक्री और बढ़ने की उम्मीद है.
यह पुस्तक बिहार के गया ज़िले से आए एक ड्राइवर बलराम हलवाई की है जो चीनी प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर अपनी सफलता की कहानी सुनाता है.
पुस्तक में भारत के दो रुप दिखाए गए हैं एक जो ड्राईवर का सच है यानि ग़रीब लोगों का और दूसरा जो ड्राईवर के पीछे बैठता है यानी अमीर लोगों का जीवन है.
कहानी में भारत की ग़रीबी-अमीरी, जाति प्रथा के साथ साथ कोयला माफ़िया, ज़मींदारी, कॉल सेंटर, नवनिर्मित मॉलों की संस्कृति सभी का ज़िक्र है.
इस उपन्यास कहानी उसके मुख्य पात्र बलराम हवाई के इर्द गिर्द घूमती है. वो किस तरह एक चाय की दुकान में काम करता हुआ ड्राईवर बनता है और फिर किस तरह वो अंत में अपना स्वयं का व्यापार शुरु करता है और इसके लिए उसे क्या ग़लत और सही रास्ते चुनने पड़ते हैं.
अरविंद अदिगा का जन्म 1974 में भारत में हुआ. उनकी प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड में हुई है जिसके बाद उन्होंने ऑक्सफोर्ड और कोलंबिया विश्वविद्यालय में भी पढ़ाई की है.
अदिगा ने दो साल तक टाइम पत्रिका के लिए भारत में काम किया है और कई अन्य अख़बारों के लिए लिखते रहे हैं.
1 comment:
आभार जानकारी का!!
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