हल्की-हल्की ठंड, आग जलती हांडी के नीचे से निकली मूंगफली या पॉपकॉर्न, गर्मागर्म टिक्की या फिर ठंडी-ठंडी कुल्फी खाते हुए रामलीला के रोचक और मोहक प्रसंगों का अवलोकन.। यह सबकुछ गुजरे जमाने की याद दिलाता है। हालांकि आप वही जमाना फिर से जीना चाहते हैं तो सुभाष मैदान में होने वाली श्री धार्मिक लीला कमेटी की रामलीला देखने जा सकते हैं।
पिछले छह दशक से हो रही इस रामलीला का अलग ही माहौल है। मुसलिम बहुल इलाके में होने वाली ये रामलीला सांप्रदायिक सौहार्द की प्रतीक तो है ही, पुरानी दिल्ली की संस्कृति से रूबरू होने का मौका भी देती है। चाक-चौबंद सुरक्षा के बीच आयोजित की जाने वाली रामलीला में प्रवेश भी पूरी जांच के बाद ही मिलता है।
परिसर में प्रवेश के बाद लगने लगता है मानो हम रामलीला देखने नहीं, पुरानी दिल्ली की सैर करने आए हैं। मंच पर मुरादाबाद के कलाकारों की बेहतरीन प्रस्तुति देखने को मिलती है। एक ओर प्याऊ बने हुए हैं, जहां लोग सुविधानुसार बॉक्स में बैठकर रामलीला देखते हैं। किसी बॉक्स में एसी लगा है तो किसी में कूलर और कई बॉक्स तो बालकनी-सा मजा देते हैं।
रामलीला का सबसे बड़ा आकर्षण है जनक बाजार। यहां एक ओर कूरेमल मोहनलाल की करीब दो सौ तरह की कुल्फियां उपलब्ध हैं, वहीं पुरानी दिल्ली का स्वाद लिए हर प्रकार की चाट पापड़ी, टिक्की और चटपटे व्यंजन भी अपनी ओर खींचते हैं। इसके अलावा, पाव-भाजी, छोले-भठूरे, नान, रूमाली रोटी भी खाने के शौकीनों के मन भाती है। गर्मागर्म चाय और साथ में मट्ठी या फैन खाना चाहें तो उसकी भी व्यवस्था है यहां। मूंगफली, पॉपकॉर्न, बनारसी पान और चुस्की की रेहड़ियां भी ध्यान आकर्षित करती हैं।
कमेटी के प्रचार मंत्री रवि जैन बताते हैं कि सुभाष ग्राउंड में 1958 से चली आ रही रामलीला में देशी-विदेशी दर्शक खासी तादाद में आते हैं। अमूमन हर वर्ष प्रधानमंत्री भी शामिल होते रहे हैं। इस बार भी 9 अक्टूबर को दशहरे के दिन प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह और संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी ने लीला अवलोकन के लिए आने की स्वीकृति दी है, जबकि 10 अक्टूबर को भरत मिलाप के दिन यहां पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी आएंगे।
3 comments:
ram leelay ......
bachpan ki yaade taaja ho gaee
मूंगफली, पॉपकॉर्न, बनारसी पान और चुस्की की रेहड़ियां के साथ रामलीला देखने का मजा ही कुछ और है .
आपने जिस माहौल की चर्चा की, वह पाने को ललकते हैं हम।
दफ्तर और घर में बन्द होकर रह गये हैं।
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