Thursday, October 16, 2008

युवा, प्रबंधन और हायर फायर पॉलिसी

आजकल दिन प्रतिदिन मंदी के समाचार आ रहे हैं। हो सकता है की यह कुछ दिन चले भी और इस वातावरण को स्थिर होने में समय लगे। कुछ अमेरिकी विचारधारा की कम्पनियाँ भारत में नौकरी करने वाले व्यक्ति को तुंरत निकाल देती है। इसे मैं ग़लत मानता हूँ । आजकल कंप्यूटर तथा अनेक नए व्यापारों में कोई मजदूर यूनियन नहीं है जो निकाले गए लोगों की बात रख सके । सरकार भी अपनी मज़बूरी तुंरत ज़ाहिर कर देती है । यही सरकार जब ज़मीन अधिग्रहण की बात आती है तो अमीर मालिक वर्ग के साथ तुंरत खड़ी हो जाती है । सरकार ये जानती है कि "हम इस दिशां में सोच रहे हैं" ऐसा कहने से कुछ नहीं होगा । फिर भी ऐसे खोखले वादे कर अपनी जिम्मेदारी से अपना पल्ला झाड़ देती है ।

कुल मिला कर ऐसा संदेश जाता है कि वोट देने के नाम या आंकड़े देने के लिए हम विश्व को बतातें हैं कि हमारी ५०% आबादी युवा वर्ग है । परन्तु जब युवा वर्ग को प्रतिनिधित्व देने, उन्हें मौका देने , उनका आत्मविश्वास बढ़ाने कि बारी आती है तो हम मुंह फेर लेते हैं ।

मेरे हिसाब से कंपनी के प्रबंधन को अनावश्यक रूप से आँख बंद कर अमेरिका का अनुसरण नहीं करना चाहिए । जो अधिसंख्य नौज़वान युवक युवती काम रहे हैं उनके पास कोई दूसरा विकल्प आसानी से उपलब्ध नहीं है । अमेरिका में लडके लड़कियाँ १४-१५ साल की उम्र से काम करना प्रारम्भ करतें हैं और २०-२३ साल के होते होते एक अच्छे पद पर पहुँच कर आत्म - विस्बास के साथ काम करते हैं और आगे बढ़ते रहते हैं । यहाँ काफी जगह पति पत्नी दोनों काम करतें हैं। ये सब बातें पति पत्नी दोनों को पैसे के बारे में आत्म निर्भर बनातें हैं । मेरा मानना है कि कंपनी प्रबंधन को उतने ही लोग जॉब पर रखने चाहिए जिनको वह लंबे समय तक काम पर रख सकें । इससे नौकरी करने वाले का भी आत्म-विस्बास बढेगा।

बजाय तुरत फुरत निकालने के प्रबंधन को चाहिये कि हर युवक युवती की आर्थिक स्थति को भी ध्यान दे । और सोचे कि क्या इनको ३-४ महीने पर कम वेतन कर रखा जा सकता है । कंपनी जब अच्छा परिणाम देने लगे तो उन्हें वापिस मूल वेतन पर ले आयें । समय - समय कर्मचारी वर्ग को प्रशिक्षण भी दे जिससे कर्मचारी बाज़ार के अनुरूप योग्य बने रहे। ऐसी बहुत सी छोटी - छोटी बातें हैं जो प्रबंधन कर्मचारियों में आपसी विस्वास बनाएं रखने के लिए कर सकता है । अगर प्रबंधन सदैव "चौधरी" बनके चलता है तो उसके कई दुष्परिणाम सामने आ सकतें हैं । प्रबंधन और कर्मचारियों के बीच परिवार के सदस्यों के जैसा व्यवहार होना चाहिए । ये सब ही आगे चल देश की उन्नति में भी सहायक होगा ।

4 comments:

Udan Tashtari said...

व्यापारी हैं भाई. सोशल कॉज का फंडा सरकारी है..वैसे कनाडा में नौकरी जाने पर ११ महिने तक अनएम्प्लायमेंट ईन्श्योरेंस मिलता रहता है..शायद अमेरीका में ऐसा नहीं है.

Vivek Gupta said...

अमेरिका में या तो शिकार करो या शिकार बन जाओ का सिद्धांत है | लेकिन अपनी तो आदत पड़ चुकी है | अनएम्प्लायमेंट ईन्श्योरेंस का तो मैंने कभी पता नहीं किया |

योगेन्द्र मौदगिल said...

samyik evm sateek chintan. aapko badhai.

अभिषेक मिश्र said...

Ache vichar aur sujhav rakhehain aapne.