Sunday, October 19, 2008

जिन्हें पड़ी डांट, उनके हो गए ठाठ

इंदौर टीचर की डांट से नाराज दिल्ली पब्लिक स्कूल के एक छात्र ने इंडियन मुजाहिदिन के नाम से स्कूल को बम से उड़ाने की धमकीभरा ई मेल कर दिया, जबकि ज्यादातर लोग मानते हैं बड़ों की डांट ने उनकी लाइफ स्टाइल ही बदल दी। इसलिए जरूरी है कि डांट यानी समझाइश के प्रति सकारात्मक नजरिया रखा जाए।
एमवायएच में मनोचिकित्सक डॉ. पाल रस्तोगी कहते हैं 12 साल की उम्र के बाद बच्चों की मानसिकता और व्यवहार बदलता है। गलती करने पर उन्हें न समझाने पर वे झूठ बोलना, चोरी करना, घर से भागने की कोशिश करते हैं। डांटते समय बच्चों को यह भी समझाएं कि उनकी गलती का खुद व दूसरों पर क्या प्रभाव पड़ेगा। कोलम्बिया कॉन्वेंट की सोशल साइंस टीचर मधु तलवार बताती हैं टीचर्स को एक स्तर तक ही बच्चों को डांटना चाहिए बच्चों पर डांट का क्या असर पड़ रहा है इसका ध्यान रखना जरूरी है।
सेंट पॉल स्कूल के पी.एस.यादव के अनुसार पढ़ाई के प्रेशर से तंग आकर स्टूडेंट्स गलत कदम उठा लेते हैं, इसलिए स्कूल व टीचर्स को ही पहल करना होगी। मंगलनगर की साधना शर्मा कहती हैं बच्चों से कभी तो सख्ती करना ही पड़ती है लेकिन जरूरी है उनकी समय-समय पर काउंसलिंग भी होती रहे। इंजीनियर वीरेंदA जैन कहते हैं सिंगल चाइल्ड की मानसिकता समझना जरूरी है। स्कूल और घर में बच्चों की एक्टिविटी पर हमेशा नजर रखना चाहिए।
छह बार कराया असाइनमेंट
श्री महावीरा कम्प्यूटर पेरीफेरल के डायरेक्टर सुशील पाटली कहते हैं बीएससी फस्र्ट ईयर में मैथ्स के प्रोफेसर ने असाइनमेंट दिया। मैं मैथ्स से हमेशा बचना चाहता था इसलिए जानबूझ कर नहीं किया। इस पर प्रोफेसर ने बहुत डांटा और पांच-छह बार असाइनमेंट कराया। उस समय काफी गुस्सा आया लेकिन आज वही डांट मुझे काम में मदद कर रही है। अब कोई काम कल पर नहीं छोड़ता।
और कहा.. मैं बनूंगा डॉक्टर
शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. अजय दोसी बताते हैं होशंगाबाद में हमारा स्कूल नर्मदा तट के बहुत पास था। मैं क्लास बंक करवहां चला जाता था। बात पिता को पता चली तो उन्होंने डांटा और कहा तुम तो बैंक में पीयून बनने के भी काबिल नहीं हो डॉक्टर क्या बनोगे। उनकी बात मुझे चुभ गई। तब ही ठान लिया था डॉक्टर ही बनूंगा।
सिखाई समय की अहमियत
पंजाब नेशनल बैंक के चीफ मैनेजर सर्वज्ञ भटनागर कहते हैं मैं पढ़ाई से ज्यादा खेल पर ध्यान देता था। पापा कहते थे की मैं हर काम समय पर करूं लेकिन मैं उनकी बात को हमेशा अनदेखा कर देता था। एक्जाम के समय देर से आने पर पापा ने मुझे जमकर डांटा पिटाई भी की। बोले कब तक समय बरबाद करते रहोगे। उनकी इस डांट व पिटाई ने मुझे समय की अहमियत सिखाई।

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