सूचना के अधिकार कानून ने शुरू में ही अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया था। अब वह समाज के निचले तबके के लोगों के सिर पर भी चढ़कर बोलने लगा है। सूचना के अधिकार कानून ने इस बार अपनी सफलता की कहानी उड़ीसा में लिखी है। वहां की सुदूर ग्रामीण अंचलों की निरक्षर महिलाओं ने इस अधिकार का इस्तेमाल कर अपने लिए पीने के पानी का जुगाड़ कर लिया। अब उनकी जिंदगी में जल का अभाव नहीं होगा। प्यास बुझाने के लिए पानी भी होगा। इससे देश के दूसरे हिस्से भी प्रेरणा ले सकेंगे।
बात पिपली-कोणार्क राजमार्ग के पास स्थित बानाखंडी जैसे गांवों की है। यहां पर शुद्ध पेयजल की आपूर्ति और सड़क का अभाव था। यहां के लोग घरेलू कार्य के लिए बरसात में वर्षा के पानी पर निर्भर थे, तो गर्मी में उन्हें पानी लाने के लिए हर रोज करीब दो किमी पैदल जाना पड़ता था। लेकिन जो नहीं जा सकते थे, उन्हें पास के गंदे तालाब के पानी से काम चलाना पड़ता था। महिलाओं के बीच कार्यरत भाबेनी मलिक का कहना है कि इस पानी का उपयोग मवेशियों को धोने के लिए भी होता था।
इन्हीं परिस्थितियों में यहां की महिलाओं ने सूचना के अधिकार के तहत 100 से ज्यादा आवेदन भेजे। अधिकतर मामलों में उनके प्रश्नों का जवाब नहीं मिलता था। लेकिन उनके बार-बार के सवाल से स्थानीय प्रशासन को मजबूर होकर उन्हें पेयजल और सड़क की व्यवस्था करनी पड़ी। सामाजिक कार्यकर्ता एन ए अंसारी बताते हैं कि एकमात्र ग्रामीण सड़क का काम पूरा हो चुका है और पेयजल आपूर्ति का काम शुरू हो गया है।
दिलचस्प बात है कि बहरान गांव की महिलाएं पल्लिसभा [गांव के निर्वाचित प्रतिनिधियों की सभा] के बारे में नहीं जानती थीं। जब उन्हें इसके बारे में जानकारी हुई, तो वे ब्लाक आफिस से न केवल पल्लिसभा की बैठक अपने गांव में बुलाने की मांग करने लगीं, बल्कि उसमें अपनी भागीदारी की मांग भी सुनिश्चित करने में लग गई। इसी से उन्हें पता चला कि ग्राम पंचायतें ग्रामीण सड़कों के निर्माण के लिए जिम्मेदार हैं। सड़क निर्माण कार्य पूरा होने के बाद उन्होंने पेयजल के लिए मुहिम चला दी। इस प्रक्रिया में सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी ने अहम भूमिका निभाई। स्थानीय ब्लाक आफिस को भी अपनी सक्रियता दिखानी पड़ी।
बात पिपली-कोणार्क राजमार्ग के पास स्थित बानाखंडी जैसे गांवों की है। यहां पर शुद्ध पेयजल की आपूर्ति और सड़क का अभाव था। यहां के लोग घरेलू कार्य के लिए बरसात में वर्षा के पानी पर निर्भर थे, तो गर्मी में उन्हें पानी लाने के लिए हर रोज करीब दो किमी पैदल जाना पड़ता था। लेकिन जो नहीं जा सकते थे, उन्हें पास के गंदे तालाब के पानी से काम चलाना पड़ता था। महिलाओं के बीच कार्यरत भाबेनी मलिक का कहना है कि इस पानी का उपयोग मवेशियों को धोने के लिए भी होता था।
इन्हीं परिस्थितियों में यहां की महिलाओं ने सूचना के अधिकार के तहत 100 से ज्यादा आवेदन भेजे। अधिकतर मामलों में उनके प्रश्नों का जवाब नहीं मिलता था। लेकिन उनके बार-बार के सवाल से स्थानीय प्रशासन को मजबूर होकर उन्हें पेयजल और सड़क की व्यवस्था करनी पड़ी। सामाजिक कार्यकर्ता एन ए अंसारी बताते हैं कि एकमात्र ग्रामीण सड़क का काम पूरा हो चुका है और पेयजल आपूर्ति का काम शुरू हो गया है।
दिलचस्प बात है कि बहरान गांव की महिलाएं पल्लिसभा [गांव के निर्वाचित प्रतिनिधियों की सभा] के बारे में नहीं जानती थीं। जब उन्हें इसके बारे में जानकारी हुई, तो वे ब्लाक आफिस से न केवल पल्लिसभा की बैठक अपने गांव में बुलाने की मांग करने लगीं, बल्कि उसमें अपनी भागीदारी की मांग भी सुनिश्चित करने में लग गई। इसी से उन्हें पता चला कि ग्राम पंचायतें ग्रामीण सड़कों के निर्माण के लिए जिम्मेदार हैं। सड़क निर्माण कार्य पूरा होने के बाद उन्होंने पेयजल के लिए मुहिम चला दी। इस प्रक्रिया में सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी ने अहम भूमिका निभाई। स्थानीय ब्लाक आफिस को भी अपनी सक्रियता दिखानी पड़ी।
3 comments:
अच्छी जानकारी दी आपने।
जनहित का एक बेहतरीन समाचार देने के लिए आभार।
प्रेरक...!
आभार
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