Wednesday, October 8, 2008

विजय का पर्व दशहरा




आश्विन शुक्ल दशमी को यह पर्व मनाया जाता है। ज्योतिर्निबंध नामक ग्रंथ में उल्लेख पाया जाता है कि आश्विन शुक्ल दशमी को तारा उदय होने के समय 'विजय' नामक काल होता है, जो सब कार्यों को सिद्ध करने वाला माना गया है। इसलिए इसका नाम विजयदशमी पड़ा होगा।यह पर्व भारतीय जनजीवन को जागृत कर उसे कर्तव्य पूर्ति की प्रेरणा प्रदान करता है। इससे मनुष्य को विदित होता है कि ज्ञान की अज्ञान पर, सत्य की असत्य पर और देवत्व की दानत्व पर सदा विजय होती है। इसी दिन राम ने रावण पर विजय प्राप्त की थी। राम को ज्ञान, सत्य और देवत्व का प्रतीक माना जाता है तथा रावण को अज्ञान, असत्य और दानत्व का प्रतीक माना जाता है।इस पर्व का संबंध देव और दानवों के युद्ध के साथ भी बताया जाता है। कालान्तर में यह भगवान राम की महान विजय से अधिक संबंधित मान लिया गया है। रावण के पास सभी प्रकार की शक्तियाँ और साधन होने पर भी राम ने उस पर विजय प्राप्त की थी और उसके अभिमान को नष्ट किया। जनजीवन में भगवान राम के इस गौरवपूर्ण इतिहास की स्मृति के लिए दशमी से दस दिन पूर्व ही भारत के ग्राम-ग्राम और नगर-नगर में भगवान राम की जीवनगाथा अथवा उनकी लीला का प्रदर्शन प्रारंभ हो जाता है। पुराणों में उल्लेख पाया जाता है कि विजयदशमी की तिथि को ही देवराज इंद्र ने महादानव वृत्तासुर पर विजय प्राप्त की थी।
पांडवों ने भी विजयदशमी के दिन ही अपनी अज्ञातवास की अवधि पूर्ण कर द्रोपदी का वरण किया था। महाभारत युद्ध भी विजयदशमी के दिन ही आरंभ हुआ माना जाता है।दशहरे का सांस्कृतिक पहलू भी है। भारत कृषि प्रधान देश है। जब किसान अपने खेत में सुनहरी फसल उगाकर अनाज रूपी संपत्ति घर लाता है तो उसके उल्लास और उमंग का पारावार नहीं रहता। इस प्रसन्नता के अवसर पर वह भगवान की कृपा को मानता है और उसे प्रकट करने के लिए वह उसका पूजन करता है।समस्त भारतवर्ष में यह पर्व विभिन्न प्रदेशों में विभिन्न प्रकार से मनाया जाता है। महाराष्ट्र में इस अवसर पर 'सिलंगण' के नाम से सामाजिक महोत्सव के रूप में भी इसको मनाया जाता है। सायंकाल के समय पर सभी ग्रामीणजन सुंदर-सुंदर नव वस्त्रों से सुसज्जित होकर गाँव की सीमा पार कर शमी वृक्ष के पत्तों के रूप में 'स्वर्ण' लूटकर अपने ग्राम में वापस आते हैं। फिर उस स्वर्ण का परस्पर आदान-प्रदान किया जाता है।हिमाचल प्रदेश में कुल्लू का दशहरा बहुत प्रसिद्ध है। अन्य स्थानों की ही भाँति यहाँ भी दस दिन अथवा एक सप्ताह पूर्व इस पर्व की तैयारी आरंभ हो जाती है। स्त्रियाँ और पुरुष सभी सुंदर वस्त्रों से सज्जित होकर तुरही, बिगुल, ढोल, नगाड़े, बाँसुरी आदि-आदि जिसके पास जो वाद्य होता है, उसे लेकर बाहर निकलते हैं। कुछ लोगों के कंधों पर देव प्रतिमाएँ होती हैं। इस प्रकार जुलूस बनाकर नगर के मुख्य भागों से होते हुए नगर परिक्रमा करते हैं और कुल्लू नगर में देवता रघुनाथजी की वंदना से दशहरे के उत्सव का आरंभ करते हैं। दशमी के दिन इस उत्सव की शोभा निराली होती है। बंगाल में यह पर्व दुर्गा पूजा के रूप में ही मनाया जाता है। बंगाल में षष्ठी के दिन दुर्गा देवी का बोधन, आमंत्रण एवं प्राण प्रतिष्ठा आदि का आयोजन किया जाता है। उसके उपरांत सप्तमी, अष्टमी एवं नवमी के दिन प्रातः और सायंकाल दुर्गा की पूजा में व्यतीत होते हैं। दशमी के दिन विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। प्रसाद चढ़ाया जाता है और प्रसाद वितरण किया जाता है। तदनंतर देवी प्रतिमाओं को बड़े-बड़े ट्रकों में भर कर विसर्जन के लिए ले जाया जाता है। विसर्जन की यह यात्रा भी बड़ी शोभनीय और दर्शनीय होती है।दशहरा अथवा विजयदशमी राम की विजय के रूप में मनाया जाए अथवा दुर्गा पूजा के रूप में, दोनों ही रूपों में यह शक्ति पूजा का पर्व है, शस्त्र पूजन की तिथि है। हर्ष और उल्लास तथा विजय का पर्व है। देश के कोने-कोने में यह समान रूप से मनाया जाता है।

8 comments:

Udan Tashtari said...

विजय दशमी पर्व की बहुत बहुत शुभ कामनाऍ

Vivek Gupta said...

विजय दशमी पर्व की आप और आपके सभी परिवार जन को भी बहुत बहुत शुभ कामनाऍ

महेन्द्र मिश्र said...

विजय दशमी पर्व की बहुत बहुत शुभ कामनाऍ

Gyan Dutt Pandey said...

दशहरा बहुत शुभ हो मित्र।

Anonymous said...

विजय दशमी पर्व की यह बेला आपको सपरिवार मंगलमय हो। शिव की शक्ति, मीरा की भक्ति, गणेश की सििद्ध, चाणक्य की बुिद्ध, शारदा का ज्ञान, कर्ण का दान, राम की मर्यादा, भीष्म का वादा, हरिशचन्द्र की सत्यता, लक्ष्मी की अनुकम्पा, कुबेर की सम्पन्नता प्राप्त हो यही हमारी शुभकामना हैं।

Anil Pusadkar said...

दशहरे की बहुत-बहुत शुभकामनाएं ।

L.Goswami said...

सुंदर लेख दशहरे पर ..नियमित लिखें

योगेन्द्र मौदगिल said...

Shubhkamnaen
nirantarta banae rakhe