Friday, October 31, 2008

टक्कर

आज सुबह सुबह ऑफिस पहुँचा और कुछ ही देर बाद ऑफिस की एक महिला दौड़ती हुई आई । उसने बताया सामने सड़क पर एक भयंकर दुर्घटना घटी है ।
मैं भी उसके और अन्य कर्मचारियों के साथ सड़क पर गया । सड़क पर देखा तो २ बड़ी स्पोर्टस स्टाइल की कार उल्टे पड़ी थी । मेरे साथ की महिला बताती है कि वो बाइक पर आकर जैसे ही पार्क कर रही थी तभी उसके सामने ये घटना घटी । एक कार में महिला ड्राईवर था दुसरे में पुरूष । हुआ यूँ कि पुरूष ड्राईवर लेफ्ट में जाने वाला था और सामने से तेज़ गति से आ रही महिला ड्राईवर ने उसे जोरदार टक्कर मारी । लेफ्ट में जाने वाली कार ३ बार पलटी और बिज़ली के खम्मे टकरा कर रुक गई । मेरे साथ जो महिला थी उसने पास जाके उस महिला को काफी खून से सने देखा । पुरूष भी अचेतन अवस्था में था । पोलिस और अम्बुलेंस २-३ मिनट्स के अन्दर आ गई ।
मेरे सामने उन्होंने पुरूष को गाड़ी से निकाला । उन्हें गाड़ी को काटना पड़ा ।
घटना का सार ये है कि सामान्य सड़के कार रेस के लिए नहीं बनी है । संभाल के चलाना काफी आवश्यक है । हरदम शीशे से आस पास के वाहन पर ध्यान रखना ज़रूरी है । कार एक यात्रिक वाहन है थोडी ही देर अगर ध्यान न दे तो यह तेज़ गति पकड़ सकता है । कार में अत्यधिक संगीत, बातचीत या अन्य वस्तुओँ का इस्तेमाल न करें , ये सब आपका ध्यान बटा देते हैं ।

ताज़ा जानकारी के अनुसार पुरूष अब नहीं रहा और महिला को हो सकता है कि जेल हो । और कुछ दिन उसको अस्पताल में भी बिताने पड़ें । एक क्षण में दो व्यक्ति जिनका जीवन में कुछ और लक्ष्य था किसी और लक्ष्य की और बढ़ गए । दोनों कार ब्रांड न्यू थी जिससे लगता है दोनों व्यक्ति पैसे की द्रष्टि से संपन्न थे और एक अच्छे जीवनपथ पर सवार थे ।

Monday, October 27, 2008

दीपावली एवं नव वर्ष की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं


प्रिय मित्रो,


आपके परिवारजनों, मित्रों, स्नेहीजनों व शुभ चिंतकों के लिये सुख, समृद्धि, शांति व धन-वैभव दायक हो । इसी कामना के साथ दीपावली एवं नव वर्ष की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं


दीपावली से पूर्व अच्छी वर्षा से धनधान्य की समृद्धि रूपी लक्ष्मी का आगमन भी होता है। संवत्सर के उत्तरभाग में ऋत सोम तत्व रहता है जो लगातार दक्षिण की ओर बहता रहता है। दक्षिण भाग में ऋत अग्नि रहती है जो हमेशा उत्तर की ओर बहती है। लक्ष्मी का आगमन ऋताग्नि का आगमन ही होता है। यह दक्षिण से होता है, इसीलिए आज भी भारतीय किसान फसल की पहली कटाई दक्षिण दिशा से ही करता है। ऋताग्नि एक ऐसी ज्योति है जो पूरी प्रजा को सुख-शांति एवं समृद्धि प्रदान करती है और वही महालक्ष्मी है। ज्योतिषशास्त्र में भी जन्मकालीन ग्रहयोगों के आधार पर महालक्ष्मी योग देखा जाता है। शास्त्रों में कहा गया है-
लक्ष्मीस्थानं त्रिकोणं स्यात् विष्णुस्थानं तु केंद्रकम्।


तयो: संबंधमात्रेण राज्यश्रीलगते नर: ।।
यह योग श्री लक्ष्मी प्राप्ति का संकेत देता है। केंद्रस्थान में लग्न, चतुर्थ, सप्तम एवं दशम भाव गिने जाते हैं तथा त्रिकोण स्थान में पंचम एवं नवम भाव को माना गया है। जिस व्यक्ति का शरीर स्वस्थ हो, स्थायी संपत्ति, सुख-सुविधा के साधन हों, जीवनसाथी मनोनुकूल हो तो वह विष्णुस्वरूप बन जाता है। इन सब गुणों का उपयोग सद्बुद्धि एवं धर्मपरायणता के साथ हो तो व्यक्ति महालक्ष्मी एवं राज्यश्री को प्राप्त करने वाला होता है। व्यक्ति यदि कर्मशील होगा, सदाचारी होगा, गुरुनिंदा, चोरी, हिंसा आदि दुराचारों से दूर रहेगा तो लक्ष्मी स्वत: उसके यहां स्थान बना लेगी।
पौराणिक प्रसंगों में स्वयं लक्ष्मी कहती हैं-



नाकर्मशीले पुरुषे वरामि, न नास्तिके, सांकरिके कृतघ्ने।


न भिन्नवृत्ते, न नृशंरावण्रे, न चापि चौरे, न गुरुष्वसूये।।
अत: कर्मशील एवं सदाचारी व्यक्ति को ही राज्यश्री एवं महालक्ष्मी योग बन पाता है। जबकि लोगों की ऐसी धारणा है कि खूब पैसा, धन दौलत हो तो आनंद की प्राप्ति हो सकती है, पर यह धारणा गलत है। ज्योतिषशास्त्र एवं पौराणिक ग्रंथों में महालक्ष्मी का स्वरूप दन-दौलत या संपत्ति के रूप में नहीं बताया गया है।
लक्ष्मीवान उस व्यक्ति को माना गया है जिसका शरीर सही रहे और जिसे जीवन के हर मोड़ पर प्रसन्नता के भाव मिलते रहें। मुद्रा के स्थान एवं खर्च के स्थान को महालक्ष्मीयोग का कारक नहीं माना गया है बल्कि प्राप्त मुद्रा रूपी लक्ष्मी को सद्बुद्धि के साथ कैसे खर्च करके आनंद लिया जाए, इसे माना गया है। इसीलिए महालक्ष्मी पूजन में महालक्ष्मी, महासरस्वती एवं गणोश जी का पूजन एक साथ किया जाता है। गणेश बुद्धि के देवता हैं तथा सरस्वती ज्ञान की देवी हैं, इसीलिए लक्ष्मी के पहले श्री शब्द लगाया जाता है। यह श्री सरस्वती का बोधक होता है। इसका भाव यह निकलता है कि मुद्रारूपी लक्ष्मी को भी यदि कोई प्राप्त करता है तो श्रेष्ठ गति के साथ जो उसका उपयोग एवं उपभोग करता है, वह आनंद की अनुभूति करता है।

Sunday, October 26, 2008

मंदी में हैं बड़े-बड़े गुण

मंदी को एक नए नज़रिए से देखें तो ये विश्व की अर्थ व्यवस्थाओं का विश्व कप है कुल मिला के चुनाव हो रहे हैं। विभिन्न अर्थ व्यवस्थाओं में जो जीतेगा वो आने वाले समय में अपनी सत्ता स्थापित करेगा। यह पुराने धन कुबेरों के जाने और नए धन कुबेरों की ताजपोशी का विजय गान होगा।
शेयरों का टूटना शुभ है यह संकेत है कि अब कंपनी पुराने और महँगे उत्पादों से लोगों को मुर्ख नहीं बना सकती। उन्हें और मेहनत कर नए और सस्ते उत्पाद लाने होगें। जिन कंपनियों के कर्मचारी निकाले जा रहे उन्हें अपने आपको और तकनीकी कुशल बनाना होगा।

कई निवेशक हैं, जो मंदी के दौर में नामी-गिरामी कंपनियों में लंबी अवधि के लिए पैसा लगा रहे हैं।
बेशक, वैश्विक मंदी ने बहुत लोगों के लिए त्योहार की चमक धुंधली कर दी है, लेकिन हमेशा की तरह तस्वीर का दूसरा पहलू भी है। धनतेरस धन धान्य का पर्व है। हालिया समय कितना भी बुरा रहा हो, लेकिन इस धनतेरस पर भी बाजार में उमंग होगी, पर्व थोड़ा-सा उत्साह बिखेरेगा। इसलिए मौका भी है और दस्तूर भी..यह जानने का कि मंदी क्या बिल्कुल काली है या इसमें हम कहीं उत्साह की उजास भी देख सकते हैं? बाजार के उस्ताद हमें दिलासा देते हैं। चलिए, शेयरों से हटकर बात करते हैं। डीएलएफ समूह के चेयरमैन केपी सिंह के मुताबिक अब ज्यादा बिल्डर सस्ते मकान बनाने पर ध्यान देंगे। इससे वे लोग भी अपना घर बना सकेंगे, जिनके लिए यह अभी तक दिन का सपना ही था। ऐसा इसलिए भी, क्योंकि मंदी ने स्टील और सीमेंट की कीमतें गिरा दी हैं। इनकी कीमतों में अभी तक 10 से 15 फीसदी गिरावट होने से घर बनाना पहले से सस्ता हुआ है। प्रापर्टी की कीमतों में गिरावट भी मंदी का ही नतीजा है।
फिक्की के महासचिव अमित मित्रा के मुताबिक मंदी से उत्पन्न चुनौतियों की अगर सही काट निकाली जाए, तो आने वाले दिनों में कई संभावनाएं हैं। मंदी के दौर में कंपनियों का जोर लागत घटाने पर होता है। इसका फायदा हमेशा आम ग्राहकों को सस्ते उत्पाद के तौर पर मिलता है। एयरटेल के राजन मित्तल कहते हैं कि मंदी में प्रतिस्पद्र्धा बढ़ती है और ग्राहकों का ज्यादा ख्याल रखना पड़ता है। दरअसल, इतिहास बताता है कि अमेरिका और यूरोपीय देशों में उपभोक्तावाद का बीज 1930 के दशक की मंदी के दौर में ही पड़ा था। तब कंपनियों के बीच सस्ते व टिकाऊ सामान बनाने की होड़ लग गई थी। इस बार भी यही होना है।
दिल्ली सहित देश के तमाम बड़े बाजारों में ब्रांडेड कंपनियों ने जिस तरह से 'डिस्काउंट' व 'सेल' के जरिए बिक्री बढ़ाने की मुहिम छेड़ी है, वह भी मंदी का ही कमाल है। इसलिए आप बड़े और नामी स्टोर जाकर 25 से 40 फीसदी तक छूट का फायदा उठा सकते हैं।
मंदी के फायदे और भी हैं। मंदी से निपटने के तरीके बताने के लिए विश्व भर में कई विशेषज्ञ रातों-रात पैदा हो गए हैं। कई वेबसाइटें बना ली गई हैं। ऐसी ही एक वेब-साइट रिसेशनसर्वाइवर डाट काम के मुताबिक मंदी में परिवारों के बीच प्यार बढ़ता है। पड़ोसियों के बीच खटपट कम होती है। आदमी खर्चो में कटौती करता है, बचत सीखता है। जीवन को ज्यादा योजनाबद्ध तरीके से चलाया जाता है। लब्बोलुआब यह कि हुजूर मंदी का रोना रोने से बाज आइए और जो मौके मिल रहे हैं, उनका फायदा उठाइए।

Saturday, October 25, 2008

युवती से गुलाब लेना है तो हेलमेट पहनें




भुवनेश्वर। यह आपको तय करना है कि आप खूबसूरत लड़की से गुलाब का फूल लेंगे या फिर कलाई पर राखी बंधवाएंगे। मामला नियम के पालन करने और नहीं करने का है।
गुलाब लेने की आपकी ख्वाहिश दोपहिया वाहन चलाते समय हेलमेट पहनने से पूरी हो जाएगी। वरना राखी बंधवाने को तैयार रहें। सुरक्षा के प्रति चिंतित उड़ीसा पुलिस ने हेलमेट पहनने के लिए लोगों को जागरूक करने के लिए यह नायाब मनोवैज्ञानिक तरीका अपनाया है। भुवनेश्वर यातायात पुलिस के इस अभियान में इंजीनियरिंग कॉलेजों की छात्राएं मदद कर रही हैं।
हेलमेट पहनने वालों को ये छात्राएं रोमांस का प्रतीक गुलाब भेंट कर रही है। इसके उलट बिना हेलमेट पहने दुपहिया चलाते पकड़े जाने वालों को इन छात्राओं से राखी बंधवानी पड़ रही है।
राजमहल स्क्वायर में राखी बंधवाने को मजबूर रबिंद्र मोहंती ने कहा कि हेलमेट न पहनना कितना असुरक्षित है यह समझ आ गई। बिना हेलमेट पहने वो अब स्कूटर नहीं चलाएंगे। दूसरी ओर 20 वर्षीय कॉलेज छात्र अभिमन्यु मोहापात्रा एक खूबसूरत युवती से गुलाब पाकर बेहद खुश और रोमांचित हैं। पुलिस आयुक्त बी. के. शर्मा ने बताया कि सूबे में प्रतिदिन सड़क दुर्घटनाओं में तकरीबन दस लोग मारे जाते हैं। जुर्माना लगाने के बावजूद हेलमेट पहनने के प्रति लोगों को जागरूककरना मुश्किल हो रहा था। ऐसे में हमने यह नया रास्ता अपनाया।

Friday, October 24, 2008

गुलाबी गैंग की मुखिया संपत देवी पाल का पेरिस में




उत्तर प्रदेश के बांदा सहित बुंदेलखंड के अन्य जिलों में महिला अधिकारों के लिए सक्रिय गुलाबी गैंग की मुखिया संपत देवी पाल का पेरिस में गर्मजोशी से स्वागत किया गया। सुश्री पाल अपनी आटोबायोग्राफी मी संपत पाल-हेड आफ द पिंक साड़ी गैंग के प्रचार के लिए फ्रांस में हैं।


सरकारी महकमे में भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाली और महिला सशक्तीकरण की पोषक गुलाबी गैंग की कमांडर संपत पाल का नाम अब न सिर्फ बांदा जनपद बल्कि इस देश की सीमा लांघकर विदेशी सरजमीं पर भी गूंजेगा और पूरा विश्व जानेगा कि कैसे भारत के एक गांव की साधारण महिला ने उन अबलाओं के हक के लिए न सिर्फ लड़ाई लड़ी बल्कि उन्हें अन्याय के खिलाफ लड़ना भी सिखाया।
संपत पाल एक स्वयंसेवी संस्था ओ एडीशन के बुलावे पर पेरिस जायेंगी जहां 17 से 25 अक्टूबर तक विभिन्न कार्यक्रमों में हिस्सा लेंगी। बुंदेलखण्ड में गुलाबी गैंग और इसकी कमांडर संपत पाल आज किसी परिचय की मोहताज नहीं है। गुलाबी साड़ी को गैंग की पहचान बता सरकारी महकमे में व्याप्त भ्रष्टाचार तथा गरीब, अबला, असहाय, महिलाओं की पुरुष प्रधान समाज में लड़ाई लड़ने वाली संपत पाल के कई ऐसे कारनामे उभरे जो कस्बे से निकल देश-विदेश में चर्चा के विषय बने। उनकी बेबाक राय व जुझारूपन के चलते सैकड़ों महिलाओं को न्याय मिला तथा घर बसा। बुधवार को रवाना होने से पहले उन्होंने बताया कि भाषा समस्या न आये इसके लिए उक्त संस्था द्वारा एक दुभाषिया भी लखनऊ से भेजा जा रहा है। उन्हें पेरिस की सामाजिक संस्था ओ एडीशन के प्रभारी फिलिप राविनेट ने आमंत्रित किया है। संपतपाल हवाई यात्रा के लिए नई दिल्ली रवाना हो गयी हैं। गौरतलब है कि दीनदयाल शोध संस्थान चित्रकूट की उद्यमिता पीठ की डॉ. नंदिता पाठक के बाद गुलाबी गैंग कमांडर संपतपाल दूसरी सामाजिक संस्था से जुड़ी महिला हैं, जिन्हें विदेश से बुलावा आया है।
गुलाबी रंग तो प्रेम और रोमांस का रंग समझा जाता है। मैं भी इसे इसी तरह से लेता हूं पर बांदा की गुलाबी महिलाओं का रोमांस तो कुछ और ही है।
बांदा…? क्या इस नाम की कोई जगह है?’
उत्तर प्रदेश का शायद इसका सबसे पिछड़ा भाग बुन्देलखंड है। बांदा इसी का एक जिला है। यहां का मुख्य पेशा फौजदारी है। कुछ समय पहले वहां कुख्यात डाकू ददुवा का रहा करता था। बिना उससे आशिर्वाद लिये, वहां से, न तो कोई एम.एल.ए. बन सकता था, न ही एम.पी.। वह मारा गया है। अब यह ठोकिया का इलाका है। देखिये अगले चुनाव में क्या होता है।
बांदा की गुलाबी महिलायें - सरकार के भ्रष्ट, घूसखोर अफसरों और उजड्ड पुरुषों - के खिलाफ आवाज उठा रही हैं। वे न तो गैर सरकारी संस्था पर विश्वास करती हैं, न ही अफसरशाही पर। उनके अनुसार या अफसरशाही घूस में व्यस्त है और गैर सरकारी संस्था पैसे कमाने में। वे अपनी लड़ाई स्वयं लड़ रही हैं और महिलाओं को न केवल सम्मान दिलवा रही हैं पर सबका सम्मान भी पा रही हैं।

दंडासन

गलती करोगे तो दंडासन भुगतोगे। आगरा के एक स्कूल के स्टूडंट्स से आजकल यही कहा जा रहा है। स्कूलों में गलती करने वाले छात्रों को डांट या शारीरिक दंड देने की बात आपने सुनी होगी, लेकिन क्या दंड के रूप में योग की सहायता लिए जाने बारे में सुना है? आगरा के एक स्कूल में सजा की इसी अनोखी विधि का इस्तेमाल हो रहा है। आगरा के 166 साल पुराने सेंट पीटर्स कॉलिज में स्टूडंट्स को सजा के रूप में योग करना पड़ता है। इस सजा का नाम 'दंडासन' रखा गया है। इसके तहत 'अनुलोम-विलोम', 'प्रणायाम' और 'कपाल भारती' जैसे योग का सहारा लिया जा रहा है। इस पुराने शिक्षण संस्थान में सजा के इस नए तरीके को प्रिंसिपर जॉन फरेरा लागू कर रहे हैं। यहां 3 हजार स्टूडंट्स पढ़ाई कर रहे हैं। जॉन पहले ही संस्थान के मॉर्निंग सेशन में योग को अनिवार्य घोषित कर चुके हैं। सजा के रूप में योग के प्रयोग पर जॉन ने कहा, ''सजा के रूप में योग के प्रयोग से शरीर को किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचता है बल्कि एकाग्रता शक्ति बढ़ती है।''

Tuesday, October 21, 2008

संघर्ष और जीवट की कहानी






घरों में बरतन धोने और झाड़ू पोछा करने वाली एक महिला अब एक ताक़तवर बहुराष्ट्रीय कंपनी के ख़िलाफ़ आंदोलन का नेतृत्व कर रही है.
दयामणि बरला झारखंड में खरबपति लक्ष्मी मित्तल की कंपनी आर्सेलर मित्तल के ख़िलाफ़ चल रहे आदिवासियों के आंदोलन में शामिल हैं.
आदिवासी अपनी ज़मीन नहीं देना चाहतेइस आंदोलन में उनकी भागीदारी और नेतृत्वकारी भूमिका को देखते हुए हाल ही में उन्हें स्वीडन में यूरोपीय सामाजिक मंच की एक कार्यशाला में आमंत्रित किया गया.
इस कार्यशाला में दुनिया भर में आदिवासी समाज के अधिकारों पर बातचीत की जाएगी.
इस सम्मेलन में दुनिया के अलग अलग कोनों से आ रहे तेईस वक्ताओं में दयामणि बरला शामिल हैं जो मूल निवासियों के संघर्षों के बारे में जानकारी देंगे.
संघर्ष की कहानी
दयामणि बरला के जीवन की कहानी संघर्षों और मुश्किलों की कहानी है. साथ ही ये उनके जीवट की कहानी भी है.
अपने संघर्षों के दौरान मेहनत मज़दूरी करते हुए उन्होंने कई बार रेलवे स्टेशनों पर सो कर रातें काटी हैं.
मेहनत की कमाई से पैसे बचा बचाकर उन्होंने अपनी पढ़ाई लिखाई पूरी की.
इन्हीं हालात में उन्होंने एमए की परीक्षा पास की और फिर पत्रकारिता शुरू की.
दयामणि झारखंड की पहली महिला पत्रकार हैं और उन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में कई पुरस्कार भी मिल चुके हैं.
लेकिन आज भी वो राँची शहर में एक चाय की दुकान चलाती हैं और ये दुकान ही उनकी आय का प्रमुख साधन है.
दयामणि कहती हैं कि “जनता की आवाज़ सुनने के लिए इससे बेहतर कोई जगह नहीं है.”
स्वीडन में हुए सम्मेलन में उन्होंने उन चालीस गाँव के लोगों की दास्तान सुनाई जिनकी ज़मीन इस्पात कारख़ाना लगाने के लिए आर्सेलर मित्तल कंपनी को दी जा रही है.
लक्ष्मी मित्तल इस इलाक़े में क़रीब नौ अरब डॉलर की लागत से दुनिया का सबसे बड़ा इस्पात कारख़ाना लगाना चाहते हैं.
इसका नाम ग्रीनफ़ील्ड इस्पात परियोजना है और इसके लिए बारह हज़ार एकड़ ज़मीन चाहिए.
ये ज़मीन आदिवासियों से ली जानी है.
‘बरबादी और विस्थापन’
लेकिन दयामणि बरला के संगठन आदिवासी, मूलवासी अस्तित्त्व रक्षा मंच का कहना है कि इस परियोजना से भारी संख्या में लोग बेघर हो जाएँगे.
हम अपनी ज़िंदगी क़ुरबान कर देंगे लेकिन अपने पुरखों की ज़मीन का एक इंच भी नहीं देंगे. मित्तल को हम अपनी धरती पर क़ब्ज़ा नहीं करने देंगे
आंदोलन चला रहे लोगों का ये भी कहना है कि इस परियोजना से पानी और दूसरे प्राकृ़तिक संसाधन बरबाद हो जाएँगे जिसका सीधा असर आदिवासियों पर पड़ेगा जो परंपरागत रूप से प्रकृति पर आश्रित रहते हैं.
दयामणि बरला का कहना है कि “आदिवासी अपनी ज़मीन का एक इंच भी नहीं देंगे.”
उन्होंने कहा, “हम अपनी ज़िंदगी क़ुरबान कर देंगे लेकिन अपने पुरखों की ज़मीन का एक इंच भी नहीं देंगे. मित्तल को हम अपनी धरती पर क़ब्ज़ा नहीं करने देंगे.”
आर्सेलर मित्तल के विजय भटनागर ने बीबीसी से कहा है कि उनकी कंपनी किसी की ज़मीन पर क़ब्ज़ा नहीं कर रही है.
उन्होंने कहा कि वो इस मामले को सुलझाने के लिए इंतज़ार करने को तैयार हैं.
भटनागर ने कहा, “हम गाँव वालों से बातचीत की कोशिश कर रहे हैं. उनकी आशंकाएं यथार्थ हो सकती हैं पर हम उन्हें ये समझाने में कामयाब हो जाएंगे कि राज्य सरकार की पुनर्वास की नीतियों को पूरी तरह लागू किया जाएगा.”
काँग्रेस की स्थानीय सांसद सुशीला करकेटा का भी मानना है कि आख़िरकार गाँव वालों को समझा ही लिया जाएगा.
विकास का वादा
उन्होंने कहा कि वो इस परियोजना से होने वाले फ़ायदे लोगों को बता रही हैं.
सुशीला करकेटा का कहना है कि “आर्सेलर मित्तल जैसी कंपनियाँ अगर यहाँ कारख़ाने लगाएँगी तो बेरोज़गारी की समस्या ख़ुद दूर हो जाएगी.”
धरतीमित्र नाम के संगठन से जुड़े विले वेइको हिरवेला ने कहा कि आदिवासियों के लिए ज़मीन ख़रीदने बेचने वाला माल नहीं होता. वो ख़ुद को ज़मीन का मालिक नहीं बल्कि संरक्षक मानते हैं. ये ज़मीन आने वाली पीढ़ी के लिए हिफ़ाज़त से रखी जाती है.
दयामणि बरला का कहना है, “औद्योगिक घराने आदिवासी समाज के आर्थिक व्यवहार से अनजान हैं. वो नहीं जानते ही आदिवासी खेती और जंगल की उपज पर निर्भर रहते हैं.”
उन्होंने कहा अगर आदिवासियों को उनके प्राकृतिक स्रोतों से अलग कर दिया जाएगा तो वो जीवित नहीं बच पाएँगे।

मेरे विचार
१। क्या सिर्फ उद्योगपति ही विकास कर सकतें हैं ?
२। क्या आदिवासी असभ्य हैं ?
३। क्या हमारे पूर्वजों का कोई सम्बन्ध आदिवासियों से है ?
४। क्या शहरों का गाँव, वनों और आदिवासियों से कोई नाता है ?
५। क्या शहर प्रकृति के करीब हैं ?

कार्टून न्यूज़ पेपर से और मुट्ठी भर चावल








भास्कर से (भाई लोग दिल पर मत लेना)
हिंद देश के सभी निवासी एक हैं। राष्ट्र रूप रंग भाषा सारे अनेक हैं।

सुदूर उत्तर पूर्व राज्य मिजोरम के एक छोटे से समुदाय ने एक मिसाल कायम कर यह सिद्ध कर दिया है कि मानव-एकता संकल्प और अथक प्रयास से क्या कुछ नहीं किया जा सकता। भले ही यह मामला केवल एक मुट्ठी भर चावल से खाद्य बैंक बनाने का ही क्यों न हो। इस पहल की शुरूआत वैसे तो ब्रिटिश शासनकाल में शुरू की गई थी लेकिन अपने सकारात्मक प्रभाव और लोकप्रियता के कारण आज मिजोरम में इस सामुदायिक खाद्य बैंक के अभियान का नाम दिया गया है।

संयुक्त राष्ट्र नशा और अपराध कार्यालय के इस अभियान से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने इसके इतिहास की जानकारी देते हुए बताया कि बात वर्ष 1914 की है जब राज्य में महिलाओं के एक समूह ने चर्च की सामाजिक सेवा में चंदा देने की अपनी असमर्थता को दूर करने के लिए एक अनूठी सूझबूझ दिखाई और अपने समूह के सभी सदस्यों से एक-एक मुट्ठी चावल एकत्र करना शुरू कर दिया। इस प्रकार से जो चावल एकत्र हुआ उसे स्थानीय बाजार में बेच दिया गया और जो कमाई हुई उसे चर्च में दान कर दिया।

वर्ष 1914 में इस प्रकार से एकत्रित किए गए चावलों को बेच कर केवल 80 रुपये इकट्ठा हुए थे और उसके 89 साल के बाद वर्ष 2003 के दौरान इसी प्रकार से एकत्र किए गए चावलों को बेचने पर चार लाख रुपये मिले। इस अभियान ने यह बात साबित कर दी कि एकता संकल्प और अथक प्रयास से बहुत कुछ किया जा सकता है। अधिकारी ने बताया कि इस अभियान की लोकप्रियता का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि आज मिजोरम के सभी परिवारों में से करीबन 86 प्रतिशत लोग इस अभियान में भाग ले रहे हैं और इसे कामयाब और यादगार बनाने में लगे हुए हैं।

आज हर परिवार के पास एक दान पात्र है जिसमें एक-एक मुट्ठी चावल एकत्र किया जाता है। संयुक्त राष्ट्र नशा और अपराध कार्यालय ने इस अभियान में सामुदायिक भागीदारी से प्रभावित होकर सप्ताह में एक बार मुट्ठी भर चावल एकत्रित करने की योजना बनाई और इस चावल की बिक्री से जमा की गई धनराशि से नशीली दवाओं के सेवन की आदी महिलाओं की सहायता की जाएगी। यह कार्यक्रम मिजोरम के अजवाल कोलासिन और चंफाई जिलों में संयुक्त राष्ट्र नशा और अपराध कार्यालय की क्षमता निर्माण और चेतना की समन्वित एचआईवी-एड्स अनुक्रिया की परियोजना है जो आज शहरी और देहाती दोनों इलाकों में चलायी जा रही है।

इस योजना के विस्तार कार्यक्रम के तहत अब तक 279 युवा महिलाओं को इस तरह से प्रशिक्षित किया गया है कि वे आगे चलकर लोगों को प्रशिक्षित कर सकें और सामुदायिक खाद्य बैंक के बारे में चेतना का प्रसार कर सकें। इसके परिणाम स्वरूप 70 गांवों से 147 क्विंटल चावल एकत्र किया गया और इसे बेचकर सभी कार्यकर्ताओं से मिलाकर कुल दो लाख रुपये की राशि जमा की गई। यह पूरी धनराशि अकाल के दौरान राहत का कार्य चलाने के लिए मिजोरम सरकार को भेंट की गई।

Monday, October 20, 2008

भारत के खिलौना उद्योग

किसी का दर्द कैसे किसी और के चेहरे पर मुस्कान लाता है, यह कारोबारी जगत से बेहतर कोई नहीं समझता। मसलन, भारत के खिलौना उद्योग को लीजिए।
वैश्विक मंदी में गिरती मांग और डॉलर की मजबूती से अमेरिका, चीन और यूरोपीय देशों में खिलौने का निर्यात महंगा क्या हुआ, भारत के खिलौना कारोबारियों की तो बल्ले-बल्ले हो गई है। बढ़ती मांग के कारण छह वर्षो के भीतर ही भारत का खिलौना कारोबार 125 करोड़ रुपये से बढ़कर 700 करोड़ रुपये का हो गया है। टॉय एसोसिएशन ऑफ इंडिया(टीएआई) के अध्यक्ष विष्णु स्वरूप अग्रवाल बताते है कि ' वैश्विक स्तर पर कम लागत और सस्ती कीमत होने के कारण भारत में बनाए जाने वाले सॉफ्ट टॉयज ,टेडीबियर, स्टफ टॉयज, लकड़ी और बोर्ड के खिलौनों की मांग में शतफीसदी की बढ़ोतरी हो गई है। अंतराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय खिलौनों की मांग बढ़ने का कारण भारतीय खिलौना बाजार का असंगठित और क्षेत्रीय होना है। देश के कुल खिलौना कारोबार में संगठित क्षेत्र केवल एक तिहाई है। इसमें भी चालीस फीसदी खिलौना कारोबारी विदेशों से खिलौने का आयात करते है। डॉलर के मजबूत होने से विदेशों से होने वाले इस आयात में कमी आने के साथ खिलौना निर्माण से जुड़ी संगठित घरेलू इकाइयों और असंगठित खिलाड़ियों के कारोबार में अप्रत्याशित बढ़ोतरी हो रही है।भारत की निर्यात प्रोत्साहन परिषद के आंकड़ों के हिसाब से 'पिछले वर्ष भारत से खिलौनों का निर्यात लगभग 13 करोड़ रुपये का हुआ है। इस वर्ष इसमें पचास फीसदी से ज्यादा की बढ़ोतरी की संभावना है।' अभी तक विश्व के खिलौना कारोबार में चीन का दबदबा है। दुनिया के खिलौना कारोबार में जहां चीन 34 फीसदी की हिस्सेदारी रखता है। वहीं भारत का हिस्सा 1 फीसदी से भी कम रहा है। इस बाबत टीएआई के पदाधिकारियों का मानना है कि जैसे-जैसे भारत के खिलौना उद्योग में संगठित क्षेत्र की हिस्सेदारी बढ़ेगी भारत के वैश्विक कारोबार में भी बढ़ोतरी होगी। स्वरूप बताते है भारत का खिलौना कारोबार रोजगार देने के मामले में भी आगे रहते हुए लगभग 20 लाख लोगों को रोजगार प्रदान करवा रहा है। केंद्रीय श्रम विभाग के आंकड़ों के हिसाब से पंजाब,यूपी, हरियाणा और तमिलनाडु के दक्षिणी जिलों में खेल कारोबार रोजगार प्रदान करवाने में प्रतिवर्ष चालीस फीसदी से ज्यादा की बढ़ोतरी कर रहा है।

Sunday, October 19, 2008

जिन्हें पड़ी डांट, उनके हो गए ठाठ

इंदौर टीचर की डांट से नाराज दिल्ली पब्लिक स्कूल के एक छात्र ने इंडियन मुजाहिदिन के नाम से स्कूल को बम से उड़ाने की धमकीभरा ई मेल कर दिया, जबकि ज्यादातर लोग मानते हैं बड़ों की डांट ने उनकी लाइफ स्टाइल ही बदल दी। इसलिए जरूरी है कि डांट यानी समझाइश के प्रति सकारात्मक नजरिया रखा जाए।
एमवायएच में मनोचिकित्सक डॉ. पाल रस्तोगी कहते हैं 12 साल की उम्र के बाद बच्चों की मानसिकता और व्यवहार बदलता है। गलती करने पर उन्हें न समझाने पर वे झूठ बोलना, चोरी करना, घर से भागने की कोशिश करते हैं। डांटते समय बच्चों को यह भी समझाएं कि उनकी गलती का खुद व दूसरों पर क्या प्रभाव पड़ेगा। कोलम्बिया कॉन्वेंट की सोशल साइंस टीचर मधु तलवार बताती हैं टीचर्स को एक स्तर तक ही बच्चों को डांटना चाहिए बच्चों पर डांट का क्या असर पड़ रहा है इसका ध्यान रखना जरूरी है।
सेंट पॉल स्कूल के पी.एस.यादव के अनुसार पढ़ाई के प्रेशर से तंग आकर स्टूडेंट्स गलत कदम उठा लेते हैं, इसलिए स्कूल व टीचर्स को ही पहल करना होगी। मंगलनगर की साधना शर्मा कहती हैं बच्चों से कभी तो सख्ती करना ही पड़ती है लेकिन जरूरी है उनकी समय-समय पर काउंसलिंग भी होती रहे। इंजीनियर वीरेंदA जैन कहते हैं सिंगल चाइल्ड की मानसिकता समझना जरूरी है। स्कूल और घर में बच्चों की एक्टिविटी पर हमेशा नजर रखना चाहिए।
छह बार कराया असाइनमेंट
श्री महावीरा कम्प्यूटर पेरीफेरल के डायरेक्टर सुशील पाटली कहते हैं बीएससी फस्र्ट ईयर में मैथ्स के प्रोफेसर ने असाइनमेंट दिया। मैं मैथ्स से हमेशा बचना चाहता था इसलिए जानबूझ कर नहीं किया। इस पर प्रोफेसर ने बहुत डांटा और पांच-छह बार असाइनमेंट कराया। उस समय काफी गुस्सा आया लेकिन आज वही डांट मुझे काम में मदद कर रही है। अब कोई काम कल पर नहीं छोड़ता।
और कहा.. मैं बनूंगा डॉक्टर
शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. अजय दोसी बताते हैं होशंगाबाद में हमारा स्कूल नर्मदा तट के बहुत पास था। मैं क्लास बंक करवहां चला जाता था। बात पिता को पता चली तो उन्होंने डांटा और कहा तुम तो बैंक में पीयून बनने के भी काबिल नहीं हो डॉक्टर क्या बनोगे। उनकी बात मुझे चुभ गई। तब ही ठान लिया था डॉक्टर ही बनूंगा।
सिखाई समय की अहमियत
पंजाब नेशनल बैंक के चीफ मैनेजर सर्वज्ञ भटनागर कहते हैं मैं पढ़ाई से ज्यादा खेल पर ध्यान देता था। पापा कहते थे की मैं हर काम समय पर करूं लेकिन मैं उनकी बात को हमेशा अनदेखा कर देता था। एक्जाम के समय देर से आने पर पापा ने मुझे जमकर डांटा पिटाई भी की। बोले कब तक समय बरबाद करते रहोगे। उनकी इस डांट व पिटाई ने मुझे समय की अहमियत सिखाई।

इज्ज़त बचाने के लिए सिर क़लम

उत्तर प्रदेश में एक महिला ने अपनी इज्ज़त बचाने के लिए एक दबंग किस्म के कामुक युवक का सिर क़लम कर अपने को पुलिस के हवाले कर दिया.
मगर पुलिस ने इस महिला को पीड़ित मानते हुए उसे सम्मानपूर्वक घर भेज दिया क्योंकि पुलिस के अनुसार उसने आत्म रक्षा में पलटवार किया था.
घटना नेपाल सीमा से सटे लखीमपुर ज़िले के इसानगर थाने की है.
ग्राम हसनपुर कटौली के मजरा मक्कापुरवा में दलित राजकुमार और मनचले किस्म के जुलाहे अन्नू के घर अगल-बगल हैं.
अन्नू राजकुमार की पत्नी फूलकुमारी को अक्सर छेड़ता था. मगर कमजोर वर्ग का राजकुमार उसके विरोध का साहस नहीं कर पाता.
गुरुवार को फूलकुमारी जानवरों के लिए चारा लाने गयी थी. वह एक गन्ने के खेत में पत्ते तोड़ रही थी. तभी अन्नू वहाँ पहुँच गया और उसके साथ ज़बर्दस्ती करने लगा.
इज्ज़त बचाने के लिए हमला
बीबीसी से फोन पर बातचीत में फूलकुमारी ने कहा कि वह चारा काटने गई थी और उसने अपनी इज्ज़त और जान बचाने के लिए हमलावर पर वार किया था.
महिला का कहना था, ''हमने मार दिया. हम गए थे गन्ने की पत्ती लेने. तभी वह ज़बर्दस्ती लिपट गया. हमने किसी तरह उसका बांका छीन लिया और उसी से उसकी गर्दन उड़ा दी.''
स्थानीय अख़बारों ने प्रत्यक्षदर्शियों के हवाले से लिखा कि फूलकुमारी खून से लथपथ अन्नू का कटा हुआ सिर लिए हसनपुर कटौली पहुँची और वहाँ अपने को पुलिस के हवाले कर दिया. पुलिस वाले उसे थाने ले गए और उसने पूरा मामला बयान किया.
बीबीसी से बातचीत में फूलकुमारी ने इस बात से इनकार किया कि वह अन्नू का कटा हुआ सिर लेकर बाज़ार में गई. पुलिस का कहना है कि उसने अन्नू का कटा सिर धान के एक खेत से बरामद किया.
पुलिस ने फूलकुमारी की चिकित्सा जांच कराई और चौबीस घंटों की तहकीकात के बाद उसके घर वालों के हवाले कर दिया.
ज़िले के पुलिस कप्तान राम भरोसे ने बीबीसी से बातचीत में कहा, वह तो पीड़ित है और उसने अपने बचाव में ऐसा किया. उसने कोई ज़ुर्म नहीं किया.
पुलिस ने फूलकुमारी की रपट के आधार पर मृत युवक के ख़िलाफ़ बलात्कार, हत्या के प्रयास और उत्पीड़न का मामला दर्ज कर लिया.
पुलिस का कहना है कि मृत युवक के परिवार वालों ने अभी तक कोई मामला दर्ज नहीं कराया है.
एक स्थानीय पत्रकार का कहना है कि मृत युवक का चाल चलन अच्छा नहीं था.

मेरी नज़र

१। कहानी के सूत्र धार

। दुर्गा (फूलकुमारी)

३। कमजोर वर्ग का राजकुमार

४। आत्म रक्षा में पलटवार

Orlando, Florida (घुमने घुमाने का शहर)





कल मैं Epcot गया, यह अमेरिका के Orlando, Florida में fun, रोमांच और विज्ञानं से भरा पार्क है । वैसे तो एक दिन इस पार्क के लिए काफी कम हैं । लेकिन मैं तो "जब तक है पैरों में जान, मैं नाचूंगी" की दर्शिनिकता के साथ पार्क गया और मैंने ९०% पार्क घूमा । मैं सुबह १०:३० बजे चला और ९:०० बजे पार्क बंद करवा के वापिस लौटा । कुल मिला के मैंने टिकट के ९०-९५% दाम वसूल किए ।

पार्क की पार्किंग व्यवस्था काफी सरल है साथ में भीड़ - भाड़ प्रबंधन भी बहुत उत्तम है । प्रवेश के लिए २०-२५ द्वार हैं और टिकट खरीदने के लिए भी पंक्ति बद्ध १२ काउन्टर पर उचित व्यवस्था है । अन्दर जाने पर वहां कई शो देखने को मिलतें हैं ।

जैसे कि Space craft, Mission Space, Imagination, Nestle Land, Neemo, Sorain. इन सारे शो में यांत्रिकी , विज्ञानं, भौतिकी, जल चर, अंतिरक्ष, प्रक्रति प्रेम के विचारों का प्रयोग किया गया है । बताया गया है प्रकृति हमें क्या - क्या देती है । ज़ल्वायु का क्या महत्त्व है । मनुष्य प्रकृति के साथ - साथ कैसे रहे । खाने पीने और प्रसाधन कक्ष की उत्तम व्यवस्था है । छोटे बच्चों के लिए stroller (बच्चा गाड़ी) की व्यवस्था है ।

सारे शो में ज़ाने के लिए ४५-६० मिनट्स की लम्बी पंक्ति है । World Village के हिस्से में ऑस्ट्रेलिया, इटली, मैक्सिको , चीन, अरब, आयरलैण्ड, ब्रिटेन के मकान, संस्कृति के बारे में बताया गया है । वहाँ का खान - पान, वाइन, बियर भी उपलब्ध है। दिल्ली का भी स्टाल था उस पर समोसा, मैंगो कुल्फी, चिकेन करी था, कुल मिला के भारत के मेले जैसा माहौल है । मैं भीड़ पसंद मनुष्य हूँ इसलिए मुझे काफी अच्छा लगा । Orlando शहर जहाँ मैं रहता हूँ एक घुमने घुमाने का शहर है । साल भर यहाँ बाहर से पर्यटक आते हैं । शीतकाल में यूरोप में शीत के चलते पर्यटक Orlando शहर में ज्यादा आतें हैं । Orlando का तापमान आप मुंबई जैसा मान सकतें हैं ।

Friday, October 17, 2008

जीवन के 15 कानून (स्वामी विवेकानंद)

१. Love Is The Law Of Life: All love is expansion, all selfishness is contraction। Love is therefore the only law of life. प्यार जीवन का नियम है: सभी प्यार से विस्तार होता है, सब स्वार्थ से संकुचन होता है . इसलिए सिर्फ प्यार ही जीवन का नियम है। He who loves lives, he who is selfish is dying. वह जो प्यार करता है वह जीवन को जीता है और वह जो स्वार्थी है वह मर रहा है. Therefore, love for love's sake, because it is law of life, just as you breathe to live. इसलिए, प्यार के लिये प्यार कीजिए, क्योंकि यह जो जीवन का नियम है, यह उतना ही आवश्यक है जितना आप जीने के लिए साँस लेते हैं ।

२. It's Your Outlook That Matters: It is our own mental attitude, which makes the world what it is for us. आप किसी बात या तथ्य को कैसे लेते हैं यह बात मायने रखती है क्योंकि यह आपका दृष्टिकोण है। यह हमारी अपनी मानसिक अवस्था है यह हमें समझाती है कि हमारा अपना संसार कैसे बना है । Our thoughts make things beautiful, our thoughts make things ugly। हमारे विचार सभी चीजों को सुंदर और असुंदर बनातें हैं ।The whole world is in our own minds। सारी दुनिया हमारे अपने दिमाग में है। Learn to see things in the proper light. सभी चीजों को पूर्ण प्रकाश में देखने की कोशिश करें।

३. Life is Beautiful: First, believe in this world - that there is meaning behind everything. जीवन सुंदर है: पहिले, इस दुनिया में विश्वास करें - कि यहाँ जो कुछ भी है उसके पीछे कोई अर्थ छुपा हुआ है । Everything in the world is good, is holy and beautiful. दुनिया में सब कुछ अच्छा है , पवित्र है और सुंदर भी है. If you see something evil, think that you do not understand it in the right light. Throw the burden on yourselves! यदि आप, कुछ बुरा देखते हो तब इसका मतलब है आप इसे पूर्ण रूप से समझ नहीं पाएं हैं । आप अपने ऊपर का सारा बोझ उतार फेंकें !

४. It's The Way You Feel: Feel like Christ and you will be a Christ; feel like Buddha and you will be a Buddha. यह आपका तरीका है कि आप कैसा महसूस करतें हैं : आप मसीह की तरह महसूस करें तो आप मसीह जैसा बनेंगें ; आप बुद्ध की तरह महसूस करें तो आप बुद्ध जैसा बनेंगें . It is feeling that is the life, the strength, the vitality, without which no amount of intellectual activity can reach God. यह विचार ही है कि यह जीवन है, यह शक्ति है और इसके बिना कोई बौद्धिक गतिविधि भगवान तक नहीं पहुँच सकती है ।

५. Set Yourself Free: The moment I have realised God sitting in the temple of every human body, the moment I stand in reverence before every human being and see God in him - that moment I am free from bondage, everything that binds vanishes, and I am free. आप अपने आप को मुक्त करें : जिस क्षण मैं यह अहसास करता हूँ कि भगवान् हर मानव शरीर के अन्दर है, उस पल में जिस किसी भी मनुष्य के सामने खड़ा होता हूँ तो मैं उसमें भगवान् पाता हूँ , उस पल में मैं बंधन से मुक्त हो जाता हूँ और सारे बंधन अद्रश्य हो जातें हैं और मैं मुक्त हो जाता हूँ ।

६. Don't Play The Blame Game: Condemn none: if you can stretch out a helping hand, do so. निंदा दोष का खेल मत खेलिए : किसी पर भी आरोप प्रतिआरोप न करें । आप किसी की मदद के लिए हाथ बड़ा सकतें हैं तो ऐसा अवश्य करें । If you cannot, fold your hands, bless your brothers, and let them go their own way. यदि आप अपने हाथ कई गुना नहीं कर सकते हैं तो आप अपने भाइयों को आशीर्वाद दे, और उन्हें अपने - अपने रास्ते पर चलने दें ।

७. Help Others: If money helps a man to do good to others, it is of some value; but if not, it is simply a mass of evil, and the sooner it is got rid of, the better. दूसरे की मदद करें : यदि धन दूसरों के लिए अच्छा करने के लिए एक आदमी को मदद करता है, यह कुछ मूल्य का है, लेकिन अगर नहीं, तो यह केवल बुराई की जड़ है, और जितनी जल्दी इससे छुटकारा मिल जाए, उतना अच्छा है ।

८. Uphold Your Ideals: Our duty is to encourage every one in his struggle to live up to his own highest idea, and strive at the same time to make the ideal as near as possible to the Truth. अपने आदर्शों का समर्थन: हमारा कर्तव्य है कि हम सभी को उनके संघर्ष में उनके उच्चतम विचार के लिए जीने को प्रोत्साहित करें, और साथ ही उन विचारों को सत्य के करीब बनाने के लिए हर सम्भव संघर्ष करें ।

९. Listen To Your Soul: You have to grow from the inside out. अपनी आत्मा को सुनो: तुम अंदर से बाहर की ओर बढो . None can teach you, none can make you spiritual. कोई तुम्हें सिखा नहीं सकता है, न ही कोई तुम्हें आध्यात्मिक बना सकता है । There is no other teacher but your own soul. वहाँ कोई अन्य शिक्षक नहीं है लेकिन अपनी खुद की आत्मा है।

१०. Be Yourself: The greatest religion is to be true to your own nature. Have faith in yourselves! अपने आप को बनो: सबसे बड़ा धर्म अपनी खुद की प्रकृति के प्रति सच होना है. अपने आप पर विश्वास करो !

११. Nothing Is Impossible: Never think there is anything impossible for the soul. कुछ भी असंभव नहीं है: कभी नहीं सोचो कि वहाँ आत्मा के लिए कुछ भी असंभव है। It is the greatest heresy to think so. ऐसा सोचना सबसे बड़ा पाखण्ड है. If there is sin, this is the only sin - to say that you are weak, or others are weak. यदि कोई पाप है, तो केवल यही पाप है - कि तुम कहते हो , तुम कमजोर हो या दूसरें कमजोर हैं ।

१२. You Have The Power: All the powers in the universe are already ours. It is we who have put our hands before our eyes and cry that it is dark. तुममें शक्ति है: ब्रह्मांड में सभी शक्तियां पहले से ही हमारी हैं. यह हम हैं जो अपनी आंखों को हाथों से ढँक लेतें हैं और बोलतें हैं कि यहाँ अँधेरा है ।

१३. Learn Everyday: The goal of mankind is knowledge. हर रोज़ सीखें : मानवता का लक्ष्य ज्ञान है । now this knowledge is inherent in man. अब यह ज्ञान मनुष्य के अन्दर निहित है. No knowledge comes from outside: it is all inside. कोई भी ज्ञान बाहर से नहीं आता है: यह सब अंदर है। What we say a man 'knows', should, in strict psychological language, be what he 'discovers' or 'unveils'; what man 'learns' is really what he discovers by taking the cover off his own soul, which is a mine of infinite knowledge. हम, जो एक आदमी कहता है की वह "जानता" है वह, सख्त मनोवैज्ञानिक भाषा में - उसने यह खोजा या ढूंडा होना चाहिए; जो मनुष्य सीखता है यह सच में उसकी खोज है जो उसने आत्मा के ऊपर पड़ा परदा हटाने पर पाया और यह आत्मिक ज्ञान उसके अपने में निहित असीम ज्ञान है।

१४. Be Truthful: Everything can be sacrificed for truth, but truth cannot be sacrificed for anything. सच्चे रहो: सब कुछ सच के लिए बलिदान किया जा सकता है, लेकिन सत्य, सब कुछ के लिए बलिदान नहीं किया जा सकता है ।

१५ . Think Different: All differences in this world are of degree, and not of kind, because oneness is the secret of everything. अलग सोचो: दुनिया में सारे मतभेद उनको विभिन्न नज़रिए से देखने की वज़ह से हैं न कि इसलिए कि सारी कुछ एक ही न होने के कारन . कहने का अर्थ हम अपनी अनुभूतियों के कारन सब कुछ अलग - अलग मानतें हैं परन्तु सच में सारा कुछ एक में ही समाया हुआ है ।

मेरा विचार
१। यह मैंने रूपांतरित किया है अगर आप को कुछ त्रुटि लगे तो मुझे कमेन्ट में अवश्य बताएं ।
२। स्वामी विवेकानंद जी जीवन के उत्तरार्ध में ही जीवन के रहस्य को जान चुके थे ।
३। अंग्रेज़ी स्वामी जी के समय विदेशी भाषा थी पर स्वामी जी का इस पर पूर्ण नियंत्रण था ।
४। स्वामी जी भाषा को विचारों के संप्रेषण का माध्यम मानते थे न कि प्रतिदिन युद्ध कराने का ।
५। स्वामी विवेकानंद, स्वामी योगानंद ने काफी समय पहिले पश्चिम को समझा और एक अलग नज़रिए से देखा और स्वामी जी ने पश्चिम को यथासंभव हिंदू सनातन संस्कृति के बारे में बताया। आप भी सनातन संस्कृति के राजदूत हैं । आप भी इस पावन यज्ञ कर्म में अपनी आहुति दीजिए ।

Thursday, October 16, 2008

युवा, प्रबंधन और हायर फायर पॉलिसी

आजकल दिन प्रतिदिन मंदी के समाचार आ रहे हैं। हो सकता है की यह कुछ दिन चले भी और इस वातावरण को स्थिर होने में समय लगे। कुछ अमेरिकी विचारधारा की कम्पनियाँ भारत में नौकरी करने वाले व्यक्ति को तुंरत निकाल देती है। इसे मैं ग़लत मानता हूँ । आजकल कंप्यूटर तथा अनेक नए व्यापारों में कोई मजदूर यूनियन नहीं है जो निकाले गए लोगों की बात रख सके । सरकार भी अपनी मज़बूरी तुंरत ज़ाहिर कर देती है । यही सरकार जब ज़मीन अधिग्रहण की बात आती है तो अमीर मालिक वर्ग के साथ तुंरत खड़ी हो जाती है । सरकार ये जानती है कि "हम इस दिशां में सोच रहे हैं" ऐसा कहने से कुछ नहीं होगा । फिर भी ऐसे खोखले वादे कर अपनी जिम्मेदारी से अपना पल्ला झाड़ देती है ।

कुल मिला कर ऐसा संदेश जाता है कि वोट देने के नाम या आंकड़े देने के लिए हम विश्व को बतातें हैं कि हमारी ५०% आबादी युवा वर्ग है । परन्तु जब युवा वर्ग को प्रतिनिधित्व देने, उन्हें मौका देने , उनका आत्मविश्वास बढ़ाने कि बारी आती है तो हम मुंह फेर लेते हैं ।

मेरे हिसाब से कंपनी के प्रबंधन को अनावश्यक रूप से आँख बंद कर अमेरिका का अनुसरण नहीं करना चाहिए । जो अधिसंख्य नौज़वान युवक युवती काम रहे हैं उनके पास कोई दूसरा विकल्प आसानी से उपलब्ध नहीं है । अमेरिका में लडके लड़कियाँ १४-१५ साल की उम्र से काम करना प्रारम्भ करतें हैं और २०-२३ साल के होते होते एक अच्छे पद पर पहुँच कर आत्म - विस्बास के साथ काम करते हैं और आगे बढ़ते रहते हैं । यहाँ काफी जगह पति पत्नी दोनों काम करतें हैं। ये सब बातें पति पत्नी दोनों को पैसे के बारे में आत्म निर्भर बनातें हैं । मेरा मानना है कि कंपनी प्रबंधन को उतने ही लोग जॉब पर रखने चाहिए जिनको वह लंबे समय तक काम पर रख सकें । इससे नौकरी करने वाले का भी आत्म-विस्बास बढेगा।

बजाय तुरत फुरत निकालने के प्रबंधन को चाहिये कि हर युवक युवती की आर्थिक स्थति को भी ध्यान दे । और सोचे कि क्या इनको ३-४ महीने पर कम वेतन कर रखा जा सकता है । कंपनी जब अच्छा परिणाम देने लगे तो उन्हें वापिस मूल वेतन पर ले आयें । समय - समय कर्मचारी वर्ग को प्रशिक्षण भी दे जिससे कर्मचारी बाज़ार के अनुरूप योग्य बने रहे। ऐसी बहुत सी छोटी - छोटी बातें हैं जो प्रबंधन कर्मचारियों में आपसी विस्वास बनाएं रखने के लिए कर सकता है । अगर प्रबंधन सदैव "चौधरी" बनके चलता है तो उसके कई दुष्परिणाम सामने आ सकतें हैं । प्रबंधन और कर्मचारियों के बीच परिवार के सदस्यों के जैसा व्यवहार होना चाहिए । ये सब ही आगे चल देश की उन्नति में भी सहायक होगा ।

Wednesday, October 15, 2008

लक्ष्मी तथा शंख

शंख निधि का प्रतीक है। ऐसा माना जाता है कि इस मंगलचिह्न को घर के पूजास्थल में रखने से अरिष्टों एवं अनिष्टों का नाश होता है और सौभाग्य की वृद्धि होती है। भारतीय धर्मशास्त्रों में शंख का विशिष्ट एवं महत्वपूर्ण स्थान है। मंदिरों एवं मांगलिक कार्यों में शंख-ध्वनि करने का प्रचलन है। मान्यता है कि इसका प्रादुर्भाव समुद्र-मंथन से हुआ था। समुद्र-मंथन से प्राप्त 14 रत्नों में शंख भी एक है। विष्णु पुराण के अनुसार माता लक्ष्मी समुद्रराज की पुत्री हैं तथा शंख उनका सहोदर भाई है। अत यह भी मान्यता है कि जहाँ शंख है, वहीं लक्ष्मी का वास होता है। स्वर्गलोक में अष्टसिद्धियों एवं नवनिधियों में शंख का महत्वपूर्ण स्थान है। भगवान विष्णु इसे अपने हाथों में धारण करते हैं।
धार्मिक कृत्यों में शंख का उपयोग किया जाता है। पूजा-आराधना, अनुष्ठान-साधना, आरती, महायज्ञ एवं तांत्रिक क्रियाओं के साथ शंख का वैज्ञानिक एवं आयुर्वेदिक महत्व भी है। प्राचीन काल से ही प्रत्येक घर में शंख की स्थापना की जाती है। शंख को देवता का प्रतीक मानकर पूजा जाता है एवं इसके माध्यम से अभीष्ट की प्राप्ति की जाती है। शंख की विशिष्ट पूजन पद्धति एवं साधना का विधान भी है। कुछ गुह्य साधनाओं में इसकी अनिवार्यता होती है। शंख कई प्रकार के होते हैं और सभी प्रकारों की विशेषता एवं पूजन-पद्धति भिन्न-भिन्न है। शंख साधक को उसकी इच्छित मनोकामना पूर्ण करने में सहायक होते हैं तथा जीवन को सुखमय बनाते हैं। उच्च श्रेणी के श्रेष्ठ शंख कैलाश मानसरोवर, मालद्वीप, लक्षद्वीप, कोरामंडल द्वीप समूह, श्रीलंका एवं भारत में पाये जाते हैं।
शंख की आकृति के आधार पर इसके प्रकार माने जाते हैं। ये तीन प्रकार के होते हैं - दक्षिणावृत्ति शंख, मध्यावृत्ति शंख तथा वामावृत्ति शंख। जो शंख दाहिने हाथ से पकड़ा जाता है, वह दक्षिणावृत्ति शंख कहलाता है। जिस शंख का मुँह बीच में खुलता है, वह मध्यावृत्ति शंख होता है तथा जो शंख बायें हाथ से पकड़ा जाता है, वह वामावृत्ति शंख कहलाता है। मध्यावृत्ति एवं दक्षिणावृति शंख सहज रूप से उपलब्ध नहीं होते हैं। इनकी दुर्लभता एवं चमत्कारिक गुणों के कारण ये अधिक मूल्यवान होते हैं। इनके अलावा लक्ष्मी शंख, गोमुखी शंख, कामधेनु शंख, विष्णु शंख, देव शंख, चक्र शंख, पौंड्र शंख, सुघोष शंख, गरुड़ शंख, मणिपुष्पक शंख, राक्षस शंख, शनि शंख, राहु शंख, केतु शंख, शेषनाग शंख, कच्छप शंख आदि प्रकार के होते हैं।
महाभारत काल में सभी योद्धाओं ने युद्ध घोष के लिए अलग-अलग शंख बजाए थे। गीता के प्रथम अध्याय के श्लोक 15-19 में इसका वर्णन मिलता है -
पांचजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनञ्जय।पौण्ड्रं दध्मौ महाशंखं भीमकर्मा वृकोदर।।अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिर। नकुल सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ।। काश्यश्च परमेष्वास शिखण्डी च महारथ। धृष्टद्युम्नो विराटश्च सात्यकिश्चापराजिताः।। द्रुपदो द्रौपदेयाश्च सर्वश पृथिवीपते। सौभद्रश्च महाबाहुः शंखान्दध्मुः पृथक्पृथक्।।
अर्थात् श्रीकृष्ण भगवान ने पांचजन्य नामक, अर्जुन ने देवदत्त और भीमसेन ने पौंड्र शंख बजाया। कुंती-पुत्र राजा युधिष्ठिर ने अनंतविजय शंख, नकुल ने सुघोष एवं सहदेव ने मणिपुष्पक नामक शंख का नाद किया। इसके अलावा काशीराज, शिखंडी, धृष्टद्युम्न, राजा विराट, सात्यकि, राजा द्रुपद, द्रौपदी के पाँचों पुत्रों और अभिमन्यु आदि सभी ने अलग-अलग शंखों का नाद किया।
शंख को विजय, समृद्धि, सुख, यश, कीर्ति तथा लक्ष्मी का प्रतीक माना गया है। वैदिक अनुष्ठानों एवं तांत्रिक क्रियाओं में भी विभिन्न प्रकार के शंखों का प्रयोग किया जाता है। पारद शिवलिंग, पार्थिव शिवलिंग एवं मंदिरों में शिवलिंगों पर रुद्राभिषेक करते समय शंखध्वनि की जाती है। आरती, धार्मिक उत्सव, हवन-क्रिया, राज्याभिषेक, गृह-प्रवेश, वास्तु-शांति आदि शुभ अवसरों पर शंखध्वनि से लाभ मिलता है। पितृ-तर्पण में शंख की अहम भूमिका होती है।
घर में पूजा-वेदी पर शंख की स्थापना की जाती है। निर्दोष एवं पवित्र शंख को दीपावली, होली, महाशिवरात्रि, नवरात्र, रवि-पुष्य, गुरु-पुष्य नक्षत्र आदि शुभ मुहूर्त में विशिष्ट कर्मकांड के साथ स्थापित किया जाता है। रुद्र, गणेश, भगवती, विष्णु भगवान आदि के अभिषेक के समान शंख का भी गंगाजल, दूध, घी, शहद, गुड़, पंचद्रव्य आदि से अभिषेक किया जाता है। इसका धूप, दीप, नैवेद्य से नित्य पूजन करना चाहिए और लाल वस्त्र के आसन में स्थापित करना चाहिए। शंखराज सबसे पहले वास्तु-दोष दूर करते हैं। मान्यता है कि शंख में कपिला (लाल) गाय का दूध भरकर भवन में छिड़काव करने से वास्तुदोष दूर होते हैं। परिवार के सदस्यों द्वारा आचमन करने से असाध्य रोग एवं दुःख-दुर्भाग्य दूर होते हैं। विष्णु शंख को दुकान, ऑफिस, फैक्टरी आदि में स्थापित करने पर वहाँ के वास्तु-दोष दूर होते हैं तथा व्यवसाय आदि में लाभ होता है।
शंख की स्थापना से घर में लक्ष्मी का वास होता है। स्वयं माता लक्ष्मी कहती हैं कि शंख उनका सहोदर भ्राता है। शंख, जहाँ पर होगा, वहाँ वे भी होंगी। देव प्रतिमा के चरणों में शंख रखा जाता है। पूजास्थली पर दक्षिणावृत्ति शंख की स्थापना करने एवं पूजा-आराधना करने से माता लक्ष्मी का चिरस्थायी वास होता है। इस शंख की स्थापना के लिए नर-मादा शंख का जोड़ा होना चाहिए। गणेश शंख में जल भरकर प्रतिदिन गर्भवती नारी को सेवन कराने से संतान गूंगेपन, बहरेपन एवं पीलिया आदि रोगों से मुक्त होती है। अन्नपूर्णा शंख की व्यापारी व सामान्य वर्ग द्वारा अन्नभंडार में स्थापना करने से अन्न, धन, लक्ष्मी, वैभव की उपलब्धि होती है। मणिपुष्पक एवं पांचजन्य शंख की स्थापना से भी वास्तु-दोषों का निराकरण होता है। शंख का तांत्रिक-साधना में भी उपयोग किया जाता है। इसके लिए लघु शंखमाला का प्रयोग करने से शीघ्र सिद्धि प्राप्त होती है।
वैज्ञानिकों के अनुसार शंख-ध्वनि से वातावरण का परिष्कार होता है। इसकी ध्वनि के प्रसार-क्षेत्र तक सभी कीटाणुओं का नाश हो जाता है। इस संदर्भ में अनेक प्रयोग-परीक्षण भी हुए हैं। आयुर्वेद के अनुसार शंखोदक भस्म से पेट की बीमारियाँ, पीलिया, यकृत, पथरी आदि रोग ठीक होते हैं। त्र+षि श्रृंग की मान्यता है कि छोटे-छोटे बच्चों के शरीर पर छोटे-छोटे शंख बाँधने तथा शंख में जल भरकर अभिमंत्रित करके पिलाने से वाणी-दोष नहीं रहता है। बच्चा स्वस्थ रहता है। पुराणों में उल्लेख मिलता है कि मूक एवं श्वास रोगी हमेशा शंख बजायें तो बोलने की शक्ति पा सकते हैं। हृदय रोगी के लिए यह रामबाण औषधि है। दूध का आचमन कर कामधेनु शंख को कान के पास लगाने से `ँ़' की ध्वनि का अनुभव किया जा सकता है। यह सभी मनोरथों को पूर्ण करता है।
वर्तमान समय में वास्तु-दोष के निवारण के लिए जिन चीजों का प्रयोग किया जाता है, उनमें से यदि शंख आदि का उपयोग किया जाए तो कई प्रकार के लाभ हो सकते हैं। यह न केवल वास्तु-दोषों को दूर करता है, बल्कि आरोग्य वृद्धि, आयुष्य प्राप्ति, लक्ष्मी प्राप्ति, पुत्र प्राप्ति, पितृ-दोष शांति, विवाह में विलंब जैसे अनेक दोषों का निराकरण एवं निवारण भी करता है। इसे पापनाशक बताया जाता है। अत शंख का विभिन्न प्रकार की कामनाओं के लिए प्रयोग किया जा सकता है।

माता लक्ष्मी जी की अनोखी कहानी

एक दिन भगवान विष्णु ने पृथ्वी पर भ्रमण करने और वहाँ पर रहने वाले लोगों को देखने की इच्छा माता लक्ष्मी को बतायी । तो माता लक्ष्मी ने कहा कि हे प्रभु मैं भी आपके साथ चल सकती हूँ क्या । तब विष्णु भगवान ने एक मिनट सोचा और कहा कि ठीक है चलो परन्तु एक शर्त है । तुम उत्तर दिशा की तरफ नहीं देखोगी ।माता लक्ष्मी ने अपनी सहमति दे दी और वे शीघ्र ही पृथ्वी पर भ्रमण के लिये निकल गये । पृथ्वी बहुत ही सुन्दर दिख रही थी और वहाँ पर बहुत ही शान्ति थी । देखते ही माता लक्ष्मी बहुत ही खुश हुई और भूल गयी कि भगवान विष्णु ने उनसे क्या कहा था । वह उत्तर दिशा में देखने लगी । तभी उन्हें बहुत ही खुबसूरत फूलों का एक बगीचा दिखा जहाँ पर बहुत ही सुन्दर खुशबू आ रही थी । वह एक छोटा सा फूलों का खेत था । माता लक्ष्मी बिना सोचे ही उस खेत पर उतरी और वहाँ से एक फूल तोड़ लिये ।
भगवान विष्णु ने जब यह देखा तो उन्होंने माता लक्ष्मी को अपनी भूल याद दिलायी । और कहा कि किसी से बिना पूछे कुछ भी नहीं लेना चाहिये । इस पर भगवान विष्णु के आँसू आ गये ।माता लक्ष्मी ने अपनी भूल स्वीकार की और भगवान विष्णु से माफी माँगी । तब भगवान विष्णु बोले कि तुमने जो भूल की है उसके लिये तुम्हें सजा भी भुगतनी पड़ेगी । तुम जिस फूल को बिना उसके माली से पूछे लिया है अब तुम उसी के घर में 3 साल के लिये नौकरानी बनकर उसकी देखभाल करोगी । तभी मैं तुम्हें बैकुण्ड में वापिस बुलाऊंगा ।माता लक्ष्मी एक औरत का रुप लिया और उस खेत के मालिक के पास गयी । मालिक का नाम माधवा था ।
वह एक गरीब तथा बड़े परिवार का मुखिया था । उसके साथ उसकी पत्नी, दो बेटे और तीन बेटियां एक छोटी सी झोपड़ी में रहती थी । उनके पास सम्पत्ति के नाम पर सिर्फ वही एक छोटा सा भूमि का टुकड़ा था । वे उसी से ही अपना गुजर बसर करता था । माता लक्ष्मी उसके घर में गयी तो माधवा ने उन्हें देखा और पूछा कि वह कौन है । तब माता लक्ष्मी ने कहा कि मेरी देखभाल करने वाला कोई नहीं है मुझ पर दया करो और मुझे अपने यहाँ रहने दो मैं आपका सारा काम करुँगी । माधव एक दयालु हृदय का इनसान था लेकिन वह गरीब भी था, और वह जो कमाता था उसमें तो बहुत ही मुश्किल से उसी के घर का खर्चा चलता था परन्तु फिर भी उसने सोचा कि यदि मेरे तीन की जगह चार बेटियाँ होती तब भी तो वह यहाँ रहती यह सोचकर उसने माता लक्ष्मी को अपने यहाँ शरण दे दी । और इस तरह माता लक्ष्मी तीन साल तक उसके यहाँ नौकरानी बनकर रही । जैसे ही माता लक्ष्मी उसके यहाँ आयी तो उसने एक गाय खरीद ली और उसकी कमाई भी बढ़ गयी अब तो उसने कुछ जमीन और जेवर भी खरीद लिये थे और इस तरह उसने अपने लिये एक घर और अच्छे कपड़े खरीदे । तथा अब हर किसी के लिये एक अलग से कमरा भी था ।इतना सब मिलने पर माधव ने सोचा कि यह सब कुछ मुझे इसी औरत (माता लक्ष्मी) के घर में प्रवेश करने के बाद मिला है वही हमारे भाग्य को बदलने वाली है
२.५ साल निकलने के बाद माता लक्ष्मी ने उस घर में प्रवेश किया और उनके साथ एक परिवार के सदस्य की तरह रही परन्तु उन्होंने खेत पर काम करना बन्द नहीं किया । उन्होनें कहा कि मुझे अभी अपने 6 महीने और पूरे करने है । जब माता लक्ष्मी ने अपने 3 साल पूरे कर लिये तो एक दिन की बात है कि माधव अपना काम खत्म करके बैलगाड़ी पर अपने घर लौटा तो अपने दरवाजे पर अच्छे रत्न जड़ित पोशाक पहने तथा अनमोल जेवरों से लदी हुई एक खुबसूरत औरत को देखा । और उसने कहा कि वह कोई और नहीं माता लक्ष्मी है ।तब माधव और उसके घर वाले आश्चर्य चकित ही रह गये कि जो स्त्री हमारे साथ रह रही थी वह कोई और नहीं माता लक्ष्मी स्वयं थी ।
इस पर उन सभी के नेत्रों से आँसू की धारा बहने लगी और माधवा बोला कि यह क्या माँ हमसे इतना बड़ा अपराध कैसे हो गया । हमने स्वयं माता लक्ष्मी से ही काम करवाया ।माता हमें माफ कर देना । तब माधव बोला कि हे माता हम पर दया करो । हममे से कोई भी नहीं जानता था कि आप माता लक्ष्मी है । हे माता हमें वरदान दीजिये । हमारी रक्षा करिये ।तब माता लक्ष्मी मुस्कुरायी और बोली कि हे माधव तुम किसी प3कार की चिन्ता मत करो तुम एक बहुत ही दयालु इनसान हो और तुमने मुझे अपने यहाँ आसरा दिया है उन तीन सालों की मुझे याद है मैं तुम लोगों के साथ एक परिवार की तरह रही हूँ । इसके बदले में मैं तुम्हें वरदान देती हूँ कि तुम्हारे पास कभी भी धन की और खुशियों की कमी नहीं होगी । तुम्हें वो सारे सुख मिलेंगे जिसके तुम हकदार हो ।यह कहकर लक्ष्मी जी अपने सोने से बने हुये रथ पर सवार होकर बैकुण्ठ लोक चली गयी ।यहाँ पर माता लक्ष्मी ने कहा कि जो लोग दयालु, और सच्चे हृदय वाले होते है मैं हमेशा वहाँ निवास करती हूँ । हमें गरीबों की सेवा करनी चाहिये । इस कहानी यह उपदेश है कि जब छोटी सी गलती पर भगवान विष्णु ने माता लक्ष्मी को भी सजा दी तो हम तो बहुत ही मामूली इनसान है । फिर भी भगवान की हमेशा हम पर कृपा बनी रहती है । हर किसी इनसान को दूसरे इनसान के प्रति दयालुता का भाव रखना चाहिये हमें जो भी कष्ट और सुख मिल रहे है वह हमारे पुराने जन्मों के कर्म है ।अतः अन्त में यही कहना चाहूंगा कि हर किसी को भगवान पर श्रद्घा और सबुरी रखनी चाहिये अन्त में वही हमारी नैया पार लगाते है ।

अगर बैंक डूबा तो मिलेंगे 2 लाख रुपये

सरकार बैंक जमा पर इंश्योरेंस कवर की सीमा बढ़ाने पर विचार कर रही है। फिलहाल एक लाख रुपए तक की जमा राशि ही इंश्योरेंस कवर के दायरे में आती है। सरकार का मकसद बैंकिंग प्रणाली में ग्राहकों का भरोसा फिर से मजबूत करना है। इंश्योरेंस कवर का बढ़ने वाला दायरा सार्वजनिक और निजी क्षेत्र , दोनों के बैंक डिपॉजिट पर लागू होगा।
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इस समय बैंक के उपभोक्ताओं की अधिकतम एक लाख रुपए की जमा राशि बीमा के दायरे में आती है। इसमें मूलधन और ब्याज की रकम , दोनों शामिल हैं। जमा पर बीमा योजना डिपॉजिट इंश्योरेंस एक्ट ( 1961 ) के तहत दी जाती है। वित्त मंत्रालय से जुड़े सूत्रों का कहना है कि इंश्योरेंस कवर की सीमा को एक लाख रुपए से अधिक करने के लिए इंश्योरेंस एंड केडिट गारंटी एक्ट में संशोधन किया जाएगा।
वित्त मंत्रालय बैंक डिपॉजिट इंश्योरेंस कवर के दायरे में 2 लाख रुपए तक की जमा राशि को लेना चाहता है। भारतीय बैंकों में जमा का औसत आकार 50,000 रुपए (ग्रामीण क्षेत्रों में यह रकम और भी कम है) है , इसलिए ज्यादातर ग्राहक इसके दायरे में होंगे। वित्त मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया , ' हम डिपॉजिट इंश्योरेंस को बढ़ाने के लिए रिजर्व बैंक से बातचीत कर रहे हैं। वित्त मंत्रालय का मानना है कि एक लाख रुपए की सीमा काफी कम है। ' भारत में डिपॉजिट इंश्योरेंस संबंधी गतिविधियों पर नजर रखने का काम डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड केडिट गारंटी काउंसिल (डीआईसीजीसी) करती है। यह रिजर्व बैंक के सहयोग से काम करती है। अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (एससीबी) , सहकारी बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों में जमा राशि इंश्योरेंस कवर के तहत है। सभी बैंकों को इंश्योरेंस कवर स्कीम के तहत डिपॉजिट के लिए काउंसिल के पास एक निश्चित प्रीमियम जमा करना पड़ता है। जानकारों का कहना है कि इंश्योरेंस कवर के 1 लाख से बढ़कर 2 लाख रुपए होने पर बैंकों को पहले की तुलना में काउंसिल को ज्यादा प्रीमियम देना पड़ेगा। भारत में डिपॉजिट इंश्योरेंस की शुरुआत 1962 में की गई। उस समय अमेरिका के बाद भारत इसे लागू करने वाला दुनिया का दूसरा देश था। अमेरिका ने डिपॉजिट पर इंश्योरेंस कवर 1933 में शुरू किया।

Tuesday, October 14, 2008

अरविंद अदिगा को मिला बुकर पुरस्कार


भारतीय लेखक अरविंद अदिगा को उनकी पहली पुस्तक 'द व्हाइट टाइगर' के लिए इस वर्ष का बुकर पुरस्कार दिया जाएगा.
बुकर पुरस्कारों की शार्ट लिस्ट में छह लेखक थे जिसमें अदिगा के अलावा भारतीय मूल के अमिताभ घोष, सेबास्टियन बैरी, स्टीव टोल्ट्ज, लिंडा ग्रांट और फिलिप हेनशर थे.
बुकर पुरस्कार के जजों के चेयरमैन और पूर्व राजनेता माइकल पोर्टिलो का कहना था, '' कई मायनों में यह एक संपूर्ण उपन्यास था.''
इन लेखकों में 34 वर्ष के अदिगा सबसे कम उम्र के थे. अदिगा ने पुरस्कार की घोषणा के बाद पुरस्कार जीतने में मदद करने वाले लोगों का शुक्रिया अदा किया.
मैं यह पुरस्कार नई दिल्ली के लोगों को समर्पित करना चाहूंगा क्योंकि यही वो जगह है जहां मैं रहा और यह किताब लिख पाया

अरविंद अदिगा, बुकर विजेता
उनका कहना था, ''मैं यह पुरस्कार नई दिल्ली के लोगों को समर्पित करना चाहूंगा क्योंकि यही वो जगह है जहां मैं रहा और यह किताब लिख पाया. तीन सौ साल पहले दिल्ली दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण शहरों में था और मुझे लगता है कि अब समय आ गया है कि दिल्ली एक बार फिर दुनिया के महत्वपूर्ण शहरों में गिना जाएगा.''
अदिगा की यह पुस्तक एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जो सफल होने के लिए किसी भी रास्ते को ग़लत नहीं मानता है.
अदिगा बार बार दिल्ली का शुक्रिया अदा करते हुए कहते हैं, ''भारत में जो कुछ भी अच्छा और जो कुछ भी बुरा है उसका निपटारा दिल्ली में ही होता है और मुझे लगता है कि कुछ वर्षों में दिल्ली के सभी लोग ग़रीब और अमीर मिलकर यह सुनिश्चित करेंगे कि जो अच्छा है वही जीते.''
अदिगा की पुस्तक पश्चिमी देशों ख़ासकर अमरीका में अत्यंत लोकप्रिय हुई है और अब इस पुरस्कार के बाद पुस्तक की बिक्री और बढ़ने की उम्मीद है.
यह पुस्तक बिहार के गया ज़िले से आए एक ड्राइवर बलराम हलवाई की है जो चीनी प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर अपनी सफलता की कहानी सुनाता है.
पुस्तक में भारत के दो रुप दिखाए गए हैं एक जो ड्राईवर का सच है यानि ग़रीब लोगों का और दूसरा जो ड्राईवर के पीछे बैठता है यानी अमीर लोगों का जीवन है.
कहानी में भारत की ग़रीबी-अमीरी, जाति प्रथा के साथ साथ कोयला माफ़िया, ज़मींदारी, कॉल सेंटर, नवनिर्मित मॉलों की संस्कृति सभी का ज़िक्र है.
इस उपन्यास कहानी उसके मुख्य पात्र बलराम हवाई के इर्द गिर्द घूमती है. वो किस तरह एक चाय की दुकान में काम करता हुआ ड्राईवर बनता है और फिर किस तरह वो अंत में अपना स्वयं का व्यापार शुरु करता है और इसके लिए उसे क्या ग़लत और सही रास्ते चुनने पड़ते हैं.
अरविंद अदिगा का जन्म 1974 में भारत में हुआ. उनकी प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड में हुई है जिसके बाद उन्होंने ऑक्सफोर्ड और कोलंबिया विश्वविद्यालय में भी पढ़ाई की है.
अदिगा ने दो साल तक टाइम पत्रिका के लिए भारत में काम किया है और कई अन्य अख़बारों के लिए लिखते रहे हैं.

Monday, October 13, 2008

अपने हाथों से अपना भगवान बनाया

आओ मेहनत को अपना ईमान बनाएं, अपने हाथों से अपना भगवान बनाएं.. गीत को बहुतों ने सुना होगा, पर इसे अपने जीवन में उतारा टंडि़या गांव के प्रधान विष्णु प्रसाद ने। उन्होंने आखिर अपने हाथों से अपना भगवान बना ही लिया। कभी मिशन के रूप में गांव की साफ-सफाई को अपना लक्ष्य बनाने वाले विष्णु प्रसाद अब बाकायदा सरकारी कर्मचारी के रूप में अपने गांव को निर्मल बनाने का सपना पूरा कर सकेंगे। जी हां, गांव के प्रधान अब होंगे सफाईकर्मी विष्णु प्रसाद।
स्वच्छता के अपने मिशन को पूरा करने के लिए विष्णु प्रसाद को प्रधानी छोड़ने का रंच मात्र भी अफसोस नहीं है। संपूर्ण स्वच्छता मिशन में जब अपने गांव टंडि़या को निर्मल ग्राम बनाने की बात आई तो विष्णु ने सफाई का बीड़ा उठा लिया। दूध के उफान की तरह जब तक जोश ने ठाठ मारा गांव ने भी साथ दिया, पर निर्मल गांव का पुरस्कार मिलते ही लोग ठंडे पड़ गए। उधर विष्णु की तो सोच ही अलग थी। उन्हें लगता था कि सफाई निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है, इसलिए अभियान जारी रहना चाहिए। अपनी इस सोच को मुकाम तक पहुंचाने की गरज से विष्णु ने अपना हाथ जगन्नाथ का फार्मूला अपनाया और बिना पीछे देखे अकेले ही जुट गए। लोगों ने उन्हें सिरफिरा घोषित कर दिया, पर फौलादी इरादे को कब कोई टस से मस कर पाया है। सो उनका काम अकेले भी चलता रहा। तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने जब उनके काम को सराहा, तो गांव को स्वच्छ बनाए रखने की उनकी धुन ने संकल्प का रूप ले लिया। उल्लेखनीय है कि टंडि़या को निर्मल गांव का पुरस्कार देने के लिए प्रधान विष्णु प्रसाद को दिल्ली आमंत्रित किया गया था, जहां तत्कालीन राष्ट्रपति कलाम ने उनकी पीठ थपथपाई थी।
दलित वर्ग का ही सही एक दक्ष बुनकर हाथ में झाड़ू-खाची उठा ले, तो बातें उठना स्वाभाविक है। लिहाजा बहुत सारे मशवरे आए। किसी ने मर्यादा की दुहाई दी, तो किसी ने रोजी-रोटी छिन जाने के बाद की दुश्वारियों से आगाह किया। डर तो यहां तक दिखाया गया कि यही हाल रहा तो रोटी-बेटी के रिश्तों तक में दिक्कत आ सकती है, पर दृढ़ प्रतिज्ञ विष्णु अपने इरादे से नहीं डिगे। उन्होंने रोज सुबह कूड़ा गाड़ी लेकर साफ-सफाई शुरू कर दी। क्या घूरा और क्या नाली, क्या नादी और क्या पंडोह। न कोई घिन, न हिचकिचाहट।
काशी विद्यापीठ ब्लाक के टंडि़या ग्राम के इस प्रधान के अनुकरणीय कार्य को रोशनी में लाने का साधन बना दैनिक जागरण। इस पर जब रिपोर्ट छपी, तो सब दंग। विष्णु के स्वच्छता के प्रति समर्पण ने आम धारणा व मान्यताओं के मिथक को तोड़ दिया। यह भी साबित किया कि लगन और मेहनत से नि:स्वार्थ भाव से कोई काम किया जाए, तो उसका परिणाम अच्छा होना ही है। अभियान में सब कुछ बेहतर ही हो, ऐसा नहीं था। अर्थ के युग में आमदनी से दुश्मनी भला कब तक निभती? सो असर घर के चूल्हे-चौकेतक पहुंचने लगा, मगर विष्णु ने हार नहीं मानी। कहते हैं, जहां चाह वहां राह। सो रास्ता भी अपने आप निकल आया। मौका आया राजस्व ग्रामों में स्थायी सफाईकर्मियों की तैनाती का, तो विष्णु प्रसाद ने भी झिझक छोड़ फार्म भर दिया। कहा-जब इस कार्य को कर ही रहा हूं, तो परहेज क्या। सेलेक्शन बोर्ड के सामने जब अनुभव का प्रमाण पेश की बारी आई, तो उन्होंने जागरण में प्रकाशित समाचार की कटिंग रख दी। बोर्ड ने उनका चयन कर लिया। अब बात सामने आई प्रधानी की, तो वहां भी विष्णु ने अपने सफाई के मिशन को ही आगे रखा। कहा- ग्राम प्रधान बने रहने से मेरा यह मिशन पूरा नहीं हो सकता। अब जिस काम को मैंने हाथ में ले लिया, उसे मंजिल तक पहुंचा कर ही दम लूंगा। विष्णु को ज्यादा खुशी इस बात की है कि पगार वाला हो जाने के बाद उनके काम में अब कोई अड़चन पेश नहीं आएगी। रामजी की कृपा से रोजी-रोटी भी चलती रहेगी।
विष्णु बोले-जब मैं सफाई के लिए कूड़ा गाड़ी लेकर निकला उस समय मेरे दिमाग में कल्पना भी नहीं थी कि कभी नौकरी करूंगा। जागरण ने मुझे सम्मान दिया और फिर सेलेक्शन बोर्ड ने।

Wednesday, October 8, 2008

विजय का पर्व दशहरा




आश्विन शुक्ल दशमी को यह पर्व मनाया जाता है। ज्योतिर्निबंध नामक ग्रंथ में उल्लेख पाया जाता है कि आश्विन शुक्ल दशमी को तारा उदय होने के समय 'विजय' नामक काल होता है, जो सब कार्यों को सिद्ध करने वाला माना गया है। इसलिए इसका नाम विजयदशमी पड़ा होगा।यह पर्व भारतीय जनजीवन को जागृत कर उसे कर्तव्य पूर्ति की प्रेरणा प्रदान करता है। इससे मनुष्य को विदित होता है कि ज्ञान की अज्ञान पर, सत्य की असत्य पर और देवत्व की दानत्व पर सदा विजय होती है। इसी दिन राम ने रावण पर विजय प्राप्त की थी। राम को ज्ञान, सत्य और देवत्व का प्रतीक माना जाता है तथा रावण को अज्ञान, असत्य और दानत्व का प्रतीक माना जाता है।इस पर्व का संबंध देव और दानवों के युद्ध के साथ भी बताया जाता है। कालान्तर में यह भगवान राम की महान विजय से अधिक संबंधित मान लिया गया है। रावण के पास सभी प्रकार की शक्तियाँ और साधन होने पर भी राम ने उस पर विजय प्राप्त की थी और उसके अभिमान को नष्ट किया। जनजीवन में भगवान राम के इस गौरवपूर्ण इतिहास की स्मृति के लिए दशमी से दस दिन पूर्व ही भारत के ग्राम-ग्राम और नगर-नगर में भगवान राम की जीवनगाथा अथवा उनकी लीला का प्रदर्शन प्रारंभ हो जाता है। पुराणों में उल्लेख पाया जाता है कि विजयदशमी की तिथि को ही देवराज इंद्र ने महादानव वृत्तासुर पर विजय प्राप्त की थी।
पांडवों ने भी विजयदशमी के दिन ही अपनी अज्ञातवास की अवधि पूर्ण कर द्रोपदी का वरण किया था। महाभारत युद्ध भी विजयदशमी के दिन ही आरंभ हुआ माना जाता है।दशहरे का सांस्कृतिक पहलू भी है। भारत कृषि प्रधान देश है। जब किसान अपने खेत में सुनहरी फसल उगाकर अनाज रूपी संपत्ति घर लाता है तो उसके उल्लास और उमंग का पारावार नहीं रहता। इस प्रसन्नता के अवसर पर वह भगवान की कृपा को मानता है और उसे प्रकट करने के लिए वह उसका पूजन करता है।समस्त भारतवर्ष में यह पर्व विभिन्न प्रदेशों में विभिन्न प्रकार से मनाया जाता है। महाराष्ट्र में इस अवसर पर 'सिलंगण' के नाम से सामाजिक महोत्सव के रूप में भी इसको मनाया जाता है। सायंकाल के समय पर सभी ग्रामीणजन सुंदर-सुंदर नव वस्त्रों से सुसज्जित होकर गाँव की सीमा पार कर शमी वृक्ष के पत्तों के रूप में 'स्वर्ण' लूटकर अपने ग्राम में वापस आते हैं। फिर उस स्वर्ण का परस्पर आदान-प्रदान किया जाता है।हिमाचल प्रदेश में कुल्लू का दशहरा बहुत प्रसिद्ध है। अन्य स्थानों की ही भाँति यहाँ भी दस दिन अथवा एक सप्ताह पूर्व इस पर्व की तैयारी आरंभ हो जाती है। स्त्रियाँ और पुरुष सभी सुंदर वस्त्रों से सज्जित होकर तुरही, बिगुल, ढोल, नगाड़े, बाँसुरी आदि-आदि जिसके पास जो वाद्य होता है, उसे लेकर बाहर निकलते हैं। कुछ लोगों के कंधों पर देव प्रतिमाएँ होती हैं। इस प्रकार जुलूस बनाकर नगर के मुख्य भागों से होते हुए नगर परिक्रमा करते हैं और कुल्लू नगर में देवता रघुनाथजी की वंदना से दशहरे के उत्सव का आरंभ करते हैं। दशमी के दिन इस उत्सव की शोभा निराली होती है। बंगाल में यह पर्व दुर्गा पूजा के रूप में ही मनाया जाता है। बंगाल में षष्ठी के दिन दुर्गा देवी का बोधन, आमंत्रण एवं प्राण प्रतिष्ठा आदि का आयोजन किया जाता है। उसके उपरांत सप्तमी, अष्टमी एवं नवमी के दिन प्रातः और सायंकाल दुर्गा की पूजा में व्यतीत होते हैं। दशमी के दिन विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। प्रसाद चढ़ाया जाता है और प्रसाद वितरण किया जाता है। तदनंतर देवी प्रतिमाओं को बड़े-बड़े ट्रकों में भर कर विसर्जन के लिए ले जाया जाता है। विसर्जन की यह यात्रा भी बड़ी शोभनीय और दर्शनीय होती है।दशहरा अथवा विजयदशमी राम की विजय के रूप में मनाया जाए अथवा दुर्गा पूजा के रूप में, दोनों ही रूपों में यह शक्ति पूजा का पर्व है, शस्त्र पूजन की तिथि है। हर्ष और उल्लास तथा विजय का पर्व है। देश के कोने-कोने में यह समान रूप से मनाया जाता है।

हिंदी में अमिताभ और राहुल उपाध्याय

बिग बी अपना ब्लॉग आरंभ करने के समय से ही आश्वासन दे रहे हैं कि वे जल्दी ही हिंदी में लिखना आरंभ करेंगे। अपनी व्यस्तता और तकनीकी दिक्कतों के कारण 171 दिनों के बाद भी वे हिंदी में लिखना आरंभ नहीं कर सके हैं, लेकिन हिंदी में अमिताभ बच्चन के ब्लॉग पढ़ना चाहने वालों को अब निराश होने की जरूरत नहीं है। अमेरिका के सिएटल शहर के निवासी राहुल उपाध्याय ने यह संभव कर दिया है। लंबे इंतजार के बाद उन्होंने 158वें दिन से बिग बी के ब्लॉग का हिंदी अनुवाद अपने ब्लॉग http://amitabhkablog-hindi.blogspot.com पर पोस्ट करना आरंभ कर दिया है।
अमेरिका के सिएटल शहर से दैनिक जागरण से खास बातचीत में राहुल उपाध्याय ने बताया ,आप उनके ब्लॉग की टिप्पणियां पढ़ें तो पाएंगे कि उनके ढेर सारे प्रशंसक उन्हें हिंदी में पढ़ना चाहते हैं। निश्चित ही कुछ अड़चनों और तकनीकी सीमाओं के कारण वे ऐसा नहीं कर पा रहे होंगे। मैंने सोचा कि क्यों न उनका बोझ हल्का कर दिया जाए। उन्हें कोसने से अच्छा है कि हम उन्हें हिंदी में दूसरों के लिए उपलब्ध कर दें। क्या उन्होंने अमिताभ बच्चन से अनुवाद की अनुमति ली है? नहीं, मुझे नहीं मालूम कि यह अनुमति कैसे मिलेगी। मैंने उन्हें 168वें दिन की 40वीं टिप्पणी में पूछा है कि अगर उन्हें आपत्ति हो तो मैं अनुवाद बंद कर दूंगा। अगर वे चाहें तो अपने ब्लॉग पर मेरे अनुवाद का लिंक दे सकते हैं। मुझे अभी तक उनकी प्रतिक्रिया नहीं मिली है। मूलत: रतलाम के निवासी राहुल उपाध्याय पिछले 22 सालों से अमेरिका में रह रहे हैं। वे अमिताभ बच्चन के अनन्य प्रशंसक हैं और हिंदी फिल्में देखना उनकी रोजमर्रा में शामिल है। वे स्वीकार करते हैं कि हिंदी फिल्मों ने उनके जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मैंने मां की परिभाषा, बहन की इज्जत, राखी की गरिमा, होली-दीवाली का महत्व - ये हिंदी फिल्मों से ही सीखा है। राहुल उपाध्याय बिग बी की हर पोस्ट का शीघ्रातिशीघ्र अनुवाद अपने ब्लॉग पर डालते हैं।
मेरा विचार
१। अमिताभ प्रेमी हिन्दी भाषियों के लिए अच्छी ख़बर है
२। राहुल जी रतलाम से भी हैं रतलाम के लोग बहुत तेज़ गति से आगे जा रहे हैं
३। यह ख़बर जागरण से ली गई है
४। राहुल जी को उनके प्रयासों के लिए मेरी बधाई
५। मेरा अनुरोध और दुसरे भाषाओँ के जानकर लोगों से है कि समय - समय पर विभिन्न भाषाओं में उपलब्ध किस्से, कहानी, व्लागस, कविता और भी सुंदर आलेख हिन्दी में रूपांतरित कर प्रसारित करे इससे हिन्दी भाषी जन मानस का ज्ञान बढेगा

Tuesday, October 7, 2008

आंगनबाड़ी महिलाकर्मियों को मिलेगी साड़ी

तीन से छह साल के बच्चों को कुपोषण से बचाने के लिए ताजा पकाये या पहले से तैयार पूरक पोषाहार (सप्लीमेंट्री न्यूट्रीशन) पर फैसला अभी बाकी है। लेकिन सरकार की नजर आंगनबाड़ी केंद्रों की लगभग 18 लाख महिला कार्यकर्ताओं पर जरूर पहुंच गई है। लोकसभा चुनाव के पहले वह उन्हें एक और तोहफा देने की तैयारी में है। केंद्रीय कैबिनेट की मुहर लगते ही वे साल में दो सरकारी साड़ियों की भी हकदार हो जाएंगी।
सूत्रों के मुताबिक समेकित बाल विकास योजना में बदलाव के तहत आंगनबाड़ी केंद्रों की मुख्य कार्यकत्रियों व सहायिकाओं को साल में दो-दो साड़ियां दिए जाने का प्रस्ताव किया गया है। व्यय वित्त समिति (ईएफसी) ने भी उसकी मंजूरी दे दी है। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने इसको शामिल करते हुए आईसीडीएस के पूरे संशोधित प्रस्ताव को कैबिनेट की हरी झंडी के लिए भी भेज दिया है। बताते हैं कि बुधवार को कैबिनेट संभावित बैठक में संशोधित प्रस्ताव को हरी झंडी मिलने की भी उम्मीद थी। लेकिन महिला एवं बाल विकास राज्यमंत्री रेणुका चौधरी की गैरमौजूदगी के चलते यह मामला अगली बैठक के लिए टल गया है। गौरतलब है कि आंगनबाड़ी केंद्रों की महिला कार्यकर्ताओं का मानदेय पहले ही एक हजार से डेढ़ हजार रुपए और सहायिकाओं का 500 रुपए से 750 रुपये प्रतिमाह किया जा चुका है।
सूत्र बताते हैं कि वित्त मंत्रालय ने आईसीडीएस में बदलाव की बाबत महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के कुछ प्रस्तावों पर भले सहमति जता दी हो, लेकिन उसने कई मांगों को खारिज भी कर दिया है। सबसे बड़ी बात यह है कि उसने इस योजना को 'मिशन मोड' में रखे जाने से असहमति जता दी है, जिससे योजना को प्रभावी तरीके से लागू कराने में मदद मिलती। इसके अलावा आईसीडीएस का काम देखने के लिए मंत्रालय में खासतौर से एक अपर सचिव का पद सृजित करने से भी वित्त मंत्रालय ने इनकार कर दिया है। साथ ही संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारी के नए पद के लिए व्यय विभाग से संपर्क करने की सलाह दी है। लिहाजा उसके लिए भी अगली
इतना ही नहीं, उसने आंगनबाड़ी भवनों को पक्का बनाने के लिए अलग से धन देने से भी इनकार कर दिया है। उल्लेखनीय है कि बच्चों को ताजा पकाये या पहले से तैयार (रेडी टू ईट) पूरक पोषाहार (सप्लीमेंट्री न्यूट्रीशन) पर अर्से से विवाद है। यह मामला दो बार हुई ईएफसी की बैठक में भी नहीं सुलझ सका। लिहाजा उसका फैसला भी अब कैबिनेट की अगली बैठक में ही होना है।

स्वच्छता पर आधारित सलाहकार समूह बनेगा

केंद्र सरकार ने 11वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान शत प्रतिशत स्वच्छता हासिल करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। शहरी स्वच्छता पर आधारित एक राष्ट्रीय सलाहकार समूह के गठन करने की भी योजना है।
शहरी विकास मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि इसका उद्देश्य यह है कि शहरों के सभी निवासियों की पहुंच सुरक्षित और स्वस्थ स्वच्छता सुविधाओं और व्यवस्थाओं तक हो। वे इनके इस्तेमाल में सक्षम हों ताकि कोई भी व्यक्ति खुले में शौच के लिए नहीं जाए।
सूत्रों का कहना है कि इस नीति का दृष्टिकोण यह है कि सभी भारतीय बाजार और शहर पूर्ण रूप से स्वच्छ, स्वस्थ और रहने लायक बन जाएं। इस नीति के तहत स्वच्छता के बारे में जागरूकता पैदा करके व्यावहारिक बदलाव लाने पर जोर दिया गया है।
मेरा विचार
१। यह सुनकर प्रसन्नता हुई कि सरकार स्वच्छता के प्रति जागरूप हो रही है
२। आज भी सारे गाँव शहर अपने प्रमुख बाजारों, स्थलों, सरकारी केन्द्रों पर सुरक्षित और स्वस्थ स्वच्छता सुविधा उपलब्ध नहीं कर पाएं हैं
३। जो सार्वजनिक सुविधाएं उपलब्ध हैं उनका मापदंड बहुत ही न्यूनतम है
४। सरकार अगर नागरिकों से टैक्स लेती है तो उसे पीने का साफ पानी तथा सुरक्षित और स्वस्थ स्वच्छता सुविधा मुफ्त उपलब्ध करानी चाहिए

Monday, October 6, 2008

मैडम की मार से ही मेरा हाथ टूटा

इंदौर. चोरल के पास सुरतीपुरा गांव में चौथी कक्षा की छात्रा का हाथ तोड़ने के मामले की रिपोर्ट सोमवार को सबमिट होगी। छात्रा ने अधिकारियों के सामने खुलकर बयान दिया कि पहाड़ा याद नहीं होने पर उसे प्रधानाध्यापिका सोनाली बुदे ने मुर्गा बनाया। पेन गिरने पर जब वह उसे उठाने लगी तो शिक्षिका ने पीठ पर लात मारी और उसका हाथ दीवार से टकरा गया। जिससे हाथ टूट गया।

हाथ टूटने से परेशान बच्ची का हाल जानने और उसके साथ हो रही ज्यादती का जायजा लेने रविवार को भास्कर टीम फिर सुरतीपुरा पहुंची। ललिता पहले की तरह अपने बयान पर कायम है।

स्कूल में ही पढ़ने वाली सपना, अलका और मुनिया ने भी कहा कि मैडम ने ललिता को मारा था। प्रधानाध्यापिका जिस छात्रा छीता पर दोष मढ़ रही है उस छात्रा ने भी कहा कि वह लंबे समय से स्कूल नहीं जा रही है और उसने ललिता का हाथ नहीं तोड़ा है।

यही नहीं एक छात्रा ने बताया कि उसे स्कूल में धमकी दी गई थी कि मैडम ने हाथ तोड़ा, यह किसी को नहीं बताए। यह सभी बयान भास्कर के पास रिकॉर्ड हैं लेकिन छात्रा के भविष्य के मद्देनजर उसका नाम उजागर नहीं किया जा रहा है।

सांच को कैसी आंच

सच-झूठ का पहाड़ा, किस पात्र को क्या याद.. जानिए —

मां रामकन्या व पिता राजाराम -उस दिन जब शाम को लौटे तो घटना पता चली कि मैडम ने मुर्गा बनाया और मारा, जिसमें हाथ टूटा। इलाज के लिए हम मैडम के पास बीमा के पैसे पूछने गए थे, लेकिन उन्होंने मना कर दिया। बाद में अंगूठा लगवा लिया। पर यह नहीं बताया कि कागज में क्या लिखा है।

माया मालवीय, डीईओ- ललिता ने बताया था कि पहाड़ा याद नहीं होने पर मैडम ने मुर्गा बनाया था और लात मारी जिससे मेरा हाथ टूट गया।

आरएस मकवाना, संकुल प्रभारी, चोरल -ललिता ने बताया कि प्रधानाध्यापिका ने उसे मारा और उसका हाथ टूट गया। हालांकि अलग-अलग बयान भी आए हैं। मैंने प्रधानाध्यापिका से सफाई मांगी है कि घटना की जानकारी संकुल को क्यों नहीं दी गई?

मदनलाल गुप्ता, बीईओ, महू -ललिता ने कहा, मैडम सोनाली बुदे ने मारा जिससे हाथ टूट गया। जबकि मैडम ने कहा छीता के साथ खेलते समय हाथ टूटा। हम छीता से नहीं मिल पाए। रिपोर्ट माया मालवीय के पास है। वही जमा करेंगी।

रामगोपाल गोदिया, शिक्षक, चोरल हाईस्कूल -बच्चों ने बताया छिपा-छाई खेलते समय छीता ने ललिता को धक्का दिया। फिर भी शिक्षकों को इलाज कराना चाहिए था। हमने स्पष्टीकरण मांगा है। (गोदिया ने छिपा-छाई कहा, कबड्डी नहीं)

मेरा विचार
१। बच्चों को हर बात में मारना ठीक नहीं है
२। अगर अध्यापकों को बच्चों से स्नेह नहीं है तो कोई दूसरा काम तलाशना चाहिए
३। मारने पीटने से बच्चों के मन पर बहुत बुरा असर पड़ता है
४। एक तो अध्यापक मारते पीटते हैं फिर झूट बोलतें हैं प्रतिदिन ऐसे कई उदहारण सुनने को मिलतें हैं जबकि छोटा बच्चा अपनी बात को अच्छी तरह से कह भी नहीं पाता है

इंस्पेक्टर शर्मा की पत्नी ने ठुकराई अमर की मदद

इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा की पत्नी माया शर्मा ने अपने पति की
शहादत पर शक जताने वाले बयानों पर दुख जताया है। उन्होंने अपील की है कि उनके पति की शहादत का मजाक न उड़ाया जाए। एसपी नेता अमर सिंह, जामा मस्जिद के शाही इमाम समेत कुछ नेता बटला हाउस एनकाउंटर में इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा के जाने पर सवाल खड़े कर चुके हैं। अमर सिंह ने इस मामले की जुडिशल इनक्वायरी की भी मांग की है। इस बयान से बेहद दुखी माया शर्मा ने अमर सिंह के 10 लाख रुपये के चेक को लेने से इनकार कर दिया है।

माया शर्मा ने एनबीटी से कहा कि यह उनके पति की शहादत का मजाक उड़ाने जैसी बात है। बेटे के गंभीर हालत में हॉस्पिटल में भर्ती होने के बावजूद इंस्पेक्टर शर्मा देश के लिए जान देने चले गए थे, घर में बुजुर्ग माता-पिता, दो अबोध बच्चे और पत्नी होते हुए कितने लोग देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर सकते हैं?

एनकाउंटर और इंस्पेक्टर शर्मा की शहादत पर शक जताने वाले कई बयान आने के बाद पहली बार माया शर्मा ने प्रतिक्रिया दी। उन्होंने इस तरह के बयान देने वालों से सवाल किया कि क्या वे देश के लिए बलिदान दे सकते हैं? माया शर्मा ने कहा कि उन्हें अपने पति पर गर्व है। उन्होंने भारत के लिए वह काम कर गए हैं, जो कोई आम इंसान नहीं कर सकता। शहादत पर सवाल उठाने वाले लोगों से उन्होंने कहा कि अगर उन्हें शर्मा के बलिदान पर शक है तो वे देश के लिए इससे बेहतर कर दिखाएं।

माया ने कहा कि शहादत पर शक जताने जैसी विवादास्पद बातें नहीं की जानी चाहिए। इससे पुलिस फोर्स पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। देश में बोलने की आजादी है। कोई कुछ भी बोल सकता है। हालांकि साफ जाहिर है कि एनकाउंटर पर शक जताने वालों के पर्सनल इश्यू हैं।

इसी बीच दिल्ली पुलिस ने उन खबरों का खंडन किया है, जिनमें एनकाउंटर से कुछ दिन पहले इंस्पेक्टर शर्मा का ट्रांसफर किए जाने की बात कही गई है। अमर सिंह ने इसी आधार पर इंस्पेक्टर शर्मा के बटला हाउस जाने पर सवाल खड़ा किया है। स्पेशल सेल के डीसीपी आलोक कुमार ने इंस्पेक्टर शर्मा का ट्रांसफर किए जाने की खबरों को बेबुनियाद बताया है। उन्होंने कहा कि ये खबरें सरासर गलत हैं।

Sunday, October 5, 2008

इस शक्ति को नमन

इंदौर. इंदौर से करीब 20 किलोमीटर दूर खंडवा रोड पर दतोदा ग्राम पंचायत ने तिक्खी पहाड़ी से निकलने वाली बरसाती नदी में पाइप लाइन डालकर टकरावदा तालाब भर लिया। पूरा भर जाने के बाद इसमें इतना पानी जमा हो जाएगा कि अगली गर्मी तक परेशानी नहीं होगी।
ऐसे मोड़ी धारापंचायत के उप सचिव गुलाब सिंह मस्करा ने बताया सबसे पहले तालाब से नदी तक करीब सवा किलोमीटर लंबी पाइप लाइन बिछाई। फिर नदी में 10 हार्सपावर की मोटर डालकर उसे थ्री फेस कनेक्शन से जोड़ा। इसके बाद बहते पानी को तालाब में सहेजना शुरू किया। रोज 18 घंटे मोटर चलाकर 90 टैंकर पानी नदी से तालाब में शिफ्ट किया जा रहा है। इस पर कुल 80 हजार रुपए का खर्च आया है लेकिन गर्मी में रोज 10 हजार रुपए की बचत होगी।
इसलिए पड़ी जरूरतगांव के किसान पूनमसिंह राजपूत ने बताया बारिश में तो दतोदा में खूब पानी बहता है, लेकिन गर्मी में भारी किल्लत हो जाती है। गांव के करीब-करीब सभी बोरिंग सूख जाते हैं। पानी की व्यवस्था करना पड़ती है। इस बार इतना पानी इकट्ठा हो गया है कि मई-जून तक का बंदोबस्त हो जाएगा।
..ताकि न हो रिसावग्रामीण लीलाधर सलवाड़िया ने बताया तालाब भरने से पहले इसकी तलछटी में काली मिट्टी भरी गई, ताकि पानी नहीं रिसे। इसके बाद थोड़ा पानी भरकर देखा, नहीं रिसा तो लगातार भराई शुरू कर दी। गांव में बिजली का संकट है। इसलिए व्यवस्था ऐसी की है कि तीनों फेस बराबर मिलते ही मोटर शुरू हो जाती है और बिजली रहने तक चलती रहती है।
बूंद-बूंद के लिए तरस जाते थे
ठ्ठ गांव के ही श्यामलाल मुंडेल ने कहा गर्मी में एक-एक बूंद के लिए तरस जाते हैं। पीने के लिए न सही लेकिन उपयोग के लिए तो पानी मिल जाएगा।ठ्ठ गुलाब सिंह केलवा ने कहा जानवरों के पानी का संकट सालभर के लिए दूर हो गया है।ठ्ठ मोहनसिंह गौड़ ने कहा बिजली कटौती और डीपी में फाल्ट के कारण कई बार मोटर बंद हो जाती है। बिजली अधिकारी बिना रिश्वत के काम नहीं करते। नदी कुछ दिनों में सूख जाएगी। पानी यूं ही बह गया तो तालाब पूरा नहीं भर पाएगा।
बचत होगीगर्मी में हर घर में दो सौ रुपए में टैंकर मंगाना पड़ता है। इस हिसाब से सभी को काफी बचत होगी। तालाब अभी पांच इंच और भरा जाना है।-हरिसिंह वर्मा, सरपंच, दतोदा

Friday, October 3, 2008

स्टडी- बागवानी बच्चों को रखे प्रसन्न


जिस प्रकार से ड्राइंग रूम और रसोई की खिड़की पर रखे खूबसूरत पौधे घर के सौंदर्य में चार चांद लगाते है। उसी प्रकार से पेड़-पौधों के बीच समय गुजारने वाले बच्चों के व्यक्तित्व में चार-चांद लग जाते है अर्थात वे हमेशा प्रसन्न रहते है। यह कहना है ब्रिटेन के वैज्ञानिकों का। वैज्ञानिकों का कहना है कि गमलों में फूलों के बीज डालने के बाद उनसे निकले अंकुर बच्चों ही नहीं बड़ों को भी उत्साहित करते है।
बागवानी के काम में भाग लेने से बच्चा अभिभावकों के साथ अपना भावनात्मक सामंजस्य भी स्थापित करता है। इससे बच्चे की शारीरिक गतिविधियों में भी वृद्धि होती है। जब आप अपने लॉन में सुबह-शाम पौधों को पानी देती है और आपके बच्चे इस काम में आपकी सहायता करते है, तो एक प्रकार से उनकी एक्सरसाइज भी हो जाती है। रंग-बिरंगे फूलों पर इतराती तितलियां और भंवरे आपके बच्चे को अपने पीछे-पीछे भागने के लिए उकसाते है। इससे उनकी जॉगिंग हो जाती है।
अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि बागवानी के जरिये बच्चे सीधे तौर पर प्रकृति के साथ अपना संबंध जोड़ते है। इससे बच्चे की जिज्ञासु प्रवृत्ति संतुष्ट होती है। साथ ही उनमें जोश और उत्साह का संचार होता है। प्रकृति के विषय में उन्हे आश्चर्यजनक जानकारी मिलती है। रंग-बिरंगे और किस्म-किस्म के फूल बच्चों को प्रकृति में फैली विविधता से परिचय कराते है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि बच्चों को बागवानी का व्यवहारिक ज्ञान देने के लिए उन्हे शुरुआती दौर से ही सिखाएं। विभिन्न रंग-बिरंगी पुस्तकों से उन्हे मौसमी और पूरे साल हरे-भरे रहने वाले पौधों की जानकारी दें। बचपन में प्रकृति से इस प्रकार का सीधा संबंध उन्हे आगे के जीवन में भी उपयोगी सिद्ध होगा। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि प्रकृति के साथ रूबरू होने से बच्चों में धैर्य की भावना विकसित होती है, जो जीवन में सफलता के लिए निहायत जरूरी है। पौधों का धीरे-धीरे बढ़ना, समय के साथ उनका पुष्पित होना और उनमें फल आना यह सब बच्चे को धैर्य सिखाते है।

सूचना के अधिकार ने दिलाया पानी


सूचना के अधिकार कानून ने शुरू में ही अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया था। अब वह समाज के निचले तबके के लोगों के सिर पर भी चढ़कर बोलने लगा है। सूचना के अधिकार कानून ने इस बार अपनी सफलता की कहानी उड़ीसा में लिखी है। वहां की सुदूर ग्रामीण अंचलों की निरक्षर महिलाओं ने इस अधिकार का इस्तेमाल कर अपने लिए पीने के पानी का जुगाड़ कर लिया। अब उनकी जिंदगी में जल का अभाव नहीं होगा। प्यास बुझाने के लिए पानी भी होगा। इससे देश के दूसरे हिस्से भी प्रेरणा ले सकेंगे।
बात पिपली-कोणार्क राजमार्ग के पास स्थित बानाखंडी जैसे गांवों की है। यहां पर शुद्ध पेयजल की आपूर्ति और सड़क का अभाव था। यहां के लोग घरेलू कार्य के लिए बरसात में वर्षा के पानी पर निर्भर थे, तो गर्मी में उन्हें पानी लाने के लिए हर रोज करीब दो किमी पैदल जाना पड़ता था। लेकिन जो नहीं जा सकते थे, उन्हें पास के गंदे तालाब के पानी से काम चलाना पड़ता था। महिलाओं के बीच कार्यरत भाबेनी मलिक का कहना है कि इस पानी का उपयोग मवेशियों को धोने के लिए भी होता था।
इन्हीं परिस्थितियों में यहां की महिलाओं ने सूचना के अधिकार के तहत 100 से ज्यादा आवेदन भेजे। अधिकतर मामलों में उनके प्रश्नों का जवाब नहीं मिलता था। लेकिन उनके बार-बार के सवाल से स्थानीय प्रशासन को मजबूर होकर उन्हें पेयजल और सड़क की व्यवस्था करनी पड़ी। सामाजिक कार्यकर्ता एन ए अंसारी बताते हैं कि एकमात्र ग्रामीण सड़क का काम पूरा हो चुका है और पेयजल आपूर्ति का काम शुरू हो गया है।
दिलचस्प बात है कि बहरान गांव की महिलाएं पल्लिसभा [गांव के निर्वाचित प्रतिनिधियों की सभा] के बारे में नहीं जानती थीं। जब उन्हें इसके बारे में जानकारी हुई, तो वे ब्लाक आफिस से न केवल पल्लिसभा की बैठक अपने गांव में बुलाने की मांग करने लगीं, बल्कि उसमें अपनी भागीदारी की मांग भी सुनिश्चित करने में लग गई। इसी से उन्हें पता चला कि ग्राम पंचायतें ग्रामीण सड़कों के निर्माण के लिए जिम्मेदार हैं। सड़क निर्माण कार्य पूरा होने के बाद उन्होंने पेयजल के लिए मुहिम चला दी। इस प्रक्रिया में सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी ने अहम भूमिका निभाई। स्थानीय ब्लाक आफिस को भी अपनी सक्रियता दिखानी पड़ी।

मूंगफली व चाय-फैन, रामलीला में गजब चैन

हल्की-हल्की ठंड, आग जलती हांडी के नीचे से निकली मूंगफली या पॉपकॉर्न, गर्मागर्म टिक्की या फिर ठंडी-ठंडी कुल्फी खाते हुए रामलीला के रोचक और मोहक प्रसंगों का अवलोकन.। यह सबकुछ गुजरे जमाने की याद दिलाता है। हालांकि आप वही जमाना फिर से जीना चाहते हैं तो सुभाष मैदान में होने वाली श्री धार्मिक लीला कमेटी की रामलीला देखने जा सकते हैं।
पिछले छह दशक से हो रही इस रामलीला का अलग ही माहौल है। मुसलिम बहुल इलाके में होने वाली ये रामलीला सांप्रदायिक सौहार्द की प्रतीक तो है ही, पुरानी दिल्ली की संस्कृति से रूबरू होने का मौका भी देती है। चाक-चौबंद सुरक्षा के बीच आयोजित की जाने वाली रामलीला में प्रवेश भी पूरी जांच के बाद ही मिलता है।
परिसर में प्रवेश के बाद लगने लगता है मानो हम रामलीला देखने नहीं, पुरानी दिल्ली की सैर करने आए हैं। मंच पर मुरादाबाद के कलाकारों की बेहतरीन प्रस्तुति देखने को मिलती है। एक ओर प्याऊ बने हुए हैं, जहां लोग सुविधानुसार बॉक्स में बैठकर रामलीला देखते हैं। किसी बॉक्स में एसी लगा है तो किसी में कूलर और कई बॉक्स तो बालकनी-सा मजा देते हैं।
रामलीला का सबसे बड़ा आकर्षण है जनक बाजार। यहां एक ओर कूरेमल मोहनलाल की करीब दो सौ तरह की कुल्फियां उपलब्ध हैं, वहीं पुरानी दिल्ली का स्वाद लिए हर प्रकार की चाट पापड़ी, टिक्की और चटपटे व्यंजन भी अपनी ओर खींचते हैं। इसके अलावा, पाव-भाजी, छोले-भठूरे, नान, रूमाली रोटी भी खाने के शौकीनों के मन भाती है। गर्मागर्म चाय और साथ में मट्ठी या फैन खाना चाहें तो उसकी भी व्यवस्था है यहां। मूंगफली, पॉपकॉर्न, बनारसी पान और चुस्की की रेहड़ियां भी ध्यान आकर्षित करती हैं।
कमेटी के प्रचार मंत्री रवि जैन बताते हैं कि सुभाष ग्राउंड में 1958 से चली आ रही रामलीला में देशी-विदेशी दर्शक खासी तादाद में आते हैं। अमूमन हर वर्ष प्रधानमंत्री भी शामिल होते रहे हैं। इस बार भी 9 अक्टूबर को दशहरे के दिन प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह और संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी ने लीला अवलोकन के लिए आने की स्वीकृति दी है, जबकि 10 अक्टूबर को भरत मिलाप के दिन यहां पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी आएंगे।

Thursday, October 2, 2008

भारतीय दंपत्ति को अंतरराष्ट्रीय सम्मान

एक भारतीय दंपत्ति और उनकी संस्था को तमिलनाडु में सामाजिक न्याय के क्षेत्र में अपने योगदान के लिए एक जाना-माना अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार देने की घोषणा की गई है.
शंकरालिंगम जगन्नाथन और उनकी पत्नी कृष्णामल उन पाँच लोगों में शामिल है जिन्हें 'राइट लाइवलिहुड अवार्ड' देने की घोषणा की गई है. इस पुरस्कार को ऑलटरनेटिव नोबेल यानी नोबेल के बराबर का ही एक अन्य पुरस्कार माना जाता है.
ये पुरस्कार स्वीडन की संसद में आठ दिसंबर को एक समारोह में दिया जाएगा. ये पुरस्कार नोबेल पुरस्कारों से दो दिन पहले दिए जाते हैं.
तमिलनाडु के ये दंपत्ति 'लैंड फ़ॉर द टिलर्स फ़्रीडम' नाम की संस्था चलाते हैं.
इस संस्था का मक़सद भारत में दलितों का सामाजिक स्तर बेहतर करना है.
पुरस्कार देने वाले जजों ने इस दंपत्ति की भारत के ग्रामीण इलाक़े में ग़रीब लोगों के बीच काम करने के लिए सराहना की है. उनका कहना है कि वहाँ भूमिहीन लोगों के बीच ज़मीन बाँटने के लिए पति-पत्नी ने ख़ासा काम किया है.
इस दंपत्ति और पुरस्कार जातने वाले तीन अन्य लोगों को 20 लाख क्रोनोर यानी लगभग तीन लाख डॉलर की राशि दी जाएगी जो इनमें आपस में बाँटी जाएगी.
इस पुरस्कार की स्थापना स्वीडन के दानी जेकब वॉन एक्सकल ने 1980 मे की थी. उनका लक्ष्य था कि ये पुरस्कार उन लोगों को उस काम के लिए दिए जा सकें जो काम नोबेल पुरस्कार के लिए अनदेखा कर दिया जाता है.

Wednesday, October 1, 2008

जिन्हें चलना सिखाया, उन्हीं ने मारी ठोकर

अंतरराष्ट्रीय बुजुर्ग दिवस पर बुजुर्गो की शान में बड़े-बड़े कसीदे पढ़े जाते हैं, लेकिन सच तो यह है कि ये बुजुर्ग अकेलेपन की जिंदगी जीने के लिए विवश हैं। कभी बेटे की फटकार तो कभी बहू की मार अब इनकी आंखों की आंसू बन गए हैं।
71 वर्ष के राम गोपाल श्रीवास्तव ने कढ़ाई का काम करके एक-एक पाई जोड़ी और अपने इकलौते बेटे को खूब पढ़ाया लिखाया। पूरा जीवन किराए के मकान में गुजार गया। बेटा केके श्रीवास्तव भी पिता के अरमानों पर खरा उतरा और एकाउंटेंट बना। पर शादी के बाद बेटे के रंग बदल गए। पिता को किराए के मकान में अकेला छोड़कर स्वयं जरौली में मकान लेकर रहने लगा। सारी उम्र कढ़ाई का काम करने के कारण राम गोपाल की आंखें भी जवाब दे गई। आठ साल पहले राम गोपाल को पैर टूटा इलाज के रुपए न होने से वे पैरों से लाचार हो गए। 2004 में उनकी पत्नी ने भी साथ छोड़ दिया। सब कुछ खत्म होने के बाद उन्हें किराए का मकान छोड़ना पड़ा। दर दर की ठोकरें खाने के बाद समाजसेविका मंजू भाटिया तीस सितंबर को स्वराज वृद्धाश्रम ले आई।
बहू ने कीं चप्पलों से पिटाई
65 वर्ष के राम स्वरूप 27 जून को आश्रम में आए थे। नौबस्ता के रहने वाले राम स्वरूप ने दिन रात सिलाई का काम करके अपने व्यवसाय को बढ़ाया और एकलौते बेटे को पाला। बड़ा होकर बेटे ने दासू कुआं चौराहे पर स्थित पिता की दुकान संभाल ली। पिता ने बड़े अरमानों से बेटे की शादी की। 1999 में पत्नी का साथ छूटने के बाद उनकी बहू व बेटे ने रंग बदलना शुरू कर दिया। पेट भर भोजन मिलना बंद हो गया। बेटा आए दिन पीटने लगा। एक दिन तो बहू ने उन्हें चप्पलों से पीटा। उस दिन उन्हें लगा कि वह जिंदा क्यों है? उसी क्षण वे घर छोड़कर जिन्दगी से दूर जाने के लिए निकले लेकिन पहुंच गए स्वराज आश्रम।
संपत्तिबेटों को क्या दी, आश्रम बना आशियाना
आगरा के ओम प्रकाश कटियार ने 66 वर्ष की उम्र तक खूब काम किया। जाजमऊ से आगरा तक लेदर व रबड़ का व्यवसाय किया। धन की भी कमी नहीं थी। ऊपर से ईश्वर ने उन्हें दो बेटे दिए तो खुशियों में चार चांद लग गए। बड़े होने पर बेटों ने पिता का व्यवसाय संभाल लिया। ओम प्रकाश ने भी सारी संपत्तिअपने उनके नाम कर दी। फिर बेटों ने पिता को धक्के मारकर घर से निकाल दिया। वह भी स्वराज आश्रम में संतान का संताप झेल रहे हैं।
उम्र के आखिरी पड़ाव में अकेली है वो
ऐसे हीं झुर्रीदार चेहरा, सफेद बाल, दोहरी कमर और चलने की ताकत खो चुके पैर। ये पूरा व्यक्तित्व उस महिला का है, जो उम्र के आखिरी पड़ाव पर खुद को एकदम अकेला पा रही है। रह-रह कर उसकी जुबान पर एक ही वाक्य आता है, लोगों के पास अब वक्त नहीं है। यह केवल इस महिला ही नहीं बल्कि उनके जैसे उम्रदराज लोगों की पूरी पीढ़ी का दर्द है, जिनका अस्तित्व अपने ही घर में एक कोने में पड़े कबाड़ से ज्यादा नहीं रह गया है।
नाम : सावित्री देवी ठाकुर
उम्र : करीब 80 वर्ष
रंग : गेहुंआ
निवास : फिलहाल पिछले दो दिन से गोविंद नगर दो व तीन ब्लाक की सड़क पर करंट उतर आने वाले खंभे के बगल में।
नवरात्र में जब पूरा देश मां जगदंबा की आराधना में जुटा है। इस वृद्धा के परिजनों ने उनसे अपना पल्ला झाड़ लिया। दो दिन पहले रविवार सुबह गोविंद नगर में ब्लाक दो व तीन के बीच की सड़क पर रहने वाले जितेंद्र कुमार जब टहलने निकले तो उन्हें घर के बाहर सड़क पर घिसट कर जाती वृद्ध महिला नजर आई। वह कुछ दूर जाकर ठहर गई। दिनभर आसपास सड़क पर बैठी रही वह महिला सोमवार को भी आसपास रही और शाम को नाली के किनारे खाली जगह पर लेट गई। खुद को साफ रखने में अक्षम होने के कारण उनके कपड़े बुरी तरह गंदे व दुर्गधयुक्त हैं। बगल में ही बिजली का वह खंभा भी था जिसमें अक्सर करंट उतर आता है।
पहले दो दिन उसे भिखारी समझते रहे आसपास रहने वाले लोगों की आंखें उस समय खुली रह गई जब नवरात्र के पहले दिन सुबह पास ही स्थित दुर्गा मंदिर आते जाते श्रद्धालुओं ने उन्हें भिखारी समझ उनके सामने रुपये डाल दिए, मगर उन्होंने रुपयों को हाथ भी नहीं लगाया।
क्षेत्र के ही विक्रम मल्होत्रा के मुताबिक एक भिखारी महिला वहां आई वह थोड़ी देर वृद्ध महिला से बात करती रही। बातों ही बातों में उसने वहां पर पड़े सारे पैसे उठाकर चली गई। वृद्ध महिला ने इसका कोई विरोध भी नहीं किया। जिससे साफ हो गया कि महिला कोई भिखारी नहीं है।
जितेंद्र कुमार के मुताबिक उनकी जो स्थिति है, उससे तो यही लगता है कि उन्हें वहां कोई छोड़ गया है। उनके मुताबिक मंगलवार सुबह उन्होंने चाय देने की कोशिश की तो वह बोलीं कि दो दिन से कुछ नहीं खाया है, बिस्कुट नहीं दोंगे। वह अपनी गंदी धोती बदलवाने की भी जिद करती हैं।
बातचीत की गई तो बमुश्किल उन्होंने अपना नाम बताया। काफी कुरेदने के बाद उन्होंने पति का जिक्र तो किया लेकिन वह कहां रहते हैं और यहां उन्हें कौन छोड़ गया, इस पर वह चुप्पी साध लेती हैं।
उन्होंने अपनी बेटी का नाम मीरा बताया और यह भी बताया कि मीरा का एक बेटा भी है। दामाद के मकान का तो जिक्र वह करती हैं लेकिन दामाद का नाम और वह मोहल्ला कौन-सा है, इसके बारे में वह कुछ नहीं बोलतीं।
बेटी-नाती के पास चलने की बात कहते ही वह इनकार से सिर हिला देती हैं। उनके होठों से एक ही बात निकलती है, अब किसी के पास उनके लिए समय नहीं है। शून्य में ताकती हुई वह कई बार बड़बड़ाती हैं, मुझसे कोई चालाकी नहीं कर सकता मगर वह यह नहीं बतातीं कि किसने उनसे चालाकी करने की कोशिश की।
मेरा विचार
१। जो अभी जवान हैं वो भी एक दिन बुजुर्ग बनेगें
२। हमारे बुजुर्ग हमसे प्यार और अच्छी परवरिश की अपेक्षा रखतें हैं यह कोई अपराध नहीं बल्कि उनका हक हैं और जवानों का उत्तरदायित्व भी
३। हमारे बुजुर्ग दुनिया का अनुभव रखतें हैं अगर हम उनके पास बैठें तो वो हमें बड़ी सरलता से उसे हमें समझा सकतें हैं

सूदूर जापान में भी है एक मिथिला


उनका नाम टोकियो है, लेकिन वह रहते निगाता में हैं और उनका दिल मिथिला के लिए धड़कता है। जिस जापान में कुल बीस हजार ही हिंदुस्तानी रहते हों, वहां अलग से मिथिला के नाम पर कुछ होना अपने आप में चौंकाने वाला है। इससे भी ज्यादा हैरानी की बात यह है कि वह व्यक्ति कोई हिंदुस्तानी नहीं बल्कि एक जापानी है।
जापान के टोकियो हासेगावा टोक्यो से कई सौ किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में बंदरगाह शहर निगाता में एक पहाड़ी पर बने मिथिला म्यूजियम के निदेशक हैं। यह म्यूजियम उन्हीं की परिकल्पना है और उन्होंने इसकी स्थापना उस समय की थी जब जापान में मुट्ठीभर भारतीय रहे होंगे।
हासेगावा एनपीओ सोसायटी टू प्रोमोट इंडो-जापान कल्चरल रिलेशंस के प्रतिनिधि के हैसियत से टोक्यो में 16 साल से फेस्टिवल करा रही नमस्ते इंडिया कमेटी के 2003 से चेयरमैन भी हैं और इस सोसायटी का सचिवालय भी मिथिला म्यूजियम से ही कार्य कर रहा है।
हासेगावा के मिथिला से प्रेम की कहानी बड़ी रोचक है। वह उन जापानियों में से नहींजो महज भारत प्रेम में डूबे हैं बल्कि उनका प्रेम अध्यात्म, संस्कृति और प्रकृति की कई प्रेरणाओं से उपजा है। हाशेगावा खुद को जापान के एडो काल की 16वींपीढ़ी का मानते हैं। महज 18 वर्ष की उम्र में वह संगीतकार बने और संगीत में नई धाराओं व प्रयोगों की खोज में लग गए। जल्द ही उन्हें यूरोपीय म्यूजियमों से न्योते आने लगे। महज 24 की उम्र में उन्होंने जापान छोड़ दिया। लौटकर उन्होंने एडो काल की उकीयोए पेंटिंग के विकास में खुद को लगा दिया।
हाशेगावा उन लोगों में हैं जो आधुनिकता को विरासत का और विकास को प्रकृति का दुश्मन मानते हैं। वे मानते हैं कि मनुष्य मूल रूप से संगीत, नृत्य व कविता का प्रेमी रहा है। इसीलिए पुरानी परंपराओं की जिंदा रखने के लिए उन्होंने पहले निगाता में एक प्राथमिक स्कूल की स्थापना की।
हाशेगावा 1982 में भारत गए। वहींउन्हें किसी से मधुबनी पेंटिंग के बारे में जानकारी मिली। उत्साहित हाशेगावा मधुबनी चले गए जहां उनकी मुलाकात गंगा देवी से हुई। यह मुलाकात और मधुबनी चित्रकारों की खराब स्थिति उनकी प्रेरणा बने। मधुबनी पेंटिंगों से उन्होंने उसी तरह से नाता जोड़ा जैसे अपने देश की लुप्त होती कलाओं से जोड़ा था। लौटकर उन्होंने मिथिला म्यूजियम की स्थापना की। उसके बाद सब इतिहास है।
हाशेगावा 25 बार भारत जा चुके हैं और 1500 से ज्यादा मधुबनी पेंटिंग निगाता की रौनक बढ़ा रही हैं। वह चित्रकारों को मदद देते हैं, उनकी पेंटिंग खरीदते हैं। यही नहीं, वह इन चित्रकारों को जापान लेकर जाते हैं। ये चित्रकार निगाता में ही महीनों रहते हैं, पेंटिंग बनाते हैं। दो सौ से ज्यादा लोग यहां आकर रह चुके हैं। हर चीज का खर्च खुद हाशेगावा उठाते हैं। मशहूर मधुबनी चित्रकार बुआ देवी और कर्पूरी देवी नौ-नौ बार जापान जा चुकी हैं। हर प्रवास कई-कई महीनों चला है।
अब हाशेगावा खुद को मधुबनी पेंटिंग का हिस्सा मानते हैं। वे पेंटिंगों में प्राकृतिक रंगों के इस्तेमाल पर जोर डालते हैं, लिहाजा कर्पूरी देवी व बुआ देवी गेरूं, सेम, काजल व सिंदूर का इस्तेमाल करती हैं। यही नहीं, हाशेगावा इन मशहूर चित्रकारों के कई चित्रों की परिकल्पना भी तैयार करते हैं। अब यह प्रक्रिया कई अन्य भारतीय कलाओं की भी मददगार बनी है। महाराष्ट्र की वारूड़ी पेंटिंग इसी कड़ी में शामिल है। पीतल, बांस, मिट्टी से शिल्प तैयार करने वाले कई कलाकार और नर्तक भी निगाता आते हैं। नमस्ते इंडिया फेस्टिवल के लिए दो टेराकोटा कलाकार दो महीने निगाता आकर कलाकृतियां बनाते रहे। इसी तरह नोएडा के पास सिकंदराबाद के शम्सुल हक भी तीन हफ्ते तक अपने एक साथी के साथ निगाता में रुककर बांस के हाथी बनाते रहे।
भारतीय कलाओं का यह बेजोड़ प्रेमी भारतीय संस्कृति के इस जश्न का प्रेरणास्रोत रहा है। तमाम तंगी के बावजूद उन्होंने इसे रुकने नहीं दिया। लेकिन उन्हें भारत में वह पहचान नहीं मिली जिसके वह हकदार थे। जापान में भारतीय दूतावास की तमाम कोशिशों के बावजूद भारत सरकार ने जब इस ओर कान नहींधरा तो दूतावास ने उन्हें 2007 में भारत-जापान एक्सचेंज अवार्ड दे डाला। आज मधुबनी पेंटिंगों की दुनियाभर में पहचान बनी है तो उसमें एक जापानी टोकियो हाशेगावा का भी बड़ा योगदान है।

चामुंडा मंदिर हादसा : हांफी राहें, टूटा दम

किले की दीवारें अवाक् रह र्गई। संकरी राहें सिसकने लगीं। एक पल में कई गोद सूनी हो गईं। जयकारों के बीच ‘मां-मां’ की पुकारें गूंजने लगीं। किले के सदियों के इतिहास में मंगलवार को एक स्याह पल में कलंक लग गया।
जोधपुर के मेहरानगढ़ दुर्ग स्थित चामुंडा माता मंदिर व्यवस्था में लापरवाही का स्थाई दस्तावेज बन गया! ..लापरवाही की फिसलन, हजारों श्रद्धालु.. प्रशासनिक अमला नदारद।
कभी जयघोष से गूंजने वाली किले की बुर्जियां घायलों की हृदयविदारक चीत्कारों से जार-जार हो र्गई। ऐसे हालात में भी शहर ने दिखाया, जोधपुरी परंपरा में कितना माद्दा है। बाकी बेटे आ जुटे, टैक्सी वाले निशुल्क सेवाएं देने लगे, रक्त देने के लिए अस्पताल में कतारें लग गईं..
फिसलन भरा हादसा
नारियल फोड़ने से निकले पानी की फिसलन से लोग एक दूसरे पर गिरते गए और पैरों के नीचे दबने से ज्यादातर मौतें हुईं।
अफवाह की भगदड़
जैसे ही कुछ लोग गिरे, कहीं दीवार गिरने, तो कहीं बम की अफवाहें फैल गईं, जिससे भगदड़ मच गई।
खामियों का इंतजाम
मंदिर व रास्ते में नारियल फोड़ने को प्रतिबंधित नहीं किया गया था। बेरिकेड्स इस तरह लगाए थे कि रास्ता मात्र 5 फीट का रह गया।
बुझ गए चिराग
मरने वालों में ज्यादातर पुरुष थे, उनमें भी युवा व किशोर अधिक हैं। 12 से 26 वर्ष के युवकों की संख्या अधिक बताई जा रही है।
फूट पड़ा गुस्सा
लोगों में इस हादसे की वजह से इतना गुस्सा था कि सांसद की पिटाई कर डाली व विधायक को भी खरी-खोटी सुना दी।
हर जगह चल रहा था इलाज
शहर के निजी अस्पतालों में भी कोहराम मचा हुआ था। अस्पतालों के बाहर कोई रो रहा था तो कोई अपने रिश्तेदार को ढूंढ रहा था। कहीं पर शव को घर ले जाने की तैयारी थी तो कही पर हाथों में उठाए बेहोश लोगों को लाया जा रहा था।
कमोबेश आठ से दोपहर बारह बजे तक यह दृश्य शहर के निजी अस्पतालों में देखे गए। भीतर के दृश्य तो रुलाने वाले थे। अस्पतालों के इंतजार कक्ष ही मुर्दाघर बने हुए थे। लाशें कतार में रखी थीं। पुलिस मृतकों की शिनाख्त कर रही थी तो परिजन शव के पास विलाप कर रहे थे। गोयल अस्पताल में 31 जनों की मौत हुई।
एमडीएम के समीप होने से दुर्ग से कई गंभीर घायलों को गोयल अस्पताल लाया गया। अस्पताल के बाहर पुलिस का जमावड़ा था तो परिजनों की भीड़। भीतर स्ट्रेचर पर कइयों का उपचार किया जा रहा था। अंडर ग्राउंड में बड़ा कमरा जहां मरीजों के परिजन इंतजार करते हैं, वो कक्ष मुर्दाघर नजर आया।
करीब एक दर्जन शव वहां पड़े थे। पुलिस शवों की श्निाख्त कर रहा थी। परिजन जल्द से जल्द शव ले जाने की गुहार कर रहे थे। कमला नगर अस्पताल में 28 जनों की मौत हुई। दुर्ग से घायलों को सूरसागर के रास्ते इस अस्पताल में लाया गया। अस्पताल में गमगीन माहौल था। शव एंबुलेंस में ले जाने की व्यवस्था की जा रही थी तो कई स्वयंसेवी संस्थाओं की गाड़ियां मदद के लिए आ गई। र्न्िसग स्टाफ व चिकित्सक घायलों को हर संभव उपचार देते नजर आए। मणिधारी अस्पताल में 16 जनों ने दम तोड़ा।
कनात की स्ट्रेचर बनाई
घायलों को नीचे लेजाने के लिए दुर्ग पर लगे अस्थाई हाट बाजार में लगी कनातें उखाड़ कर लोगों ने स्ट्रेचर की तरह उपयोग में लिया।
क्रेन को बनाया एंबुलेंस
हादसे के समय एंबुलेंस मौजूद नहीं होने से दुर्ग के बाहर खड़ी यातायात क्रेन को ही एंबुलेंस बनाया व उस पर घायलों व मृतकों को डालकर अस्पताल पहुंचाया। वहीं दुर्ग के बाहर खड़ी कारों, बसों व जीपों आदि में भी घायलों को अस्पताल ले जाया गया।

मेरा विचार

१। आप लोग भी अपने शहर, गांवों के मंदिरों को देखें

२। उनकी क्या व्यवस्था है उसे देखें और अपने ब्लागों पर लिखे तथा चित्र भेजे

३। अगर मन्दिर में नारियल फोडे तो अंत में मन्दिर में जो कचरा आप फैला कर आए हैं उसके प्रति जिम्मेवार बने

४। संकोच त्याग कर अपना कचरा अपनी पोलीथिन में ले आए और अपने क्षेत्र के कूड़ाघर में डाले